जिसकी चौडाई 23 फुट या 7 दशमलव 10 मी0 गौलाई थी उंचाई 128 फीट थी । इस तरीके से काफी बडा पेड था । इस मंदिर परिसर के कई मंदिरो पर संरक्षित स्मारक के बोर्ड भी लगे थे । काफी प्राचीन इस मंदिर परिसर में ज्यादातर मंदिर शिव को समर्पित हैं पर हनुमान और देवियो के भी मंदिर हैं सारे मंदिर लकडी से ज्यादातर निर्मित और ढलुआ छत के बने हुए हैं आज जब मै ये लिख रहा था तो प्रोफेसर मनीष जी का इनसाइट पढकर मेरे दिमाग में आया कि इस मंदिर की वास्तु का वर्णन कर दूं । आयताकार गर्भगृह , स्तम्भ युक्त मंडप , एवं द्धार मंडप की योजना में निर्मित यहां के लक्षणा देवी के मंदिर की सम्पूर्ण संरचना स्लेट पत्थरो से आच्छादित तिकोनी छत से ढकी हुई है ।गर्भगृह में लक्षणा देवी की अष्टधातु की मूर्ति स्थापित है । जिसके आधार भाग पर खुदे लेख से प्रमाणित हुआ है
एक सुंदर पेड सुंदर घाटियो में |
पर जब संदीप भाई ने मंदिर देखने को कहा तो राजेश जी ने मना कर दिया कि आप देख आओ । भरमौर में गाडी सडक किनारे लगाने के बाद हमने एक पुलिस वाले से पूछा कि चौरासी मंदिर कितनी दूर पडेगा तो उसने बताया कि मुश्किल से चार सौ मीटर होगा तो हम चल दिये । भरमौर मे एक सुंदर सा गेट मेन रोड पर बना हुआ है जिसे बिना देखे आप गुजर नही सकते । आते या जाते इस गेट पर आपकी निगाह जरूर पडेगी इसलिये इसे देखना तो बनता है । मंदिर तक जाते जाते आपको भरमौर भी और उसका बाजार भी दिख जायेगा । यहां मुर्गे के अचार और जिंदा मुर्गे की काफी दुकाने हैं जैसा कि मैने डलहौजी की पोस्ट में सबसे पहला फोटो लगाया था यहां पर मांस की बहुतायत है ।
हममें से ज्यादातर लोग दक्षिण के नाम पर नाक भौं सिकोडते हैं कि वहां पर खाना वेज नही मिलता जबकि हकीकत ये है कि रोटी को छोडकर वहां पर कोई समस्या नही है जबकि जून में पूर्वोत्तर मे किसी भी जगह रोटी या वेज समस्या नही है बस मेघालय में एक चीज औरो से अलग थी वो ये कि जब आप किसी भी गांव या कस्बे से गुजरते हो तो आपको मीट की दुकाने आन रोड मिलेंगी और उस पर टंगा हुआ मीट जिससे कि हमारे साथ की औरते असहज हो जाती थी । हो तो हम् भी जाते थे । ऐसा नही है कि सिक्किम या आसाम में मीट नही बिकता पर वहां ये मेन रोड और पर्यटक स्थलो पर इस तरह खुले तौर पर नही बिकता है । मेन रोड के आसपास की गलियों में और परदे की दुकानो में बिकता है । ये थोडा सहज रहता है ।
भरमौर में मेन रोड पर बना द्धार |
भरमौर व भरमाणी मार्ग का नक्शा |
तो मै ये बता रहा था कि हडसर जो कि मणिमहेश यात्रा का शुरूआती स्थल है वहां पर भी हमें प्योर तो क्या खाली वेज होटल नही मिला था और हमें विनती करके अपने लिये थोडी जगह में अलग से खाना बनवाना पडा था । वो भी खाना बनने तक हम बाहर खडे रहे थे । तो यहां पर इस तरह का व्यवहार देखकर मुझे हैरानी होती है कि वैसे तो पहाडी लोगो का जीवन कितना सादा और सरल होता है पर खान पान में वो इस तरह का खान पान क्यों अपनाते हैं ?
