शाम के 8 बजे तक हम हडसर पहुंच गये । यहां छोटा सा बाजार था जिसमें खाने के दो तीन और रूकने का एकमात्र होटल खुला था । जहां से मणिमहेश की यात्रा शुरू होती है उसी के सामने होटल के लिये हमने पूछा तो उसने 250 रू कमरा बताया । हमने इस बार चार कमरे लिये ताकि डबल बैड पर तीन तीन आदमी आराम से सो सकें । इसके बाद वहां पर सामान रखकर हम लोग खाने की तलाश में निकले तो जो दो होटल खुले थे उन पर मांसाहारी भोजन बन रहा था । हमने शाकाहारी के लिये पूछा तो उन्होने बताया कि य
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दूर से लिया गया फोटो शिवजी और हनुमान जी की मूर्ति |
इसमे से एक गाडी नयी नवेली शादी करके दूल्हे और दुल्हन को ला रही थी । यहां शादी हो या सवारी सभी में महिन्द्रा की मैक्स ही सबसे ज्यादा चलती है । सो इस गाडी में दूल्हा दुल्हन के अलावा आठ दस लोग ठूंस ठूंसकर भरे थे और गाडी के उपर एक बक्सा दो गददे और कुछ और छोटा मोटा सामान रखा था । दूल्हा महोदया गाडी से निकलकर बाहर आये अपने
पारंपरिक ड्रैस में हिमाचली टोपी लगाये ।
इन लोगो का दैनिक जीवन कितना कष्टकारी होता है वो देखा हमने कुछ आगे किलोमीटर चलकर जहां नदी के पार बसे एक गांव में जाने के लिये नदी के उपर एक ट्राली बनायी हुई थी । इससे पहले भी मैने ये ट्राली पहाडो में कई जगह देखी थी पर मैने इस पर ना तो सामान और ना ही आदमी जाते देखा था । इस बार मैने दो आदमियो को उसके पास खडे देखा तो मैने बाइक रोक दी और उतरकर उसके पास चले गये । दोनो आदमी उस ट्राली में बैठ गये थे और उनके पास घर का कुछ सामान वगैरा भी था दूध आदि । उसके बाद उन्होने उस ट्राली केा जो कि दो केबिल के सहारे नदी के दोनेा किनारो पर जुडी थी से चलायमान कर दिया । दोनेा छोर पर कोई और आदमी नही था और ये बडी कमाल बात थी । हमारी साइड के छोर पर एक लोहे का चक्कर लगा था जिससे रस्सी चल रही थी और दूसरी तरफ एक कमरा सा बना था ।
पहले उन्होने उधर से ट्राली खींचकर लायी थी जब वे बैठ गये तो ट्राली अपने आप चल पडी और देा तिहाई रास्ते तक जाकर रूक गयी । अब उन दोनो ने केबल को खींचकर चलाना शुरू किया । और ऐसे ही दूसरे किनारे तक पहुंचे । उसके बाद वे उतर गये और अपने घर चले गये । ये बडी ही मजेदार यात्रा रही होगी और हम भी करना चाहते थे पर कोईभी वहां पर दूर दूर तक नही दिखायी दे रहा था जो हमें कुछ बता सके और खुद हम उस चीज को अपने हाथो से छेडना नही चाहते थे । पर उस ट्राली में जिसमे दो आदमी केवल खडे हो सकते थे गजब की तकनीक इस्तेमाल की गयी थी । आप फोटोज में देखकर समझ सकोगे । इसके अलावा एक ऐसा झूला पुल भी आया रास्ते में जो कि एक छोटी गाडी ज्यादा से ज्यादा महेन्द्रा मैक्स गाडी के गुजरने लायक तो था लेकिन खाली गाडी का वजन ही सहन कर सकता था तो पहले तो उसमें सवार आदमी उतर गये और उन्होने अपना सामान भी उतार लिया । फिर गाडी को जाने दिया गया ।
पुल की चौडाई इतनी थी कि गाडी के अलावा एक आदमी की जगह भी नही थी बराबर में । गाडी के पुल पार कर लेने के बाद आदमी अपना अपना सामान सिर पर लेकर पुल को पार करके गाडी में जा बैठे । कितना दुष्कर जीवन जीते हैं यहां के लोग ।आगे चलकर एक रास्ते से भरमौर का रास्ता अलग को निकलता है । यहां पर यात्रा का समय नजदीक आने के कारण रास्ते को सही किया जा रहा है । इसलिये रोडे सडक पर गिरे हुए थे । उन रोडो से बाइक तो गुजरना मुश्किल ही था तो दोनो बाइक से दो बंदे उतर गये और फिर आगे पैदल चलकर बाइक पर बैठे । यहां आगे चलकर रास्ता नदी से कुछ उंचा हो जाता है और घाटी गंगोत्री जैसी हो जाती है जिसमें गिरे तो कोई बचने की गुंजाइश ही नही होती ।
