पता नही क्या सही नाम था पचपूला या पंचपूला पर जो भी था बढिया जगह थी । गांधी चौक से 3 किलोमीटर के करीब नीचे उतरकर बढिया सडक से जाते हुए ये...
पता नही क्या सही नाम था पचपूला या पंचपूला पर जो भी था बढिया जगह थी । गांधी चौक से 3 किलोमीटर के करीब नीचे उतरकर बढिया सडक से जाते हुए ये छोटा सा स्पाट आता है ।
एक बहुत शानदार डिजाइन के सांचे के अंदर यहां के मुख्य चौक पर एक प्रतिमा लगी है । ये मूर्ति है सरदार अजीत सिंह की । सरदार अजीत सिंह जो कि परम देश भक्त थे और उनका जन्म 23 फरवरी 1881 में खटकलां जालंधर वर्तमान जिला नवां शहर पंजाब में सरदार अर्जुन सिंह के घर पर हुआ । माता जय कौर का सपूत ,सरदार किशन सिंह का छोटा भाई और शहीदो के सरताज भगत सिंह के चाचा ने पंजाब के बाशिंदो को 'पगडी संभाल जटटा' का नारा देकर पूरे देश को जागृत किया ।
राजनैतिक , सामाजिक और देश प्रेम से प्रेरित गतिविधियो में पूरा जीवन लगा देने के बाद देश का यह सपूत अपने जीवन के अंतिम चरण में डलहौजी पहुंचा । जीवन के अंतिम दिनो में भारत के स्वतंत्र होने की खबर सुन कर जितना अजीत सिंह खुश हुए उतना ही पंजाब के विभाजन का दुख उनके दिल और दिमाग पर छा गया । एक सच्चे देश भक्त ने जहां स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश की आजादी का स्वागत किया वहीं 15 अगस्त 1947 को सुबह आंखे मूंद कर अपने वतन को अलविदा कह दिया । 15 अगस्त की दोपहर इसी स्थल पर उनका अंतिम संस्कार किया गया और यहीं पर उनकी समाधि बना दी गयी ।
शहीदो की चिताओ पर लगेगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालेा का यही बाकी निशां होगा । ।
यहां पर बनी प्रतिमा उनके अंतिम वक्त का चेहरा दिखाती है जिसमें वे चश्मा लगाये हुए वृद्धावस्था में हैं ।
उनकी प्रतिमा के बराबर में एक मिनी झील है जिसमें बोटिंग की भी सुविधा है । इसके लिये प्रतिमा के बांये हाथ को होकर प्रतिमा के पीछे जाना पडता है । वहां पर बच्चो के कूदने के लिये जो गददेदार मिकी माउस सा लगा होता है वो लगा है और मुझे सबसे ज्यादा अचरज था कि हिंदुस्तान में जहां चिलका झील और समुद्र तक में लाइफ जैकेट नही मिलती वहीं यहां पर उसकी व्यवस्था है । प्रतिमा के दांयी ओर एक दुकान बनी हुई है जहां पर हिमाचली ड्रैस पहनकर फोटो खिंचा सकते हैं । प्रतिमा के सामने एक तीन मंजिला मकान बना है जिसकी निचले माले पर दुकाने और उपरी माले पर रूकने की जगह है । इसी के बराबर में से सीढिया चढकर उपर को हम लोग चले तो आगे एक बंदे ने रस्सी और बांस से मिलाकर झूला पुल बना रखा था । हमने सोचा कि जब इसने पुल के आगे गेट लगा रखा है तो किराया जरूर होगा । किराया पूछा तो उसने 100 रू प्रति व्यक्ति बताया । हमने पुल के बराबर में खडे होकर फोटो खिंचा लिया । ले भाई इससे बढिया झूला पुल तो हमें रास्ते में मिले थे । 10 या 20 रू प्रति आदमी भी लेता तो बात अलग थी ।वैसे एक सुंदर पुल और बना हुआ था जिस पर आना जाना और फोटो खिंचाना बिलकुल फ्री था । इस पर भी सबने फोटो खिंचाये । ये दोनेा पुल उपर से आ रहे एक झरने के पानी पर बने हुऐ थे तो हम लोगो ने भी उपर की ओर चढना शुरू कर दिया ।
