तो रात के 9 बजे हम सब लोग अपने घर से निकल पडे । सबने दो दो बैग और हमने एक छोटा बैग और एक बडा सूटकेस रख लिया था । रात का समय इसलिये तय किय...
तो रात के 9 बजे हम सब लोग अपने घर से निकल पडे । सबने दो दो बैग और हमने एक छोटा बैग और एक बडा सूटकेस रख लिया था । रात का समय इसलिये तय किया गया ताकि रात में पहले ही दिन में लम्बा सा सफर तय किया जा सके सो दिल्ली को निकलते हुए जयपुर हाइवे पर आ गये । दिल्ली में रात के 11 बजे के करीब पहुंचे थे तो ट्रेफिक भी कम था जाम वगैरा नही मिला जयपुर हाइवे पर आने के बाद तो कुछ हवा सी लगी क्योंकि हाइवे चौडा था और वाहन इतने ज्यादा नही थे । रात के 12 बजे और सुबह के 4 बजे चाय पी और ड्राइवर को भी पिलाई ताकि उसे नींद की झपकी ना आ जाये ।
जब सुबह की चाय पी रहे थे तो उस रास्ते में खोखे में मैने पहली बार बिजली का चूल्हा जिसे इंडक्शन कुकर कहते हैं देखा । मुझे बडा आश्चर्य हुआ कि इसमें ना तो गूंज या जो भी उसे कहते हैं जो साधारण हीटर में होती है नही थी और उससे भी बडा आश्चर्य ये था कि चाय की दुकान जो चौबीस घंटे चलती है वो भी बिना गैस सिलैंडर के । इसका मतलब यहां बिजली इतनी अच्छी आती है ।हमें तो यूपी में ज्यादातर बिना बिजली के ही रहने की आदत है । तो सुबह के छह बजे हम पुष्कर पहुंचे । हमने रात में जयपुर को छोड दिया था क्योंकि हमें लगता था कि पहले दिन तो जितना लम्बा हो सके चलना चाहिये सो पहले पुष्कर पहुंचे । रात भर मा0जी तो ड्राइवर से बात ही करते रहे कि कहीं पीछे सो रहे लोगो की तरह वे भी सो जायें और ड्राइवर को भी नींद की झपकी आ जाये । इस पूरे सफर में और हमेशा मैने यही ध्यान रखा कि रात को चलने की नौबत बहुत ही मजबूरी में हो पर एक दो बार फिर भी ऐसा ही हुआ ।
मेरी तो आदत है कि शाम के सात बजे तक जहां भी हो सके ठीक सी जगह रूक जाओ ,8 बजे तक कमरा ढूंढ लो और 9 बजे से दस बजे के आसपास तक खाना खाकर सो जाओ और सुबह 4 बजे उठकर नहा धोकर 6 बजे चलना शुरू कर दो । इसमें ऐसा होता है कि यदि व्यक्ति सुबह सवेरे चल देता है तो दो से तीन घंटे शुरूआत के में काफी सफर बिना किसी ताम झाम के तय कर लेता है ये तो पहले दिन की बात थी । जब सफर में कई दिन हो जाते है तो थकान जल्दी होने लगती है । दिल्ली से जयपुर 260 किमी के करीब है और हमारे घर से दिल्ली 90 किमी0 और जयपुर से पुष्कर 140 किमी0 । इस तरह हमने 490 किमी0 का सफर अब तक 12 घंटे में कर लिया था तो सबसे पहले पुष्कर पहुंचकर हमने कोई कमरा ढूंढना शुरू किया जिसमें हम नहा धोकर फ्रेश हो सकें ज्यादा से ज्यादा दो घंटे के लिये ।
