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ये हमारी पिछले साल फरवरी की यात्रा है जब हम वैष्णो देवी की यात्रा पर गये थे । मेरे ममेरे भाई गौरव की नयी नयी शादी जनवरी में हुई थी और वैष्णो देवी के दर्शनो के लिये हमारी मामी जी ने कहा । मै मां वैष्णो देवी का पक्का भक्त हूं और अगर कोई मुझे कह दे कि हम कभी वहां नही गये तो मै उसके चिपट जाता हूं कि तू जब कहे मै लेकर चल दूंगा और फिर ये तो घर की बात थी । सो टिकट बुक करा दिये और मै और मेरी धर्मपत्नी लवी , गौरव उसकी पत्नि ,माता जी और उसकी भांजी जो कि सिर्फ एक साल की थी के साथ मेरे दूसरे ममेरे भाई अनुज की पत्नि दो बच्चे उसकी मौसी और उनके दो बडे बच्चे मतलब किशोर अवस्था के , कुल मिलाकर दस बडे और तीन छोटे बच्चे । अब आप समझ ही गये होंगे कि जब इतने लोग साथ हों तो कितना मजा आता है ।
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पहले दिन हम लोग वैष्णो देवी की यात्रा करके वापिस अपने होटल में आ गये और हमने एक गाडी तलाशनी शुरू कर दी जो हमें पटनीटाप घुमा लाये । और किसी गाडी के मुकाबले हमें टाटा विंगर ज्यादा सुविधाजनक लगी क्योंकि उसमें 13 सीट होती हैंकटरा में बस स्टैंड पर ही टैक्सिया खडी रहती हैं वही पर दो टाटा विंगर खडी थी । एक से सौदा पट गया 1800 रू में पटनीटाप जाना आना और टैक्स टिकट पार्किंग वगैरा सब उसकी थी । हमने उसे सुबह 6 बजे के लिये बोल दिया और सोने चले गये । सुबह 7 बजे तक सब तैयार होकर चल दिये । पटनीटाप जम्मू से 112 किमी की दूरी पर जम्मू श्रीनगर हाइवे पर उधमपुर जिले में उधमपुर और श्रीनगर के बीच में स्थित है । मै वहां पहले भी एक बार जा चुका था अपनी श्रीनगर यात्रा के दौरान । पटनीटाप श्रीनगर जाने वालो के रास्ते में बिलकुल आन द रोड पडता है । अगर आपके पास अपना वाहन है और आप श्रीनगर की यात्रा पर जा रहे हैं तो पटनीटाप आपके लिये मुफत में है क्योंकि ये ऐसे है जैसे आपने चाय पीने के लिये कहीं गाडी रूकवा ली हो ।
चाय पी और चल दिये । हाइवे 1ए से एक छोटा सा रास्ता अन्दर को जाता है और आप अंदर एक मंदिर और एक पार्क को घूमकर बिना गाडी को मोडे दूसरे रास्ते से हाइवे पर फिर से आ जायेंगे । मै जब पहले गया था तो मुझे पटनीटाप बिलकुल भी आकर्षक नही लगा थाक्योंकि वहां एक पार्क है जो चीड और देवदार के लम्बे लम्बे पेडो से घिरा है । एक छोटा सा मंदिर है नाग देवता का और बस । ज्यादातर लोगो के लिये किसी भी आम पिकनिक स्पाट जैसा जैसे दिल्ली का कोई पार्क । पर इसे ऐसा समझने में मेरी गलती नही थी क्योंकि मै जून में गया था और तब वहां बर्फ का नामोनिशान नही था दूर दूर तक । इसलिये इतनी खूबसूरती नही लगी ।
सब बहुत उत्साहित थे । पहाडी घुमावदार रास्ता बडा सुन्दर लगता है । पटनीटाप हिमालय की शिवालिक बैल्ट में है इसका पुराना नाम पाटन दा तालाब था जिसका मतलब होता है राजकुमारी का तालाब । कहते है कि यहां कि स्थानीय राजकुमारी यहां स्थित तालाब में स्नान करने आया करती थी । बाद में अपभ्र्ंश यानि बिगडते बिगडते इसका नाम पटनीटाप पड गया । रास्ते में चिनाब नदी मिलती है जिसका नाम फिल्मो वगैरा में खूब आता है । यहां भी रास्ते में भूस्खलन होते रहते हैं जिसके कारण रास्ते अक्सर बंद हो जाते हैं ।
