बिजली महादेव का रास्ता पूरा का पूरा ही प्रकृति प्रेमियो , पक्षी प्रेमियो के लिये रोचक है । मैने इस 20 किलोमीटर के रास्ते में डेढ घंटे से...
बिजली महादेव का रास्ता पूरा का पूरा ही प्रकृति प्रेमियो , पक्षी प्रेमियो के लिये रोचक है । मैने इस 20 किलोमीटर के रास्ते में डेढ घंटे से भी ज्यादा लगाया पहुंचने में अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हो कि कितना सुंदर था ये रास्ता कि हर मोड पर आपको रूकने को मजबूर कर दे ।
सडक के आखिरी छोर पर एक दुकान बनी है यहां पर मुझे चाय मिल गयी । वैसे मै काफी सवेरे यहां पर पहुंच गया था इसलिये मुझसे पहले केवल एक गाडी यहां पर खडी थी । दुकान वाले ने यहां अपनी दुकान के अलावा अपने घर की छत को पार्किंग बना दिया है और उसमें रस्सी लगा दी है । गाडी के 50 रूपये और बाइक के 20 रूपये लेता है । मैने चाय पी और कुछ बिस्कुट खाये और चल पडा यहां से बिजली महादेव के रास्ते पर
वैसे आपको बता दूं कि बिजली महादेव सडक खत्म होने के करीब 2 किलोमीटर दूर है । यहां से इस आखिरी गांव में से गुजरकर पथरीले और पगडंडी के रास्ते चढाई की जाती है । इस गांव में भी पूरे रास्ते की तरह पक्षियो की बहुतायत थी और साथ ही सेब के बागो की भी । इस समय सेब के बागो में फूल आ रहे थे सेब के पेडो पर । इन्ही से फल बनेगा जो कि जुलाई अगस्त के आसपास पकेगा । इसलिये अब इन्ही पर काफी ध्यान है यहां के लोगो का
दो सुंदर पक्षी और मिले इस गांव में । एक पहले की तरह लम्बी पूंछ का पर जहां पहले वाला काले और सफेद का काम्बीनेशन था वहीं ये मेरे पसंदीदा रंग का था । इतने चटक रंग देखकर मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि ये नेचुरल है क्या
दूसरी वाली चिडिया हमारे यहां भी मिल जाती है और ये रास्ते में से हटने को भी तैयार नही थी ये उसके बिलकुल उलट थी जो शर्माकर सेब के पेडो में मुंह छिपाता घूम रहा था
सडक के आखिरी छोर पर एक दुकान बनी है यहां पर मुझे चाय मिल गयी । वैसे मै काफी सवेरे यहां पर पहुंच गया था इसलिये मुझसे पहले केवल एक गाडी यहां पर खडी थी । दुकान वाले ने यहां अपनी दुकान के अलावा अपने घर की छत को पार्किंग बना दिया है और उसमें रस्सी लगा दी है । गाडी के 50 रूपये और बाइक के 20 रूपये लेता है । मैने चाय पी और कुछ बिस्कुट खाये और चल पडा यहां से बिजली महादेव के रास्ते पर
वैसे आपको बता दूं कि बिजली महादेव सडक खत्म होने के करीब 2 किलोमीटर दूर है । यहां से इस आखिरी गांव में से गुजरकर पथरीले और पगडंडी के रास्ते चढाई की जाती है । इस गांव में भी पूरे रास्ते की तरह पक्षियो की बहुतायत थी और साथ ही सेब के बागो की भी । इस समय सेब के बागो में फूल आ रहे थे सेब के पेडो पर । इन्ही से फल बनेगा जो कि जुलाई अगस्त के आसपास पकेगा । इसलिये अब इन्ही पर काफी ध्यान है यहां के लोगो का
दो सुंदर पक्षी और मिले इस गांव में । एक पहले की तरह लम्बी पूंछ का पर जहां पहले वाला काले और सफेद का काम्बीनेशन था वहीं ये मेरे पसंदीदा रंग का था । इतने चटक रंग देखकर मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि ये नेचुरल है क्या
दूसरी वाली चिडिया हमारे यहां भी मिल जाती है और ये रास्ते में से हटने को भी तैयार नही थी ये उसके बिलकुल उलट थी जो शर्माकर सेब के पेडो में मुंह छिपाता घूम रहा था
वाह जी , बहुत शानदार । मजा आ गया आपके ब्लॉग से मिलकर , अनुसरक हुए जा रहा हूं ताकि अगली कोई भी पोस्ट नज़रों से छूटने न पाए , पुरानी तो पढूंगा ही आराम से । शुभकमनाएं ..घुमक्कडी जिंदाबाद ।
ReplyDeletehimchal yatra bahut acchi chal rahi hai.good going :)
ReplyDeleteआपकी पोस्ट को आज के बुलेटिन चवन्नी की विदाई के दो साल .... ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।
ReplyDeleteसुन्दर।। ऐसे ही आगे बढ़ते चलिये!!
ReplyDeleteचवन्नी की विदाई के दो साल।