कई धर्मशालाओ में पूछा पर नाम धर्मशाला का और रेट होटलो के । हमारे साथ मा0जी जो कि जाट थे और लालाजी जो कि जैन धर्म के मानने वाले थे दोनो की सोच थी कि अपनी अपनी बिरादरी की हर मुख्य जगहो पर धर्मशालाए होती है जैसे वैश्य धर्मशाला , अखिल भारतीय जाट धर्मशाला , क्षत्रिय धर्मशाला , सुनार या विश्वकर्मा धर्मशाला । ये सब उन बिरादरियो के सामूहिक प्रयासो से बनाई जाती है और इनमें उन बिरादरियो के लोगो को रूकने में प्राथमिकता दी जाती है । और हम तो तीन अलग अलग बिरादरी से थे एक जाट एक त्यागी एक जैन । वैसे सच बताउं आपको कि त्यागी जो हैं वो उत्तर प्रदेश के छोटे से हिस्से में ही है ज्यादा नही है सो हमारी तो धर्मशाला इस पूरे टूर में मुझे दिखाई दी नही सो मै तो चुप रहा इस मसले में । जो ये करेंगे दोनो जहा ले चलेंगे वही चल पडूंगा तो तभी किसी से पूछा तो उसने बताया कि यहीं पास ही में मंदिर की पिछली साइड में को जाट धर्मशाला है ।
बस पहले जाट महाराज की चल पडी और पूछते पूछते पहुंच गये जाट धर्मशाला में । ये धर्मशाला औरो के मुकाबले काफी खुली जगह में बनी थी और नयी बनी हुई थी काफी खुली खुली और काफी कमरो वाली थी । पार्किंग में भी काफी जगह थी तो गाडी हमने पार्किंग में खडी कर दी और जा घुसे धर्मशाला में । जाते ही स्वागत कक्ष में जो आदमी बैठा था मा0 जी ने आगे होकर क्योंकि वे ही तो बताते जाटो के बारे में हम क्या बताते सेा मा0 जी ने आगे होकर पूछ लिया कि भाई कैसे कैसे हिसाब है । बोला जी क्या करना है मा0 जी ने बताया कि हमें सिर्फ नहाना धोना और फ्रेश होना है ज्यादा से ज्यादा दो घंटे के लिये । तो उसने बोला कि चाहे दो घंटे रूको या पूरा दिन चार्ज तो 250 रू है एक कमरे का । अब बस यहीं पर हमारे लालाजी पर रूका नही गया तो वो बोल पडे कि अगर कोई जाट हो तो ? उसके लिये ? तो रिसेप्शन वाले ने पूछा कि आप जाट हो ? लालाजी बिना सोचे समझे बोल पडे कि मै तो जैन हूं बस फिर मा0 जी बोले भी कि मै जाट हूं पर उसे तो यकीन ही नही हुआ । उसने सोचा कि हम सब लोग झूठ बोल रहे हैं लाभ लेने के लिये । क्योंकि जाट बिरादरी के व्यक्ति को 100 रू की छूट थी । मा0 जी ने ज्यादा जोर दिया तो उसने पूछा कि बताओ क्या बोलते हो नाम के आगे । मा0 जी बोले पंवार तो वो बोला कि पंवार तो जाट नही होते । मा0 जी का गुस्सा हद पार कर चुका था बोले कैसे नही होते पंवार जाट जरा मुझे बता तो उसने एक बोर्ड की ओर इशारा किया उस पर जाट बिरादरी के उपनाम या जो गोत्र होते है वे लिखे थे और मजे की बात ये है कि उसमें हमारी यूपी की साइड में जो मेन मेन जाटो के उपनाम होते हैं उनमें से एक भी नही था जैसे पंवार, सहरावत आदि ।
उससे भी मजे की बात ये थी कि जो नाम उन्होने लिख रखे थे उन्हे मा0 जी ने मना कर दिया कि ये जाट में कहां से आ गये । अब जब बात नही बनी तो मा0 जी बोले कि एक काम कर तू सौ रू ज्यादा ले ले पर झूठा मत बता । बस बात शांत हो गई और 250 रू में कमरा तय हो गया । गाडी की छत से सबने अपना अपना सामान उतारा और एक कमरे में रख लिया । धर्मशाला लगभग खाली थी । हमें एक कमरा मिला था पर बराबर में दो तीन बाथरूम और टायलेट बने थे कामन तो सब एक एक में घुस गये और जल्दी से फ्रेश हो कर बाहर आ गये ।
ड्राइवर को हमने अपने कमरे में छोड दिया कि तू सो ले तब तक हम घूमकर आते है। दरअसल इस धर्मशाला वाले मसले में दोनो पक्षो में से कोई भी झूठ नही बोल रहा था । बस अल्पज्ञान इसमें आडे आ गया था । सब पैदा होते हैं तो कोई न कोई जाति बिरादरी उनके नाम के आगे जोड दी जाती है । कोई कोई तो पूरे जीवन ये भी नही पता कर पाता कि हमारी बिरादरी किसी दूसरे राज्य में किसी अलग नाम या अलग गोत्र से तो नही रहती । पर घुमक्कडी से ही ये ज्ञान मिलता है
