सन 2009 की बात हैं नवरात्रो के दिनो में मै अक्सर दुर्गा माता के किसी न किसी रूप के दर्शन करने जाता हूं ज्यादातर तो चंडी देवी, मंसा देवी हरिद...
सन 2009 की बात हैं नवरात्रो के दिनो में मै अक्सर दुर्गा माता के किसी न किसी रूप के दर्शन करने जाता हूं ज्यादातर तो चंडी देवी, मंसा देवी हरिद्धार या फिर शाकुंभरी देवी और वैष्णो देवी । इन चारो जगहो पर साल में मेरा एक या एक से अधिक बार जाना होता है । इसलिये 2009 के इन नवरात्रो में मेरा कार्यक्रम बना तो पहली बार मेरी बहन ने कहा कि हम भी चलना चाहते हैं । मेरे लिये ये नया था क्योंकि आज तक वो मेरी साथ कहीं घूमने नही गये थे । मेरे क्या वो खुद भी कहीं घूमने नही गये थे इसलिये मैने सहर्ष उन्हे हामी भर दी ।
जब दीदी और जीजाजी तैयार हो गये तो मैने बाइक का इरादा छोडा और गाडी करने की सोची और अपने एक मित्र की बोलेरो जो कि किराये पर चलती थी उसे बुक कर लिया 5 रू किमी0 के हिसाब से और पहली बार प्रोग्राम बनाया नवरात्रो में नौ देवियो के दर्शन का ।नवरात्रो में हमने व्रत भी रखने थे तो किस तरह रखे जायेंगे व्रत घूमने में इस पर काफी विचार विमर्श करने के बाद ये तय हुआ कि हम फल , दूध आदि लेंगे रास्ते में और घर से मखाने , बर्फी वगैरा बनाकर चलेंगे । इसके अतिरिक्त एक समय के भोजन जो कि केवल आलू वगैरा खाते हैं उसके लिये कुछ बर्तन लेकर चले जिससे कि जो भी रास्ते में उस वक्त होटल हो तो उससे अपने बर्तनो में और अपने सामान से आलू वगैरा उबाल कर जीरा आलू बनाते हैं वो बनवा लें । मै , लवी और हमारी बेटी अनुष्का के अलावा मेरी बहन समता , जीजाजी और उनकी दो बेटियां मानवी और नौनिधि नन्दिनी हमारे साथ थे । हमने प्रसाद के रूप में घर से ही सारा सामान 18 जगह के लिये बना लिया था जैसे कि हर एक जगह के लिये देा प्रसाद , एक हमारा और एक दीदी का जिसमे नारियल , चुनरी ,छत्र और पूजा व श्रंगार का सामान था जिससे कि अपनी गाडी का कुछ फायदा हो और शुद्ध सामान उचित रेट पर हमें मिला । क्योंकि मंदिरो के पास काफी महंगा सामान बिकता है । हमारा इस यात्रा का कार्यक्रम इस प्रकार रहा था
बुढाना — मोदीनगर —हरिद्धार—शाकुंभर देवी —पांवटा साहिब—सोलन—नैना देवी—शिमला—कुल्लू मनाली— रोहतांग —कांगडा देवी— बैजनाथ —ज्वाला देवी — चिंतपूर्णी —वैष्णो देवी —कुरूक्षेत्र —शामली—बुढाना ये हमारा रास्ता रहा और हमने कुल 2100 किमी0 के करीब की यात्रा इस सफर में की । खर्च का विवरण मै सबसे बाद की पोस्ट में दूंगा ।
तो सबसे पहले नवरात्रे को हम सुबह 4 बजे उठकर मोदीनगर के लिये चल दिये और मोदीनगर से दीदी , जीजाजी और बच्चो को लेकर हरिद्धार 10 बजे तक पहुंच गये । हरिद्धार में जाकर हमने सबसे पहले चंडी देवी माता का रूख किया और माता के मंदिर के नीचे स्थित ट्राली यानि उडन खटोले के पास अपनी गाडी खडी करके टिकट लेकर उडनखटोले में सवार हो गये । ऐसा इसलिये किया क्योंकि एक तो हमें व्रत रखने थे इसलिये चढाई चढने में काफी एनर्जी खर्च होती दूसरा काफी लंबा सफर करना था । हमें आज ही चंडी माता के दर्शन के साथ साथ मंसा देवी और शाकुंभरी देवी के दर्शन