यदि कोई तीन किलोमीटर पैदल जाता है तो उसके लिये कोई फीस नही है। लेकिन अगर कोई गाडी से जाना चाहता है तो कार जीप आदि के लिये 200 प्रति वाहन फीस है जबकि अगर कोई दुपहिया वाहन से जाता है तो उसके लिये 50 रू की पर्ची बनती है । कालाटोप मे वन विभाग की काटेज बनी हुई हैं और इनका किराया है सीजन में 800 रू और आफ सीजन में 500 रू । पूरी तरह से लकडी की बनी इन
कालाटोप जाने का कच्चा रास्ता |
'खैर यहां से आगे एक जगह आती है 'लक्कड मंडी 'ये जगह वास्तव में लकडी की मंडी है एक से एक लकडी यहां पर कई जगह करीने से सजाकर रखी गयी है और हो सकता है कि मंडी भी लगती हो यहां पर ।यहां से थोडा आगे एक बैरियर आता है यहां 50 रू का शुल्क देकर आगे खजियार जाया जा सकता है लेकिन इस बैरियर के बराबर में ही एक दूसरे रास्ते पर एक और बैरियर लगा हुआ है । ये बैरियर कालाटोप जाने के लिये है । कालाटोप यहां का एक वन्य पर्यटक स्थल है । यहां से कालाटोप के लिये तीन किलोमीटर का रास्ता है जो कि बना हुआ तो है पर कच्चा है फिर भी इस पर बडे आराम से गाडियां जा सकती है ।
यदि कोई तीन किलोमीटर पैदल जाता है तो उसके लिये कोई फीस नही है। लेकिन अगर कोई गाडी से जाना चाहता है तो कार जीप आदि के लिये 200 प्रति वाहन फीस है जबकि अगर कोई दुपहिया वाहन से जाता है तो उसके लिये 50 रू की पर्ची बनती है । कालाटोप मे वन विभाग की काटेज बनी हुई हैं और इनका किराया है सीजन में 800 रू और आफ सीजन में 500 रू । पूरी तरह से लकडी की बनी इन हटो में रात्रि में जंगल में विश्राम का मजा लिया जा सकता है । सुबह 9 बजे से शाम के 5 बजे तक यहां से पर्ची कटती है वाहनो की और काटेज की । यहां टैंट भी उपलब्ध हैं जो कि 200 रू प्रति टैंट है । अगर आप यहां पर साईकिल से मजा लेना चाहते हो क्योकि इस तीन किलोमीटर के रास्ते पर चढाई नही है तो साईकिल भी किराये पर मिल जाती हैं जो कि 50 रू प्रति घंटा हैं और याद रखियेगा कि बोर्ड पर लिखा था कि सिर्फ 5 साई किल ही उपलब्ध हैंं । पैदल ट्रैकिंग के भी यहां पर रूट हैं जिन पर आपको गाइड ले जा सकता है जो कि गाडी से आपके साथ कालाटोप तक जायेगा तो 100 रू और पैदल जायेगा तो 150 रू की फीस के साथ उपलब्ध है । आप यहां से खजियार पैदल ट्रैकिंग कर सकते हो जो कि 12 किलोमीटर है । इसके अलावा कालाटोप से वाच टावर तक 4 किमी0 ,कालाटोप से गुतडी , डिबरी आदि के 2 से 6 किलोमीटर के ट्रैक भी उपलब्ध हैं रास्ता बडा ही रोमांचक था और हम गाडी में गये थे तो रास्ते में आने वाली गाडी के लिये मोडो के अलावा कहीं पर जगह नही मिलती थी क्योंकि ये रास्ता ज्यादा चौडा नही था । 