धर्मशाला के बाहर एक छोटी सी कैंटीन थी । उसमें हमने नाश्ता किया और पैदल थोडी सी दूर चलते ही मंदिर पहुंच गये । रास्ते में दुकाने लगी थी जो खुलने लग रही थी । मंदिर के पास फूल वाले और प्रसाद वाले खडे थे । ब्रहमा जी का मंदिर काफी उंचाई पर बना है और कुछ सीढिया चढकर मंदिर में प्रवेश होता है पुष्कर राजस्थान के अजमेर जिले में है और विश्व प्रसिद्ध है अजमेर से कुल 14 किमी दूर यहां ब्रहमा जी का एक मंदिर है जिसके बारे में प्रसिद्ध है कि ये दुनिया का एकमात्र ब्रहमा जी का मंदिर है यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को मेला लगता है जिसमें देश विदेश से लाखो लोग शिरकत करते हैं उसी के साथ साथ यहां पशु मेला भी लगता है । इस मेले की सबसे बडी विशेषता ये होती है कि यहां हर कोई नजर आता है
जैसे राजस्थान और आसपास के ग्रामीण परिवेश के लोग जिनका पहनावा उनकी पहचान होती है सिर पर पगडी और एक विशेष तरह का कुर्ता और धोती जिसे आप अगर हिंदुस्तान तो क्या दुनिया के किसी भी कोने में देखोगे तो पहचान जाओगे कि ये बंदा राजस्थानी है । उसके अलावा देश विदेश के कोने कोने से अलग अलग प्रांतो से आये हिंदू श्रद्धालू जो ब्रहमा जी के मंदिर को देखने और प्रसिद्ध पुष्कर झील में स्नान करने आते हैं । फिर विदेशियो का तो कहना ही क्या उन्हे तो ये मेला बहुत पसंद है और मेले में अपने पशुओ को लेकर आये व्यापारी मंदिर में चर्तुमुख ब्रहमा जी की दाहिनी ओर सावित्री देवी का और बांयी ओर गायत्री देवी का मंदिर है
ऐसा बताते हैं कि एक बार ब्रहमा जी ने नारद जी को शाप दे दिया । फिर क्या था नारद जी ने भी ब्रहमा जी को जबाबी शाप दे दिया कि तुम कहीं नही पूजे जाओगे इसलिये ब्रहमा जी का मंदिर कहीं और नही है सिवाय पुष्कर के और इसीलिये पुष्कर को पुष्कर राज कहा जाता है । ब्रहमा जी को ब्रहमा ,विष्णु और महेश तीन देवताओ में स्थान प्राप्त है । ब्रहमा जी का कार्य संसार की रचना करना बताया गया है । ऐसा भी कहा जाता है कि जब ब्रहमा जी ने अपने यज्ञ की जगह का चुनाव करने के लिये फूल फेंका तो उससे इस जगह का निर्माण हुआ और यही इस जगह के नाम का अर्थ है पुष्कर यानि फूल द्धारा निर्मित एक तालाब । यहां पहुंचने के लिये सबसे नजदीकी और प्रसिद्ध शहर जयपुर है जो पूरी दुनिया के साथ अच्छी तरह जुडा है । सडको की स्थिति बहुत अच्छी है पूरे राजस्थान में जिसकी चर्चा मै आगे करूंगा ।