करने थे । इसलिये हमने उडनखटोले में मंदिर की यात्रा की । मंदिर पहुंचकर सबसे पहले हमने माता के दर्शन किये और फिर अंजनी माता के । माता चंडी देवी का मंदिर गंगा नदी की नील धारा के किनारे पर स्थित नील पर्वत के शिखर पर है आप में से ज्यादातर को पता होगा पर जिनको नही पता है उन्हे मै बता देता हूं कि नील धारा वो है जो कि असली गंगा जी है और जहां हरिद्धार जाने वाले अक्सर नही जाते हैं । हरिद्धार जाने वाले गंगा जी से निकाली गयी एक कृत्रिम धारा जो कि हर की पौडी तक पहुंचाई गयी है और वहां से आगे वो गंगनहर बन जाती है जो कि मुरादनगर गाजियाबाद तक बिलकुल एन एच 58 तक आती है , में नहाकर आ जाते हैं । इसलिये जो मूल गंगा जी है उसे वहां नील धारा कहते हैं और वो चंडी देवी मंदिर के बिलकुल नीचे से बहती जाती है जिस पर आप बिजनौर जाने वाले रास्ते के लिये पुल से उसे पार करते हैं ।
स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार चंड — मुंड नाम के राक्षसो जो कि शुम्भ और निशुम्भ के सेनानायक थे को देवी चंडी ने यहीं पर मारा था । ऐसा कहा जाता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवी सदी में हिंदू पुरोधा आदि शंकराचार्य ने की थी । मंदिर को जाने का पुराना रास्ता लगभग तीन किलोमीटर का है और उस पर मै बाइक से भी जा चुका हूं । मंदिर जाने के लिये एक नया रास्ता भी बन चुका है जो कि केवल एक किलोमीटर का है और उडनखटोले को जाने वाले रास्ते पर है यानि की बिजनौर वाले रास्ते पर उडनखटोले से 500 मी0 के करीब पहले पर ये अभी ज्यादा प्रचलन में नही है । उडनखटोले का भी अपना एक रास्ता है । रोप वे से चढते हुए गंगा की धाराओ का मनोरम दृश्य दिखाई देता है । मै बचपन से यहां जा रहा हूं और पहले तो यहां रात को कोई नही रूकता था । पर अब तेा पानी से लेकर बिजली तक सब सुविधाये हो गयी हैं हालांकि श्रद्धालुओ के लिये अब भी रात को रूकने की कोई व्यवस्था नही है । पर हां अब मंदिर पूरी रात रोशनी में नहाया रहता है और हरिद्धार में घुसते ही एक ओर नजर डालोगे तो चंडी देवी और दूसरी ओर मंसा देवी के मंदिर दिखाई देते हैं । चंडी देवी मंदिर के दर्शनो के बाद हरिद्धार शहर के मुख्य मार्ग पर जाकर एक रास्ता गाडी के लिये जाता है मंसा देवी की ओर और दूसरा रास्ता हरिद्धार के मेन बाजार से जाता है सीढियो से होकर जो कि थोडा छोटा पडता है । चंडी माता के दर्शन करके हम लोग मंदिर के पास दूसरी पहाडी पर स्थित अंजनी माता जो कि हनुमान जी की माता का मंदिर है उसमें गये और दर्शन किये । इसके बाद वापस उडनखटोले से आकर हम लोग मंसा देवी के मंदिर गये । यहां हम लोग पैदल गये क्योंकि मंसा देवी के आधे रास्ते तक तो गाडी चली जाती है ।
