ओरछा जाने का कार्यक्रम अचानक ही बन गया । कमल कुमार सिंह उर्फ नारद के साथ बहुत दिनो से कहीं ना कहीं जाने का विचार बन रहा था । कमल सिंह धो...
ओरछा जाने का कार्यक्रम अचानक ही बन गया । कमल कुमार सिंह उर्फ नारद के साथ बहुत दिनो से कहीं ना कहीं जाने का विचार बन रहा था । कमल सिंह धोखेबाज और पूर्णतया नारद आदमी है । मुझे बोला कि मेरी दो सहेलियां हैं और उनके साथ जाना है । मैने सोचा कि सहेलियां दो हैं तो दोनो को कमल कैसे घुमायेगा इसलिये मैने भी उसका साथ देने के लिये हां कर दी । बाद में स्टेशन पर पता चला कि सहेली वगैरा कोई नही थी ये तो बस लालीपाप था मुझे पागल बनाने के लिये । पर चलो कोई बात नही अपन तो घुमक्कड के ही प्रेमी हैं पहले इसलिये ओरछा के नाम के चल दिये । तैयारी के नाम पर कुछ खास नही था क्योंकि किसी ट्रैक जैसे निर्जन स्थान पर नही जा रहे थे और उपर से कमल ने ओरछा में तो होटल पहले ही बुक किया हुआ था आनलाइन ।
रात को ट्रेन थी दिल्ली स्टेशन से और मै काफी पहले कमल से मिल लिया । उसके बाद हम दोनो बीनू कुकरेती से मिलने गये । बीनू के पापा हास्पिटल में भर्ती थे । बीनू से मिलने के बाद हम निजामुददीन स्टेशन पहुंच गये । टिकट वगैरा सब कमल ने बुक किया हुआ था । सारा कार्यक्रम कमल ने बनाया था । मै बहुत व्यस्त था इसलिये मैने सब कमल के उपर छोड रखा था । निजामुददीन स्टेशन पहुंचने के बाद कमल सिंह को एक बडा नेकर खरीदने की लगी तो पहले उसे वो खरीदवाया । इसके बाद प्लेटफार्म पर पहुंचे और ट्रेन का स्टेटस चैक करने लगे । 11 बजकर 45 मिनट की ट्रेन थी और अभी एक घंटा बाकी था पर उसके बाद की और उससे पहली सभी ट्रेन दिखा रहा था पर केवल उसी का कोई स्टेटस नही दिखा रहा था ।अब कमल सिंह ने कभी कभार इस्तेमाल में लाया जाने वाला अपना दिमाग इस्तेमाल किया और चौंककर बोला कि यार ट्रेन तो नयी दिल्ली से है ।
अब हम भागे बाहर की ओर और एक आटो बुक किया 100 रूपये में और सही टाइम पर नयी दिल्ली पहुंच गये । यहां 6 नम्बर से हमारी ट्रेन थी और हमने जाकर अपनी सीट कब्जा ली । यहां तक भी सब ठीक था पर इससे आगे असली मुसीबत शुरू हुई । रात को बारिश पडती मिली और साथ ही ठंडी हवायें भी जिसकी वजह से हमारी किडकिडी बंध गयी रात को ठंड के मारे । हाल यहां तक बुरा हुआ कि दूसरी शर्ट निकालकर ओढ ली तब जाकर जान बची । बरसात का मौसम जरूर था पर इतनी बारिश की उम्मीद नही थी । रात को सोने से पहले अलार्म लगा लिया था 5 बजे का । 5 बजे उठे तो कोई विरालनगर दिखा रहा था स्टेशन जो कि ग्वालियर से 107 किलोमीटर दूर था । ये मै गूगल मैप में देख रहा था । खिडकी खोली और नजारा देख के हैरान । इतनी हरियाली तो उत्तराखंड के बुग्यालों में ही देखी थी । उसके बाद तो खिडकी के पास ही बैठे रहे । झांसी में उतरे हम करीब 7 बजे , स्टेशन के बाहर आटो वाले आवाज लगा रहे थे । 10 रूपये में हम शेयर्ड आटो से बस अडडे पहुंच गये । यहां पर 20 रूपये की चाय पी और ओरछा के लिये साधन पता करने लगे ।