रास्ते पर यहां से एक किलोमीटर दूर है । हमें रास्ते में तो कहीं पर दिखायी नही दिया था कोई स्पाट या कोई आदमी जो लगता कि यहां पर कोई पर्यटक जगह भी होगी ।ये लगभग 500 मी0 की पैदल चढाई थी जहां से एक छोटी सी धार का झरना कुछ उंचाई से गिर रहा था । कुछ लोग तो वहां पर नहा भी रहे थे । हमारे जाट देवता ने आव देखा ना ताव सीधे पहाडेा में को चढते चढते जहां से झरना गिर रहा था वहीं पर जा बैठे । उनकी देखादेखी विपिन और मोहित और महाराष्ट्र पार्टी ने भी वहीं पर जाकर फोटो खिंचाये । काफी देर तक वहां पर मौज मस्ती की गयी । वैसे वहां से एक रास्ता उपर वन देवी के मंदिर तक भी जाता था जिसकी लम्बाई पौने दो किलोमीटर थी और वो भी खडी चढाई पर हम लोग मणिमहेश के नाम से डरे हुए थे । मुझे तो खास तौर पर जाट देवता कभी भी कह देते थे कि तुझे , राजेश ,और गप्पू यानि की विधान को तो घोडा करना पड सकता है । तो मैने और सबने आगे जाने का विचार त्याग दिया । नीचे आये तो गप्पू चाय पीने की इच्छा करने लगा तो और सबने भी एक एक चाय बनवा ली । उसके बाद हम लोगो ने वहां एक दुकान दार से पूछा कि सतधारा कहां पर है तो उसने बताया कि सतधारा तो जहां से आप आये हैं उसी
एक बहुत शानदार डिजाइन के सांचे के अंदर यहां के मुख्य चौक पर एक प्रतिमा लगी है । ये मूर्ति है सरदार अजीत सिंह की । सरदार अजीत सिंह जो कि परम देश भक्त थे और उनका जन्म 23 फरवरी 1881 में खटकलां जालंधर वर्तमान जिला नवां शहर पंजाब में सरदार अर्जुन सिंह के घर पर हुआ । माता जय कौर का सपूत ,सरदार किशन सिंह का छोटा भाई और शहीदो के सरताज भगत सिंह के चाचा ने पंजाब के बाशिंदो को 'पगडी संभाल जटटा' का नारा देकर पूरे देश को जागृत किया ।
राजनैतिक , सामाजिक और देश प्रेम से प्रेरित गतिविधियो में पूरा जीवन लगा देने के बाद देश का यह सपूत अपने जीवन के अंतिम चरण में डलहौजी पहुंचा । जीवन के अंतिम दिनो में भारत के स्वतंत्र होने की खबर सुन कर जितना अजीत सिंह खुश हुए उतना ही पंजाब के विभाजन का दुख उनके दिल और दिमाग पर छा गया । एक सच्चे देश भक्त ने जहां स्वतन्त्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश की आजादी का स्वागत किया वहीं 15 अगस्त 1947 को सुबह आंखे मूंद कर अपने वतन को अलविदा कह दिया । 15 अगस्त की दोपहर इसी स्थल पर उनका अंतिम संस्कार किया गया और यहीं पर उनकी समाधि बना दी गयी ।
शहीदो की चिताओ पर लगेगे हर बरस मेले ।
वतन पर मरने वालेा का यही बाकी निशां होगा । ।
यहां पर बनी प्रतिमा उनके अंतिम वक्त का चेहरा दिखाती है जिसमें वे चश्मा लगाये हुए वृद्धावस्था में हैं ।
उनकी प्रतिमा के बराबर में एक मिनी झील है जिसमें बोटिंग की भी सुविधा है । इसके लिये प्रतिमा के बांये हाथ को होकर प्रतिमा के पीछे जाना पडता है । वहां पर बच्चो के कूदने के लिये जो गददेदार मिकी माउस सा लगा होता है वो लगा है और मुझे सबसे ज्यादा अचरज था कि हिंदुस्तान में जहां चिलका झील और समुद्र तक में लाइफ जैकेट नही मिलती वहीं यहां पर उसकी व्यवस्था है । प्रतिमा के दांयी ओर एक दुकान बनी हुई है जहां पर हिमाचली ड्रैस पहनकर फोटो खिंचा सकते हैं । प्रतिमा के सामने एक तीन मंजिला मकान बना है जिसकी निचले माले पर दुकाने और उपरी माले पर रूकने की जगह है । इसी के बराबर में से सीढिया चढकर उपर को हम लोग चले तो आगे एक बंदे ने रस्सी और बांस से मिलाकर झूला पुल बना रखा था । हमने सोचा कि जब इसने पुल के आगे गेट लगा रखा है तो किराया जरूर होगा । किराया पूछा तो उसने 100 रू प्रति व्यक्ति बताया । हमने पुल के बराबर में खडे होकर फोटो खिंचा लिया । ले भाई इससे बढिया झूला पुल तो हमें रास्ते में मिले थे । 10 या 20 रू प्रति आदमी भी लेता तो बात अलग थी ।वैसे एक सुंदर पुल और बना हुआ था जिस पर आना जाना और फोटो खिंचाना बिलकुल फ्री था । इस पर भी सबने फोटो खिंचाये । ये दोनेा पुल उपर से आ रहे एक झरने के पानी पर बने हुऐ थे तो हम लोगो ने भी उपर की ओर चढना शुरू कर दिया ।