मंसा देवी के मंदिर पर अपने बाइक या स्कूटर से भी जा सकते हैं और यहां एक नया ही प्रचलन हुआ है कि यहां पर बाइक पर 50 रू देकर आपको मंदिर तक पहुंचा देते हैं । गाडी यहां के आधे रास्ते तक आ जाती है और उसके बाद का रास्ता काफी आसान और चौडा है । हरिद्धार में मंसा देवी के दर्शनो के लिये चंडी देवी से ज्यादा लोग जाते हैं क्योंकि ये शहर में से रास्ता जाता है और बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं इसलिये शाम को खासतौर पर भीड रहती है । वैसे यहां पहुंचने के लिये भी उडन खटोले की सुविधा है पर उससे ना जाओ तो ही ठीक है खासतौर पर अगर आप वहां पर भीड देखो तो क्योंकि मंसा देवी उडन खटोले पर गर्मियो , त्यौहारो और शाम के समय अक्सर इतनी भीड हो जाती है कि जितनी देर लाइन में घूम घूम कर आपका उडन खटोले में नंबर आयेगा उससे पहले आप आराम से पैदल पहुंच जाओगे । फिर भी अगर आपके पास अपना वाहन ना हो और आपको दोनो जगह कम समय में देखनी हों तो दोनो का पैकेज टिकट लें इसमें ये फायदा है कि एक तो कम पैसे में मिलता है दूसरी बात आपकेा एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने के लिये उडनखटोले वालो की अपनी गाडी लेकर जाती है ।
माता मनसा देवी मुरादो को पूरा करने वाली देवी है । कहते हैं कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है । चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठो में प्रमुख माना जाता है । मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री भी माना जाता है । माता मनसा देवी के मंदिर में एक वृक्ष है जिस पर धागा या कलावा बांधने से कहते हैं कि मन की इच्छा पूरी होती है । इच्छा पूरी होने के बाद वापिस दर्शन करके किसी भी धागे को खोलना होता है । जिन जगहो पर मै अक्सर जाता हूं वहां के मै फोटो एक बार के बाद खींचता ही नही हूं । चंडी देवी , मंसा देवी और शाकुंभरी देवी मै अक्सर जाता हूं और वो भी बचपन से इसलिये वहां के फोटो खींचने में वो उत्साह नही रहता फिर भी कई बार के अलग अलग फोटोज को इकठठा करके आपके सामने रखा है इस यात्रा में भी मैने काफी फोटो लिये और बाद में आकर उन्हे प्रिंट कराया । लेकिन जो आरिजनल फोटो थे वो तो किसी कारण नष्ट हो गये पर जो 200 के करीब फोटो मैने प्रिंट कराये थे वो 200 फाइल बची हुई थी जिनके माध्यम से मै आपको ये यात्रा कराउंगा । मंसा देवी पर प्रसाद चढाकर हम लोग वापिस गाडी में बैठकर शाकुंभरी देवी की ओर चल दिये । हरिद्धार से रूडकी और रूडकी से छुटमलपुर से बेहट होते हुए शाकुंभरी देवी पहुंचे .....। शाकुंभरी देवी की एक स्टोरी मै पहले ही लिख चुका हूं इसलिये उसे दोबारा लिखने की बजाय आपकी याद के लिये एक फोटो माता के मंदिर का लगा दे रहा हूं और साथ ही उस स्टोरी का लिंक भी कि जिन साहेबान ने ना पढी हो वो भी पढ लें ।
शाकुंभरी देवी के दर्शन करने के बाद हम लोगो के पास अभी समय था। अंधेरा होने में अभी दो घंटे थे इसलिये हमने यहां रूकने की बजाय आगे चलने का निर्णय किया । बेहट से जहां से शाकुंभरी देवी का रास्ता आता है वहां से 50 किमी0 के करीब पांवटा साहिब है और दो घंटे में एक सुंदर सा पहाडी रास्ता तय करके हम लोग पांवटा साहिब पहुंचे । यहां हमने गाडी के लिये टैक्स दिया और होटल पूछने लगे । एक दो से पूछा तो उन्होने कहा कि क्यों होटल के चक्कर में पडते हो गुरूद्धारे जाओ और वहां आराम से रूको । हम पांवटा साहिब गुरूद्धारे पहुंचे और रात को वहीं पर रूके । इस एक दिन में हमने लगभग 400 किमी0 का सफर किया और तीन राज्यो में घूम गये । क्योंकि हम चले उत्तर प्रदेश से और उत्तरांचल में घूम कर हिमाचल में पहुंचे ।
