Dal Lake रात को ही ये तय हो गया था कि हाउसबोट तो बढिया है पर दो कारणो से हमें इसको एक ही दिन में छोडना पडेगा । एक तो ये कि चार दिन के कु...
Dal Lake |
दूसरा ये हाउसबोट से बार बार जाने की समस्या है ये नही कि आपका मन नही लग रहा तो कहीं घूमने निकल पडो । कमरे में कोई सामान भूल गये तो वापस लाने से पहले सौ बार सोचना पडेगा । तो हमने रात को ही हाउसबोट मालिक को अवगत करा दिया कि भाई आज तुम्हारे यहां पर रूके हैं और बढिया भी लगा पर हमारे साथियो को सही सा फील नही आ रहा पानी में रूकना तो इसलिये हमको जाना पडेगा । जब हम गये तो मैने आपको बताया ही कि बाढ की अफवाह के कारण काफी बुकिंग रदद हो गयी और कश्मीरियो के चेहरे पर उदासी साफ देखी जा सकती थी जो लोग पर्यटन के व्यापार से जुडे हुए थे ।
बोट मालिक ने ज्यादा हील हुज्ज्त नही की और लगभग 3000 रूपये किराया और रात के खाने के लिये । सुबह का नाश्ता हमने नही किया । हमें एयरपोर्ट जाने के लिये उसी ने कार भेजी थी जिसका किराया 600 रूपये भी दे दिये और हमें घाट तक छोडने के लिये नाविक को बुला लिया गया । हमने अपना सामान नाव में रखा और रोड पर आ गये । हमारे पास चार छोटे बैग ही थे और चार आदमी भी थे तो हमें सामान की ज्यादा दिक्कत नही थी और हम उन बैग् को लेकर घूमने लगे । मै कश्मीर आ चुका था पहले तो मुझे अंदाजा था कि सस्ते होटल दूसरी तरफ मिलने वाले हैं तो हम पुल पार करके उधर की साइड पहुंच गये । यहां पर मैने एक शिकारा देखी ठीक उसी घाट पर जिसमें हम दोनो कई साल पहले घूमे थे ।
शिकारे का नाम मुझे याद आ गया तो मैने देखा कि उस पर कोई नही था । हमने एक दो आसपास के दुकानदारो से पूछा तो उन्होने आवाज देकर एक युवा को बुलाया जो कि उस बोट पर था । उस लडके से बात हुई तो मैने उसे बताया कि हम इस बोट में कई साल पहले घूमें हैं पर तुम इस पर नही थे तो उसने बताया कि ये बोट मेरे चाचा की है और वो आजकल बीमार हैं और मै इसे चलाता हूं अब । उसने तुरंत ही हमें घूमने के लिये आफर किया पर हमने उसे बताया कि हमें पहले होटल चाहिये तो वो हमें पास ही में एक होटल दिखाने ले गया । होटल बिलकुल झील के किनारे और रोड के पास था और 500 रूपये प्रति कमरा तय हो गया । हमारे अलावा पूरे होटल में कोई भी नही था सारे कमरे भी खुले थे । इस होटल में कमरो में अंदर जूते लेकर नही जा सकते थे उन्हे पहली मंजिल पर बाहर ही निकालना होता था । हमने कमरो में अपना सामान रखा और उस बोट वाले और होटल वाले की संयुक्त बातचीत से एक गाडी वाले को बुलवा लिया गुलमर्ग जाने के लिये । यहां की गाडी 1600 रूपये में तय हुूई जो कि बडी सूमो गाडी थी । ये गाडी इतने रूपये में सिर्फ बाढ और बारिश की अफवाहो के कारण हो रही थी क्योंकि पर्यटक नाम की चीज यहां पर थे ही नही ।