पता चला कि इस बार बरसात इतनी ज्यादा हुई है कि ओरछा को जाने वाला बसो का रास्ता बंद है बीच में कहीं पर पानी आने से । अब ओरछा तक केवल आटो ही जायेंगें । आटो वाला 10 सवारी लेकर ही जायेगा 20 रूपये वाली यानि अगर पूरा आटो ले जाना है तो 200 रूपये में जायेगा । अभी तक 6 सवारी ही हो पायी थी और बहुत देर इंतजार करने के बाद मैने ही कहा कि आप सबसे 30 रूपये ले लो और चलो । बाकी सवारियां भी इस बात पर तैयार हो गयी और हम फटाक से चल पडे । ओरछा की रोड बढिया थी और कहीं भी गढढे नही दिखे । ओरछा पहुंचे तो बच्चो की रैली निकल रही थी । आटो वाले को पैसे देकर अपना होटल ढूंढना शुरू किया और थोडी देर में वहां पर पहुंच गये । होटल उंची जगह पर था जहां से ओरछा का व्यू बढिया दिखता था । हमने होटल में जो कमरा लिया वो थोडा छोटा था और उसमें से महक सी भी आ रही थी । हमने होटल वाले से कहा तो उसने बोला कि अभी कुछ गेस्ट जाने वाले हैं तो उसके बाद मै आपका कमरा चेंज कर दूंगा ।
कमरे में फ्रेश हुए और पांडेय जी को मैसेज छोडा कि हम ओरछा में फलां होटल में पहुंच गये हैं आप समय मिलने पर आ जाना । अब यहां पर दो बात बताना जरूरी है एक तो ये कि होटल जो बुक किया था वो केवल 20 रूपये में था । कमल सिंह मेक माइ ट्रिप में काम करते हैं तो उन्होने आनलाइन कुछ छूट का इस्तेमाल करते हुए जब बुक किया तो होटल का किराया केवल 20 रूपये ही गया था जेब से । अब इसमें होटल का कोई रोल नही था ये तो सब एप्प का कमाल है होटल वाले को तो उतने ही पैसे मिलने हैं ।
दूसरी बात ये कि ओरछा इसलिये भी अहम हो रहा है आजकल कि वहां पर एक मित्र मुकेश कुमार पांडेय जी जिनका उपनाम चंदन भी है , आबकारी विभाग में तैनात हैं । मुकेश जी सरल स्वभाव के व्यक्ति हैं और खुद एक घुमक्कड , फोटोग्राफर , ब्लागर और कवि हृदय भी हैं । अक्सर काफी लोग घुमक्कडो में उनसे जुडे रहते हैं और वो भी सबको मुक्त दिल से ओरछा आने का आमंत्रण देते हैं । हमारे साथ भी उनका आमंत्रण सालो से जुडा हुआ था पर मौका अब मिला । होटल से सौ मीटर की दूरी पर ही ओरछा के राजा श्री राम का मंदिर दिखायी दे रहा था । मै और कमल होटल से निकलकर मंदिर की ओर चल पडे । मंदिर के पास ही काफी दुकाने थी । यहीं पर एक दुकान पर बैठकर समोसे खाये । पहली बार अहसास हुआ कि हम बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र में हैं क्योंकि यहां पर हमें बहुत सस्ता दिखा सब कुछ । समोसे थोडे छोटे थे पर 5 रूपये का एक था और वो भी चटनी और छोले सहित । बाकी चीजो में भी हमने यही महसूस किया समोसो से तृप्त हुए तो राजा राम के दर्शन को चल पडे । सौभाग्य से मंदिर में ज्यादा भीड नही थी और हमने बडे प्यार से दर्शन किये । मंदिर के अंदर फोटो खींचने की मनाही है इसलिये फोटो नही ले पाये । मंदिर से बाहर निकले तो पांडेय जी का फोन आ गया । मंदिर के बाहर पहली बार आभासी दुनिया के मित्र से मिलन हुआ । मंदिर के बाहर पांडेय जी के साथ ओरछा रिसोर्ट गये । ये यहां का काफी बढिया और महंगा वाला होटल है । सुबह का नाश्ता चल रहा था जिसमें बुफे सिस्टम था और बहुत सारे आइटम थे । मैने तो थोडा सा पोहा , पपीता और हलवा लिया । उसके बाद रिसोर्ट के पीछे पहुंचे जहां स्वीमिंग पूल था और पीछे बेतवा नदी पूरे रौ में बह रही थी । यहां आते ही पता चला कि तीन दिन से लगातार बारिश हो रही है मध्य प्रदेश में पूरे में और कई जगह बाढ के हालात हैं ।