जब दीदी और जीजाजी तैयार हो गये तो मैने बाइक का इरादा छोडा और गाडी करने की सोची और अपने एक मित्र की बोलेरो जो कि किराये पर चलती थी उसे बुक कर लिया 5 रू किमी0 के हिसाब से और पहली बार प्रोग्राम बनाया नवरात्रो में नौ देवियो के दर्शन का ।नवरात्रो में हमने व्रत भी रखने थे तो किस तरह रखे जायेंगे व्रत घूमने में इस पर काफी विचार विमर्श करने के बाद ये तय हुआ कि हम फल , दूध आदि लेंगे रास्ते में और घर से मखाने , बर्फी वगैरा बनाकर चलेंगे । इसके अतिरिक्त एक समय के भोजन जो कि केवल आलू वगैरा खाते हैं उसके लिये कुछ बर्तन लेकर चले जिससे कि जो भी रास्ते में उस वक्त होटल हो तो उससे अपने बर्तनो में और अपने सामान से आलू वगैरा उबाल कर जीरा आलू बनाते हैं वो बनवा लें । मै , लवी और हमारी बेटी अनुष्का के अलावा मेरी बहन समता , जीजाजी और उनकी दो बेटियां मानवी और नौनिधि नन्दिनी हमारे साथ थे । हमने प्रसाद के रूप में घर से ही सारा सामान 18 जगह के लिये बना लिया था जैसे कि हर एक जगह के लिये देा प्रसाद , एक हमारा और एक दीदी का जिसमे नारियल , चुनरी ,छत्र और पूजा व श्रंगार का सामान था जिससे कि अपनी गाडी का कुछ फायदा हो और शुद्ध सामान उचित रेट पर हमें मिला । क्योंकि मंदिरो के पास काफी महंगा सामान बिकता है । हमारा इस यात्रा का कार्यक्रम इस प्रकार रहा था
बुढाना — मोदीनगर —हरिद्धार—शाकुंभर देवी —पांवटा साहिब—सोलन—नैना देवी—शिमला—कुल्लू मनाली— रोहतांग —कांगडा देवी— बैजनाथ —ज्वाला देवी — चिंतपूर्णी —वैष्णो देवी —कुरूक्षेत्र —शामली—बुढाना ये हमारा रास्ता रहा और हमने कुल 2100 किमी0 के करीब की यात्रा इस सफर में की । खर्च का विवरण मै सबसे बाद की पोस्ट में दूंगा ।
तो सबसे पहले नवरात्रे को हम सुबह 4 बजे उठकर मोदीनगर के लिये चल दिये और मोदीनगर से दीदी , जीजाजी और बच्चो को लेकर हरिद्धार 10 बजे तक पहुंच गये । हरिद्धार में जाकर हमने सबसे पहले चंडी देवी माता का रूख किया और माता के मंदिर के नीचे स्थित ट्राली यानि उडन खटोले के पास अपनी गाडी खडी करके टिकट लेकर उडनखटोले में सवार हो गये । ऐसा इसलिये किया क्योंकि एक तो हमें व्रत रखने थे इसलिये चढाई चढने में काफी एनर्जी खर्च होती दूसरा काफी लंबा सफर करना था । हमें आज ही चंडी माता के दर्शन के साथ साथ मंसा देवी और शाकुंभरी देवी के दर्शन करने थे । इसलिये हमने उडनखटोले में मंदिर की यात्रा की । मंदिर पहुंचकर सबसे पहले हमने माता के दर्शन किये और फिर अंजनी माता के । माता चंडी देवी का मंदिर गंगा नदी की नील धारा के किनारे पर स्थित नील पर्वत के शिखर पर है आप में से ज्यादातर को पता होगा पर जिनको नही पता है उन्हे मै बता देता हूं कि नील धारा वो है जो कि असली गंगा जी है और जहां हरिद्धार जाने वाले अक्सर नही जाते हैं । हरिद्धार जाने वाले गंगा जी से निकाली गयी एक कृत्रिम धारा जो कि हर की पौडी तक पहुंचाई गयी है और वहां से आगे वो गंगनहर बन जाती है जो कि मुरादनगर गाजियाबाद तक बिलकुल एन एच 58 तक आती है , में नहाकर आ जाते हैं । इसलिये जो मूल गंगा जी है उसे वहां नील धारा कहते हैं और वो चंडी देवी मंदिर के बिलकुल नीचे से बहती जाती है जिस पर आप बिजनौर जाने वाले रास्ते के लिये पुल से उसे पार करते हैं ।