मुझे पता था कि इस समय गुलमर्ग जाने में समय लगता है इसलिये मैने सभी को फटाफट चलने के लिये कह दिया । चलते समय मैने रास्ते की एक दुकान से चिप्स बिस्कुट चाकलेट और कोल्ड ड्रिंक की बोतले और गिलास ले लिये । गुलमर्ग में इन चीजो की काफी महंगाई है । इन्हे पहले ही ले लेना बढिया रहता है । आशा के विपरीत गुलमर्ग के रास्ते पर कहीं भी जाम नही मिला और बडे ही प्यार से गुूलमर्ग पहुंच गये । यहां पर आने से पहले टनमर्ग पडता है और हमेशा की तरह हर गाडी वाला यहीं पर गाडी रोक लेता है और आपको बताता है कि आप यहां से जूते और गर्म कपडे ले लो किराये पर क्येांकि यहां से आगे जाने पर आपको महंगा मिलेगा । फिर सौदेबाजी शुरू होती है और दुकानदारो के बताये रेट के एक तिहाई या उससे भी कम कहीं भी मिल जाये तो ले लेना चाहिये । अक्सर जूते 50 रूपये और कोट 100 रूपये किराये के हिसाब से मिल जाते हैं । हमने सिर्फ जूते लिये क्योंकि कोट उन्हे चाहियें जो सारा दिन बर्फ पर लोटे लोटे फिरना चाहते हैं और ऐसा करने में कपडे गीले हो जाते हैं तो अपने कपडे गीले नही करने चाहियें उन्हे कोट ले लेना चाहिये ।
हमने सिर्फ जूते लिये । जब कोई ऐसा ग्राहक फंस जाये तो ड्राइवर और दुकानदार की नजरो नजरो में ही बात हो जाती है कि कैसा ठरकी बंदा लाये हो । गाडी गुलमर्ग पहुंच गयी और हमें उतरते ही पांच छह लोगो ने घेर लिया कि आफिस में आपको अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा किस बात का रजिस्ट्रेशन भाई तो उन्होने बताया कि अब ये जरूरी हो गया है । मै और सबको छोडकर आफिस में गया जो कि जम्मू व कश्मीर पर्यटन विभाग का आफिस था और वहां बैठे आदमी ने मुझे नाम पता पूछा और फिर मुझे समझाने लगा कि आप गाइड ले लो और पोर्टर ले लो ये वो । मैने उससे पूछा कि आपको और कुछ जानकारी चाहिये तो बोला क्या लेना है और क्या नही वो मै देेख लूंगा । यहां स्लेज वाले घोडे वालो ने मिलकर आफिस वालो के साथ लोगो को यहीं से फंसाने का जुगाड बनाया हुआ है । हम तो पहले भी ऐसे ही घूम आये थे
गाडी की लोकशन देखकर और ड्राइवर का नम्बर लेकर हम घूमने चल दिये । हमारे चलते ही हमारे पीछे बहुत सारे घोडे वाले और स्लेज वाले लग गये और फिर वही हुआ जो अक्सर यहां आने वाले हर पर्यटक के साथ होता है । यहां आने पर पहले तो सब उनके पीछे लग जाते हैं और सौदेबाजी करने लगते हैं पर अगर कोई ऐसा मिले जो उनकी बात ना माने तो कुछ गाइड उल्टी सीधी बात करते हैं । जब हमने घोडा या स्लेज कुछ भी लेने को प्यारपूर्वक मना कर दिया तो एक घोडे वाला बोला कि तुम साले हिंदुस्तानियो को तो यहां पर आना ही नही चाहिये । इतना सुनते ही मुझे इतना तेज गुस्सा आया कि मैने सीधी उसको मां बहन की बक दी और बोला कि साले हिंदुस्तानी तो तू भी है पर तेरा मन पाकिस्तान में रमता है और अगर हमने आना छोड दिया तो भूखो मरने लगोगे तुम । फिर तो दो तीन और स्लेज वालो ने उसे वहां से भगा दिया और हमसे काफी देर तक माफी मांगी ।
मै पहले भी ये वाकया झेल चुका था और इस बार भी ऐसा ही हुआ । इसका मतलब ये है कि ये लोग जानबूझकर उकसाते हैं ऐसा करते हैं । खैर बाकी दोनो बंदे मक्खन लगाने पर तुले हुऐ थे और उनका तरीका भी बडे ही प्यार का था । वे बार बार इस बात को कह रहे थे कि बाबूजी हमारी खेती और सब कुूछ आप ही लोग हैं और आप हमें एक बार सेवा का मौका दो । इनकी बातो को देखकर हमने पैसे तय किये और 150 प्रति व्यक्ति में इनकी स्लेज तय कर ली । मै और भाईसाहब पैदल ही चलना तय किये और महिलाओ के लिये स्लेज तय कर दी । मै और हमारी धर्मपत्नी तो इन चीजो को बढिया नही मानती पर इनकी मिन्नते देखकर हमने उनको हां भर दी ।
