मूसा नदी के किनारे बसे इस शहर को हुसैनाबाद झील दो भागो में बांटती है । एक सिकंदराबाद और एक हैदराबाद । यहां का एक नाम भाग्यनगर भी है । यहां के सुल्तान ने अपनी प्रेमिका भाग्यमती के प्रेम में इस नगर को बसाया और इसका नाम भाग्य नगर रखा पर जब उसने भाग्यमती से शादी की और उसे अपनी बेगम बना लिया तो उसे हैदरमहल की उपाधि दी और इस नगर का नाम भी बदल कर हैदराबाद रख दिया ।
बिडला मंदिर के सामने |
थेाडा हैदराबाद के बारे में
हैदराबाद और सिंकदराबाद ये दो शहर हैं पर फिर भी एक हैं । आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद है जो कि हैदराबाद के निजाम और नवाबी ठाठ के साथ साथ चारमीनार और सर्वधर्म सौहार्द के रूप में जाना जाता है । ये शहर आधुनिक और पुरानी सांस्कृतिक धरोहर का मिला जुला रूप है । वैसे तो पुराने समय से हैदराबाद को निजामो की संपत्ति के रूप में प्रसिद्धि मिली हुई है जो कि मोतियो के शहर के रूप में अब भी है और साथ ही आजकल इस शहर ने सूचना प्रणाली के ज्ञान के केन्द्र के रूप में भी अपनी पहचान बना ली है । भारत के दस विशाल शहरो में से एक है हैदराबाद और यहां पर घूमने और देखने को बहुत कुछ है । कई दिन भी कम पड जायेंगे यहां पर लेकिन हमारे पास एक ही दिन था तो हमने मुख्य मुख्य जगह देखनी थी ।
SOUTH INDIA TOUR-
बिडला मंदिर से शहर का नजारा |
मूसा नदी के किनारे बसे इस शहर को हुसैनाबाद झील दो भागो में बांटती है । एक सिकंदराबाद और एक हैदराबाद । यहां का एक नाम भाग्यनगर भी है । यहां के सुल्तान ने अपनी प्रेमिका भाग्यमती के प्रेम में इस नगर को बसाया और इसका नाम भाग्य नगर रखा पर जब उसने भाग्यमती से शादी की और उसे अपनी बेगम बना लिया तो उसे हैदरमहल की उपाधि दी और इस नगर का नाम भी बदल कर हैदराबाद रख दिया ।
बिडला मंदिर के प्रवेश द्धार पर |
बिडला मंदिर और मोतियो का बाजार
बिडला फाउंडेशन द्धारा कई जगह प्रमुख शहरो में बिडला मंदिर बनाये गये हैं और सभी के सभी सफेद रंग और पत्थर में काफी सुंदर लगते हैं । हैदराबाद में भी काला पहाड नामक जगह पर भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित एक खूबसूरत मंदिर बनाया गया है । इस मंदिर के गर्भगृह में तिरूपित बालाजी की मूर्ति है और ये राजस्थान से लाये गये संगमरमर से बना है । पूरा मंदिर सफेद रंग से बना है और मंदिर के गर्भगृह के अलावा बाकी सारे परिसर में दीवारो पर बडी ही सु्ंदर चित्रकारी और शिल्प के द्धारा ऐतिहासिक और धार्मिक प्रसंगो को दर्शाया गया है ।हैदराबाद की शान |
। रास्ते में उसने एक बाजार में रोका जहां पर और भी टूरिस्ट गाडियां रूकी थी पर जैसे ही उसने कहा कि इस दुकान पर चलो मै समझ गया कि ये कमीशन वाला मामला है और उसके बाद हम दूकान घूमें तो जरूर पर हमने कुछ लिया नही बस जल्दी से चार मीनार के लिये बैठ लिये बेचारे का मुंह बन गया क्योंकि शायद उसे अंदर से मैसेज मिल गया होगा कि ये तो कुछ नही ले गये । बडबडाते हुए उसने हमें चारमीनार पर छोड दिया
चार मीनार से दिखता नजारा |
चारमीनार और मक्का मस्जिद