स्कंद पुराण की एक कथा के अनुसार चंड — मुंड नाम के राक्षसो जो कि शुम्भ और निशुम्भ के सेनानायक थे को देवी चंडी ने यहीं पर मारा था । ऐसा कहा जाता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवी सदी में हिंदू पुरोधा आदि शंकराचार्य ने की थी । मंदिर को जाने का पुराना रास्ता लगभग तीन किलोमीटर का है और उस पर मै बाइक से भी जा चुका हूं । मंदिर जाने के लिये एक नया रास्ता भी बन चुका है जो कि केवल एक किलोमीटर का है और उडनखटोले को जाने वाले रास्ते पर है यानि की बिजनौर वाले रास्ते पर उडनखटोले से 500 मी0 के करीब पहले पर ये अभी ज्यादा प्रचलन में नही है । उडनखटोले का भी अपना एक रास्ता है । रोप वे से चढते हुए गंगा की धाराओ का मनोरम दृश्य दिखाई देता है । मै बचपन से यहां जा रहा हूं और पहले तो यहां रात को कोई नही रूकता था । पर अब तेा पानी से लेकर बिजली तक सब सुविधाये हो गयी हैं हालांकि श्रद्धालुओ के लिये अब भी रात को रूकने की कोई व्यवस्था नही है । पर हां अब मंदिर पूरी रात रोशनी में नहाया रहता है और हरिद्धार में घुसते ही एक ओर नजर डालोगे तो चंडी देवी और दूसरी ओर मंसा देवी के मंदिर दिखाई देते हैं । चंडी देवी मंदिर के दर्शनो के बाद हरिद्धार शहर के मुख्य मार्ग पर जाकर एक रास्ता गाडी के लिये जाता है मंसा देवी की ओर और दूसरा रास्ता हरिद्धार के मेन बाजार से जाता है सीढियो से होकर जो कि थोडा छोटा पडता है । चंडी माता के दर्शन करके हम लोग मंदिर के पास दूसरी पहाडी पर स्थित अंजनी माता जो कि हनुमान जी की माता का मंदिर है उसमें गये और दर्शन किये । इसके बाद वापस उडनखटोले से आकर हम लोग मंसा देवी के मंदिर गये । यहां हम लोग पैदल गये क्योंकि मंसा देवी के आधे रास्ते तक तो गाडी चली जाती है ।
मंसा देवी के मंदिर पर अपने बाइक या स्कूटर से भी जा सकते हैं और यहां एक नया ही प्रचलन हुआ है कि यहां पर बाइक पर 50 रू देकर आपको मंदिर तक पहुंचा देते हैं । गाडी यहां के आधे रास्ते तक आ जाती है और उसके बाद का रास्ता काफी आसान और चौडा है । हरिद्धार में मंसा देवी के दर्शनो के लिये चंडी देवी से ज्यादा लोग जाते हैं क्योंकि ये शहर में से रास्ता जाता है और बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं इसलिये शाम को खासतौर पर भीड रहती है । वैसे यहां पहुंचने के लिये भी उडन खटोले की सुविधा है पर उससे ना जाओ तो ही ठीक है खासतौर पर अगर आप वहां पर भीड देखो तो क्योंकि मंसा देवी उडन खटोले पर गर्मियो , त्यौहारो और शाम के समय अक्सर इतनी भीड हो जाती है कि जितनी देर लाइन में घूम घूम कर आपका उडन खटोले में नंबर आयेगा उससे पहले आप आराम से पैदल पहुंच जाओगे । फिर भी अगर आपके पास अपना वाहन ना हो और आपको दोनो जगह कम समय में देखनी हों तो दोनो का पैकेज टिकट लें इसमें ये फायदा है कि एक तो कम पैसे में मिलता है दूसरी बात आपकेा एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाने के लिये उडनखटोले वालो की अपनी गाडी लेकर जाती है ।