भरमौर का नजारा |
चौरासी मंदिर का एक गेट |
यहां लिखी चमत्कार गाथा |
यहां को रास्ता भी है इसलिये |
ये है काफी बडा लम्बा चौडा देवदार |
ये है लक्षणा माता का मंदिर |
मंदिर का पृष्ठभाग |
यहां पर माता के चमत्कार की गाथा जो कि 1998 में ही हुआ था वो लिखी हुई है । इस मंदिर से आगे चले तो सामने ही एक देवदार का पेड था जिसकी चौडाई 23 फुट या 7 दशमलव 10 मी0 गौलाई थी उंचाई 128 फीट थी । इस तरीके से काफी बडा पेड था । इस मंदिर परिसर के कई मंदिरो पर संरक्षित स्मारक के बोर्ड भी लगे थे । काफी प्राचीन इस मंदिर परिसर में ज्यादातर मंदिर शिव को समर्पित हैं पर हनुमान और देवियो के भी मंदिर हैं सारे मंदिर लकडी से ज्यादातर निर्मित और ढलुआ छत के बने हुए हैं आज जब मै ये लिख रहा था तो प्रोफेसर मनीष जी का इनसाइट पढकर मेरे दिमाग में आया कि इस मंदिर की वास्तु का वर्णन कर दूं । आयताकार गर्भगृह , स्तम्भ युक्त मंडप , एवं द्धार मंडप की योजना में निर्मित यहां के लक्षणा देवी के मंदिर की सम्पूर्ण संरचना स्लेट पत्थरो से आच्छादित तिकोनी छत से ढकी हुई है ।गर्भगृह में लक्षणा देवी की अष्टधातु की मूर्ति स्थापित है । जिसके आधार भाग पर खुदे लेख से प्रमाणित हुआ है कि ये मंदिर सातवी शताब्दी का है और राजा मेरूवर्मन के आदेशानुसार उनके शिल्पी गोगा द्धारा किया गया था । गर्भगृह के लकडी के द्धार में तीन शाखाये हैं । जबकि मुख्यद्धार छह नक्काशीदार शाखाओ से सज्जित है । मंडप छह नक्काशीदार स्तम्भो से निर्मित है । जो इसे तीन भागो में विभक्त करते हैं । मध्य भाग की छत खिले कमल के रूप में तराशी गयी है । इस पर बेलबूटे , मकर आदि उकेरे गये हैं । मंडप स्तम्भो के उपरी भाग में पत्रावली ,पुष्पमाला , फूलपत्तियो के सुंदर नमूने उकेरे गये हैं । इसकी स्थापत्य कला के कारण भारत सरकार ने इसे 17 सितम्बर 1952 को राष्ट्रीय महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया है । ओह ......................बहुत हो गया । एक मंदिर का ऐसा वर्णन तो चौरासी का कैसे होगा । मै प्रोफेसर नही हूं वो वो ही हैं और मै मै ही हूं तो जिसका काम उसी को साजे की तर्ज पर मै ये इतिहास आदि का काम उनके जिम्मे छोडकर अपनी सीधी घुमक्कडी पर चलता हूं एक पैरे में ही थक गया हूं
मुख्य मंदिर में जब हम लोग पहुंचे तो थोडी दूर बैठा पुजारी हमारे दर्शन करके निकलते ही भागकर मंदिर में पहुंचा । उसने थोडा इधर उधर ढूढां पर जब कोई एक रूपये का सिक्का भी नही मिला तो अपने साथियो से बोला कि ये तो फोटो ख्रींचने वाले हैं खाली । हमने सुन लिया था तो हम हंस पडे । मंदिर के सामने पीतल के नंदी की आदमकद प्रतिमा विराजमान थी । और बराबर की साइड में प्रसाद की दुकाने । वैसे और मंदिरो में तो गर्भगृह में