मै कभी सोचता कि मै पन्द्रह दिन पहले क्यों नही आया ताकि ये बर्फ नही मिलती पर फिर सोचता कि अगर मै पन्द्रह दिन पहले आया होता तो ये बर्फ नही मिलती और साथ ही इतना शानदार नजारा भी नही मिलता । खाली उजाड पत्थरो में मै क्या सुंदरता देख पाता ।
मेरी सबसे पसंदीदा जगह , रूपकुंड झील से भी सुंदर , इस जगह से प्राकृतिक नजारो के दर्शन सबसे बढिया होते हैं और इस वक्त कालू विनायक का मंदिर और ये प्वांइट बर्फ में लिपटा पडा है ताजी सफेद बर्फ की चादर चारो ओर बिछी पडी है ।
यहां कालू विनायक भगवान के मंदिर के पास कुछ जगह बैठने के लिये भी बनी हुई है पत्थर की बेंच जैसी पर अभी तो फिलहाल कुछ भी बर्फ से अछूता नही है । हमें बैठने की तमन्ना हुई तो वो भी बर्फ पर ही बैठना पडा । एक बिस्कुट का पैकेट खाकर हम फिर से चल पडे । हमारे पीछे तीनो लोग आ रहे थे पर वो अभी काफी दूर थे । मै यहां से जाट को देखने की कोशिश कर रहा था क्योंकि यहां से काफी दूर का नजारा चारो ओर का दिखायी दे जाता है पर अफसोस कि वो अब तक मुझे नजर नही आया था
क्या बढिया स्लोप हैं इस जगह के । यहां पर तो स्कीइंग की जा सकती है पर ये बडे बडे पत्थर दिक्कत करेंगें । ये भी हो सकता है कि ये तो बर्फ की शुरूआत है पर आगे कई महीने पडने वाली बर्फ मे यहां पत्थरो का नामोनिशान भी ना चमके । जो भी हो ये बिलकुल अनछुई जगह है । मै कभी सोचता कि मै पन्द्रह दिन पहले क्यों नही आया ताकि ये बर्फ नही मिलती पर फिर सोचता कि अगर मै पन्द्रह दिन पहले आया होता तो ये बर्फ नही मिलती और साथ ही इतना शानदार नजारा भी नही मिलता । खाली उजाड पत्थरो में मै क्या सुंदरता देख पाता । हां बर्फ का एक नुकसान होने वाला था वो भी सौ प्रतिशत पक्का कि वो अस्थि पंजर नही दिखने वाले थे । ये बात कुंवर सिंह ने पहले ही बता दी थी कि भागूवासा तक 5 से 6 फीट बर्फ है बेदिनी में तो मेरे सामने ही बर्फ पड रही थी तो ऐसे में रूपकुंड में दस से बारह फीट बर्फ होगी तो अस्थि पंजरो का मिलना नामुमकिन है
उपर के फोटो में पैर से बर्फ को नीचे धकेला तो कैसा निशान हो गया वो देख सकते हैं और नीचे वाला फोटो मेरा बहुत पसंदीदा है क्योंकि ये दर्शाता है कि जीवन के लिये सिर्फ हिम्मत होनी चाहिये ना कि आकार से फर्क पडता है । यहां बडे बडे पेड भी जिंदा नही रह पाते पर इस छोटे से फूल ने अपना अस्तित्व बरकरार रखा है तो इसकी दाद तो देनी पडेगी ही
यहां कालू विनायक भगवान के मंदिर के पास कुछ जगह बैठने के लिये भी बनी हुई है पत्थर की बेंच जैसी पर अभी तो फिलहाल कुछ भी बर्फ से अछूता नही है । हमें बैठने की तमन्ना हुई तो वो भी बर्फ पर ही बैठना पडा । एक बिस्कुट का पैकेट खाकर हम फिर से चल पडे । हमारे पीछे तीनो लोग आ रहे थे पर वो अभी काफी दूर थे । मै यहां से जाट को देखने की कोशिश कर रहा था क्योंकि यहां से काफी दूर का नजारा चारो ओर का दिखायी दे जाता है पर अफसोस कि वो अब तक मुझे नजर नही आया था
क्या बढिया स्लोप हैं इस जगह के । यहां पर तो स्कीइंग की जा सकती है पर ये बडे बडे पत्थर दिक्कत करेंगें । ये भी हो सकता है कि ये तो बर्फ की शुरूआत है पर आगे कई महीने पडने वाली बर्फ मे यहां पत्थरो का नामोनिशान भी ना चमके । जो भी हो ये बिलकुल अनछुई जगह है । मै कभी सोचता कि मै पन्द्रह दिन पहले क्यों नही आया ताकि ये बर्फ नही मिलती पर फिर सोचता कि अगर मै पन्द्रह दिन पहले आया होता तो ये बर्फ नही मिलती और साथ ही इतना शानदार नजारा भी नही मिलता । खाली उजाड पत्थरो में मै क्या सुंदरता देख पाता । हां बर्फ का एक नुकसान होने वाला था वो भी सौ प्रतिशत पक्का कि वो अस्थि पंजर नही दिखने वाले थे । ये बात कुंवर सिंह ने पहले ही बता दी थी कि भागूवासा तक 5 से 6 फीट बर्फ है बेदिनी में तो मेरे सामने ही बर्फ पड रही थी तो ऐसे में रूपकुंड में दस से बारह फीट बर्फ होगी तो अस्थि पंजरो का मिलना नामुमकिन है
उपर के फोटो में पैर से बर्फ को नीचे धकेला तो कैसा निशान हो गया वो देख सकते हैं और नीचे वाला फोटो मेरा बहुत पसंदीदा है क्योंकि ये दर्शाता है कि जीवन के लिये सिर्फ हिम्मत होनी चाहिये ना कि आकार से फर्क पडता है । यहां बडे बडे पेड भी जिंदा नही रह पाते पर इस छोटे से फूल ने अपना अस्तित्व बरकरार रखा है तो इसकी दाद तो देनी पडेगी ही
राम जी इसी को तो कहते हैं जिंदगी. एक फूल भी इतनी विषम परिश्तिथियो में अपने आप को सर्वाइव कर पा रहां हैं, बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं हमें...धन्यवाद , वन्देमातरम...
ReplyDeleteGajab foto!!!
ReplyDeleteचित्र बेहद सुंदर हैं।
ReplyDeleteऐसी जोरदार बर्फ़ किस्मत वालों को नसीब होती है। अबकी बार इस यात्रा में एक महीने पहले जाकर देख लेना, उसके बाद बताना कौन सी यात्रा सुन्दर रही
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