अब जब सारे टिकट के पैसे इकठठा कर लिये गये जिसमे बोटिंग से लेकर खाने तक के पैसे थे तो हम चिलका की सैर पर चले । हमें जिस साइट पर लाया गया था ...
अब जब सारे टिकट के पैसे इकठठा कर लिये गये जिसमे बोटिंग से लेकर खाने तक के पैसे थे तो हम चिलका की सैर पर चले । हमें जिस साइट पर लाया गया था वो चिलका लेक की साइट न0229 थी । शायद रामसर था इस जगह का नाम । चिलका लेक में कई साइटे हैं । ये एशिया की सबसे बडी झील बतायी जाती है ।
एक एक करके हमें बोट में बिठाया गया । यहां के नाविको ने देशी इंजन से जुगाड करके बोट बना रखी हैं । तीन से ज्यादा घंटे के सफर में तीन चार पडाव थे । एक पडाव पर हम रूके तो ये उस झील में एक छोटा सा टापू था । हमारे नाव वाले यहां पर रूके हुए मछुआरो के लिये खाना भी लेकर आये थे । दो लडके हमारे पास आये और उन्होने हमें मोती खरीदने को कहा । मोती खरीदने से पहले उन्होने हमें सीप दिखायी और उसमें से मोती निकालकर दिखाये । पता नही हम सच देख रहे थे या झूठ पर इसे देखना रोमांचकारी था ।
सीप में से मोती निकलना बिलकुल ऐसा था जैसे मां एक बच्चे को जन्म देती है । बस यहां इतना अंतर था कि जबरदस्ती बच्चे को निकाला जा रहा था जैसे सीजेरीयन कराया जा रहा हो । उसके बाद तो लोगो ने कीमत पूछी तो उन्होने 150 रूपये का एक मोती बताया । लोग एक दो खरीदने की सोच रहे थे कि हमारे साथ जो एक परिवार था वे व्यापारी लोग थे । उन्होने एकदम से सौदा बनाय और तीस रूपये में एक मोती तय कर लिया । सब बडे खुश थे और सबने मोती खरीदे । हमने भी तीन खरीद लिये ।
अब उन लडको ने शैल आकृति जैसी चीज को तोडना शुरू किया हमारे सामने और उसमें से नग निकलने शुरू हुए । किसी में नीला निकलता तो नीलम और किसी में मूंगा निकला । उनकी भी खूब बिक्री और सौदेबाजी हुई । उसके बाद हमारी नाव एक बार फिर से चल पडी । दूसरी बार जिस द्धीप पर हम रूके उस पर भी मोती बेचने वाले थे पर ये क्या वे तो बेच ही 20 रूपये का एक नग रहे थे । यहां तो व्यापारी जी भी लुट गये थे । इन 20 रूपये वालो ने इकठठे पांच लेने वालो के लिये और भी डिस्काउंट कर दिया था जो कि पन्द्रह रूपये में एक पड रहा था। अब सबने कान पकडे कि अब खरीददारी नही करेंगें ।
यहां पर जिन जगहो या द्धीपो पर नाव रूकती थी वहां पर रैस्टोरेंट भी होते थे पर सी फूड वाले ज्यादा थी । यहां लाल झींगा बहुत मिलता है । हमने वहां पर खूब देखे भी । ये अक्सर आदमी की आहट पाते ही भाग जाते हैं । ये सी फूड वाले सामने ही पकडकर इनको बनाकर आपको खिला देते हैं ।
इसके बाद जो नाव का सफर शुरू हुआ तो करीब एक घंटे तक चलता रहा । इस बीच नाव में लम्बे समय तक बैठने के बारे में पता चला । कुछ कपल्स की नाव पास से गुजरी जो डल झील के शिकारे की तरह आराम से लेटकर जा रहे थे । हमारी नाव में तो इतनी जगह नही थी कि कोई लेट सके । हालांकि देखने में समय का ज्यादा पता तो नही चला पर करीब एक घंटा चलने के बाद हम लोग उस साइट पर पहुंचा जहां पर डाल्फिन दिखायी जाने वाली थी ।
यहां पर सब नाव वालो में एकजुटता देखने को मिली । जहां भी डाल्फिन होती वहीं पर रेस बढा दी जाती और फिर सब नावें उसी तरफ को भाग लेती । वैसे उन डाल्फिंस का फोटो लेने वाला तो कोई सौभाग्यशाली ही होगा पर बहुत से लोग मेहनत कर रहे थे । उसके बाद हमारा वापसी का सफर शुरू हुआ । यहां बीच बीच में कई टापू के अलावा समुद्र का मुहाना भी दिखायी देता है ।
समुद्र से मिलने के कारण ही इस झील का पानी खारा है ।वापसी का सफर भी काफी लम्बा था । दूर दूर तक जहां तक नजर दौडाओ वहीं तक पानी ही पानी नजर आता था । कुल मिलाकर सफर मजेदार रहा । यहां झील में प्रवासी पक्षी भी भारी मात्रा में कई देशो से आते हैं । मछली पालन भी यहां पर काफी होता है । जब हम वापस उसी तट पर पहुंचे तो उतरने के बाद हमारा आर्डर दिया गया खाना हमें मिला । खाने की क्वालिटी बहुत अच्छी नही थी पर क्या करें कि वहां पर यही एकमात्र रैस्टोरैंट था और जैसा था वैसा ही खाना मंजूर था ।
मेरी सलाह है कि आप जाओ तो वहां के खाने की क्वालिटी और महंगाई से बचने का अच्छा रास्ता है कि आप भारी नाश्ता करें पुरी में और दिन के लिये सूखा खाना या मेवे ले लें । चिप्स और पानी , नमकीन आदि से भी काम चला सकते हैं जैसा कि व्यापारी परिवार ने किया था जो हमारे साथ थे ।
इस यात्रा की पहली कडियां यहां पर हैं ।
इस यात्रा की पहली कडियां यहां पर हैं ।
चित्र नहीं है यानि कि डॉल्फ़िन नहीं दिखी, इसके बावजूद मजेदार यात्रा रही।
ReplyDeleteचित्र देखकर मन प्रसन्न हो जाता है।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक यात्रा विवरण ! हमने वहाँ खूब डॉल्फिन्स और पूरी सड़क घेर कर पसरा हुआ एलीगेटर भी देखा था ! तस्वीरें बहुत आकर्षक हैं ! आभार !
ReplyDeleteमोल-भाव का अच्छा अनुभव. सुंदर विवरण .
ReplyDeleteham bhi abhi char paanch din pahle hi puri ki yatra se vapas loute hai . chilka jheel ka safr bahut achchha raha lekin motor boat ka shor lagatar teen ghate jhelna bahut mushkil tha . seep me se jab moti nikalta hai vah uncultured hota hai usame itani chamak nahi hoti jaisi ki vaha seep se nikale moti ki thi isliye man me shaq hua kya vakai vah asli moti hai ?? vaise bhi yatra me thagaye bina yatra ka aanand adhoora hota hai ...sundar chitra ...odisaa ke ek anokhe mandir ki yatra ka vivran shreegh hi @kase kahun par ..
ReplyDeleteNice Clicks.....
ReplyDeleteयात्रा जानदार रही और चित्र भी शानदार हैं.लक्ष्मी बिनोदिनी रेस्टोरेंटका नाम बंगला में लिखा है परन्तु जगह तो ओडिशा में हैं ना
ReplyDeleteबहुत रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeletesundar ....
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