माता कालका जी का मंदिर दिल्ली के दर्शनीय स्थलो में से एक है । कालका माता जी का मंदिर कालका जी मैट्रो स्टेशन से नजदीक है । आप नेहरू प्लेस से...
माता कालका जी का मंदिर दिल्ली के दर्शनीय स्थलो में से एक है । कालका माता जी का मंदिर कालका जी मैट्रो स्टेशन से नजदीक है । आप नेहरू प्लेस से भी आटो लेकर या पैदल ही मंदिर तक पहुंच सकते है । नवरात्र के दिनो में अन्य माता मंदिरो की तरह यहां पर भी उत्सव होता है और बहुत भीड होती है । हम जब गये तो यहां पर भीड का नाम ही नही था इसलिये आराम से दर्शन हुए । मंदिर के अंदर का फोटो लेना मना है बाकी परिसर में आप कहीं भी फोटो ले सकते हैं ।कालका जी मंदिर के बारे में ऐसा बताते हैं कि ये मंदिर पांडवो ने बनवाया था और 3000 से अधिक वर्ष पुराना है । राज काज के कागजो में भी 1764 से इस मंदिर के उल्लेख मिलता है । माता कालका जी को रक्तबीज का वध करने वाली माना जाता है इस मंदिर को जयंती पीठ या मनोकामना पीठ भी कहा जाता है और ये काफी पुराना है । कालिका माता दुर्गा जी का ही एक रूप है । कालका माता के बारे में जानने के लिये आपको दुर्गा सप्तशती को पढना चाहिये । मंदिर परिसर बहुत बडा नही है आपको दस मिनट भी नही लगेंगें घूमने में अगर भीड ना हो तो । मंदिर परिसर से पहले काफी दूर तक दुकानो की लाइने हैं और ये दुकानो की श्रंखला बाहर मेन रोड तक चली जाती है जहां पर पार्किंग है । जब आप सडक पर आ जाओगे तो सडक के दूसरी तरफ आपको लोटस टैम्पल दिखेगा । आप नेहरू प्लेस या कालकाजी मैट्रो स्टेशन आकर यहां से लेाटस मंदिर , कालकाजी मंदिर और इस्कान मंदिर तीन जगह पैदल घूम सकते हो । तो लोटस मंदिर तो मैने आपको इससे पहली पोस्ट में घुमा ही दिया था । कालकाजी मंदिर के बाद हम इस्कान मंदिर की तरफ चल दिये
भारत में वैसे तो इस्कान मंदिरो की श्रंखला है और ये हर जगह ही बहुत सुुंदर रूप में बने हैं । मथुरा वृंदावन के इस्कान मंदिरो की चर्चा सबसे ज्यादा होती है क्योंकि वो उस भूमि पर बने हैं जिसे वो पूजते हैं अर्थात राधा कृष्ण की भूमि पर । देश के अन्य शहरो में बने इस्कान मंदिर भी कमतर नही हैं । दिल्ली का इस्कान मंदिर भी सुंदरता के साथ साथ काफी विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है ।
चूंकि मंदिर राधा कृष्ण का है तो यहां पर कुछ प्रेमी युगलो के अलावा आश्चर्यचकित होकर मैने देशी और विदेशी समलैंगिक युगलो को भी यहां पर देखा । ऐसा लगा कि उन्हे अपने प्रेम को प्रर्दशित करने के लिये और अपने प्रेम की अवधारणा को पुख्ता करने के लिये यहां आना ज्यादा अच्छा लगता होगा । चूकि राधा कृष्ण के प्रेम को विश्व में ऐसा माना जाता है कि वो सत्य प्रेम था जो बिना किसी स्वार्थ और लाग लपेट के था तो हर आदमी उसमें अपने आपको पाता है चाहे वो प्रेमी युगल या समलैंगिक युगल । बरहाल हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति अपने आपमें सबको आत्मसात कर लेती है और वो ये भी नही देखती कि ये मंदिर किसने बनवाया है या इसमें पूजा करने कौन आ रहा है । इस्कान मंदिरो और परंपारिक भारतीय मंदिरो में कुछ बेसिक अंतर तो हैं ही जैसे सबसे पहला तो साफ सफाई का , दूसरा प्रसाद चढाने से लेकर बिखेरने तक का और तीसरा मंदिरो के अंदर और बाहर हो रही लूट खसोट का । यहां आपको वास्तव में लगता है कि आप ईश्वर से एकाकार हो रहे हैं और आपको कोई जल्दी नही है ।
अच्छा लगा डेल्ही दर्शन कर के।
ReplyDeleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति कादम्बिनी गांगुली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
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