ये वो मंदिर है जहां साल में केवल एक दिन के लिये दर्शन होते हैं आप भी कर लो दर्शन हमने सुबह सात बजे चढना शुरू किया । लगभग 600 मीटर की दूरी चढकर लाटू देवता का मंदिर आ गया । इस मंदिर का इतिहास और महत्व इतना है कि मै इसके लिये
जय हो लाटू देवता ये वो मंदिर है जहां साल में केवल एक दिन के लिये दर्शन होते हैं आप भी कर लो दर्शन |
झंडे लगा दिखायी दे रहा गांव का प्राचीन मंदिर |
मेरा हंसमुख , जिंदादिल , मेहनती गाइड कुंवर सिंह |
। गाइड ने दो स्लीपींग बैग और मैट्रस का भी इंतजाम कर दिया था ।
रात को बडी मुश्किल से नींद आयी । जाट देवता से फोन पर बात हुई । यहां वाण में भी थोडी उंचाई पर जाने पर आइडिया का फोन चल रहा था । जाट ने बताया कि वो हल्द्धानी में रूक गया है और कल दो से तीन के बीच आ जायेगा । पर तब तक मै क्या करूंगा यहां ?
उस समय मुझे वाण गांव केवल एक छोटा सा पहाडी गांव लग रहा था और मुझे यहां पर रूकना व्यर्थ लग रहा था । दूसरी बात ये थी कि मै सोच रहा था कि अगर जाट देवता कल तीन बजे तक भी आ गया तो भी हम कल चढाई नही कर पायेंगें । परसो करेंगें तो जाट देवता के साथ मै चल नही पाउंगा उसकी ताकत गजब की है । वैसे मैने तो पैदल चलकर भी केवल घूमने में ही देखता हूं नही तो अपन तो बाइक के ही शेर हैं । दूसरी बात गाइड तो कर ही लिया था तो मैने जाट को बोल दिया कि मै कल बेदिनी बुग्याल तक जाउंगा और तुम 12 किलोमीटर की चढाई कल 3 बजे से भी करी सकते हो ये मुझे यकीन है इसलिये मै कल सुबह ही चल दूंगा ।
वैसे मेरे गाइड ने सुबह 6 बजे का समय दिया था पर वो सुबह आया ही नही । सात बजे एक दूसरा लडका आकर एक बडे से बैग में सामान भरने लगा तो मैने उससे पूछा तो उसने बताया कि वो रात वाले गाइड का भाई है नाम है कुंवर सिंह और अब वो मेरे साथ चलेगा । चलो भाई
कुंवर सिंह ने सामान बांधा और स्लीपिंग बैग और सारा सामान अपनी पीठ पर लाद लिया । मै उसे काफी छोटा समझ रहा था इसलिये मैने अपना सामान उसे नही दिया और हमने चलना शुरू किया
कुंवर सिहं ने बताया कि हम लाटू देवता के मंदिर को होकर और उनका आर्शीवाद लेकर जायेंगें मुझे कोई एतराज नही था । हमने सुबह सात बजे चढना शुरू किया । लगभग 600 मीटर की दूरी चढकर लाटू देवता का मंदिर आ गया । इस मंदिर का इतिहास और महत्व इतना है कि मै इसके लिये पूर्ण रूप से समर्पित एक पोस्ट आपके सामने लाउंगा पर फिलहाल दर्शन करते हैं और चलते हैं । रूपकुंड के पहले पडाव बेदिनी बुग्याल की ओर
यही था मेरा रात को रूकने का स्थान |
और ये लो एकदम शुरूआत से चढाई और ये है रास्ता |
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ये है वन विभाग का गेस्ट हाउस
जय हो लाटू देवता की , लाटू देवता मंदिर |
तो लाटू देवता के दर्शन करके हम चलते हैं आगे की ओर
लाटू देवता को, जाट देवता की राम राम, चिंता नहीं करना मेरी कल तक वेदनी पहुँचने की पूरी कोशिश रहेगी। अत: तुम वहाँ पहुँच जाना।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा 24- 01- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें ।
अनछुआ सौन्दर्य है जगह का।
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