मेरी पिछली पोस्ट हेमकुंट साहिब से आगें---------------सुबह सोकर उठे और बाइक उठाकर चल पडे आगे जाकर देखा तो अभी रास्ता बंद ही था । 8 बजे थ...
मेरी पिछली पोस्ट हेमकुंट साहिब से आगें---------------सुबह सोकर उठे और बाइक उठाकर चल पडे आगे जाकर देखा तो अभी रास्ता बंद ही था । 8 बजे थे और पुलिस वालो ने बताया कि लगातार पत्थर गिरने की वजह से रास्ता खुलने में अभी एक दो घंटे और लगेंगे । अब क्या करें । बाइक में पैट्रोल तो काफी था पर जेब में केवल सौ रूपये थे । जो बद्रीनाथ केवल एक घंटे का रास्ता था वहां बारह घंटे हो चुके थे । सुबह खाली पेट होने के बाद भूख तो लगनी ही थी । सो वहीं पुलिस वालो ने जो बैरियर लगा रखा था उसी के पास वाली दुकान पर चार चाय बनवा ली कुछ बिस्कुट वगैरा ले लिये । 40 रू में काम हो गया । अब 60 रू बचे थे ।
badrinath yatra -
ये है नहाना गर्म पानी का |
10 बजे रास्ता खुला और हमने जो दौड लगाई कि पौना घंटे में ही बद्रीनाथ पहुंच गये । हमें कुछ नही दिखाई दे रहा था सिवाय एटीएम के । सबसे पहले पंजाब नेशनल बैंक का एटीम था । तब ज्यादा दिन नही हुए थे बैंको को सी0बी0एस0 हुए और एटीएम की सुविधा चले हुए । मेरे पास पंजाब का ही कार्ड था सो घुस गये । पर हाय री किस्मत ! मशीन खराब थी । गार्ड ने बताया कि सही करने वाले आ रहे हैं । कब तक आ जायेंगे तो जबाब था नीचे से आ रहे हैं पता नही कब आ जायेंगे । कर लो अब क्या करोगे । पर एक उम्मीद अभी और थी स्टेट बैंक का एटीएम । वो मन्दिर के बिलकुल नीचे था । भागते भागते वहां पहुंचे पर ये क्या उसका तो शटर ही बंद था ।
अलकनंदा नदी |
अब भी कोई उम्मीद बची थी क्या । दर्शन करने को प्रसाद भी लेना था और कुछ खाना भी था अगर इन पैसो का प्रसाद लेकर दर्शन कर भी लेतें तो भी वापस जोशीमठ से पहले एटीएम नही था और वहां जाने तक शाम हो जायेगी भूखे पेट जाना पडेगा और अगर रास्ते में बाइक में पंचर भी हो गया तो क्या करेंगे
तभी एक विचार आया मेरा खाता पी0एन0बी0 में है और वो सी0बी0एस0 ब्रांच है तो यहां भी सी0बी0एस0 ब्रांच होगी । पता किया तो स्टेट बैंक तो अभी नही हुआ था पर पीएनबी सीबीएस हो चुका था । मजे की बात ये है कि पीएनबी बैंक मंदिर की सीढियो के रास्ते में ही था । मंदिर में दर्शनो की लाइन लगी थी और हम थे कि इस उधेडबुन और परेशानी में लगे थे ।स्नान करते श्रद्धालु |
मार्किट |
तो हम भागे एस टी डी की तरफ और घर फोन किया । धर्मपत्नी जी ने दोबारा फोन करने को कहा । उन्होने पास बुक खोजी और दूसरी बार फोन करने पर नम्बर लिखवाया । कई काल लग गई । 40 रू फोन वाले को दिये और नम्बर सहित फार्म भरकर मैनेजर को ।अब व्यथा दूसरी थी । बैंक की मिलनसारिता या कनेक्टिविटी भाग गई थी । अब बताओ उसे कहां से लायें । मैनेजर ने कहा तुम एक काम करो जाओ पहले दर्शन करो तब तक कनेक्टिविटी आ जायेगी मै पैसे निकालकर रख लूंगा । बारह बजे कपाट बंद हो जायेंगे तो फिर चार बजे खुलेंगे । हमें भी ध्यान आया कि चार घंटे बाद दर्शन करेंगे तो शाम को यहीं रूकना होगा जबकि हमें जाने की जल्दी हो रही थी क्योंकि हेमकुंट साहिब में एक दिन ज्यादा लगाने के कारण हमें धरवाले भी पूछ रहे थे कि कब आओगे
नदी का एक और दृश्य |
सो हम जल्दी से मंदिर पहुंचे तो बोले पहले नहाना चाहिये । हम कुंड पर पहुंचे तो वहां बाल्टी किराये पर उपलब्ध थी । दस रूपये में एक बाल्टी और मग्गा किराये पर लाकर नहाना शुरू किया । ये बहुत बडा आश्चर्य है इस कुंड जिसका नाम तप्त कुंड है में जो पानी था उसमें आप हाथ तो दे नही सकते थे नहाना तो दूर की बात है । और तीन छोटी छोटी सीढिया उसी के पास थी जहां उतरते ही अलकनंदा नदी बह रही थी । उसका पानी इतना ठंडा था कि आदमी हाथ ना दे सके नहाना तो दूर की बात है । एक कुंड और था पास में छोटा सा और छत वाला जिसमें ऐसा पानी था कि नहा सके बाकी था गर्म ही । उसमें दोनो पानी को मिला रखा गया था और लोग उसमें मलमल कर अपना मैल उतार रहे थे जैसे पाप की जगह आज सारा मैल यहीं बद्रीनाथ में ही उतारेंगे ।
