चक्की आटा पीसने वाली वो भी झरने के पानी से तो हम उधर को मुड गये । ये चक्की एक बार मैने पहले देखी थी पोंटा साहिब के उपर राजपुर नामक गांव में । वहां पर मै अपने एक दोस्त के मामा के घर गया था । इन चक्की का आटा इतना ताकतवर होता है कि पूछो मत । आप कहोगे वो कैसे
कुंवर सिंह के घर से नीचे उतरते हुए और उसके खेतो का निरीक्षण करने के बाद हमने एक जगह दूर से एक टीले पर एक मंदिर देखा । ये मंदिर एक अलग ही पहाडी पर बना हुआ था । हमने कुंवर सिंह से पूछा तो उसने बताया कि ये मंदिर भी साल में एक बार काफी गुलजार होता है । हमने अपना रूख उस मंदिर की ओर को ही कर लिया और उस छोटी सी पहाडी पर पहुंच गये । मंदिर में ना तो कोई पुजारी था और ना ही कोई मूर्ति पर हां जगह काफी बढिया थी
कोई ऐसी जगह मुझे भी पचास या सौ गज जगह दे दे तो वहीं घर बनाकर बस जाउं
चारो तरफ उंची उंची पहाडियो के बीच में बसी एक छोटी पहाडी ।
वहां से उतरकर हम गांव की ओर चले तो हमें एक चक्की दिखायी दी । चक्की आटा पीसने वाली वो भी झरने के पानी से तो हम उधर को मुड गये । ये चक्की एक बार मैने पहले देखी थी पोंटा साहिब के उपर राजपुर नामक गांव में । वहां पर मै अपने एक दोस्त के मामा के घर गया था ।
इन चक्की का आटा इतना ताकतवर होता है कि पूछो मत । आप कहोगे वो कैसे ? तो वो ऐसे कि मक्का का एक एक दाना ही इस चक्की में गिरता है और चूंकि ये पानी से चलती है तो ऐसे में आटा बहुत गरम नही होता । गांव वालो के नम्बर बंधे होते हैं । इस चक्की का आटा काफी बढिया होता है पर हम लोगो के लिये तो ये सपना ही है ं
हमने चक्की को अंदर से भी देखा आपके दिखाने के लिये तो आप देखिये कि किस तरह कुदरत जिसको पैसा नही देती तो उसे साधन इतने देती है कि उसे ज्यादा पैसे की जरूरत ही नही पडती
सुंदर वादियाँ, सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteधन्यवाद
सुन्दर चित्र, सुन्दर वर्णन, पानी से चलने वाली चक्की के बारे में पहली बार पढ़ा. धन्यवाद.
ReplyDeleteसही कहा आपने कुदरत जिसे पैसा नहीं देता उसे साधन इतना दे देता है की पैसे की जरुरत ही नहीं पड़ती ...
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन