शाकुम्भरी देवी माता दुर्गा के 51 शक्तिपीठो में से एक है । यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में बेहट तहसील में स्थित है । माता के दर्शन से प...
शाकुम्भरी देवी माता दुर्गा के 51 शक्तिपीठो में से एक है । यह उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में बेहट तहसील में स्थित है । माता के दर्शन से पहले यहां मान्यता है कि भूरा देव के दर्शन करने पडते है । श्री दुर्गासप्तशती पुस्तक में शाकुंभरी देवी का वर्णन आता है कि जब एक बार देवताओ और दानवो में युद्ध चल रहा था जिसमें दानवो की ओर से शुंभ ,निशुंभ, महिषासुर आदि बडे बडे राक्षस लड रहे थे तो देवता उनसे लडते लडते शिवालिक की पहाडियो में छुप छुपकर विचरण करने लगे और जब बात ना बनी तो नारद मुनि के कहने पर उन्होने देवी मां से मदद मांगी । इसी बीच भूरादेव अपने पांच साथियो के साथ मां की शरण में आया और देवताओ के साथ मिलकर लडने की आज्ञा मांगी ।
मां ने वरदान दिया और युद्ध होने लगा । राक्षसेा की ओर से रक्तबीज नाम का असुर आया जिसकी खून की एक बूंद गिरने पर एक और उसी के समान असुर पैदा हो जाता था । मां ने विकराल रूप धरकर और चक्र चलाकर इन सब दानवो को मार डाला । माता काली ने खप्पर से रक्तबीज का सिर काटकर उसका सारा खून पी लिया जिससे नये असुर पैदा नही हुए पर इस बीच शुंभ और निशुंभ ने भूरादेव के बाण मार दिया जिससे वो गिर पडा । युद्ध समाप्त होने के बाद माता ने भूरादेव को जीवित कर वरदान मांगने को कहा तो उन्होने हमेशा मां के चरणो की सेवा मांगी जिस पर माता ने वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शन करेगा उसे पहले भूरादेव के दर्शन करने होंगे तभी मेरी यात्रा पूरी होगी ।
भूरा देव का मंदिर माता के मंदिर से एक किलोमीटर पहले है । भूरा देव के दर्शन करने के बाद ही माता के दर्शनो के लिये जाते है । हम जब भूरा देव के मंदिर पर पहुंचे तो वहां का नजारा देखकर होश उड गये क्येांकि वहां तो सडक पर लाइन ही एक किलोमीटर से भी ज्यादा लगी थी । हमारी समझ में नही आया कि इतनी सवेरे आकर और केवल तीसरे नवरात्रे में अगर भूरा देव बाबा पर इतनी लम्बी कतार है तो फिर आगे क्या होगा ? बाइक एक प्रसाद वाले के यहां खडी की और फटाफट प्रसाद लिया और लाइन में लगने को चला तो सोचा कि एक बार जरा दूसरी ओर भी देख् लूं । दूसरी ओर गया तो मेरा अंदाजा सही निकला कि उस ओर लाइन बहुत कम थी क्योंकि ज्यादातर लोग सडक से आकर गाडी खडी करके सीधे लाइन में लग जाते है 20 मिनट लग गये दूसरी साइड की लाइन में और हमने फिर से बाइक दौडा दी ।
नवरात्रो के मौके पर यहां मेला लगता है और पार्किंग भी काफी दूर बना दी जाती है । बाइक की तो फिर भी आगे मंदिर के कुछ पास ही है पर गाडियो की तो भूरादेव के मंदिर के ही पास में है और यहां से आगे एक किलोमीटर का रास्ता बरसाती नदी के बीच में से है जो सूखी पडी रहती है और केवल बरसात में ही चलती है । माता रानी का मंदिर शिवालिक की पहाडियो के बिल्कुल तलहटी में है । बाइक पार्किंग में खडी की और मंदिर की ओर चल दिये । मंदिर के दो किलोमीटर दूर से एक लाइन लगा रखी थी जो कि मंदिर के दूसरी साइड में थी और उस साइड से मंदिर की साइड में आने के लिये एक अस्थायी पुल राणा परिवार जसमौर की ओर से बनाया गया था ।
राणा परिवार जसमौर का यहां जिक्र बहुत जरूरी है क्योंकि ये मंदिर उन्ही की संपत्ति है और इसके दान में आया पैसा भी जसमौर के राणा परिवार को ही जाता है । यहां का मेला काफी बडा भरता है इसमें बच्चो और बडो से लेकर हर उम्र वालो के लिये काफी चीजे मिलती हैं । आमतौर पर यहां इतनी भीड नही रहती पर एक तो नवरात्रे और उपर से रविवार का दिन शायद इसीलिये भीड वहां उस दिन थी । मै तो परेशान हो रहा था कि यहां तो अब तीन से चार घंटे लगेगें और उसके बाद हरिद्धार जाना तो कैंसिल ही हो चुका था क्योंकि अगर दर्शन जल्दी भी हो जायें तो भी रात हो जानी थी और ज्यादा रात को सफर करना ठीकर नही था सो धर्मपत्नी जी ने बीडा उठाया और मंदिर के पास खडी एक अन्य महिला से कहा तो उन्होने अपने आगे लाइन में लगा लिया । बस फिर क्या था फिर तो मुझे भी उन्हे लगाना पडा क्योंकि दर्शन तो जोडे से ही होते हैं । एक घंटा तो फिर भी लग गया ।
मंदिर में जाकर दर्शन करते ही मन निहाल हो गया । यहां माता का रूप बहुत सुंदर है और मुख्य मंदिर में दर्शन करने के बाद मंदिर के चारो ओर की परिक्रमा की । परिक्रमा में हनुमान जी और अन्य देवताओ के मंदिर भी हैं । सभी मंदिरो में प्रसाद चढाकर हम पास की एक पहाडी पर स्थित माता छिन्नमस्ता देवी के मंदिर में गये और वहां से मंदिर का फोटो लिया । छिन्नमस्ता देवी के दर्शन के पश्चात मै शाकुंभरी देवी के मंदिर के सामने स्थित एक धर्मशाला की छत पर गया और वहां से भक्तो की लाइन और अस्थायी पुल का फोटो लिया । यहां मंदिर में पूरी रात दर्शन नही होते और रात को दर्शन बंद हो जाते हैं जो सुबह सवेरे से दोबारा खुलते हैं । रात को रूकने के लिये यहां पांच छह धर्मशालाऐं हैं इसके अलावा यहां आसपास में कोई ज्यादा व्यवस्था नही है । अगर कोई ज्यादा दूर से आ रहा है जो उसी दिन वापसी नही पहुंच सकता तो उसके लिये पास में सहारनपुर में अच्छे होटल मिल सकते हैं ।
अब मै आपको संक्षिप्त में बता दूं कि शाकुंभरी देवी मंदिर की महत्ता क्या है । ये मंदिर शक्तिपीठ है और यहां सती का शीश यानि सिर गिरा था । मंदिर में अंदर मुख्य प्रतिमा शाकुंभरी देवी के दाईं ओर भीमा और भ्रामरी और बायीं ओर शताक्षी देवी प्रतिष्ठित हैं । शताक्षी देवी को शीतला देवी के नाम से भी संबोधित किया जाता है । कहते हैं कि शाकुंभरी देवी की उपासना करने वालो के घर शाक यानि कि भोजन से भरे रहते हैं शाकुंभरी देवी की कथा के अनुसार एक दैत्य जिसका नाम दुर्गम था उसने ब्रहमा जी से वरदान में चारो वेदो की प्राप्ति की और यह वर भी कि मुझसे युद्ध में कोई जीत ना सके वरदान पाकर वो निरंकुश हो गया तो सब देवता देवी की शरण में गये और उन्होने