मंदिर में फोटोग्राफी प्रतिबंधित है सेा अंदर के फोटो नही ले पाये ,मंदिर से निकले तो यहां की विश्वविख्यात और पौराणिक रूप से प्रसिद्ध झील में जाने के लिये चल दिये । पर वहां जाकर देखा तो वहां इस झील को आकर्षक बनाने का कार्य चल रहा था और इसके कारण झील पूरी तरह सूखी हुई थी । बस एक किनारे पर चार पांच कुंड बना रखे थे और उसी में लोग अपने कर्मकांड कर रहे थे जैसे संस्कार आदि । अंदर जेसीबी मशीने चल रही थी । कुल मिलाकर हमें झील में देखने को कुछ दिखा ना मिला सो हम वापिस चल दिये और वापिस धर्मशाला आ गये । मुश्किल से डेढ घंटा लगा हमें मंदिर और झील के दर्शन करके आने में । एक झपकी ले पाया था कल्लू महाराज और पूरी रात के जागे हुए को जब हमने जगाया तो पहले तो वो उठा नही पर फिर ज्यादा जोर देने पर उठ गया । उसका मुंह धुलवाया और चल दिये अजमेर की ओर अजमेर प्रसिद्ध है ख्वाजा मोईनुदीन चिश्ती की दरगाह के लिये । ख्वाजा सूफी संत थे और उनकी मजार पर हर साल उर्स का मेला लगता है । दरगाह पर आने वाले भक्तो को जायरीन बोला जाता है । मै पहले भी एक बार भीलवाडा जाते समय यहां आ चुका था सो मेरा मन दोबारा जाने का नही था । मा0 जी भी पहले एक बार आ चुके थे । पर लालाजी बोले कि इतनी दूर कौन रोज रोज आता है इसलिये देख लेते हैं । फिर हमारे दिमाग में एक और बात आयी । हमारा जो ड्राइवर था कल्लू महाराज वो मुस्लिम था और उसके लिये तो ये जगह खास हो सकती थी । हमने कल्लू से पूछा देखेगा बोला जी आपकी मर्जी हो तो दिखा दो नही तो मै तो जैसा आप कहोगे ऐसा करूंगा । हमने भी सोचा कि ये हमारा अगले बीसियो दिनो तक सारथी रहने वाला है हमें क्या फर्क पडेगा । सेा हमने गाडी मेन रोड पर एक झील आती है अजमेर की झील उसके सामने रोक ली और चल दिये दरगाह की ओर । यहां भी पुलिस का पहरा बहुत सख्त है और एक बडे से गेट से होकर जाने के बाद दरगाह सामने दिखाई देने लगती है । और जगहो की तरह ठेली वालो की भीड ना होकर मेन दुकाने और शोरूम गेस्ट हाउस आदि सडक के दोनो ओर बने हैं । दरगाह के पास को पहुंचकर फूलो की दुकाने बहुत आ जाती हैं । गुलाब के फूल दरगाह में चढाये जाते हैं और मजे की बात ये है कि इन गुलाबो में सबसे ज्यादा गुलाब पुष्कर में पैदा होता है जहां से लाखो क्विंटल फूल की सप्लाई दरगाह पर की जाती है । यहां इत्र की बहुत सारी दुकाने हैं । दरगाह के बाहर जूते लेकर नही जाते बाहर दुकान या जूतो के स्टाल पर निकाल देते हैं । अंदर जाने पर एक बडा सा पतीला रखा है जिसमें रूपये गिराते हैं लोग और दरगाह के अंदर एक छोटे से गेट से जाते हैं जहां मजार के चारो ओर को घूमते हुए दूसरे रास्ते से निकल जाते हैं हजारो लोगो की भीड में मुस्लिम ज्यादा तो हिंदू भी कम नही दिखाई देते । हमारे कई फिल्म स्टारो की तो अक्सर फोटो छपती रहती है अखबारो में अपनी फिल्म की रिलीज से पहले और हिट होने के बाद में । ख्वाजा मोईनुदीन चिश्ती को गरीब नवाज के नाम से भी बुलाया जाता है । बिलकुल ऐसा माहौल जैसा आपने फिल्मो में देखा होगा । दरगाह के पीछे पहाडी है जिस पर उंचाई में घर बने हुए हैं । मुस्लिमो में भी दो तरह के मानने वाले होते हैं दोनो सर्वोपरि तो अल्लाह को ही मानते हैं पर एक वर्ग साथ ही साथ सूफी संतो को भी मानता है और उन पर चादर चढाता है जबकि दूसरा वर्ग इसे गलत बताता है पर जहां तक बात अजमेर शरीफ की है तो उसे सभी धर्मो के लोगो में मान्यता है । मुगल बादशाह अकबर भी इनका मुरीद था । उसने लडका होने के लिये मुराद मांगी थी जो पूरी होने पर उसने आमेर से अजमेर तक पैदल चलकर ख्वाजा के दरबार में चादर चढाई । यहां कव्वाली होती रहती है । दरगाह को धार्मिक सदभाव फैलाने वाला माना जाता है । यहां के प्रसिद् उर्स की शुरूआत भी हिंदू परिवार द्धारा चादर चढाने के बाद ही होती है । तो दरगाह शरीफ के दर्शन कर हम चल दिये अपने अगले पडाव चित्तौड की ओरजाट धर्मशाला |