हमें रास्ते में ऐसे कई हादसे मिले जिसमें गाडिया नदी में गिरी हुई थी सेा हमने भी बडे आराम से गाडी चलायी । एक जगहमनाली के रास्ते की याद आयी तो मनाली जैसी सुरंग भी आ गयी जो काफी लम्बी थी आधा किलोमीटर से तो ज्यादा ही होगी । मजा आ रहा था अब तक की यात्रा में अब भरमौर आने वाला था तो गाडी में बैठे संतोष के एक साथी जो कि मेरी जगह बैठे थे उनको चक्कर आने लगे तो उन्होने गाडी रूकवा कर बाइक पर बैठ गये तो हमें आगे फोटो खींचने का चांस ही नही था । भरमौर काफी सुंदर कस्बा है और यहां आकर संदीप भाई ने बताया कि अभी हमें 12 किलोमीटर और जाना है उस जगह को हडसर कहते हैं जहां से यात्रा शुरू करनी है । जहां इतना आ चुके थे तो हडसर भी सही । भरमौर से आगे अंधेरा हो चुका था और रास्ता और ज्यादा खराब । इस रास्ते पर तो जगह जगह पत्थर पडे थे । रास्ते की चौडाई भी कम थी । संदीप भाई ने बताया कि इस रास्ते की चौडाई कम होने और पार्किंग की जगह ना होने के कारण यात्रा के दिनो में पांच छह किलोमीटर की लाइने लग जाती हैं यहां पर गाडियो की एक साइड में और एक साइड से ट्रैफिक चलता रहता है । तो इतना तो और भी पैदल चलना पड जाता है तीर्थयात्रियो को ।
शाम के 8 बजे तक हम हडसर पहुंच गये । यहां छोटा सा बाजार था जिसमें खाने के दो तीन और रूकने का एकमात्र होटल खुला था । जहां से मणिमहेश की यात्रा शुरू होती है उसी के सामने होटल के लिये हमने पूछा तो उसने 250 रू कमरा बताया । हमने इस बार चार कमरे लिये ताकि डबल बैड पर तीन तीन आदमी आराम से सो सकें । इसके बाद वहां पर सामान रखकर हम लोग खाने की तलाश में निकले तो जो दो होटल खुले थे उन पर मांसाहारी भोजन बन रहा था । हमने शाकाहारी के लिये पूछा तो उन्होने बताया कि यहां पर तो सबके पास मांसाहारी है शुद्ध शाकाहारी तो केवल यात्रा के दिनो में लंगर मे मिलता है । वो लोग हमें देखकर थोडा सोच भी रहे थे कि अभी तो यात्रा शुरू होने में काफी दिन क्या अभी तो महीनेा है पर आप लोग अभी आ गये हो । खैर एक होटल पर मौजूद महिला से हमने कहा कि आप ऐसा कर दो कि हम 12 आदमियेा को जब खाना खिलाओ तब उस टाइम नानवेज मत बनाना और हमें अलग बिठा देना । इस बात पर सहमति होने के बाद 50 रू थाली के हिसाब से उसने खाना देना तय किया ।
यहां भी थाली के अलावा कोई और आप्शन ही नही था । इसके अलावा उस होटल वाले के पास रोजमर्रा के काम करने वालो के लिये ही खाना था और एकदम से 12 आदमी आ जाने के कारण उसने दाल और बनाने के लिये कुछ समय मांगा । होटल में मौजूद आदमी खाना बनाने में लग गये । एक घंटे बाद उन्होने हमें रोटी ,दाल और चावल का सादा मगर गर्म गर्म और स्वाद में ठीक ठाक खाना खिला दिया । खाना खाकर हम कमरे पर गये तो मालिक तो दुकान बंद करके जा चुका था और ना तो पीने का पानी था ना ही रोशनी । साथ ही होटल जो था वो नदी के उपर बना था तो नदी के बहने का पूरा शोर तेज गति से रात के सन्नाटे को तोड रहा था । बलवान और विधान जाकर कहीं से उपर नल को ढूंढकर पानी की बोतले भर लाये । कमरो में टायलेट थे पर खराब सेा उसी के होटल मे बाहर जो कामन टायलेट थे उन्ही में जाना था ।अब हम सुबह के लिये 4 बजे का अलार्म लगाकर सबको उठने के लिये कहकर सो गये ।