3 किलोमीटर चलने के बाद हम कालाटोप पहुंचे । यहां पर वन विभाग का जो विश्राम गृह बना हुआ है उसी जगह पर कुछ मैदान खाली सा है नही तो बाकी पूरे रास्ते में देवदार के इतने लम्बे पेड हैं और इतना घना जंगल कि सूरज की धूप भी मुश्किल से आती होगी यहां गेट पर ही लिखा था कि ये जगह समुद्र तल से 8000 फीट की उंचाई पर है । रास्ते में चलते ही सुंदर फूलो के दर्शन शुरू हो गये । एक पेड जो कि काफी विशाल रहा होगा पर जब उसे काट दिया गया तो उसकी बची हुई जड में पेड बो दिये गये फूलो के और इसने एक प्राकृतिक गमले का रूप ले लिया । बडा ही सुंदर लग रहा था ये पेड का गमला । गुलाब के फूलो के अलावा कई और अलग अलग फूलो की किस्मे थी यहां पर । यहां वन विभाग की काटेज पर चित्र बना हुआ था कि यहां पर कितने किस्म की तितलियां पायी जाती हैं । उनमें से कई हमे भी मिली जिसे आप आगे फोटोज में देख सकते हैं । सर्दियो में इस जगह पर बर्फ खूब पडती है और तब यहां का नजारा जन्न्त जैसा हो जाता है । यकीन ना आता हो तो एक फोटो में देखिये 2008 की गर्मी और 2009 की सर्दियो का फोटो एक साथ । विधान को तो यहां आते ही और कैंटीन देखते ही चाय की तलब लग चुकी थीएक कैंटीन के अलावा एक दो और बंदे बैठे थे जिनकी चलती फिरती दुकान थी और वे मैगी भी बना रहे थे । इसके अलावा दो आदमी बैठे थे अलग अलग चीजे लिये जैसे कि एक के पास थी खुमानी और दूसरे के पास थे प्लम या आलू बुखारा । संदीप भाई चाय नही पीते तो उन्होन आलू बुखारे पहले टेस्ट करके देखे और फिर आधा किलो ले लिये । मुझे खुमानी कुछ मीठी लगी तो मैने एक किलो खुमानी ले ली और खजांची यानि की संदीप भाई ने पैसे दे दिये । खुमानी 80 और प्लम 70 रू किलो थे । हम वहां पर घूमते रहे और खुमानी और आलू बुखारे खाते रहे । वहां पर फूलो के फोटो खींचते रहे । कई बार तो फूलो का रस चूस रहे भंवरो और तितलियो के फोटो खींचने के लिये होड मच जाती थी । फिर सारे ग्रुप का फोटो खींचने की होड । संदीप भाई अपना कैमरा भूल आये थे पर कभी कभी उनको एक साथ तीन तीन कैमरो से फोटो खींचने की जिम्मेदारी मिल जाती थी । गुलाब के फूलो के साथ साथ और भी कई किस्मो के फूल यहां पर थे जिनमें सबसे सुंदर थे पीले रंग के ये फूल और तितलियां और भंवरे भी सबसे ज्यादा इन्ही फूलो पर आ रहे थे । इन फूलो का कैसे भी फोटो खींच लो सब बढिया ही लगते थे । इन फूलो पर बैठी हुई तितलियां भी पोज देने में बडी नखरे वाली थी । जैसे ही पास को जाओ तो उड जाती और दूर से जूम में अच्छा फोटो नही आ पाता था । खैर एक तितली को हम पर रहम आया तो उसने फिर उन्मुक्त होकर पोज दिये । तितलियो के अलावा कुछ और भी थे जो इन फूलो के पराग को चूसने में व्यस्त थे । इसके अलावा एक कीडा और था जो पेड के एक टूटे हुए तने पर अपनी कारगुजारी कर रहा था । यहां पर आकर साक्षात प्रकृति का साक्षात्कार हो रहा था । कहीं कोई शोर नही कोई धुंआ नही और बस शांति और सुंदरता को निहारते रहो । कुल मिलाकर कालाटोप खजियार और डलहौजी के बीच में एक आदर्श जगह है पिकनिक औश्र रात्रि विश्राम के लिये इस सुंदर से मैदान के नीचे एक छोटी सी बस्ती बसी हुई है जहां के लोग यहां पर चाय पानी या खुमानी बेचने आदि का काम करते हैं हैं साथ ही खजियार तक के लिये अगर ट्रैकिंग करनी हो तो यही लोग आपके गाइड भी बन जाते हैं काफी देर तक वहां पर घूमने के बाद चलने की सोची । वैसे मन तो