रिवालसर झील में मछलियो की भरमार तो है ही साथ ही यहां पर मछलियो को देखने में काफी समय बिताया जा सकता है
इस पोस्ट में आप देखोगे कि कैसे रिवालसर झील में मछलियो की भरमार तो है ही साथ ही यहां पर मछलियो को देखने में काफी समय बिताया जा सकता है ।
वैसे तो इस झील में कई अलग अलग रंगो की मछलिया हैं पर मेरी खूब कोशिश के बावजूद भी लाल और अन्य रंगो की इक्का दुक्का दिखायी देने वाली मछलियां कैमरे में नही आ पायी क्योंकि एक तो वे बहुत कम संख्या में थी और दूसरी बात कि वे बहुत शर्मीली भी हैं । लोगो के दाना गिराने पर उन सारी मछलियों में जो होड मचती है उनमें भी वे सबसे पीछे ही रहती हैं । बडे बडे साइज की मछलियों में दाना खाने के लिये मची होड को देखकर मजा आता है और यहां पर आने वाला कोई भी पर्यटक इनके मोह से बच नही पाता । आप भी तस्वीरो से इनका आनंद उठाईये
वैसे तो इस झील में कई अलग अलग रंगो की मछलिया हैं पर मेरी खूब कोशिश के बावजूद भी लाल और अन्य रंगो की इक्का दुक्का दिखायी देने वाली मछलियां कैमरे में नही आ पायी क्योंकि एक तो वे बहुत कम संख्या में थी और दूसरी बात कि वे बहुत शर्मीली भी हैं । लोगो के दाना गिराने पर उन सारी मछलियों में जो होड मचती है उनमें भी वे सबसे पीछे ही रहती हैं । बडे बडे साइज की मछलियों में दाना खाने के लिये मची होड को देखकर मजा आता है और यहां पर आने वाला कोई भी पर्यटक इनके मोह से बच नही पाता । आप भी तस्वीरो से इनका आनंद उठाईये
इन मछलियों को पंगाश और रोहू कहते है.
ReplyDeleteदोनों की दोनों catfish की ही उपप्रजाति है.
अखिल भारत वर्ष में जितने भी पर्यटन स्थल स्थित जितनी भी झील, ताल या कुंड इत्यादि है उनमे इन मछलियों को छोड़ा जाता है क्योंकि ये मछलियाँ जिन्दा रहने में माहिर है और ये कुछ भी खा सकती है. इसीलिए इन्हें पानी की सफाई कर्मी कहते है ये मछलियाँ पानी के हर तरह के कीड़े खा कर जिन्दा रहती है.
साथ ही पर्यटकों का भी मन लगा रहता है
खाने की बात करे तो पंगाश तो बकवास है कोई स्वाद नहीं पर ये रोहू बड़ी जबर्दस्त है काँटों के बावजूद भी लगातार खाने का मन करता है..