कोलकाता में सबसे पहले हम देखने गये विक्टोरिया मैमोरियल देखने पर शाम का समय हो चुका था और विक्टोरिया मैमोरियल के गेट पर केवल और केवल बाहर से...
कोलकाता में सबसे पहले हम देखने गये विक्टोरिया मैमोरियल देखने पर शाम का समय हो चुका था और विक्टोरिया मैमोरियल के गेट पर केवल और केवल बाहर से देखने का टिकट मिल रहा था यानि की हम म्यूजियम या अंदर का हिस्सा नही देख सकते थे । भागते भूत की लंगोटी ही सही विक्टोरिया मैमोरियल को अंदर से नही तो बाहर से ही देख लें इस बहाने हमने टिकट ले लिया और अंदर घुसे ।
वैसे तो बाहर से देखने से ही बहुत ही आलीशान महल लग रहा था पर ये कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध और सुंदर स्मारको में है । इसका निर्माण 1906 और 1921 के बीच भारत मे रानी विक्टो रिया के 25 साल के शासन के पूरा होने की खुशी में किया गया था और इसीलिये ये स्मारक हमें ब्रिटिश राज की याद दिलाता है
जैसे ताजमहल मुगल काल की । वैसे ये हमारे यहां ब्रिटिश काल के सबसे सुंदर बिल्डिंग में से एक है । ये विशाल भवन सफेद संगमरमर से बना है । इसमें उंचे खंबे , छते और गुम्बदनुमा छतरिया बनी हैं । यह भवन 338 फीट लंबे और 22 फीट चौडी जगह में बना है और कुल जगह 64 एकड है जिसमें से बाकी जगह में पार्क और जलाशय बने हैं । इसकी उंचाई 200 फीट है । इसे बनाने का श्रेय एक ब्रिटिश लार्ड कर्जन को जाता है । इसमें एक बहुत ही सुंदर लान है और पानी के जलाशयो को आपस में जोडा गया है । दूसरी बात ये चारो ओर से देखने लायक है यानि की प्रवेश द्धार से ही नही ये पीछे से भी उतना ही सुंदर है और बराबर के हिस्सो से भी ।
हालांकि बराबर की दोनो साइडो से इसमें चढ नही सकते थे । गेट से अंदर प्रवेश करने के बाद चौडे रास्ते से जाकर पहले एक मूर्ति है जहां से उंचाई पर खडे होकर फोटो खिंचवाते हैं इसके बाद हमारा अगला पडाव था काली माता का मंदिर ।
ऐसा कहा जाता है कि प्रलयकाल में जब सम्पूर्ण जगत जलमग्न हो गया तो भगवान विष्णु जब शेषशैया पर विश्राम कर रहे थे तो उनके कानो के मैल से दो असुर पैदा हुए और ब्रहमा जी को मारने के लिये उनके पीछे पड गये । ब्रहमा जी ने देखा कि ये दोनो बडे असुर बलवान मुझे मार डालेंगे और विष्णु जी सो रहे हैं तो उन्होने जगतमाता से प्रार्थना की कि माता आप मेरी रक्षा करो तब मधु और कैटभ नाम के उन असुरो का विनाश करने के लिये जगतमाता ने महामाया का रूप धारण कर लिया और विष्णु जी को जगा दिया तो विष्णु जी के साथ उन दोनो असुरो का पांच हजार वर्षो तक घोर युद्ध हुआ तब उन दैत्यो ने कहा कि हम तुमसे बहुत खुश हैं तुम जो चाहे वर मांग लो । तब विष्णु जी ने कहा कि यदि तुम दोनो मुझसे प्रसन्न हो और वर देना ही चाहते हो तो ये वर दो कि तुम्हारी मृत्यू मेरे हाथ् से हो । इस पर दैत्यो ने देखा कि सारी पृथ्वी जल से डूबी है तो उन्होने विष्णु जी से कहा कि जहां सूखी धरती हो वहां तुम इस वरदान को पा सकते हो । तब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से उनके मस्तको को अपनी जंघा पर रखकर काट डाला इस तरह महामाया महाकाली के प्रभाव से मधु और कैटभ का अंत हुआ शिव पुराण और दुर्गा सप्तशती के अनुसार काली माता के अवतार की यही कहानी है । देवी काली को मां दुर्गा की दस महाविदयाओ में से एक माना जाता है । मां काली का रूप काला और डरावना है पर भक्तो के लिये वो निर्मल है । वैसे तो सारे देश में हिंदुओ में मां काली की पूजा होती है पर आसाम और पश्चिम बंगाल में खासतौर पर मां काली को पूजा जाता है । कलकत्ते की काली देवी नौ देवियो में से एक हैं और साथ ही 51 शक्तिपीठो में भी इनका स्थान है