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जगह जगह भूस्खलन को रोकने के लिये हनुमान जी की मदद |
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ये हैं पहाड |
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और ये ट्राली |
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ये है एयर लाइन |
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यहां से ये चक्का चलता है |
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नदी किनारे सुंदर रास्ता |
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कुछ और सुंदर पहाड |
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सुंदरता खतरनाक होती है देख लो सबूत |
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इस पर खाली गाडी जा सकती है |
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यहां बाइक चलाना काफी आसान है ? |
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दो रास्ते |
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घाटी और सुरंग से निकलता पानी |
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मराठा अभी कहीं गया है मै फोटो ले लेता हूं |
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सुंदर सुरंग |
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इंतजार |
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विपिन तो गया नीचे |
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नयी शादी और दूल्हे के साथ सामान |
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वाह फोटोग्राफी |
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खाना बन रहा है |
बहुत सुंदर...रोमांचक चित्र .... यात्रा के लिए शुभकामनायें
ReplyDeleteलेख अच्छा है लेकिन इसमें पैराग्राफ़ अलग-अलग नहीं किये है,
ReplyDeleteसुंदर चित्र, लेकिन उभरने में समय लग रहा है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हैं ..पर यदि आप थोडा -थोडा लिखकर उससे सम्बंधित फोटू लगाते जाओ तो देखने में भी मज़ा आएगा और पढने में भी बोरियत नहीं होगी ....क्योकि एक साथ पढने में और यात्रा- कथा को याद करने में परेशानी होती है ..यह मेरा अनुभव है ..आगे आपकी इच्छा है ...
ReplyDeleteभाई वाकई मे बहुत ही खतरनाक रास्ते है ,
ReplyDeleteसभी तस्वीरे बहुत ही लाजवाब है !
...........धन्यवाद्......
मनु जी, बहुत सुंदर लेख | परन्तु क्या आप भर्मानी माता के दर्शन करने नहीं गए ? मणिमहेश की यात्रा तो तभी पूरी मानी जाती है जब कि आप भर्मानी माता के दर्शन करने के बाद मणिमहेश जाओ !
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete२००७ में परिवार के साथ गया था और चंबा तक लगभग यही सब देखा था| फिर से उस यात्रा की याद ताजा हो गई| नीरज और संदीप के बाद एक और शानदार घुमक्कड़ ब्लॉग का पता चला, ग्रेट|
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