बैजनाथ से ग्वालदम तक का रास्ता बडा ही सुहाना है । रास्ते में सुंदर पहाडी गांव और कुछ गांवो के मजरो के दृश्य बडे सुहाने लगते हैं । ऐसे रास्तो में सुबह के समय किसान खेतो में काम करते नजर आते हैं तो शाम के समय चूल्हे जलाने के लिये किया गया धुंआ दूर से बादल जैसा नजर आता है ।
बैजनाथ से ग्वालदम तक का रास्ता बडा ही सुहाना है । रास्ते में सुंदर पहाडी गांव और कुछ गांवो के मजरो के दृश्य बडे सुहाने लगते हैं । ऐसे रास्तो में सुबह के समय किसान खेतो में काम करते नजर आते हैं तो शाम के समय चूल्हे जलाने के लिये किया गया धुंआ दूर से बादल जैसा नजर आता है ।
बिटौडा जो कि हमारे यहां पर उपले रखने के काम में आता है वो अब हमारे यहां तो गायब हो गये हैं पर यहां पर अभी काफी देखने को मिलते हैं और कई बार तो उन बिटोडो का बडे बडे खेतो में काम्बीनेशन बन जाता है । बैजनाथ से कोट भ्रामरी मंदिर देखने के बाद मै ग्वालदम के लिये चल पडा । ग्वालदम वो जगह है जहां पर उत्तरांचल के दो जिले और दो गढवाल मिलते हैं ऐसा मैने कहीं पढा था । बैजनाथ गहराई में जबकि ग्वालदम उंचाई पर है इसलिये बैजनाथ से आगे लगातार चढाई है वैसे सडक की हालत यहां पर बढिया है और ग्वालदम तक कोई परेशानी नही हुई । रास्ते में एक जगह काफी दूर तक चाय के बागान लगे हुए हैं । यहां पर आकर ऐसा लगा जैसे उत्तरांचल नही केरल में आ गये हैं । शांति और खूबसूरती का मेल । मुझे रास्ते में एक दो बसे और दो बाइक वाले मिले बस । पहाडी जीवन कितना दुरूह होता है कि लोग सडक पर खडे रहते हैं बस के इंतजार में कि अब 12 वाली आयेगी अब 3 वाली आयेगी । और वो भी इतना पक्का नही है कि सही समय पर ही आयेगी । हां लोग आने जाने वालो से इशारे करके पूछ लेते हैं कि बस मिली क्या रास्ते में ? खैर आगे चलते हैं अगली पोस्ट में आपको ग्वालदम के नजारे दिखाते हैं तब तक के लिये विदा
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteबधाई ||
मनोरम प्रस्तुती
ReplyDeleterecent poem : मायने बदल गऐ
Beautiful pictures
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