यहां पर गणेश जी की भव्य पाषाण मूर्ति है । यहां इस जगह की खूबसूरती मुझे रूपकुंड से भी ज्यादा लगी ये मेरी अपनी राय है । ये ऐसी जगह है जहां से पहाडो का और हिमालय की कई चोटियों जैसे नन्दा घूंटी और त्रिशूली के दर्शन होते हैं । कहा जाता है कि
पातर नौचानियां से अगला पडाव नंदा देवी राजजात यात्रा का कालू विनायक है । यहां पर गणेश जी की भव्य पाषाण मूर्ति है । यहां इस जगह की खूबसूरती मुझे रूपकुंड से भी ज्यादा लगी ये मेरी अपनी राय है । ये ऐसी जगह है जहां से पहाडो का और हिमालय की कई चोटियों जैसे नन्दा घूंटी और त्रिशूली के दर्शन होते हैं ।
कहा जाता है कि यहां पर कालू नाम का एक गण था जिसे देवी ने आर्शीवाद दिया था कि राजजात में तुमको भोग चढाया जायेगा । पहाड के वासी यहां के दर्शन के बिना आगे नही चलते और मैने भी इस पूरी यात्रा में एकमात्र जगह ये देखी जहां पर मूर्ति है नही तो सब जगह केवल पत्थर रखकर ही मंदिर बना दिया गया है । इस मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि ये बहुत प्राचीन है और कुंवर सिहं ने बताया कि इस मूर्ति को मक्खन लगाकर एक बच्चा भी उठा सकता है पर अगर मन में श्रद्धा ना हो तो इसे पहलवान भी नही उठा सकेगा ये साबित कई बार हो चुका है । हमने भी वहां पर श्रद्धा भाव से सर झुकाया और पैसे चढाये जिसे कुंवर सिंह ने रख लिया क्योंकि वो ही यहां पर पुजारी होते हैं और इस चढावे पर उन्ही का हक होता है
यहां पर हम ज्यादा देर नही रूके । सिर्फ 10 मिनट गुजारे क्योंकि आगे का रास्ता उतराई का था भागूवासा तक और जहां पर चढाई के बाद उतराई आ जाये तो आराम तो अपने आप ही मिल जाता है । अभी सुबह के सात बजे थे केवल और कालू विनायक का पडाव हमने पार कर लिया था । उतराई को देखते हुए हमें भागूवासा तक 30 से 50 मिनट में ही पहुंचने की उम्मीद थी यानि की साढे सात बजे तक जो कि बहुत बढिया समय था और अगर मै इसी स्पीड से चलता रहा तो शायद दिन के बारह बजे तक रूपकुंड से भागूवासा वापस आ सकता था ।
देखते हैं उपर वाले को क्या मंजूर है अपना काम तो चलना है सो बाकी उस पर छोडकर मैने चलना जारी रखा
Superb.
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