जब सुबह की चाय पी रहे थे तो उस रास्ते में खोखे में मैने पहली बार बिजली का चूल्हा जिसे इंडक्शन कुकर कहते हैं देखा । मुझे बडा आश्चर्य हुआ कि इसमें ना तो गूंज या जो भी उसे कहते हैं जो साधारण हीटर में होती है नही थी और उससे भी बडा आश्चर्य ये था कि चाय की दुकान जो चौबीस घंटे चलती है वो भी बिना गैस सिलैंडर के । इसका मतलब यहां बिजली इतनी अच्छी आती है ।हमें तो यूपी में ज्यादातर बिना बिजली के ही रहने की आदत है । तो सुबह के छह बजे हम पुष्कर पहुंचे । हमने रात में जयपुर को छोड दिया था क्योंकि हमें लगता था कि पहले दिन तो जितना लम्बा हो सके चलना चाहिये सो पहले पुष्कर पहुंचे । रात भर मा0जी तो ड्राइवर से बात ही करते रहे कि कहीं पीछे सो रहे लोगो की तरह वे भी सो जायें और ड्राइवर को भी नींद की झपकी आ जाये । इस पूरे सफर में और हमेशा मैने यही ध्यान रखा कि रात को चलने की नौबत बहुत ही मजबूरी में हो पर एक दो बार फिर भी ऐसा ही हुआ ।
ब्रहमा जी का मंदिर |
दो आदमी घूमने वाले है तो दोनो का बराबर हक है ना जी फोटो का |
कई धर्मशालाओ में पूछा पर नाम धर्मशाला का और रेट होटलो के । हमारे साथ मा0जी जो कि जाट थे और लालाजी जो कि जैन धर्म के मानने वाले थे दोनो की सोच थी कि अपनी अपनी बिरादरी की हर मुख्य जगहो पर धर्मशालाए होती है जैसे वैश्य धर्मशाला , अखिल भारतीय जाट धर्मशाला , क्षत्रिय धर्मशाला , सुनार या विश्वकर्मा धर्मशाला । ये सब उन बिरादरियो के सामूहिक प्रयासो से बनाई जाती है और इनमें उन बिरादरियो के लोगो को रूकने में प्राथमिकता दी जाती है । और हम तो तीन अलग अलग बिरादरी से थे एक जाट एक त्यागी एक जैन । वैसे सच बताउं आपको कि त्यागी जो हैं वो उत्तर प्रदेश के छोटे से हिस्से में ही है ज्यादा नही है सो हमारी तो धर्मशाला इस पूरे टूर में मुझे दिखाई दी नही सो मै तो चुप रहा इस मसले में । जो ये करेंगे दोनो जहा ले चलेंगे वही चल पडूंगा तो तभी किसी से पूछा तो उसने बताया कि यहीं पास ही में मंदिर की पिछली साइड में को जाट धर्मशाला है ।
पुष्कर सरोवर |
कोई भीड भाड नही |
उससे भी मजे की बात ये थी कि जो नाम उन्होने लिख रखे थे उन्हे मा0 जी ने मना कर दिया कि ये जाट में कहां से आ गये । अब जब बात नही बनी तो मा0 जी बोले कि एक काम कर तू सौ रू ज्यादा ले ले पर झूठा मत बता । बस बात शांत हो गई और 250 रू में कमरा तय हो गया । गाडी की छत से सबने अपना अपना सामान उतारा और एक कमरे में रख लिया । धर्मशाला लगभग खाली थी । हमें एक कमरा मिला था पर बराबर में दो तीन बाथरूम और टायलेट बने थे कामन तो सब एक एक में घुस गये और जल्दी से फ्रेश हो कर बाहर आ गये ।