तांत्रिको में मां काली की पूजा खासतौर पर प्रचलित है और तंत्र मंत्र साधना में इनका विशिष्ट स्थान है इसलिये कहा जाता है कि जय काली कलकत्ते वाली तेरा वचन ना जाये खाली
मंदिर के अंदर काफी भीड थी और जब हम प्रसाद लेकर अंदर घुसे तो काफी लंबी लाइन लगी थी जिसे देखकर कुछ लोग हमारे ग्रुप के हताश से हो गये । उपर से एक दो पुजारी जैसे लोग बार बार कहे जा रहे थे कि दर्शन बंद होने वाले हैं इसलिये इस लाइन में रहोगे तो दर्शन नही होंगे । अगर 100 रू दोगे तो अंदर शार्टकट में दर्शन करवा देंगे । कुछ लोगो ने तुरंत उनकी बात मानी और उनके साथ चले गये । ये सब वहां बैठे पुलिस वाले भी देख रहे थे पर किसी को कोई फर्क नही । हमने कोई ना पैसा दिया और लाइन में लगे रहे और माता रानी की कृपा से हमें ज्यादा देर नही लगी और बडे आराम से दर्शन हुए । असल में वे लोग जानते हैं कि ये ग्रुप में आये हैं और समय इनके पास लिमिटिड होता है तो वे इसलिये कहते हैं ऐसा । बंदा सोचता है कि अगर वक्त ज्यादा लगा तो कहीं मुझे दर्शन ना हों या मेरी बस छूट जाये इसलिये वो उनके चक्कर में आ जाते हैं और बिना किसी रसीद वगैरा के भगवान के मंदिर में भी रिश्वत दे देते हैं । मंदिर से बाहर निकलकर हम बस का इंतजार करने लगे क्योंकि संकरी जगह होने के कारण हमारी बसे वहां नही रूकी थी । इस बीच एक मिठाई की दुकान देखकर हमने कोलकाता का प्रसिद्ध बंगाली रोसगुल्ला खाया और साथ ही एक नयी मिठाई जिसका नाम चमचम था वो भी बढिया थी । मंदिर के बाहर निकलकर हमारे टूर गाइड ने बोला कि सब बसे धर्मशाला जायेंगी लेकिन रास्ते में किसी को अगर शापिंग करनी हो तो हम न्यू मार्केट जो कि शहर की सबसे बढिया मार्किट है उसमे उतार देंगे और आप वहां से कोई भी रिक्शा वगैरा करके आ सकते हो अपनी धर्मशाला में वापिस क्योंकि ज्यादातर बुजुर्ग लोग थे और वो शापिंग करने के इच्छुक नही थे क्योंकि वो जल्दी थक जाते थे
कोलकाता में आने के बाद सबसे पहले हमें एक धर्मशाला में ले जाया गया जहां पर रूकने का इंतजाम था और यही इस टूर की सबसे बडी खामी लगी मेरी नजर में । स्टेशन से उतरने के बाद कोच नम्बर के हिसाब से अपनी गाडी में बैठो फिर जब तक पांचो बसे पूरी तरह से तैयार नही होंगी तब तक एक भी बस नही चलेगी । इसमें घंटो लग जाते थे । इसके बाद धर्मशाला में पहुंचे तो वहां पर तीन या चार तल थे जिनमें से हर एक में बडे हाल बने थे । फिर शुरू होती थी गददो , तकियो और हाल में बढिया सी जगह यानि पंखे के नीचे और मोबाईल चार्जिंग प्वांइट के पास की लूट और इसके लिये सबसे बुजुर्ग लोग आपस में लडने से भी नही चूकते थे । कभी कभी तो दुख होता था कि हम कहां से इस टूर में आ गये ये तो हमारी तरह का नही है इसके अलावा जब कहीं पर एक बार रूका देते थे और कहा जाता था कि आप एक घंटे में तैयार होकर नीचे आ जाओ तो समझ लो कि दो से ढाई घंटे लगेंगे । क्योंकि जितना समय दे दो लोग उससे ज्यादा ही लेते थे । कोलकाता में हमारा आधे दिन में हमने बस यही किया पहले धर्मशाला में गये फिर धर्मशाला से चले विक्टोरिया मैमोरियल पहुंचे और फिर वहां से कालीघाट मंदिर और वहां से धर्मशाला । इसी में हमने आठ से दस घंटे खो दिये । हमारे साथ के चार लोगो ने एक अच्छा काम किया उन्होने बिना किसी को बताये एक बाहर से टैक्सी की और उन आठ घंटो में कई और जगह भी देख कर आये । ये बढिया तरीका था पर ज्यादातर लोग अलग से पैसा खर्च करने को तैयार नही थे । अगले दिन सुबह हमें गंगासागर जाना था
