इस मंदिर में करीब 200 ग्राम का उस जमाने का एक गेंहू का दाना भी है जिसे देखने के लिये आपको पुजारी से कहना होगा और वो आपको दिखा देंगें ।उस याद में आज भी इस मंदिर में अनवरत अग्नि जलती रहती हैये अग्नि आज तक बुझी नही है तबसे लेकर
Mamleshwar mahadev temple , Karsog ,ममलेश्वर महादेव , करसोग ,
करसोग को कुदरत की बेटी भी कहा जाता है और शोक की घाटी भी
रात को साढे सात तक करसोग पहुंच गया । यहां पर सबसे पहले एक गेस्ट हाउस पडा उसी में कमरा पूछा । 300 रूपये में कमरा तय हो गया । सुबह शिकारी देवी की चढाई उसके बाद बाइक से रोहांडा तक और कमरूनाग की दो जाना और एक आना यानि तीन किलोमीटर की चढाई और उसके बाद बारिश में भीगते हुए रोहांडा से करसोग आने में शरीर टूट चुका था ।
खाना होटल में नही मिलता था केवल मैगी मिल सकती थी । मैने फुल प्लेट का आर्डर दिया क्योंकि मेरा सोने का मूड था । जब बहुत देर तक मैगी नही आयी तो मै उपर देखने गया । यहां तो सारे कमरो में पीने वाले थे और तो और मैगी बनाने वाला भी धुत था नशे में केवल रिसेप्शन पर बैठी महिला ही ठीक थी पर उसे सब पता था और वो सब जानते हुए भी मुझे तसल्ली देने लगी कि मै अभी बनाती हूं खुद
वो जब तक मैगी बनाकर लायी तब तक मैने करसोग के रात के फोटो खींच डाले । शहर में बहुत ज्यादा लाइटे नही थी बहुत ज्यादा चमक दमक भी नही थी । शांत सा शहर है करसोग
सुबह उठा तो नहाने के लिये पानी भी नही आ रहा था और ना ही गीजर चल रहा था । होटल वालो का पता नही था कि कहां पर हैं । बडी मुश्किल से होटल का बंदा मिला उसने तब जाकर एक बाल्टी गर्म पानी लाकर दिया । मुझे बहुत खराब तजुर्बा हुआ था हालांकि पहली बार नही था पर मैने निभा लिया जैसे तैसे रात ही तो काटनी थी ।
नहा धोकर मैने अपना सामान बांधा और बाइक उठाकर नीचे की ओर उतरना शुरू किया । करसोग के लगभग अंत में यानि आखिरी में ममलेश्वर मंदिर है । मंदिर से कुछ पहले मैने चाय नाश्ता किया और फिर मंदिर के बाहर बाइक खडी करके अंदर दर्शन करने गया ।
करसोग नगर मंडी जिले का उपमंडल है और इसी के ममेल गांव में ममलेश्वर महादेव का मंदिर है । मंदिर में घुसते ही भव्य लकडी से बना मंदिर दिखायी देता है लेकिन एक मंदिर पुराना भी इसी परिसर में मौजूद है । मंदिर पगौडा शैली में बना है और पूरा का पूरा लकडी से निर्मित है । जब मै मंदिर में पहुंचा तो मैने मुख्य द्धार से पहले जूते निकाल दिये थे पर उसके बाद भी अंदर बैठे पुजारी ने मेरे पैरो की ओर इशारा किया । मै समझ नही पाया कि वो क्या कहना चाहते हैं । फिर एक दूसरे आदमी ने बताया कि मोजे निकाल दो । चलो भाई मोजे भी निकाल देते हैं । मंदिर में सामने ही शिव पार्वती की मूर्ति है कुछ पुरानी पत्थर की मूर्तिया रखी हैं जो कि शायद अवशेष है या खुदायी में से निकले हुए लगते हैं । मंदिर के चारो ओर परिक्रमा करने की जगह है उसमें भी जगह जगह मूर्तिया रखी हैं ।
