ये जो रास्ता था आगे का ये बडा ही सुहावना था । हम कभी तो चंबा जाने की सोचते कभी जब रोड पर खजियार लिखा देखते तो पहले खजियार जाने की सोचने ...
ये जो रास्ता था आगे का ये बडा ही सुहावना था । हम कभी तो चंबा जाने की सोचते कभी जब रोड पर खजियार लिखा देखते तो पहले खजियार जाने की सोचने लगते । कभी जोत के रास्ते जाने की सोचते तो कभी दूसरे रास्ते को पर सच तो ये था कि हम चले जा रहे थे और इस बात की कोई फिक्र ज्यादा नही कर रहा था कि क्या देखना है । ये रास्तो जो नूरपुर से बनीखेत होते हुए गया है बडा ही सुंदर रास्ता है इसमें कभी तो गिरने वाले कच्चे पहाड आ जाते हैं तो कभी हरे भरे पेडो वाले । नीचे नदी बह रही है घाटी में जिसका नाम तो पता नही पर इस नदी के किनारे कुछ लोगो ने समतल जमीन करके धान के खेत बो रखे थे जो उपर से देखने मे बडे ही सुंदर लगते हैं । खास तौर पर तब जब कि उन धान के खेतो में से कुछ क्यारियां जो कि पहले बोयी हुई होंगी वो पीली हो जाती हैं तो कुछ हरी ही रहती हैं । मै जानता हूं कि कैमरे की आंखे हमारी आंखो जितना स्पष्ट और दूर तक नही देख सकती हैं पर जो लोग पहाडो में जाते हैं उन्हे पता है कि ये नजारा कितना खुशनुमा होता है ।
एक खास बात और थी इस रास्ते पर कि यहां पर आम के पेड काफी ज्यादा थे और उन पर आम अभी भी बुरी तरीके से लदे हुए थे । एक दूसरी बात थी कि यहां के आम काफी छोटे होते हैं हमारी साइड में मिलने वाले आमो से । बिलकुल ऐसा लगता ही नही है कि ये आम है क्योंकि वो हमारे यहां के आम से साइज मे आधे होते हैं पर पीला और लाल के अलावा कुछ कुछ सिंदूरी सा रंग लिये भी होते हैं जो आम पके हुए होते हैं । यहां रास्ते में जगह जगह यहां के गांव के लोकल बच्चे इन पेडो से आम तोडकर टोकरी में या किसी पालिथिन के उपर बिछाकर बेचते हैं जो 20 रू किलो मांगते हैं और 10 रू किलो तक दे भी देते हैं । कौन सा उन्हे कहीं से खरीदकर लाने हैं ।हमें यहां ऐसे आम और ऐसा स्वाद कहां नसीब होता है हमारे यहां अब आम में स्वाद गायब होता जा रहा है क्योंकि सब आम कार्बेट नामक एक रसायन से पकाये जाते हैं । स्वभाविक पके आम में जो स्वाद है वो यहां पर मिला तो हमने रास्ते में एक पेड से आम तोडकर खाये । इन आमो को तोडने और खाने का अपना अलग मजा था जिसमे बचपन याद आ गया । यहां नदी के किनार बने झूला पुल देखकर भी रोमांच हो आता है । मन करता है कि यहीं कहीं पर एक घर हो और उस पर जाने का रास्ता यहीं से होकर गुजरे । आधे रास्ते पर चलने के बाद चढाई शुरू हो गयी और उस चढाई से दिखायी देने शुरू हो गये कुछ सुंदर नजारे । जहां तक दूर तलक नजर जाती थी पता नही ऐसा लगता था कि वो जो प्लेन जगह दिखायी दे रही है