कहने को तो लगभग 110 किमी की दूरी है और कटरा से लगभग 100 पर जाने में चार घंटे लग जाते हैं । रास्ते में ज्यादातर आर्मी के और माल ढोने वाले ट्रको की लाइन लगी रहती है जिनको ओवरटेक करना बडी टेढी खीर होती है क्योंकि एक तरफ खाई है अगर गलती हुई तो संभलने का मौका नही । लोकल ड्राइवर अच्छा था गाडी चलाने में पर कभी कभी ओवरटेक करने में जल्दबाजी करता था । इसलिये उसे कई बार कहना पडा । रास्ते में एक दुकान पर उसने बिना पूछे ही रोक दिया । मैने पूछा तो बोला मैने खाना नही खाया है और आप भी खा लो वहां नही मिलेगा । अगर मिलेगा भी तो महंगा मिलेगा । मै यात्राए करता रहा हूं तो मुझे पता है कि इनका कमीशन तय होता है हर जगह । पहले वाला ड्राइवर जो हमें कश्मीर ले गया था उसने सब जगह खाना खाया पर कहीं पैसा नही दिया । जम्मू और कशमीर में ये खुला चलता है जबकि केरल में ड्राइवर बटटा लेने के बाद भीयही होता है ।
खैर दो घंटे में सडक के साथ साथ सबके सिर घूमने लगे थे तो सबने चाय वगैरा पी ली । हमारी बडी मामी को कई उल्टिया हुई । पटनीटाप समुद्र तल से 2024 मी0 की उंचाई पर है और यहां आने से पहले एक बहुत महत्वपूर्ण कस्बा पडता है कुद । कुद में बतीसा मिठाई बनती है और बहुत ही मशहूर है जम्मू कशमीर जाने वाले ज्यादातर लोग यहां रूककर मिठाई लेते हैं । सैकडो दुकाने केवल मिठाई की । बडे खतरनाक मोड पर बसा है कुद और उपर से मिठाई लेने वाले अपनी गाडी रोक लेते है तो अक्सर वहां पर जाम लग जाता है जिसे फिर आर्मी के जवान लाठी फटकार कर खुलवाते हैं । रास्ते में कई जगह चैकिंग होती है गाडियेा को रूकवाकर आर्मी के जवान तलाशी लेते हैं । जबसे कश्मीर में आतंकवाद पनपा है तबसे बहुत ज्यादा चैकिंग हो गई है कुद तक में घरो की छतो पर आर्मी वाले बैठे है । रात हो या दिन आपको सडक किनारे हाथ में बम ढूढने का डंडा सा लिये आर्मी के जवान मिल जायेंगें । सैल्यूट करने का मन होता है उनको वहीं पे ।
मुझे अपनी कश्मीर यात्रा के दिन याद आ गये जब मैने एक आर्मी जवान से पूछा कि आप इतनी रात को भी यहां इतने लोग क्यों हो तो उसने तपाक से कहा अगर यहां हम ना हो तो ये जो तुम पिकनिक मनाने आ रहे हो ना ये भूल जाओगे । खैर हम लगभग 4 घंटे में हम पटनीटाप पहुंच गये । पटनीटाप का रास्ता श्रीनगर जाते समय सीधे हाथ पर है एक बहुत छोटी सी रोड और उस पर सबसे पहले बैरियर । कटा लो जेब मतलब पर्ची क्योंकि हम दूसरी दुनिया से हैं ना । वहां से चलो तो थोडी आगे जाते ही नाग देवता का मंदिर आता है जिसे बताते हैं कि 600 साल पुराना है और करीब बहुत ही छोटा है इतना छोटा कि कुल जमा चार या पांच आदमी उसमें आ सकते हैं और लगभग 5 फुट के करीब उंचा । एक ही रास्ता आने और जाने का । औरतो के जाने की मनाही है अन्दर । वहां प्रसाद चढाया सबने और फिर मंदिर के पास में दस पन्द्रह दुकाने लगी हुई हैं शाल और कारपेट वगैरा बेचने की । जो लोग कश्मीर ना जा रहे हों उनकी इच्छा और जेब ये लोग यहीं पूरी कर देते हैं
बस इसके बाद पार्क आ गया । मौसम बहुत ठंडा था और ड्राइवर ने बताया कि रात यहां बर्फ पडी थी पर वो हल्की थी इसलिये सुबह तक नही रही । तो अब क्या करना है तो ड्राइवर ने बोला कि यहां से दस किलोमीटर उपर नत्थाटाप जगह है वहां पर काफी बर्फ पडी है । उसने हमारे मंदिर जाने के बाद अपने पास खडे लोकल के दुकानदारो और ड्राइवरो से पता कर लिया था । हमने कहा चलो तो चल पडे नत्थाटाप के लिये । हाइवे पर आये तो उल्टे हाथ को एक मोड है जहां से रास्ता नत्थाटाप के लिये गया है । जैसे ही हम नत्थाटाप के रास्ते पर मुडे तो ड्राइवर ने फिर गाडी रोक ली । अब क्या हुआ भाई । बोला कपडे और जूते ले लो यहीं पर मिलेंगे आगे नही । मरते क्या ना करते जब नयी जगह जा रहे हों तो किसी न किसी की तो मान लेनी चाहिये । कपडे वाले ने तो हमारे कपडे ही उतारने की सोच रखी थी । 