चारमीनार हैदराबाद की पहचान है । आप और हम इसे बचपन से किताबो में देखते आये हैं । चूडियो के प्रसिद्ध बाजार के पास स्थित है चारमीनार । ये ताजिया पद्धति पर बनी है जो कि मुसलमानो में शियाओ में मनाया जाता है 1951 में सुल्तान मुहम्मद अली ने इसका निर्माण कराया था । उस समय राज्य में प्लेग नाम की महामारी फैल गयी थी । जिसके लिये इस विशाल इमारत का निर्माण किया गया था । ये मीनार एक रक्षक की तरह शहर के बीचोबीच खडी है ।
चार मीनार के प्रवेश का नजारा |
चार मीनारो वाली इस इमारत की उंचाई 56 मीटर के लगभग है और इसकी छत पर एक छोटी सी मस्जिद है । यहां के आसपास का बाजार मोतियो की दुकान वालो से घिरा है । ऐसा भी कहते हैं कि ये चार मीनारें सुल्तान और उनकी बेगम के दुआ में उठे हाथो को दर्शाती है । यहां पर सुबह 9 बजे से शाम के साढे पांच बजे तक घूमा जा सकता है एन्ट्री के रूप मे 5 रू का टिकट लगता है । इस इमारत में कमानी के रूप में दरवाजे और चारो कोनेा पर चार मीनारे हैं । छोटे और एक आदमी के निकलने लायक चौडी बनी सीढियो से चढकर दूसरी मंजिल पर पहुंचते हैं । जब हम गये तो मीनारेा की मरम्मत का भी काम चल रहा था ।
हमारा दल |
और ये है मंदिर |
नीचे उतरकर देखा तो चारमीनार के एक कोने पर हिंदू मंदिर भी था यहां भी शीश झुकाया और चारमीनार के सामने खडे होकर भी एक एक अपना और एक ग्रुप फोटो भी खिंचवाया । यहां से हैदराबाद का नजारा भी बढिया दिखायी देता है और पास में बनी मक्का मस्जिद का भी । हम मक्का मस्जिद में तो नही गये पर हमने उपर से ही इसका नजारा लिया । कहते हैं कि इसमें मक्का से लाकर ईंट लगायी गयी थी ।
इस मस्जिद के निर्माण की शुरूआत तो 1617 में मुहम्मद अली कुतुबशाह ने की थी लेकिन इसको पूरा औरंगजेब ने 1684 में कराया था । इस मस्जिद की स्थापत्य कला की खास बात ये है कि इसके विशाल स्तम्भ और मेहराब ग्रेनाइट के एक ही स्लेब से बनाये गये हैं । इस मस्ज्दि में दस हजार लोग एक साथ नमाज पढ सकते हैं
काचीगुडा रेलवे स्टेशन पर |
वहीं थोडी दूर ही लोकल बस का स्टैंड है जहां से हमने वापिस काचीगुडा स्टेशन जाने वाली गाडी पकडी और स्टेशन पहुंच गये । यहां हमने पहले अपना सामान क्लाक रूम से निकलवाया और स्टेशन पर जाकर पंखे के नीचे वाली जगह कब्जा ली और थोडी देर इंतजार के बाद हमारी गाडी हाजिर थी जो हमें सुबह तिरूपति पहुंचा देगी जो कि अगली पोस्ट में आप पढेंगें
good post,good pics. chaarminar is majestic.
ReplyDeleteसुंदर चित्र और बढ़िया विवरण
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteचित्र और पोस्ट अच्छे लगे ..एक बात समझ में नहीं आई ..प्लेग बीमारी का इलाज .मीनार निर्माण से कैसे संभव हुआ?
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चित्र और यात्रा वृतान्त .....
ReplyDeleteअच्छी यात्रा चल रही है। हैदराबाद के बारे में अपने एक ब्लॉगर कवि, व्यंग्यकार, चित्रकार आदि आदि देवेन्द्र पाण्डेय (बेचैन आत्मा) की एक पोस्ट ध्यान आ गयी जिसमें उन्होंने बताया था कि उनकी हैदराबाद यात्रा के दौरान ऑटो वाले अपने किराये में हैवी डिस्काऊंट देने को तैयार हो गये थे, शर्त वही थी कि मोतियों वाली दुकान में जाना पड़ेगा। वही हर पर्यटक स्थल पर कमीशन वाला मामला, अतिथि देवो भव:)
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