काम चल रहा है |
ड्राइवर को हमने अपने कमरे में छोड दिया कि तू सो ले तब तक हम घूमकर आते है। दरअसल इस धर्मशाला वाले मसले में दोनो पक्षो में से कोई भी झूठ नही बोल रहा था । बस अल्पज्ञान इसमें आडे आ गया था । सब पैदा होते हैं तो कोई न कोई जाति बिरादरी उनके नाम के आगे जोड दी जाती है । कोई कोई तो पूरे जीवन ये भी नही पता कर पाता कि हमारी बिरादरी किसी दूसरे राज्य में किसी अलग नाम या अलग गोत्र से तो नही रहती । पर घुमक्कडी से ही ये ज्ञान मिलता है
इन कुंडो में कुछ पानी जमा कर दिया है |
अजमेर झील का एक नजारा |
जैसे राजस्थान और आसपास के ग्रामीण परिवेश के लोग जिनका पहनावा उनकी पहचान होती है सिर पर पगडी और एक विशेष तरह का कुर्ता और धोती जिसे आप अगर हिंदुस्तान तो क्या दुनिया के किसी भी कोने में देखोगे तो पहचान जाओगे कि ये बंदा राजस्थानी है । उसके अलावा देश विदेश के कोने कोने से अलग अलग प्रांतो से आये हिंदू श्रद्धालू जो ब्रहमा जी के मंदिर को देखने और प्रसिद्ध पुष्कर झील में स्नान करने आते हैं । फिर विदेशियो का तो कहना ही क्या उन्हे तो ये मेला बहुत पसंद है और मेले में अपने पशुओ को लेकर आये व्यापारी मंदिर में चर्तुमुख ब्रहमा जी की दाहिनी ओर सावित्री देवी का और बांयी ओर गायत्री देवी का मंदिर है
अजमेर झील एक और साइड से |
ऐसा बताते हैं कि एक बार ब्रहमा जी ने नारद जी को शाप दे दिया । फिर क्या था नारद जी ने भी ब्रहमा जी को जबाबी शाप दे दिया कि तुम कहीं नही पूजे जाओगे इसलिये ब्रहमा जी का मंदिर कहीं और नही है सिवाय पुष्कर के और इसीलिये पुष्कर को पुष्कर राज कहा जाता है । ब्रहमा जी को ब्रहमा ,विष्णु और महेश तीन देवताओ में स्थान प्राप्त है । ब्रहमा जी का कार्य संसार की रचना करना बताया गया है । ऐसा भी कहा जाता है कि जब ब्रहमा जी ने अपने यज्ञ की जगह का चुनाव करने के लिये फूल फेंका तो उससे इस जगह का निर्माण हुआ और यही इस जगह के नाम का अर्थ है पुष्कर यानि फूल द्धारा निर्मित एक तालाब । यहां पहुंचने के लिये सबसे नजदीकी और प्रसिद्ध शहर जयपुर है जो पूरी दुनिया के साथ अच्छी तरह जुडा है । सडको की स्थिति बहुत अच्छी है पूरे राजस्थान में जिसकी चर्चा मै आगे करूंगा ।
एक फोटो हमारा भी |
Jay shree krishna manu ji. jay ho Brahma dev ki.
ReplyDeletebahu t hi sundar Aur Atbhudh vivran tha Pushakr Ji aurr Ajmer ki khwaja sahib ki dargah ke bare me.
bahut ananad aaya pushakr ji ke bare me padhakr aur shree brahmaji ke darshan karke. PLagta he Pushakr Sarover me Pni sukh gaya tha.
Jab me Pushakr Sarovar gaya tha kartik maas ke mahine me krtik nahane ke liye us samay to usme bahut hi Pani tha. Pushakr bhi sundar jagah he. Pushkar ji me aur bhi bahut sundar mandir aur darshaniya sthan he. bahut hi Sundar Post lagi manu ji. bahut bahut Dhanyawaad Manu ji
jay ho pushkar raj ji ki
पुष्कर का विस्तार से वर्णन पढ़कर अच्छा लगा।
ReplyDelete