KASHMIR YATRA -
फिर भी हम उनके साथ पैदल ही चले और स्लेज का ज्यादा इस्तेमाल उंचाई से नीचे फिसलने में किया । दूर से बर्फ में घूमते फिरते कुछ लोग दिख रहे थे जो कि काफी छोटे दिख रहे थे और सबसे पहले जो बस या टैक्सी स्टैंड के पास मंदिर है हम उस पर गये । यहां पर मुझे बर्फ से रिफलेक्शन हो गया और एक बार को तो हम अंधे से हो गये । बाद में मैने चश्मा खरीदा । ऐसा इसलिये था क्योंकि दिन काफी चमकदार था और सूरज भी तो बर्फ चांदी जैसी सफेद चमक रही थी । मंदिर से काफी दूर तक चलते हुए हम चर्च तक गये और वहां से फिसले । काफी देर तक बर्फ में रहे । बीच में रेस्ट हुआ तो हमने अपनी कोल्ड ड्रिंक और चिप्स खाये और साथ में उन दोनेा कश्मीरियो को भी दिये । हमारे लिये तो ये नजारा कई बार देखा हुआ था । वैसे जब हम पहली बार आये तो जून का समय था और बर्फ केवल उपर गंडोल पर ही थी पर इस बार तो हर जगह बर्फ ही बर्फ थी । तीन से चार किलोमीटर चले होंगें हम और काफी मजा भी आया । जो थोडेे बहुत पर्यटक थे भी वो भी काफी मजा ले रहे थे
काफी देर तक घूमने के बाद हम वापस चल दिये । साढे चार बजे हम वापस चले और साढे सात बजे तक वापस डल झील पर आ गये थे । सोचा तो ये था कि आज डल झील में शिकारे की सैर करेंगें पर अब इस समय तो एक घंटा भी नही बचा था सूर्यास्त होने में तो इसलिये आज शिकारे की सैर का विचार त्याग दिया गया ।
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Gulmarg |
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wow... so amazing... I wonder when my husband and I will get a chance to visit...
ReplyDeleteThanks for sharing buddy :-)
Amazing place.
ReplyDeleteTruly Amazing. Great post.
ReplyDeleteAmazing Pictures !!
ReplyDeleteशानदार पोस्ट, मन्नू भाई
ReplyDeleteमनु भाई फोट बहुत शानदार हैं
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - लोहड़ी की लख-लख बधाईयाँ में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteमस्त पोस्ट मनु भाई।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट मनु भाई ! मजा आ गया
ReplyDeleteWhat amazing pictures..... i am also planing visit Jammu and kashmir...
ReplyDeleteमनु भाई मजा आ गया, वाकई बाढ़ के कारण कम संख्या मे पर्यटक आने के कारण टैक्सी के रेट कम हो गए, नही तो जब हम गए थे तब २८०० रू० से कम कोई भी नही जा रहा था।
ReplyDeleteबहुत अच्छे मनु भाई ,बहुत खूबसूरत नज़ारे |कश्मीरियों की बातें सुनकर दुःख हुआ |इनके लिए कितना भी करें कम है |ज्यादा क्या कहूँ वरना राजनितिक कमेन्ट हो जायेगा |यात्रा शानदार चल रही है |
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