प्रार्थना की । ऋषियो और देवो को इस तरह दुखी देखकर देवी ने अपने नेत्रो में जल भर लिया । उस जल से हजारो धाराऐं बहने लगी जिनसे सम्पूर्ण वृक्ष और वनस्पतियां हरी भरी हो गई । एक सौ नेत्रो द्धारा प्रजा की ओर दयापूर्ण दृष्टि से देखने के कारण देवी का नाम शताक्षी प्रसिद्ध हुआ । इसी प्रकार जब सारे संसार मे वर्षा नही हुई और अकाल पड गया तो उस समय शताक्षी देवी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाको यानि साग सब्जी से संसार का पालन किया । इस कारण पृथ्वी पर शाकंभरी नाम से विख्यात हुई ।
अब मै आपको संक्षिप्त में बता दूं कि शाकुंभरी देवी मंदिर की महत्ता क्या है । ये मंदिर शक्तिपीठ है और यहां सती का शीश यानि सिर गिरा था । मंदिर में अंदर मुख्य प्रतिमा शाकुंभरी देवी के दाईं ओर भीमा और भ्रामरी और बायीं ओर शताक्षी देवी प्रतिष्ठित हैं । शताक्षी देवी को शीतला देवी के नाम से भी संबोधित किया जाता है । कहते हैं कि शाकुंभरी देवी की उपासना करने वालो के घर शाक यानि कि भोजन से भरे रहते हैं शाकुंभरी देवी की कथा के अनुसार एक दैत्य जिसका नाम दुर्गम था उसने ब्रहमा जी से वरदान में चारो वेदो की प्राप्ति की और यह वर भी कि मुझसे युद्ध में कोई जीत ना सके वरदान पाकर वो निरंकुश हो गया तो सब देवता देवी की शरण में गये और उन्होने प्रार्थना की । ऋषियो और देवो को इस तरह दुखी देखकर देवी ने अपने नेत्रो में जल भर लिया । उस जल से हजारो धाराऐं बहने लगी जिनसे सम्पूर्ण वृक्ष और वनस्पतियां हरी भरी हो गई । एक सौ नेत्रो द्धारा प्रजा की ओर दयापूर्ण दृष्टि से देखने के कारण देवी का नाम शताक्षी प्रसिद्ध हुआ । इसी प्रकार जब सारे संसार मे वर्षा नही हुई और अकाल पड गया तो उस समय शताक्षी देवी ने अपने शरीर से उत्पन्न शाको यानि साग सब्जी से संसार का पालन किया । इस कारण पृथ्वी पर शाकंभरी नाम से विख्यात हुई ।
इस पुरी यात्रा में हम सुबह 7 बजे चले और शाम को लगभग साढे सात बजे वापिस मुरादनगर पहुंचे ............यात्रा का कुल खर्च था 650 रू का पैट्रोल और 100 रू चाय वगैरा में प्रसाद आदि अलग से ...................कुल दूरी तय की 440 किमी0..............कैमरा निकोन 8 मेगा पिक्सल और बाइक टीवीएस फलेम 125 सी सी
भूरा देव पर मुख्य सडक पर लगी लाइन |
भूरा देव का मंदिर |
ये है अस्थायी पुल और उस पर बनी लाइन |
धूप में लगी दो किलोमीटर लम्बी लाइन |
मंदिर के सामने की धर्मशाला से मंदिर का फोटो |
माता छिन्नमस्ता जाने के लिये बनी सीढियां |
छिन्नमस्ता मंदिर से विहंगम दृश्य |
पार्किंग का भी एक अपना मेला है |
मंदिर के नजदीक आने पर शिवालिक की पहाडिया दिखती हुई |
मंदिर जाने की सुंदर सडक |
मु0नगर बाईपास पर होटल पर नाश्ते के लिये रूके |
और ये मेरठ बाईपास पर वापसी में |
super dear tnxx u
ReplyDeleteWah ji wah jai mata ki ji
ReplyDeletewow....best experience... great discribe...thnku
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