वैसे तो बाहर से देखने से ही बहुत ही आलीशान महल लग रहा था पर ये कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध और सुंदर स्मारको में है । इसका निर्माण 1906 और 1921 के बीच भारत मे रानी विक्टो रिया के 25 साल के शासन के पूरा होने की खुशी में किया गया था और इसीलिये ये स्मारक हमें ब्रिटिश राज की याद दिलाता है
जैसे ताजमहल मुगल काल की । वैसे ये हमारे यहां ब्रिटिश काल के सबसे सुंदर बिल्डिंग में से एक है । ये विशाल भवन सफेद संगमरमर से बना है । इसमें उंचे खंबे , छते और गुम्बदनुमा छतरिया बनी हैं । यह भवन 338 फीट लंबे और 22 फीट चौडी जगह में बना है और कुल जगह 64 एकड है जिसमें से बाकी जगह में पार्क और जलाशय बने हैं । इसकी उंचाई 200 फीट है । इसे बनाने का श्रेय एक ब्रिटिश लार्ड कर्जन को जाता है । इसमें एक बहुत ही सुंदर लान है और पानी के जलाशयो को आपस में जोडा गया है । दूसरी बात ये चारो ओर से देखने लायक है यानि की प्रवेश द्धार से ही नही ये पीछे से भी उतना ही सुंदर है और बराबर के हिस्सो से भी ।
हालांकि बराबर की दोनो साइडो से इसमें चढ नही सकते थे । गेट से अंदर प्रवेश करने के बाद चौडे रास्ते से जाकर पहले एक मूर्ति है जहां से उंचाई पर खडे होकर फोटो खिंचवाते हैं इसके बाद हमारा अगला पडाव था काली माता का मंदिर ।
ऐसा कहा जाता है कि प्रलयकाल में जब सम्पूर्ण जगत जलमग्न हो गया तो भगवान विष्णु जब शेषशैया पर विश्राम कर रहे थे तो उनके कानो के मैल से दो असुर पैदा हुए और ब्रहमा जी को मारने के लिये उनके पीछे पड गये । ब्रहमा जी ने देखा कि ये दोनो बडे असुर बलवान मुझे मार डालेंगे और विष्णु जी सो रहे हैं तो उन्होने जगतमाता से प्रार्थना की कि माता आप मेरी रक्षा करो तब मधु और कैटभ नाम के उन असुरो का विनाश करने के लिये जगतमाता ने महामाया का रूप धारण कर लिया और विष्णु जी को जगा दिया तो विष्णु जी के साथ उन दोनो असुरो का पांच हजार वर्षो तक घोर युद्ध हुआ तब उन दैत्यो ने कहा कि हम तुमसे बहुत खुश हैं तुम जो चाहे वर मांग लो । तब विष्णु जी ने कहा कि यदि तुम दोनो मुझसे प्रसन्न हो और वर देना ही चाहते हो तो ये वर दो कि तुम्हारी मृत्यू मेरे हाथ् से हो । इस पर दैत्यो ने देखा कि सारी पृथ्वी जल से डूबी है तो उन्होने विष्णु जी से कहा कि जहां सूखी धरती हो वहां तुम इस वरदान को पा सकते हो । तब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से उनके मस्तको को अपनी जंघा पर रखकर काट डाला इस तरह महामाया महाकाली के प्रभाव से मधु और कैटभ का अंत हुआ शिव पुराण और दुर्गा सप्तशती के अनुसार काली माता के अवतार की यही कहानी है । देवी काली को मां दुर्गा की दस महाविदयाओ में से एक माना जाता है । मां काली का रूप काला और डरावना है पर भक्तो के लिये वो निर्मल है । वैसे तो सारे देश में हिंदुओ में मां काली की पूजा होती है पर आसाम और पश्चिम बंगाल में खासतौर पर मां काली को पूजा जाता है । कलकत्ते की काली देवी नौ देवियो में से एक हैं और साथ ही 51 शक्तिपीठो में भी इनका स्थान है
तांत्रिको में मां काली की पूजा खासतौर पर प्रचलित है और तंत्र मंत्र साधना में इनका विशिष्ट स्थान है इसलिये कहा जाता है कि जय काली कलकत्ते वाली तेरा वचन ना जाये खाली