श्री बद्रीनाथ मंदिर |
वहां भीड ज्यादा थी । औरतो के लिये अलग से जगह थी । हमने तो अपनी बाल्टी में पहले नदी से आधी बाल्टी पानी लिया फिर मग से उसमें गर्म पानी मिलाया और एक बाल्टी उपर डाली और नहा लिये । कपडे जल्दी से पहनकर बचे हुए 10 रू का प्रसाद लिया और भागे भागे पहुंचे तो कपाट बंद होने का समय हो चला था बस हम पहुंचे तो पुलिसवालो ने डंडा अडा दिया । ऐ अब नही अब चार बजे आना । थोडी विनती की दस बारह और थे हमारे जैसे । दो चार बात करते रहे हम तो उनके डंडे के नीचे को निकल कर मुख्य द्धार की सीढियो पर लगी भीड में पहुंच गये और लाइन में लग गये । बद्रीनाथ मंदिर का मेन द्धार उंचाई पर है और काफी रंग बिरंगा है जो इसे एक मार्डन लुक देता है इसे सिंहद्धार कहते हैं । काफी सीढिया बनी हैं सुरक्षा काफी सख्त है । मंदिर तीन भागो में है गर्भगृह दर्शन मंडप और सभा मंडप । मंदिर में स्थापित एक मी0 उंची प्रतिमा विष्णु जी की है जो कि काले रंग के पत्थर की बनी है । उनके दांयी तरफ उधव और नर व नारायण है । बांयी तरफ कुबेर व गणेश जी भी हैं । नारद जी की भी मूर्ति है । मूर्ति पदमासन लगाये हुए ध्यान की मुद्रा में है इस कारण बौद्ध लोग इसे बुद्ध की मूर्ति भी मानते हैं । मुख्य विग्रह के दर्शन करके मंदिर की परिक्रमा ली
यहां हवा बहुत तेज चलती है |
अब बारी थी थोडा बहुत मंदिर के बारे में जानने की । श्री बद्रीनाथ जी का जो मंदिर है वो नर और नारायण नाम के दो पर्वतो के बीच में है । ये भारत के उत्तर में हिमालय में स्थित है । मंदिर के बैकग्राउंड में नीलकंठ पर्वत है जो कि 6597 मी 0 उंचा है । मंदिर के पास में अलकनंदा नदी बहती है । मंदिर वाली जगह लगभग समुद्र तल से 3100 मी0 की उंचाई पर है । यानि दस हजार फीट लगभग । नेशनल हाइवे 58 जो कि दिल्ली से शुरू होता है और माना गांव जो कि बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर दूर है पर खत्म होता है और जिसकी कुल दूरी 538 किमी0 है पर स्थित है । यहां जाने के लिये वैसे तो उत्तराखंड के चारो धाम में से किसी से और धाम से भी जा सकते हैं क्योंकि ये चारो धाम आपस में पहाडो में से भी कनेक्टिड हैं । पर दिल्ली से जाने के दो मुख्य रास्ते हैं । एक तो वो जिससे हम गये थे कोटद्धार से दुगडडा—सतपुली—पौडी—श्रीनगर—रूद्रप्रयाग—कर्णप्रयाग -नंदप्रयाग-चमोली-पीपलकोटि-जोशीमठ-गोविन्दघाट-बद्रीनाथ
और दूसरा दिल्ली-हरिद्धार- ऋषिकेश-देवप्रयाग-श्रीनगर-रूद्रप्रयाग-कर्णप्रयाग-नंदप्रयाग-चमोली-पीपलकोटि-जोशीमठ-गोविन्दघाट-बद्रीनाथ
माना गांव के घर |
माना गांव का एक और दृश्य |
6 महीने ये जगह बर्फ से ढकी रहती है और 6 महीने जब कपाट खुलते हैं तो कई बार भूस्खलन की वजह से यात्रा कई कई दिन बन्द रह जाती है । लोग जगह जगह फंस भी जाते है । इसलिये जब भी यहां का प्रोग्राम बनाओ तो मेरी सलाह है गर्म कपडे , दवाई और खाने पीने का सामान अपने साथ जरूर रखें ।
जाने का समय वैसे तो अप्रैल मई से नवंबर के तीसरे सप्ताह तक होता है जब मंदिर के कपाट खुले रहते है पर मेरी मानो तो बरसात में कभी मत जाना । या तो बरसात से पहले या बाद में । अब तो वाहनेा की सुविधा है । पहले यात्रा बहुत कठिन थी । महीनो में यात्रा होती थी जो अब चारो धाम की दस से बारह दिन में हो जाती है । बन्दा अपने घर से निकलता था तो पता नही होता था कि वापिस आयेगा या नही । रूकने खाने के साधन कम थे । अब तो ऋषिकेश से सुबह बस से चलो तो शाम तक बद्रीनाथ पहुंच जाओगे ।
