एक कोने में दो आदमी कुर्सी डाले बैठै थे वो शायद पुरातत्व वाले होंगें । मंदिर के बाहर धूनी जली थी । ऐसी लोकेशन और इतना विंहगम मंदिर का दृश्य मैने पहले कभी नही देखा । हर चीज यहां की अलग हटकर थी जैसे कि मंदिर के तीन ओर यू के आकार में बहती नदी वो तो गजब का दृश्य था ।
रतन सिंह मुझे यहां मुझसे पहले बैठा मिला अपने दोनो बंदो के साथ जो कि उसके निर्देशन में मिलाम ग्लेशियर जाने वाले थे । वो मुझे अकेला घूमता देखकर इतना प्रभावित था कि उसके बाद से अक्सर फोन करता रहता है । खैर पिछली पोस्ट में आपने इन मंदिर समूहो का दूर से नजारा देखा होगा । वो वाकई अदभुत है । गोमती मंदिर के पिछवाडे से अगाडे तक घूमकर गयी है ।
अब बारी थी मंदिर परिसर को घूमने की । रतन सिंह अपने साथियो के साथ मुझसे पहले कैसे आ गया ये सोचने का विषय था । मै बाइक पर था और वो शेयर जीप में आये थे । मै पहले चला था फिर भी वो मुझसे पहले आ गये थे । मैने उससे पूछ ही लिया । उसने बताया कि आप तो रास्ते में फोटो खींच रहे थे हम तो शेयर जीप में थे जो कहीं रूकी ही नही ।
रतन और उनके साथी बैठे हुए थे नदी के किनारे और पानी में तैर रही बडी और सुंदर मछलियो को खाना खिला रहे थे । मंदिर में पुजारी अपनी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे । शांति इतनी कि रतन और उसके दो साथी और मेरे अलावा कोई पर्यटक नही था । एक कोने में दो आदमी कुर्सी डाले बैठै थे वो शायद पुरातत्व वाले होंगें । मंदिर के बाहर धूनी जली थी । ऐसी लोकेशन और इतना विंहगम मंदिर का दृश्य मैने पहले कभी नही देखा । हर चीज यहां की अलग हटकर थी जैसे कि मंदिर के तीन ओर यू के आकार में बहती नदी वो तो गजब का दृश्य था । पानी नदी का इतना निर्मल कि पत्थर हो या मछलियां एकदम साफ साफ देख सकते हो । पानी की गहराई ना कम ना बहुत ज्यादा । पानी का वेग भी एकदम संतुलित हो गया था मंदिर के पास । मुझे लगता है कि ये एक आदर्श जगह है । हालांकि ये इतनी बडी जगह नही है कि अगर दौ सौ पर्यटक आ जायें तो इस जगह की सुंदरता को खो देंगें ये पक्की बात है । पर फिर भी तब तक आप आनंद लो इस सुंदरता का
अब बारी थी मंदिर परिसर को घूमने की । रतन सिंह अपने साथियो के साथ मुझसे पहले कैसे आ गया ये सोचने का विषय था । मै बाइक पर था और वो शेयर जीप में आये थे । मै पहले चला था फिर भी वो मुझसे पहले आ गये थे । मैने उससे पूछ ही लिया । उसने बताया कि आप तो रास्ते में फोटो खींच रहे थे हम तो शेयर जीप में थे जो कहीं रूकी ही नही ।
रतन और उनके साथी बैठे हुए थे नदी के किनारे और पानी में तैर रही बडी और सुंदर मछलियो को खाना खिला रहे थे । मंदिर में पुजारी अपनी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे । शांति इतनी कि रतन और उसके दो साथी और मेरे अलावा कोई पर्यटक नही था । एक कोने में दो आदमी कुर्सी डाले बैठै थे वो शायद पुरातत्व वाले होंगें । मंदिर के बाहर धूनी जली थी । ऐसी लोकेशन और इतना विंहगम मंदिर का दृश्य मैने पहले कभी नही देखा । हर चीज यहां की अलग हटकर थी जैसे कि मंदिर के तीन ओर यू के आकार में बहती नदी वो तो गजब का दृश्य था । पानी नदी का इतना निर्मल कि पत्थर हो या मछलियां एकदम साफ साफ देख सकते हो । पानी की गहराई ना कम ना बहुत ज्यादा । पानी का वेग भी एकदम संतुलित हो गया था मंदिर के पास । मुझे लगता है कि ये एक आदर्श जगह है । हालांकि ये इतनी बडी जगह नही है कि अगर दौ सौ पर्यटक आ जायें तो इस जगह की सुंदरता को खो देंगें ये पक्की बात है । पर फिर भी तब तक आप आनंद लो इस सुंदरता का
जय बाबा बैजनाथ....वन्देमातरम..
ReplyDeleteसुंदर तस्वीरें..
ReplyDeleteजय हो बाबा जी
ReplyDeleteचलते रहो,
ReplyDeletejaat bhai ram ram
Deleteजैसे स्वर्ग उतर आया हो धरती पर, बहुत सुंदर!
ReplyDeleteGreat sights to see.
ReplyDeleteWonderful temple.
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