मंदिर के अंदर काफी भीड थी और जब हम प्रसाद लेकर अंदर घुसे तो काफी लंबी लाइन लगी थी जिसे देखकर कुछ लोग हमारे ग्रुप के हताश से हो गये । उपर से एक दो पुजारी जैसे लोग बार बार कहे जा रहे थे कि दर्शन बंद होने वाले हैं इसलिये इस लाइन में रहोगे तो दर्शन नही होंगे । अगर 100 रू दोगे तो अंदर शार्टकट में दर्शन करवा देंगे । कुछ लोगो ने तुरंत उनकी बात मानी और उनके साथ चले गये । ये सब वहां बैठे पुलिस वाले भी देख रहे थे पर किसी को कोई फर्क नही । हमने कोई ना पैसा दिया और लाइन में लगे रहे और माता रानी की कृपा से हमें ज्यादा देर नही लगी और बडे आराम से दर्शन हुए । असल में वे लोग जानते हैं कि ये ग्रुप में आये हैं और समय इनके पास लिमिटिड होता है तो वे इसलिये कहते हैं ऐसा । बंदा सोचता है कि अगर वक्त ज्यादा लगा तो कहीं मुझे दर्शन ना हों या मेरी बस छूट जाये इसलिये वो उनके चक्कर में आ जाते हैं और बिना किसी रसीद वगैरा के भगवान के मंदिर में भी रिश्वत दे देते हैं । मंदिर से बाहर निकलकर हम बस का इंतजार करने लगे क्योंकि संकरी जगह होने के कारण हमारी बसे वहां नही रूकी थी । इस बीच एक मिठाई की दुकान देखकर हमने कोलकाता का प्रसिद्ध बंगाली रोसगुल्ला खाया और साथ ही एक नयी मिठाई जिसका नाम चमचम था वो भी बढिया थी । मंदिर के बाहर निकलकर हमारे टूर गाइड ने बोला कि सब बसे धर्मशाला जायेंगी लेकिन रास्ते में किसी को अगर शापिंग करनी हो तो हम न्यू मार्केट जो कि शहर की सबसे बढिया मार्किट है उसमे उतार देंगे और आप वहां से कोई भी रिक्शा वगैरा करके आ सकते हो अपनी धर्मशाला में वापिस क्योंकि ज्यादातर बुजुर्ग लोग थे और वो शापिंग करने के इच्छुक नही थे क्योंकि वो जल्दी थक जाते थे
कोलकाता में आने के बाद सबसे पहले हमें एक धर्मशाला में ले जाया गया जहां पर रूकने का इंतजाम था और यही इस टूर की सबसे बडी खामी लगी मेरी नजर में । स्टेशन से उतरने के बाद कोच नम्बर के हिसाब से अपनी गाडी में बैठो फिर जब तक पांचो बसे पूरी तरह से तैयार नही होंगी तब तक एक भी बस नही चलेगी । इसमें घंटो लग जाते थे । इसके बाद धर्मशाला में पहुंचे तो वहां पर तीन या चार तल थे जिनमें से हर एक में बडे हाल बने थे । फिर शुरू होती थी गददो , तकियो और हाल में बढिया सी जगह यानि पंखे के नीचे और मोबाईल चार्जिंग प्वांइट के पास की लूट और इसके लिये सबसे बुजुर्ग लोग आपस में लडने से भी नही चूकते थे । कभी कभी तो दुख होता था कि हम कहां से इस टूर में आ गये ये तो हमारी तरह का नही है इसके अलावा जब कहीं पर एक बार रूका देते थे और कहा जाता था कि आप एक घंटे में तैयार होकर नीचे आ जाओ तो समझ लो कि दो से ढाई घंटे लगेंगे । क्योंकि जितना समय दे दो लोग उससे ज्यादा ही लेते थे । कोलकाता में हमारा आधे दिन में हमने बस यही किया पहले धर्मशाला में गये फिर धर्मशाला से चले विक्टोरिया मैमोरियल पहुंचे और फिर वहां से कालीघाट मंदिर और वहां से धर्मशाला । इसी में हमने आठ से दस घंटे खो दिये । हमारे साथ के चार लोगो ने एक अच्छा काम किया उन्होने बिना किसी को बताये एक बाहर से टैक्सी की और उन आठ घंटो में कई और जगह भी देख कर आये । ये बढिया तरीका था पर ज्यादातर लोग अलग से पैसा खर्च करने को तैयार नही थे । अगले दिन सुबह हमें गंगासागर जाना था
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletearey aap kolkata kab aye Manu ji ? wah wah wah !! maza agaya apna sheher apke through dekh kar :)
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा वृतांत !!
ReplyDelete