नाश्ता दोबारा हो गया था , मुकेश जी से मिलन भी और राजा राम जी के दर्शन भी । अब मुकेश जी हमें पास में ही बेतवा नदी के किनारे पर कंचन घाट पर लेकर गये । कंचन घाट पर ही वीर सिंह बुंदेला की छतरी है । तीन मंजिला इस छतरी वाले वीर सिंह बुंदेला के समय में ही ओरछा में ज्यादातर निर्माण हुए । बेतवा नदी इस छतरी को छूते हुए बहती है लेकिन हमारे समय में तो ये छतरी को अपने आगोश में ले चुकी थी । यहीं घाट के सामने ही अन्य बहुत सारी छतरियां हैं । एक छोटे से रास्ते को जाकर उसके बाद अंदर बहुत बडा पार्क आता है । अक्सर ज्यादातर लोग यहां तक नही आते । यहां पर पार्क को इतना खूबसूरत बनाया गया है और उपर से छतरियां दोनो चीज मिलकर मन मोह लेती हैं । ये मोहकता उस समय और बढ जाती है जब ये पता चलता है कि ये पार्क यहां पर काम करने वाले मालियो ने अपने खुद के खर्चे से बनाया है अन्यथा यहां झाड उग रहे होते । यहीं पर विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके गिद्धो ने भी डेरा जमाया हुआ है । इन्ही छतरियों के उपर इनका निवास है और यहां पर इनका प्रजनन भी हो रहा है और संख्या भी बढ रही है । शायद ये स्थान इन्हे अनूकूल हो गया है । एक खास बात ये भी है कि यहां पर गिद्धो की अनेक श्रेणियां हैं । मुकेश जी को इनका पूरा ज्ञान है और वो दूर से ही देखकर पहचान लेते हैं । उन्होने मुझे बताया भी पर मै भूल गया कि कौन सा नाबालिग है और कौन सी मादा ।
होटल की छत से दिखता ओरछा और राजा राम मंदिर |
मंदिर के बराबर का बाजार |
चर्तुभुज मंदिर |
राजा राम मंदिर का मुख्य द्धार |
राजा राम मंदिर का अहाता |
ओरछा रिर्सोट का पीछे का हिस्सा |
बेतवा अपनी पूरी रौ में |
वीर सिंह की छतरी नजदीक से |
अन्य छतरियां |
बेतवा के कंचन घाट पर वीर सिंह की छतरी |
छतरी समूह |
घूमने से पहले मेकअप का ध्यान |
छतरियो पर बैठे गिद्ध |
छतरियो पर बैठे गिद्ध |
छतरी समूह और पार्क |
छतरी समूह और पार्क |
छतरी समूह पर कमल कुमार सिंह और मुकेश पांडेय जी |
मुकेश पांडेय जी |
वाह ! आजकल तो इन्टरनेट की दुनिया में ओरछा ही छाया हुआ है । मेरी तारीफ कुछ ज्यादा ही कर दी गयी है । वैसे ओरछा खूबसूरत ही इतना है, कि दूसरों को ये खूबसूरती दिखाने का मोह त्याग नही पाता । आभार नही कहूंगा । अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा ...
ReplyDeleteवाह ! आजकल तो इन्टरनेट की दुनिया में ओरछा ही छाया हुआ है । मेरी तारीफ कुछ ज्यादा ही कर दी गयी है । वैसे ओरछा खूबसूरत ही इतना है, कि दूसरों को ये खूबसूरती दिखाने का मोह त्याग नही पाता । आभार नही कहूंगा । अगली पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा ...
ReplyDeleteशानदार वर्णन और उत्तम तस्वीरें।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-01-2017) को "नूतन वर्ष का अभिनन्दन" (चर्चा अंक-2574) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
नववर्ष 2017 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर चित्र और वर्णन
ReplyDeletewonderful post !
ReplyDeleteमनु जी, ओरछा यात्रा की शुरुआतका विवरण तो अच्छी हैं और तस्वीरें भी सुंदर है . अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा .
ReplyDeleteमेरी पोस्ट का लिंक :
http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/01/nawab-islam-khans-tomb.html
ओरछा का धार्मिक महत्व तो पहले से ही है, आपने इस शानदार विवरण से इसका पर्यटन महत्व भी इतना बढ़ा दिया है कि अब ओरछा भ्रमण सूची में पहले नंबर पर है।
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