रास्ते पर यहां से एक किलोमीटर दूर है । हमें रास्ते में तो कहीं पर दिखायी नही दिया था कोई स्पाट या कोई आदमी जो लगता कि यहां पर कोई पर्यटक जगह भी होगी ।ये लगभग 500 मी0 की पैदल चढाई थी जहां से एक छोटी सी धार का झरना कुछ उंचाई से गिर रहा था । कुछ लोग तो वहां पर नहा भी रहे थे । हमारे जाट देवता ने आव देखा ना ताव सीधे पहाडेा में को चढते चढते जहां से झरना गिर रहा था वहीं पर जा बैठे । उनकी देखादेखी विपिन और मोहित और महाराष्ट्र पार्टी ने भी वहीं पर जाकर फोटो खिंचाये । काफी देर तक वहां पर मौज मस्ती की गयी । वैसे वहां से एक रास्ता उपर वन देवी के मंदिर तक भी जाता था जिसकी लम्बाई पौने दो किलोमीटर थी और वो भी खडी चढाई पर हम लोग मणिमहेश के नाम से डरे हुए थे । मुझे तो खास तौर पर जाट देवता कभी भी कह देते थे कि तुझे , राजेश ,और गप्पू यानि की विधान को तो घोडा करना पड सकता है । तो मैने और सबने आगे जाने का विचार त्याग दिया । नीचे आये तो गप्पू चाय पीने की इच्छा करने लगा तो और सबने भी एक एक चाय बनवा ली । उसके बाद हम लोगो ने वहां एक दुकान दार से पूछा कि सतधारा कहां पर है तो उसने बताया कि सतधारा तो जहां से आप आये हैं उसी
MANIMAHESH YATRA-
फिर भी वापिस चल दिये तो बडे आराम आराम से जाते हुए एक जगह हमें सडक के बराबर मे पहाड पर एक चौकी सी बनी दिखायी दी । यहीं पर बारीक से अक्षरो में लिखा था सतधारा । यहां से सात टोंटियो मे पहाडो से पानी के श्रोत से आ रहा पानी निकल रहा था । हमने पानी पीकर देखा तो स्वादिष्ट था । हमने पिया भी और अपनी बोतलो में भर लिया । वापिस गाडी में बैठे और उसके बाद गांधी चौक पहुंचे । यहां का गांधी चौक हमें कोई आकर्षक नही दिखायी दिया । इसलिये हमने अपनी यात्रा आगे के लिये जारी रखी । आगे खजियार 22 या 23 किलोमीटर के करीब था यहां से ।
जानकारी अच्छी है , वाटरमार्क छोटा करके आप ने और भी अच्छा काम किया है !! मुझे ब्लॉग जगत में अगर गप्पू नाम से जाना जाये तो अच्छा लगता है ! काफी नजदीक महसूस होता है वो व्यक्ति जो मुझे गप्पू बुलाता है !!
ReplyDeleteशहीदो की चिताओ पर लगेगे हर बरस मेले ।
ReplyDeleteवतन पर मरने वालेा का यही बाकी निशां होगा । ।
बहुत बढ़िया मनु भाई यात्रा तो आपकी बहुत अच्छी चल रही है !आपकी घुम्कड़ी को सलाम ! मैंने पिछली पोस्ट पे टिप्पणी की थी वो गायब हो गयी ,चलो छोड़िए आप बस लिखते रहिये और घूमते रहिये ! मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ , की ये घुम्कड़ी बस किस्मत वालो को ही नसीब होती है !
पंचपुला नहीं इसे पंचकुला कहते है ....मैंने अपनी डलहोजी यात्रा में यह जगह देखि है ...बहुत ही सुंदर स्थान है ...खजियार भी काफी बढ़िया जगह हैं
ReplyDeleteI Know very well. You can also see some places on breakspots.com. Here you can see more places around the worlds.
ReplyDeleteWonderful captures :) Have read somewhere about this place, but just now seeing it here.
ReplyDeleteGood information and good shots
ReplyDeleteBahot khoob. Ati sundar. Some useful information this!
ReplyDeletehttp://bnomadic.wordpress.com/