नही कर रहा था पर सोचा कि जब ये जगह इतनी सुंदर है तो खजियार कितना सुंदर होगा तो चलने के लिये गाडी में बैठ गये । विपिन तो हमेशा की तरह पैदल निकल चुका था जो हमें आगे जाकर मिला । अब पता नही कि इस बीच रास्ते में किसका आइडिया आया कि देखा तो एक जगह गाडी रोककर खडे हैं । जरूर जाट देवता ने ही सोचा होगा ऐसा आइडिया । क्या गजब आइडिया था मस्ती को जो ताउम्र याद रहेगा । एक पेड जो कि टूटकर गिरा हुआ था उस पर सारे के सारे बंदे चढते रहे और कभी सब एक साथ लेटकर और कभी एक साथ बैठकर तो कभी एक साथ कूदकर फोटो खिंचाये । ये लाजबाब मस्ती थी जहां पर सब छोटे बच्चे बन गये थे । MANIMAHESH YATRA-
किसी के दिमाग में विचार आता तो सब हाथ उठाकर फोटो खिंचवाने लगते तो कभी पेड पर बैठकर तो कभी पैर उठाकर और फिर आखिरी में तय हुआ कि सब एक साथ कूदेंगे । वैसे पेड ज्यादा उंचाई पर नही रखा था पर फिर भी जब सबने तय किया तो कर लिया और फिर विधान को कैमरा देकर कह दिया गया कि एक दो तीन भी तुझे ही बोलना है और उसके बोलते ही सब कूद पडे । काफी देर तक मस्ती करने के बाद हम वापिस गाडी में बैठे लेकिन सच पूछो तो गाडी में बैठने का मन नही कर रहा था बैठने के लिये । मन तो अभी यही था कि ऐसी जगह जहां कोई रोकने वाला नही , कोई टोकने वाला नही तो बस यहां पर और मस्ती की जाये । वापिस चले तो देखा कि लक्क्ड मंडी और कालाटोप के बैरियर के पास एक बस्ती बसी हुई थी बिल्कुल दिल्ली के स्लम की तरह झुग्गी झौंपडी वालो की । शायद ये लकडी काटने और लाने वाले मजदूरो की रही होगी ।
और ये घुमावदार मोड |
विशाल वृक्षो की छांव |
यहां पर इतनी प्रकार की तितलियां मिलती हैं |
सर्दी और गर्मियो का फोटो |
खुला मैदान और लम्बे लम्बे देवदार के पेड |
शानदार कालाटोप |
बादलो की आंख मिचौली के साथ |
घने जंगल |
और ये मै |
खुबानी |
कालाटोप में बसा गांव |
ये जंगल मन को भा गये |
पहाडी महिला |
मस्ती की पाठशाला |
एक साथ हाथ |
उडने वाले पंछी |
जाट देवता कूदो मत |
एक फोटो से मन नही भरा यहां कितने ? 12 इडियट |
चलो रेलगाडी बनाकर खेलते हैं |
ये मजदूरो की बस्ती |
वाह भाई वाह, मज़ा आ गया, कितनी प्यारी जगह हैं. बहुत सुन्दर, प्रकृति की गोद में. बहुत सुन्दर फोटो, गज़ब. वन्देमातरम..
ReplyDeletea very good post.good pics.this kalatop looks beautiful.but i am not sure if one can get accomodation over there or whether some contact nos. are available?
ReplyDeleteVarey good
ReplyDeleteजय हो घुमक्क्ड मंडली की, फ़िर से वो लम्हे याद दिला दिये।
ReplyDeleteयात्रा कालातोप की: पीपुल्स समाचार में ‘यात्रा’
ReplyDeletefrom ब्लॉग मीडिया में by वेबसाईट संचालक
bahut majedar ....
ReplyDeletenice set of pictures..
ReplyDeleteA Rat's Nibble
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ReplyDeletewith new information. I have found it extremely useful.
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