अगले दिन सुबह सवेर उठने का कार्यक्रम बनाया ताकि सूर्योदय देख सकें । इसके लिये सवेरे उठना और समंदर किनारे जाना था । तो सुबह सवेरे उठकर हम सब पहुंच गये समंदर किनारे यहां पर पता चला कि सूर्योदय देखने का जो स्थान है वो उसी जगह से हेाकर जाता है जहां से विवेकानन्द राक पर जाने के लिये फेरी मिलती है ।
रामेश्वरम का सूर्योदय
अगले दिन सुबह सवेर उठने का कार्यक्रम बनाया ताकि सूर्योदय देख सकें । इसके लिये सवेरे उठना और समंदर किनारे जाना था । तो सुबह सवेरे उठकर हम सब पहुंच गये समंदर किनारे यहां पर पता चला कि सूर्योदय देखने का जो स्थान है वो उसी जगह से हेाकर जाता है जहां से विवेकानन्द राक पर जाने के लिये फेरी मिलती है । यहां पर मछलियों की बडी बास आ रही थी और कुछ लोग लाइन में लगे थे फेरी के लिये अभी से । हमने पता किया तो बताया कि फेरी के लिये अभी टिकट काउंटर नही खुला है और अभी जल्दी से खुलेगा भी नही । करीब सात या साढे सात बजे खुलेगा तो फिर ये लोग लाइन में क्यों लगे हैं । कोई नही बता सका । हम तो समंदर किनारे पहुंच गये ।
यहां किनारे पर बैठने के लिये दीवार सी बनी है जहां पर जितने लोग कन्याकुमारी में थे सब घेर कर पहले बैठे थे । बाकी जिन होटलो की छत से वो नजारा दिखता है वहां पर भी लोगो की भीड थी । समंदर में अभी से मछुआरे अपनी कश्ती लेकर निकल गये थे । काफी देर बैठे रहने के बाद पता चला कि इस समय तक तो सूर्य निकल जाता है पर आज नही निकला है क्योंकि आज बादल है आसमान में और जब सूर्य दिखायी दिया तो एकदम से उपर ही था । वो नजारा जिसमें सूर्य समुद्र से उगता हुआ दिखायी देता वेा हमें नही मिल पाया । यहां लगभग दो घंटे रहे ।
विवेकानन्द राक का नजारा गांधी मैमोरियल से |
त्रिवेणी संगम में स्नान |
काला गन्ना फीका रस |
यहां पर एक जगह हमने गन्ने का रस निकलता हुआ देखा और वहां का गन्ना भी हमारे यहां से अलग था बिलकुल काले रंग का । रस पीने की इच्छा हुई वो भी इसलिये कि काले गन्ने का रस कैसा होता है देखना चाहिये । पर वो बीस रूपये का गिलास हमारे यहां के रस जितना मीठा नही था । नारियल पानी की दुकानो की तो यहां कोई गिनती ही नही थी । वैसे यहां तक आने के रास्ते में भी काफी लम्बा बाजार लगा था जहां महिलाये काफी देर तक खरीददारी करती रही ।
फिर वहीं पर मौजूद काफी सारे रैस्टोरेंट में से एक में खाना खाया । उसके बाद हम लोग वापस अपने कमरे में गये और थोडी देर के लिये आराम करने को सोचकर सो गये । आज हमने जाकर एक अलग कमरा भी ले लिया था । आज दिन में धूप काफी हो रही थी तो दोपहर में आकर सब लोग सो गये । शाम को चार बजे के करीब हम लोग फिर से वहीं पर गये पर उस वक्त भी भीड कम नही हुई थी फेरी में जाने के लिये वही हालात थे । असल में आज के दिन यहां पर कोई अदभुत संयोग होने वाला था कोई ऐसा जो सिर्फ कन्याकुमारी में किसी विशेष दिन होता है मै आप सबमें से किस किस ने ये लेख पढा है ये जांचने के लिये आपसे पहले पूछूगा कि वो क्या है । उस नजारे को देखने के लिये काफी बडी संख्या में विदेशी लोग भी जमा थे यहां पर ।
फिर वहीं पर मौजूद काफी सारे रैस्टोरेंट में से एक में खाना खाया । उसके बाद हम लोग वापस अपने कमरे में गये और थोडी देर के लिये आराम करने को सोचकर सो गये । आज हमने जाकर एक अलग कमरा भी ले लिया था । आज दिन में धूप काफी हो रही थी तो दोपहर में आकर सब लोग सो गये । शाम को चार बजे के करीब हम लोग फिर से वहीं पर गये पर उस वक्त भी भीड कम नही हुई थी फेरी में जाने के लिये वही हालात थे । असल में आज के दिन यहां पर कोई अदभुत संयोग होने वाला था कोई ऐसा जो सिर्फ कन्याकुमारी में किसी विशेष दिन होता है मै आप सबमें से किस किस ने ये लेख पढा है ये जांचने के लिये आपसे पहले पूछूगा कि वो क्या है । उस नजारे को देखने के लिये काफी बडी संख्या में विदेशी लोग भी जमा थे यहां पर ।