शायद हम वहीं से आये हैं । पर यहां पर एक जगह ऐसी भी थी जो कि डिस्कवरी चैनल पर दिखायी जाने वाली एक जगह के जैसी थी जहां पर पहाड एक अलग ही कटिंग लिये हुए थे कई फिल्मो में भी उस जगह को दिखाया गया है और उसे फिल्माने के लिये हमारे फिल्मकार विदेश भागते हैं जबकि हमारे देश में इतनी खूबसूरती है कि विदेशी यहां के दीवाने हैं । खूबसूरती से मुझे याद आया कि हम लोग हिमाचल की ही नही हिंदुस्तान की एक काफी खूबसूरत जगह डलहौजी जा रहे थे । असल में हम बनीखेत के रास्ते निकल आये थे और इधर से पहले डलहौजी पडता था फिर खजियार । तो जो पहले पडे उसी को देख् लो यही सोचकर हम लेाग पहले डलहौजी की और चल दिये ।यहां इसी रास्ते पर एक तिराहा है जहां पर लिखा है कि डलहौजी 6 किलोमीटर । अगर डलहौजी नही जाना है तो सीधे निकल सकते हैं तो डलहौजी के लिये जो रास्ता है उसमें सबसे पहले आर्मी एरिया आता है और उसे पार करने के बाद शहर की सीमा आती है । आर्मी कैंट पार करने के बाद हमने एक जगह गाडी रोक दी । अगर मुझे पता होता कि डलहौजी भी जायेंगे तो देखकर जाता नेट पर कि वहां देखने की क्या क्या चीजे हैं पर हमने तो सब कुछ जाट देवता पर छोड रखा था इसलिये गाडी रोककर इधर उधर घूमने लगे कि किसी से पूछेंगे कि यहां घूमने के लिये कौन कौन सी जगहे हैं ।
वहां एक छोटा सा तिब्बती बाजार था जहां से मैने अपने लिये एक पर्स खरीदा कैमरा और पैसे रखने का । मेरे पास पहला था जिसे मै लेकर भी आया था पर वो सिर्फ पेट पर बांधने का था जबकि ये साइड में लटकाने का था । इसके बाद हम लोगो ने वहां पार्किंग में खडी गाडियो के ड्राइवरो से बात करनी शुरू की । एक भला आदमी मिला जिसने बताया कि यहां चार पांच जगहे हैं तो हमने उससे कहा कि भाई हम नये हैं तो हमें रास्ते तो पता नही तो तुम इस तरीके से रास्ते बता देा कि हम बार बार उन्ही रास्तो पर वापस ना जायें । तो उसने बताया कि आप पचपूला जाओ वहीं पर सतधारा मिलेगी रास्ते में । वहां से वापिस आना होगा और यहां गांधी चौक आकर खजियार वाले रास्ते पर चलोगे तो उसी पर काला टोप मिलेगा । बस हम पहले चल दिये पचपूला की तरफयहां से रास्ता पूछने के बाद हम लोग पैदल ही उस रास्ते की ओर चल दिये जब तक कि हमारी गाडी वाला गाडी को बैक करके लाये तब तक हम नीचे की ढलान पर उतरने लगे । शायद ये हमें देखना ही था तभी हम पैदल चले थे कि एक जगह हमें लगा कि स्नोफाल की तरह बर्फ उड रही है । पर दूर दूर तक कहीं ऐसा लग नही रहा था कि बर्फ पड सकती है । गौर से देखा तो ये कुछ रूई के फाहे जैसे उड रहे थे और ये एक पेड से भरपूर मात्रा मे आ रहे थे । पेड के पास गये तो देखा कि उस पर सफेद सफेद रूई जैसे फूल टंगे थे और वे हवा में निकल निकल कर उड रहे थे । हमने एक आदमी से इस पेड का नाम पूछा भी और उसने बताया भी पर हमने लिखा नही कहीं तो अब याद नही रहा आपमें से किसी को पता हो तो बताईयेगा
हमारा होटल जिसे हमारा कहते हुए भी शर्म आती है |
एक खास बात और थी इस रास्ते पर कि यहां पर आम के पेड काफी ज्यादा थे और उन पर आम अभी भी बुरी तरीके से लदे हुए थे । एक दूसरी बात थी कि यहां के आम काफी छोटे होते हैं हमारी साइड में मिलने वाले आमो से । बिलकुल ऐसा लगता ही नही है कि ये आम है क्योंकि वो हमारे यहां के आम से साइज मे आधे होते हैं पर पीला और लाल के अलावा कुछ कुछ सिंदूरी सा रंग लिये भी होते हैं जो आम पके हुए होते हैं । यहां रास्ते में जगह जगह यहां के गांव के लोकल बच्चे इन पेडो से आम तोडकर टोकरी में या किसी पालिथिन के उपर बिछाकर बेचते हैं जो 20 रू किलो मांगते हैं और 10 रू किलो तक दे भी देते हैं । कौन सा उन्हे कहीं से खरीदकर लाने हैं ।