अंधेरा था पर मुख्य मंदिर में शिवलिंग का फोटो हमने ले लिया । इस पूरे मंदिर परिसर की एक खास बात ये भी थी मंदिर की पृष्ठभूमि में सुंदर पर्वत श्रंखलायें हैं जो इसे फोटोजेनिक बना देती हैं और ये एक शानदार जगह बन जाती है । यहां मौजूद नरसिंह मंदिर पर लिखा है कि ये मंदिर ग्यारहवी शताब्दी का है इसका मतलब ये है कि कालांतर में भी राजा या और लोगो ने इसमें और मंदिर बनाये थे ।इस पवित्र स्थल पर पर्यटक भी काफी आते हैं जिनका चाहे धर्म से कोई मतलब हो या ना हो या वे धार्मिक यात्रा पर भी ना हों पर इस जगह की छटा ही निराली है । मणिमहेश यात्रा जब चंबा से शुरू होती है तो बिना यहां से पूजा किये ये नही जाती । बीच में राख , खडामुख इन गांवो में भी विश्राम होता है । इस गावं का नाम पहले ब्रहमपुरा था । चौरसिया मंदिर का नाम इसके 84 मंदिर समूह के नाम पर रखा गया है । मरू वंश के राजा साहिल वर्मा जो भरमौर के राजा थे और चौरासी योगियो ने उन्हे उनके आदर सम्मान से प्रसन्न होकर संतान दी । राजा ने उनके सम्मान में इन मंदिर समूहो का निर्माण कराया था
MANIMAHESH YATRA-
मंदिर के पास में ही भारतीय जनता पार्टी का कार्यालय भी था और चारो ओर बसी इस आबादी के आने जाने का रास्ता भी यही था तो ऐसा लगता था कि जैसे ये मंदिर एक परिसर में ना होकर कहीं चलती फिरती सडक के बीचोबीच हो । इसलिये एक जगह तो लिखा भी था कि जनता शराब पीकर मंदिर में प्रवेश ना करे । हमने यहां पर बहुत ज्यादा समय नही बिताया और वापस चल पडे । मराठा पाटी से बात हुई तो उन्हेाने बताया कि वे तो भरमाणी देवी के मंदिर पर गये हैं । हमारा भी मन था पर गाडी के लिये और वो भी स्कार्पियो के लिये रास्ता लोगो ने छोटा बता दिया सो हम लोग फिर वहां नही गये । सब लोग आ गये थे गाडी में पर विपिन महाराज अभी तक नही आये थे और खास बात ये कि अपना फोन बंदा बैग में रखता था ज्यादातर । आधा घंटे बाद विपिन आया तब सब आगे के लिये चले ।तो चलते हैं आगे चंबा होते हुए वापसी दिल्ली के सफर पर
मंदिर में नन्दी |
मुख्य मंदिर का शिवलिंग |
सातवी शताब्दी का मंदिर है ये |
ये है मुख्य मंदिर |
ये भी मंदिर का दृश्य |
ये 11 वी शताब्दी का मंदिर है |
जाट देवता |
मंदिर परिसर का एक दृश्य |
एक फोटो त्यागी जी का |
स्कूल के बच्चे खेलते भी यहीं हैं |
और झूलते भी हैं |
कुछ ने तो इसे मंच बनाया है |
मंदिर का पूरा नाम |
एक और मंदिर का दृश्य |
सुंदर संरचना.
ReplyDeleteधन्य भाग हमारे ।
ReplyDeleteआभार ।।
गज़ब, अब तो यंही कहूँगा बस, अति सुन्दर.....वन्देमातरम....
ReplyDeletebeautiful post,very good pics.
ReplyDeleteजाट देवता सदा जिंदाबाद :)
ReplyDeleteविस्तृत और रोचक विवरण।
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