लाल देवी मंदिर के देखने के बाद अब हमें वाघा बार्डर जाना था । वाघा बार्डर मै पहले भी एक बार अपनी गाडी खुद ड्राइव करके जा चुका हूं पर तब जो म...
लाल देवी मंदिर के देखने के बाद अब हमें वाघा बार्डर जाना था । वाघा बार्डर मै पहले भी एक बार अपनी गाडी खुद ड्राइव करके जा चुका हूं पर तब जो मैने फोटो खींचे थे वो भूलवश कैमरे से डिलीट हो गये थे । वाघा बार्डर जाने से पहले ये याद रखना चाहिये कि अगर आपको वहां का नजारा बढिया से देखना हो तो धूप की परवाह ना करके करीब तीन से चार बजे तक वहां पर पहुंच जाओ नही तो आपको खडे होने के लिये भी जगह शायद ही मिले । 1959 में वाघा बार्डर पर इस रस्म की शुरूआत हुई थी । सूर्यास्त के समय दोनो देश के सैनिक अपना अपना झंडा उतारते हैं ।
चूंकि हम सुबह से घूम रहे थे और वाघा बार्डर हमारी लिस्ट में सबसे बाद में था इसलिये हमने इस चीज पर गौर नही की । जब हम पहुंचे तो वहां पर तिल रखने की जगह नही बची थी । लेडीज के लिये एक छूट थी कि उन्हे अंदर जाने दिया जा रहा था और जगह ना होने पर भी उन्हे सडक के पास ही बिठा दिया गया था । इस हिसाब से लवी ,सोनाली भाभी और बच्चे तो अंदर चले गये । विशाल भी भीड में को पता नही कहां को गुम हो गया । मुझे बडी मुश्किल से उपर चढने को रास्ता तो मिल गया पर यहां के हालात ऐसे थे कि सांस लेना भी मुश्किल था । पसीने पसीने हो रहे लोग एक दूसरे के उपर गिरने को तैयार थे । गुस्सा आपस में तो आ रहा था पर यहां के इंतजाम पर नही
क्योंकि जो माहौल था उसको देखकर सब अभिभूत हो जाते हैं यहां पर आकर । सामने ही पाकिस्तान का गेट था हमारे गेट से बस दो कदम की दूरी पर ही । मन करता था कि काश कोई हाथ में हथियार हो और हम भी फौजी बनकर टूट पडें । पर यहां पर लडाई नारो की थी । पाकिस्तान की ओर से भी चुनिंदा लोग आने शुरू हो गये थे । धीरे धीरे जोश बढने लगा । उपर से देशभक्ति के गानो ने माहौल ऐसा बना दिया कि नाचने को मन करने लगा पर जगह नही थी । महिलाऐं और बच्चे पाकिस्तान जाने वाली चौडी और खुली सडक पर नाचने का पूरा आनंद ले रहे थे । भारत का झंडा लहराते हुए दौडने के लिये औरतो को ही मौका दिया जा रहा था आर्मी वालो की ओर से और उसके लिये भी लम्बी लाइन लगी थी । जब ज्यादा संख्या हो जाती तो आर्मी वाले एक झंडे को चार चार औरतो को दे देते ।
यहां आकर 80 साल की बुढिया में भी जोश भर जाये ऐसा समां होता है । ऐसी ही कई वृद्धा ये दिखाने पर तुली थी कि अगर देश के लिये मरने मारने का मौका मिले तो वो पीछे नही रहेंगी । कई बार तो वे पाकिस्तान वालो के गेट की ओर भी जाकर ढूंगे हिला देती थी उन्हे दिखाकर । फिर शुरू हुई बीटिंग रिट्रीट कही जाने वाली रस्म और भारत के गबरू , लम्बू , मुच्छड जवानो ने पाकिस्तान के फौजियो के आंखो तक अपने पैर को पहुंचाकर भारतीय दर्शको के दिलो को ठंडक पहुंचानी शुरू कर दी । इस बार एक बात नयी थी कि इस बार लम्बी , तगडी , खूबसूरत लेकिन खतरनाक महिला जवान भी इस परेड में शामिल देखी मैने ।
उफ क्या नजारा था ? रस्म पूरी होने के बाद भी लोग हटना नही चाहते थे । पर जाना तो सबको था । सीमा तो यहीं पर रह जानी थी । भारत के गेट के आगे अपना फोटो खिंचवा कर हम भी अपनी गाडी के लिये पार्किंग की ओर चल दिये ।
एक बात काम की ये है कि जब दर्शक वाघा बार्डर जाते हैं तो पानी की बोतले खरीदकर ले जाते हैं बीस बीस रूपये की पर अगर आप थोडा सब्र कर लो तो भारत के गेट के पास वहीं सीलबंद कम्पनी की बोतले आर्मी की ओर से दस दस रूपये में मिलती हैं । एक ध्यान रखने की बात और कि पार्किंग से सीमा तक जाने के लिये रिक्शा वाले खडे रहते हैं और दस रूपये व्यक्ति लेते हैं जो कि बिना वजह है सौ से दो सौ मीटर की दूरी मात्र है पर कुछ लोग ये सोचकर रिक्शा ले लेते हैं कि शायद ज्यादा दूरी है
Amritsar Yatra Series -
ये है मुठठी भर पाकिस्तानी |
बहुत ही अच्छा लगा लगा आपके साथ बाघा बार्डर पर घूमना
ReplyDeleteफोटो देखकर मजा आ गया
ReplyDeleteजय हिन्द
This place has a completely different aura all together ....i visited it during my childhood and still seeing the pics or talking about it i get goosebumps ...beautiful captures
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