हमें यहां ऐसे आम और ऐसा स्वाद कहां नसीब होता है हमारे यहां अब आम में स्वाद गायब होता जा रहा है क्योंकि सब आम कार्बेट नामक एक रसायन से पकाये जाते हैं । स्वभाविक पके आम में जो स्वाद है वो यहां पर मिला तो हमने रास्ते में एक पेड से आम तोडकर खाये । इन आमो को तोडने और खाने का अपना अलग मजा था जिसमे बचपन याद आ गया । यहां नदी के किनार बने झूला पुल देखकर भी रोमांच हो आता है । मन करता है कि यहीं कहीं पर एक घर हो और उस पर जाने का रास्ता यहीं से होकर गुजरे । आधे रास्ते पर चलने के बाद चढाई शुरू हो गयी और उस चढाई से दिखायी देने शुरू हो गये कुछ सुंदर नजारे । जहां तक दूर तलक नजर जाती थी पता नही ऐसा लगता था कि वो जो प्लेन जगह दिखायी दे रही है
वन विभाग का बंगला यहां से सीधा रास्ता चक्की पठानकोट को जाता है |
विधान और विपिन बाइक लेने के लिये परेशान हैं जाट देवता कब्जा कर चुके |
उपर वाले तेरी माया , कहीं धूप कहीं छाया |
बस थोडी सी चढाई पर एक छोटा सा मंदिर |
आम का रसास्वादन |
किस रास्ते को जायें , |
सुंदर घाटियां |
गांव तक जाने के लिये झूला पुल |
चौराहे पर दूरी लिखी हैं |
कैप्शन जोड़ें |
हरी भरी वादी |
पहाडी रास्ते |
इस पेड का नाम पता है किसीको , |
वहां एक छोटा सा तिब्बती बाजार था जहां से मैने अपने लिये एक पर्स खरीदा कैमरा और पैसे रखने का । मेरे पास पहला था जिसे मै लेकर भी आया था पर वो सिर्फ पेट पर बांधने का था जबकि ये साइड में लटकाने का था । इसके बाद हम लोगो ने वहां पार्किंग में खडी गाडियो के ड्राइवरो से बात करनी शुरू की । एक भला आदमी मिला जिसने बताया कि यहां चार पांच जगहे हैं तो हमने उससे कहा कि भाई हम नये हैं तो हमें रास्ते तो पता नही तो तुम इस तरीके से रास्ते बता देा कि हम बार बार उन्ही रास्तो पर वापस ना जायें । तो उसने बताया कि आप पचपूला जाओ वहीं पर सतधारा मिलेगी रास्ते में । वहां से वापिस आना होगा और यहां गांधी चौक आकर खजियार वाले रास्ते पर चलोगे तो उसी पर काला टोप मिलेगा । बस हम पहले चल दिये पचपूला की तरफयहां से रास्ता पूछने के बाद हम लोग पैदल ही उस रास्ते की ओर चल दिये जब तक कि हमारी गाडी वाला गाडी को बैक करके लाये तब तक हम नीचे की ढलान पर उतरने लगे । शायद ये हमें देखना ही था तभी हम पैदल चले थे कि एक जगह हमें लगा कि स्नोफाल की तरह बर्फ उड रही है । पर दूर दूर तक कहीं ऐसा लग नही रहा था कि बर्फ पड सकती है । गौर से देखा तो ये कुछ रूई के फाहे जैसे उड रहे थे और ये एक पेड से भरपूर मात्रा मे आ रहे थे । पेड के पास गये तो देखा कि उस पर सफेद सफेद रूई जैसे फूल टंगे थे और वे हवा में निकल निकल कर उड रहे थे । हमने एक आदमी से इस पेड का नाम पूछा भी और उसने बताया भी पर हमने लिखा नही कहीं तो अब याद नही रहा आपमें से किसी को पता हो तो बताईयेगा
फोटो अच्छी है , लेखन शैली भी रोचक है !!
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