महाभारत में एक कथा आती है जिसमें जब पांडव वनवास में घूम रहे थे तो वे एक गांव में रूके । उस गांव में एक राक्षस ने एक गुफा में डेरा जमाया हुआ था । उस राक्षस के प्रकोप से बचने के लिये लोगो ने उस राक्षस के साथ एक समझौता किया हुआ था कि वो रोज एक आदमी को खुद उसके पास भेजेंगें उसके भोजन के लिये जिससे कि वो सारे गांव को एक साथ ना मारे । एक दिन उस घर के लडके का नम्बर आया जिसमें पांडव रूके हुए थे । उस लडके की मां को रोता देख पांडवो ने कारण पूछा तो उसने बताया कि आज मुझे अपने बेटे को राक्षस के पास भेजना है ।
अतिथि के तौर पर अपना धर्म निभाने के लिये पांडवो में से भीम ने उस लडके की बजाय खुद जाना स्वीकार किया उस राक्षस के पास । भीम जब उस राक्षस के पास गया तो उन दोनो में भयंकर युद्ध हुआ और भीम ने उसे मार दिया पर यहां पर उस याद में आज भी इस मंदिर में अनवरत अग्नि जलती रहती हैये अग्नि आज तक बुझी नही है तबसे लेकर
इस मंदिर में करीब 200 ग्राम का उस जमाने का एक गेंहू का दाना भी है जिसे देखने के लिये आपको पुजारी से कहना होगा और वो आपको दिखा देंगें । मैने भी उनसे कहा तो उन्होने बडे प्रेम से दिखाया और फोटो खींचने के लिये भी इस मंदिर में रोकटोक नही थीइस गेंहू को देखकर पर्यटक हैरत में पड जाते हैं
इस गेंहू के दाने और अन्य पांडवकालीन चीजो की पुष्टि पुरातत्व विभाग भी कर चुका है
मंदिर के दर्शन करके मै दोबारा से बाइक उठाकर चल पडा अपने अगले पडाव कामाख्या मंदिर के लिये जिसे आप कल पढ सकते हैं
room at karsog |
रात को साढे सात तक करसोग पहुंच गया । यहां पर सबसे पहले एक गेस्ट हाउस पडा उसी में कमरा पूछा । 300 रूपये में कमरा तय हो गया । सुबह शिकारी देवी की चढाई उसके बाद बाइक से रोहांडा तक और कमरूनाग की दो जाना और एक आना यानि तीन किलोमीटर की चढाई और उसके बाद बारिश में भीगते हुए रोहांडा से करसोग आने में शरीर टूट चुका था ।
खाना होटल में नही मिलता था केवल मैगी मिल सकती थी । मैने फुल प्लेट का आर्डर दिया क्योंकि मेरा सोने का मूड था । जब बहुत देर तक मैगी नही आयी तो मै उपर देखने गया । यहां तो सारे कमरो में पीने वाले थे और तो और मैगी बनाने वाला भी धुत था नशे में केवल रिसेप्शन पर बैठी महिला ही ठीक थी पर उसे सब पता था और वो सब जानते हुए भी मुझे तसल्ली देने लगी कि मै अभी बनाती हूं खुद
वो जब तक मैगी बनाकर लायी तब तक मैने करसोग के रात के फोटो खींच डाले । शहर में बहुत ज्यादा लाइटे नही थी बहुत ज्यादा चमक दमक भी नही थी । शांत सा शहर है करसोग
सुबह उठा तो नहाने के लिये पानी भी नही आ रहा था और ना ही गीजर चल रहा था । होटल वालो का पता नही था कि कहां पर हैं । बडी मुश्किल से होटल का बंदा मिला उसने तब जाकर एक बाल्टी गर्म पानी लाकर दिया । मुझे बहुत खराब तजुर्बा हुआ था हालांकि पहली बार नही था पर मैने निभा लिया जैसे तैसे रात ही तो काटनी थी ।
नहा धोकर मैने अपना सामान बांधा और बाइक उठाकर नीचे की ओर उतरना शुरू किया । करसोग के लगभग अंत में यानि आखिरी में ममलेश्वर मंदिर है । मंदिर से कुछ पहले मैने चाय नाश्ता किया और फिर मंदिर के बाहर बाइक खडी करके अंदर दर्शन करने गया ।