150 रू के कोट और 100 रू प्रति व्यक्ति जूते । कुल मिलाकर 250 रू प्रति व्यक्ति । हम तो थे भी दस 2500 रू देते हुए जोर पड रहा था । हमने बहुत कोशिश की तो जाकर 150 रू प्रति व्यक्ति तैयार हुआ । अब हमने अपने ड्राइवर को आजमाया कि यार कुछ तो कम करवा दे । पहले तो बोला नही जी इससे कम क्या होगा । तब मैने कहा कि तू बात करले अपनी लोकल भाषा में और 1000 में करा दे मै तुझे 100 रू दे दूंगा । बस फिर क्या था दो मिनट में पता नही उन्होने आपस में क्या कहा पर हमारा तो 1000 में हो गया । 10 बडे और दो छोटे बच्चो का । 1100 रू में गीले कोट और बिना मोजे के चमडे के लम्बे लम्बे बूट पहनकर हम चल दिये । बच्चे साथ में ना होते तो मेरे पास तो अपना विनचीटर का सैट था उपर से नीचे तक का । 250 रू का आता है नया इन्होने किराया ही 100 रू ले लिया एक घंटे का ।
आगे को चले तो पैसे वसूल होने शुरू हो गये । क्योंकि जैसे जैसे हम आगे बढते गये बर्फ दिखाई देनी शुरू हो गयी और 10 किलोमीटर बाद तो जैसे जन्नत थी । चारो तरफ बर्फ ही बर्फ अगर आपने फना फिल्म देखी हो तो बिलकुल वो ही दृश्य था । चारो ओर चीड और देवदार के पेड , फिसलन भरे पहाडेा के स्लोप और उन पर एक एक फुट जमी ताजी नयी बर्फ । नत्थाटाप कोई गांव नही कोई रहन सहन नही वहां पर बस एक एरिया का नाम है । वहां चाय वाले और मैगी बनाने वाले भी सुबह अपने स्कूटर या कुछ तो मारूति वैन में अपनी दुकान लाते है । चलती फिरती दुकान । एक सीमा से आगे वहां जाने का रास्ता ही नही था सब गाडिया वहीं खडी हो गयी थी उसके बाद हम पैदल चल दिये । जब हम बर्फ पर चल रहे थे तो स्नोफाल शुरू हो गया । जिंदगी में पहली बार स्नोफाल लाइव देखा थामन में बहुत खुशी थी । अब तो वे 1100 रू भी मन को नही दुख रहे थे जो कोट वाले को दिेये थे क्योंकि अब उनसे पैसे वसूलने का टाइम आ गया था ।
बर्फ पर फिसलने में और बर्फ से खेलने में उन्ही कपडो को तो गंदा और गीला होना था । वहां लकडी की स्लेज लिये भी खडे थे जो पहले उपर चढाई पर ले जाकर वहां अपने पीछे एक आदमी को बिठाते और उपर ढलान से फिसलते हुऐ 60 की स्पीड से नीचे आते और 50 का नोट ले जाते । घोडे वाले भी थे जो ऐसे मस्त माहौल मे घोडे पर बैठने के 25 रू ले रहे थे । अगर किसी की शादी भी ना हुई हो तो भी घोडे पर बैठ कर फोटो खिंचवा लो । पर हमें सबसे ज्यादा मजा आया ताजी ताजी बर्फ को उठाकर उससे कुछ बनाने में । जो मजा समंदर किनारे रेत का घर बनाने में आता है वही मजा बर्फ का घर बनाने में आता है । रूई जैसी होती है ताजी गिरी बर्फ और जो गिर रही होती है वो रूई के फाहे जैसी उडती है । आपके कंधे पर गिरी तो फूंक मारो और साफ । घंटो खेलते रहे एक दूसरे के कपडो में बर्फ डालते रहे जैसे होली में होता है । गोले बनाये और एक दूसरे पर मारे , फिर चल दिये वापिस । जाने को मन तो नही था पर पता था कि यहां दो घंटे बिताने के लिये चार घंटे चलकर आये हैं तो चार घंटे ही जाने में लगेंगे । इसलिये समय से चलना ही ठीक है । नत्थाटाप में कोई होटल तो क्या कोई निर्माण ही नही है शायद इसीलिये इतनी खूबसूरत जगह है । पटनी टाप में होटल है पर कम ही हैं और रेट तो 1000 से कम तो हैं ही नही वो भी डबल रूम । आप भी जाओ तो होटल में रूकने के हिसाब से मत जाना । रूकना जम्मू या कटरा में ही । अपना वाहन हो तो रास्ते में भी अच्छे और सस्ते होटल मिल जायेंगे ।
Thanx I can atleast use this for my essay.
ReplyDeleteWe have a house near patni top so I know how awesome its weathr there during snow fall
ReplyDeletemissing Patni top
yaadein taza ho gyi
happy blogging
http://vanishgirl.blogspot.in
Patni Top is a snowy place .. I am dying to see it myself !! Awesome post Manu !!
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