वाच टावर से नजारा |
वाच टावर व्यू प्वांइट
यहां गांधी स्मारक से थोडा आगे ही चलकर एक वाच टावर बनाया गया है जो कि काफी बडा है और बिलकुल समंदर के किनारे है । इस पर काफी संख्या में लोग खडे हो सकते हैं और ये लाइट हाउस के बिलकुल सामने हैं । इस व्यू प्वांइट पर चढकर देखने के लिये तीन रूपये प्रति आदमी का टिकट लगता है । हम इस पर चढ गये और कई मंजिल चढने के बाद सबसे उपर पहुंच गये । यहां से विवेकानन्द राक और सनसेट प्वांइट का नजारा बढिया दिख रहा था । साथ ही इस टावर के तल से टकराती लहरे जो कि दूर से बनकर आती थी और बडे शोर के साथ इसके पिलरो से टकराती थी बडा अच्छा नजारा दे रही थी । एक और बात उपर से इन लहरो को देखना सुंदर के साथ साथ कभी कभी खतरनाक भी लग रहा था । वैसे यहां से दूर दूर तक का नीला समुद्र भी दिख रहा था । और हम अंधेरा होने तक यहीं पर रहे क्योंकि इससे बढिया जगह हमें कन्याकुमारी का आनंद लेने के लिये नही दिखायी दे रही थी । अंधेरा होने के बाद ही हम नीचे उतरे और आश्रम में जाकर खाना खाया । हमें दोपहर में पता चला कि आश्रम में कैंटीन भी है जहां पर शुद्ध और सात्विक खाना मिलता है । उसके बाद आश्रम में साईबर कैफे पर भी मैने एक घंटा काम किया । ये सुविधा भी एक कमरे में दो कम्पयूटर लगा कर की हुई है ।विवेकानन्द राक |
विवेकानन्द स्मारक
सामने समुद्र में दो चटटाने
हैं जिनमें से एक पर विवेकानन्द स्मारक बना है । विवेकानन्द स्मारक विवेकानन्द जी की
स्मृति में बना है । इसे विवेकानन्द राक मैमोरियल भी कहा जाता है । 1892 में स्वामी विवेकानन्द जी
कन्याकुमारी आये थे । एक दिन वे तैरकर इस शिला पर पहुंच गये । यहां उन्होने साधना की
और ध्यान लगाया । यहीं के बाद वे अमेंरिका गये और अपने संबोधन से विश्व में ख्याति
प्राप्त की । 1970 में इस जगह पर उनके स्मारक के रूप में एक भवन का निर्माण किया गया । लाल पत्थर
से निर्मित स्मारक पर 70 फुट उंचा गुम्बद है । भवन के अंदर कांसे से निर्मित आठ फुट की स्वामी
जी की मूर्ति है । यहां जाने के लिये सरकारी फेरी चलती है जो बहुत ही कम किराया लेती
है । स्वामी जी की आदमकद मूर्ति के अलावा यहां पर उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस और उनकी
गुरू मां की तस्वीरे भी हैं यहां ध्यान मंडप भी है । इसी
के बराबर में एक दूसरी चटटान है जिस पर तमिल कवि संत तिरूवल्लुवर की काफी बडी प्रतिमा लगी है जो कि काफी दूर
समुद्र तट पर खडे होकर भी बढिया नजर आती है । इस मूर्ति को 5000 शिल्पकारो ने बनाकर तैयार
किया था और इसकी उंचाई 133 फुट है । जो कि कवि द्धारा रचे गये गंथ के 133 अध्यायो का प्रतीक है । यहां
पर भी फेरी से जाया जा सकता है वो भी विवेकानन्द मैमोरियल से । यहां के लिये अलग से
फेरी नही चलती है त्रिवेणी संगम में स्नान |
एक सम्पूर्ण जानकारी के साथ सभी खींचे गए चित्र बेहद खूबसूरत .....सादर
ReplyDeleteअपनी यात्रा याद आ गयी है।
ReplyDeleteक्या बात है दोस्त खूबसूरत पैनोरमा उकेर दिया आपकी आँख ने इस सारे क्षेत्र का .बधाई .
ReplyDeleteप्राकृतिक सौन्दर्य को बाँधने की क्षमता है आपके कैमरे की आँख में आपके पारखी नजर में .मनोरम दृश्यावली की ट्रीट है यह पोस्ट .आभार आपकी
ReplyDeleteटिप्पणियों के लिए .
कन्याकुमारी का सूर्योदय अति सुन्दर
ReplyDeleteसुना है छोरा रूपकुण्ड की यात्रा भी कर आया ??? उसके बारे मे कब लिखोगे
ReplyDeleteसूर्य ग्रहण? तुक्का ही है वैसे:)
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