करसोग नगर मंडी जिले का उपमंडल है और इसी के ममेल गांव में ममलेश्वर महादेव का मंदिर है । मंदिर में घुसते ही भव्य लकडी से बना मंदिर दिखायी देता है लेकिन एक मंदिर पुराना भी इसी परिसर में मौजूद है । मंदिर पगौडा शैली में बना है और पूरा का पूरा लकडी से निर्मित है । जब मै मंदिर में पहुंचा तो मैने मुख्य द्धार से पहले जूते निकाल दिये थे पर उसके बाद भी अंदर बैठे पुजारी ने मेरे पैरो की ओर इशारा किया । मै समझ नही पाया कि वो क्या कहना चाहते हैं । फिर एक दूसरे आदमी ने बताया कि मोजे निकाल दो । चलो भाई मोजे भी निकाल देते हैं । मंदिर में सामने ही शिव पार्वती की मूर्ति है कुछ पुरानी पत्थर की मूर्तिया रखी हैं जो कि शायद अवशेष है या खुदायी में से निकले हुए लगते हैं । मंदिर के चारो ओर परिक्रमा करने की जगह है उसमें भी जगह जगह मूर्तिया रखी हैं ।
महाभारत में एक कथा आती है जिसमें जब पांडव वनवास में घूम रहे थे तो वे एक गांव में रूके । उस गांव में एक राक्षस ने एक गुफा में डेरा जमाया हुआ था । उस राक्षस के प्रकोप से बचने के लिये लोगो ने उस राक्षस के साथ एक समझौता किया हुआ था कि वो रोज एक आदमी को खुद उसके पास भेजेंगें उसके भोजन के लिये जिससे कि वो सारे गांव को एक साथ ना मारे । एक दिन उस घर के लडके का नम्बर आया जिसमें पांडव रूके हुए थे । उस लडके की मां को रोता देख पांडवो ने कारण पूछा तो उसने बताया कि आज मुझे अपने बेटे को राक्षस के पास भेजना है ।
अतिथि के तौर पर अपना धर्म निभाने के लिये पांडवो में से भीम ने उस लडके की बजाय खुद जाना स्वीकार किया उस राक्षस के पास । भीम जब उस राक्षस के पास गया तो उन दोनो में भयंकर युद्ध हुआ और भीम ने उसे मार दिया पर यहां पर उस याद में आज भी इस मंदिर में अनवरत अग्नि जलती रहती हैये अग्नि आज तक बुझी नही है तबसे लेकर
इस मंदिर में करीब 200 ग्राम का उस जमाने का एक गेंहू का दाना भी है जिसे देखने के लिये आपको पुजारी से कहना होगा और वो आपको दिखा देंगें । मैने भी उनसे कहा तो उन्होने बडे प्रेम से दिखाया और फोटो खींचने के लिये भी इस मंदिर में रोकटोक नही थीइस गेंहू को देखकर पर्यटक हैरत में पड जाते हैं
इस गेंहू के दाने और अन्य पांडवकालीन चीजो की पुष्टि पुरातत्व विभाग भी कर चुका है
room at karsog |
karsog at night |
karsog at night |
mamleshwer temple , karsog |
mamleshwer temple , karsog |
mamleshwer temple , karsog |
mamleshwer temple , karsog |
mamleshwer temple , karsog |
मंदिर में अनवरत जलती अग्नि |
पांडव कालीन 200 ग्राम का गेंहू का दाना |
mamleshwer temple , karsog |
mamleshwer temple , karsog |
मंदिर के दर्शन करके मै दोबारा से बाइक उठाकर चल पडा अपने अगले पडाव कामाख्या मंदिर के लिये जिसे आप कल पढ सकते हैं
Tyagi ji ram-ram.prachin katha aur prachin mandir k darshan karane k leya dhanybaad.sayad us draty ka naam bakasur tha jiska vadh bheem ne kiya tha.photo mast aayi h
ReplyDeletebahut badiya:-)
ReplyDeletehttp://eyeswantstosee.blogspot.com/
आपकी इस प्रस्तुति को शुभारंभ : हिंदी ब्लॉगजगत की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतियाँ ( 1 अगस्त से 5 अगस्त, 2013 तक) में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
ReplyDeleteकृपया "ब्लॉग - चिठ्ठा" के फेसबुक पेज को भी लाइक करें :- ब्लॉग - चिठ्ठा