माता मनसा देवी मुरादो को पूरा करने वाली देवी है । कहते हैं कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है । चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठो में प्रमुख माना जाता है । मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री भी माना जाता है । माता मनसा देवी के मंदिर में एक वृक्ष है जिस पर धागा या कलावा बांधने से कहते हैं कि मन की इच्छा पूरी होती है । इच्छा पूरी होने के बाद वापिस दर्शन करके किसी भी धागे को खोलना होता है । जिन जगहो पर मै अक्सर जाता हूं वहां के मै फोटो एक बार के बाद खींचता ही नही हूं । चंडी देवी , मंसा देवी और शाकुंभरी देवी मै अक्सर जाता हूं और वो भी बचपन से इसलिये वहां के फोटो खींचने में वो उत्साह नही रहता फिर भी कई बार के अलग अलग फोटोज को इकठठा करके आपके सामने रखा है इस यात्रा में भी मैने काफी फोटो लिये और बाद में आकर उन्हे प्रिंट कराया । लेकिन जो आरिजनल फोटो थे वो तो किसी कारण नष्ट हो गये पर जो 200 के करीब फोटो मैने प्रिंट कराये थे वो 200 फाइल बची हुई थी जिनके माध्यम से मै आपको ये यात्रा कराउंगा । मंसा देवी पर प्रसाद चढाकर हम लोग वापिस गाडी में बैठकर शाकुंभरी देवी की ओर चल दिये । हरिद्धार से रूडकी और रूडकी से छुटमलपुर से बेहट होते हुए शाकुंभरी देवी पहुंचे .....। शाकुंभरी देवी की एक स्टोरी मै पहले ही लिख चुका हूं इसलिये उसे दोबारा लिखने की बजाय आपकी याद के लिये एक फोटो माता के मंदिर का लगा दे रहा हूं और साथ ही उस स्टोरी का लिंक भी कि जिन साहेबान ने ना पढी हो वो भी पढ लें ।
bahut hi sundar sachitra yaatra vratant..aabhar.
ReplyDeletehamen bhi is garmi ke mausam mein bahut achha mahsus hua...
dhanyavad
बहुत बढ़िया ....लगता हैं कुछ फोटो यहाँ पर घुमक्कड़ से अधिक लगाये हैं........
ReplyDeleteयहां अपनी मर्जी है रितेश जी .........इसलिये ये सोचना नही पडता कि कौन सा फोटो लगायें और कौन सा नही
ReplyDeleteआपका भी बहुत बहुत आभार कविता जी कि आपने समय निकालकर इस पोस्ट को पढा
ReplyDeleteJai mata di..........
ReplyDeleteJabardast -manmohak photo.....
धन्यवाद सुरेश जी ...........आपका हार्दिक आभार कि आपने पसंद किया इस ब्लाग को
ReplyDeleteIs jagah ke bare mein jaankari aur itni sundar tasveeron ke liye bohot bohot shukriya!!
ReplyDeletePixellicious Photos
मुझे लगता है मैने ये पोस्ट घुमक्कड़ पर न तो देखी, न ही पढ़ी ! पर हां, शाकुंभरी देवी का लिंक कहां है? हरिद्वार में मंसा देवी, चंडी देवी के दर्शन करने के लिये मैं भी बचपन से जाता रहा हूं और हर बार पहले से अधिक सुविधायें और भीड़ मिलती हैं। आध्यात्मिकता कम और व्यावसायिकता अधिक होती चली जा रही है। पहले रास्ता कठिन था तो सिर्फ श्रद्धालु जाते थे, अब रोप वे है तो टूरिस्ट जाते हैं । पोस्ट पढ़ कर और चित्र देख कर मज़ा आया, धन्यवाद मनु !
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