यहां थोडी आगे एक बोर्ड आया जहां से नैनीताल 80 किलोमीटर था । अपन तो चलम चल रहे । हल्द्धानी और काठगोदाम भी पार कर लिया । अब पहाड का रास्ता आना शुरू हो गया था । तभी एक बोर्ड आया कि नैनीताल 30 था शायद और भीमताल 17 । यहीं से सीधे हाथ को रास्ता नीचे को गया था । मैने बाइक उसी पर मोड ली । नैनीताल तो मै देख चुका हूं इस बार भीमताल सही । कुछ दूर नीचे उतरने के बाद फिर लगातार चढाई शुरू हो गयी ।
अभी गाजियाबाद से चलकर हापुड भी नया जिला बना है । यानि की आज के सफर में कितने जिले पार करूंगा ये आप भी गिनते जाना ।अब यहां से मैने फैसला कर लिया था कि लम्बा सफर काटना है तो जल्दी करनी होगी सेा कैमरा आंशिक रूप से बंद करना होगा । यदि जरूरी होगा तो ही निकालू्गा फोन भी नही तो बस अब चलो ।
आठ बजे मै गढमुक्तेश्वर से निकला और अगले दो घंटे में मैने प्रत्येक घंटे 60 किलोमीटर का सफर तय किया । इसमें रोल था बेहतरीन फोर लेन हाइवे का । मुरादाबाद में जरूर मैने एक बार पूछा कि क्या शहर में को जाना सही होगा तो उन्होने बताया कि ये हाइवे सीधा रामपुर जा रहा है । तो फिर शहर में घुसने की क्या जरूरत । मै बाइक से गजरौला तक आ चुका था पहले । वैसे बस से नैनीताल आदि भी घूम चुका था पर बाइक से इस रास्ते को पहली बार जा रहा था । मुझे याद है लगभग 160 किमी तक तो फोरलेन हाइवे बढिया मिला पर उसके बाद एक साइड तो कभी दो साइड और कभी टूटा सिंगल रास्ता मिलना शुरू हो गया । जेपी नगर और मुरादाबाद पार करने के बाद आया रामपुर जिला । हमारे मंत्री आजम खान का गृह नगर ।फिर भी रास्ते में जब ऐसे सीन आ जायें तो कैमरा निकालना ही पडता है । एक दूधिया की बाइक पर पीछे बैठा आदमी कितना मस्त है । शायद नंगे ही पैर बैठा है ।
मुरादाबाद में भी काफी नयी नयी इमारते और कालोनिया खडी हो रही हैं इसकी भी एक बानगी देख लो मुरादाबाद से जहां से ये खराब रास्ता शुरू होता है वहां से नीचे को एक रास्ता जिम कार्बेट पार्क मे जाता है । जो कि यहां से 95 किमी0 है लखनउ यहां से 332 किमी रह जाता है हमारे देश मे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कितनी कारगर है इसका नजारा हमें अक्सर देखने को मिल जाता है जब लोग अपनी जान को हथेली पर रखकर यात्रा करते हैं ।
रूद्रपुर मै लगभग साढे दस बजे पहुंच गया । रामपुर पार करने के दौरान मैने वैसे तो सारे शहर में कोई खास बात नही देखी पर जौहर यूनिवर्सिटी को जाने वाली एक सुंदर सडक देखी और उस पर सुरक्षा भी काफी कडी थी ।रूद्रपुर तक आते आते मुझे भूख लगने लगी थी । वैसे भी मै केवल एक परांठा खाकर चला था जो हाइवे की टोल रोड खत्म होने के बाद आने वाले गढढो में ढीला हो गया था और यहां पर काफी सारी केले की ठेलियां लगी थी । केले भी काफी बडे बडे थे । मेरा मन ललचा गया और 30 रू दर्जन में मिल रहे केले 6 निकलवा लिये । हालांकि केले काफी बडे थे और मुझ पर केवल 5 ही बडी मुश्किल से खाये गये । एक को मैने बचाकर अपने बैग की जेब में रख् लिया । केले वाले लडके से कहा कि यार मेरा एक फोटो ले दे । अकेला था ना तो इसके अलावा कोई रास्ता नही था ।अब हल्द्धानी आने वाला था । केले खाकर मै चल दिया ।
यहां थोडी आगे एक बोर्ड आया जहां से नैनीताल 80 किलोमीटर था । अपन तो चलम चल रहे । हल्द्धानी और काठगोदाम भी पार कर लिया । अब पहाड का रास्ता आना शुरू हो गया था । तभी एक बोर्ड आया कि नैनीताल 30 था शायद और भीमताल 17 । यहीं से सीधे हाथ को रास्ता नीचे को गया था । मैने बाइक उसी पर मोड ली । नैनीताल तो मै देख चुका हूं इस बार भीमताल सही । कुछ दूर नीचे उतरने के बाद फिर लगातार चढाई शुरू हो गयी । वैलकम इन माउन्टेंस । पहाडो में आपका स्वागत है ।
हम भी आपके साथ आपकी बाईक पर घूम रहे हैं ।
ReplyDeleteकेले खा कर चल रहे, दिया कैमरा त्यागि ।
ReplyDeleteफिर भी फोटो जो दिखे, मनु को चंगे लागि ।।
भाई केले खाते हुए कुछ उदास लग रहे हो क्या बात हैं..
ReplyDeleteचल चला चल, घुमक्कड चल चला चल।
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ReplyDeleteखूबसूरत अंदाज़े सफर जान जोखिम में डालने का रिवाज़ लगता है युनिवर्सल है ऐसी खस्ता हाल है
सार्वजनिक परिवहन प्रणाली .
हमारे मतलब के नजारे तो अब आने शुरू होंगे :-)
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा!
ReplyDeleteहल्द्वानी तक आये हो तो हमारे घर खटीमा भी आ जाना!
sundar
ReplyDeleteशर्मा जी आपकी और ब्लाग स्पाट वालो की कुछ दुश्मनी चल रही है क्या जो आपके कमेंट को स्पैम में भेजते हैं ?
ReplyDeleteअकेला त्यागी
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