जब हम चले तो सोच रहे थे कि 300 किमी0 पहाडो में चलते रहने के बाद क्या कोई सुविधा मिलेगी पर वहां सब कुछ है । ठहरने को धर्मशालाऐं , होटल, बैंक , एटीम, अस्पताल, मार्किट । चार धाम की यात्रा को उत्तराख्ंड सरकार बडे पैमाने पर आयोजित करती है क्योंकि उत्तराखंड का मुख्य व्यवसाय पर्यटन है और उसमें भी सबसे ज्यादा यात्री चार धाम की यात्रा करते हैं । बहुत लोगो को रोजगार मिलता है । जगह जगह जो भी गांव सडक पर हैं उनमें दुकाने ही दुकाने खुली हैं । पता नही कब किसका क्या लेने को मन कर जाये ।
माना गांव |
इस मंदिर की स्थापना 8 वी शताब्दी के प्रसिद्ध साधु आदि गुरू शंकराचार्य ने की थी । यहां बदरी जो कि संस्कृत में बेर को कहा जाता है के वन बहुतायत में थे और इस जगह को बदरीवन भी कहा जाता था । 19 वी शताब्दी में अहिल्याबाई होल्कर द्धारा पुननिर्माण कराया गया । वर्तमान मंदिर को स्थानीय राजा ने बनवाया । मंदिर कई बार टूटा और कई बार बना पर हजारो साल से करोडो हिन्दुओ की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है । इसकी पौराणिक महत्ता इतनी है कि वेदो के बारे में माना जाता है कि उनकी रचना भी यहीं हुई । ऐसा भी कहते हैं कि विष्णु जी ने यहां सैकडो वर्षो तक तपस्या की । यह देवभूमि है । एक पौराणिक कथा ये भी है कि गंगा को जब अवतरण के लिये धरती पर लाया गया तो धरती उनका प्रवाह रोकने के लिये सक्षम नही थी । सेा गंगा 12 भागो में बंट गई । बद्रीनाथ के पास बहने वाली अलकनंदा उनमें से एक है । बद्रीनाथ के चारो ओर के पहाडो का वर्णन महाभारत में भी है
जब निर्वाण या स्वर्ग जाने को पांडव गढवाल की स्वर्गआरोहिणी चोटी पर गये तो ऐसा विश्वास है कि वे बद्रीनाथ और माना गांव से होकर गये । बद्रीनाथ जी के बारे में पुराणो में भी बहुत कुछ लिखा गया है । शंकराचार्य जी ने इस जगह को स्थापित और प्रचारित किया । ऐसा कहते हैं कि उन्होने हिन्दुओ की खोयी प्रतिष्ठा को लौटाने और सारे देश को एक सूत्र में पिरोने के लिये देश के चारो कोनो में चार धामो की स्थापना की । जिसमें बद्रीनाथ उत्तर में रामेश्वरम दक्षिण में द्धारिकापुरी पश्चिम में और जगन्नाथ पुरी पूर्व में है । मै इन चारो और उत्तराखंड के चारो धामो की यात्रा कर चुका हूं और आपको भी कराउंगा । माना गांव का गेट |
माना गांव का नजारा नीली बाइक अपनी है |
नदी की हलचल |
सडक पर यही है पार्किग |
रास्ते का एक नजारा |
श्रीनगर बस स्टैंड |
श्रीनगर की सुबह |
कुदरत का अदभुत नजारा |
तैयार होकर चल पडे क्योंकि हमें जल्दी घर जाना था सो श्रीनगर में घूमें नही पर श्रीनगर से निकलने पर नदी में सुबह सुबह जो बादल तैर रहे थे वो बहुत ही सुन्दर लगें । कुछ किलोमीटर जाकर एक जगह रास्ते में इतनी सुंदर जगह आयी कि बेसाख्ता कदम रूक गये । सच में इतनी खूबसूरत जगह थी कि आज भी मै उन फोटोज को देखता रहता हूं आप भी देखो । इसके बाद ऋषिकेश होते हुए अपने घर पहुंचे । a
हर दिशा से अलग रंग |
पल पल बदलता मौसम |
एक फोटो मेरा भी |
और इधर से ? |
मेरी अगली यात्रा केदारनाथ और गंगोत्री की जिसमें मेरी हमसफर मेरी अर्धांगिनी बाइक पर मेरा साथ देंगी
आप की ये रचना 08-03-2013 को http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com पर लिंक की जा रही है। आप भी इस हलचल में अवश्य पधारे।
ReplyDeleteसूचनार्थ
आपका अंदाज़े बयां खूबसूरत है। मैं चार बार बद्रीनाथ गया हूँ। आपका वर्णन पढ़कर पांचवीं बार भी घूम लिया मानों। मैं माना से आगे वसुधारा भी जा चुका हूँ दो बार। वसुधारा का नज़ारा बहुत मनभावन है।
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