चेतावनी .....कृपया 18 साल से कम उम्र के लोग इस पोस्ट को ना खोलें । इस पोस्ट को खोलने से पहले जान लें कि इसमें व्यस्क सामग्री है जिसे खोलने...
चेतावनी .....कृपया 18 साल से कम उम्र के लोग इस पोस्ट को ना खोलें । इस पोस्ट को खोलने से पहले जान लें कि इसमें व्यस्क सामग्री है जिसे खोलने से पहले आपका सहमत होना जरूरी है
............कोणार्क का सूर्य मंदिर सिर्फ अपने स्थापत्य , वास्तुकला और शिल्प के लिये ही प्रसिद्ध नही है बल्कि मंदिर की बाहरी दीवारो पर बनी नर—नारी की कामुक प्रतिमायें भी सैलानियो के आकर्षण् का केन्द्र हैं । देशी विदेशी पर्यटक इनका शिल्प कौशल देखने के लिये आते हैं । खजुराहो जैसी कामुक प्रतिमाओ को मंदिर की दीवारो पर बनाने का मतलब वही है जो खजुराहो में है । या तो इसे जैसा कि बताते हैं कि आपदाओ से बचाव के लिये या फिर सेक्स के ज्ञान के लिये बनायी गयी हैं । वैसे तो लोग इन्हे खूब निहारते हैं पर साथ में गये कम उम्र बच्चो और कभी कभी परिवार वालो के साथ गये कपल्स को भी नजरे चुरानी पड सकती हैं ।
इन प्रतिमाओ में नर और नारी के मध्य सेक्स , ग्रुप सेक्स और पशुओ के साथ सेक्स की प्रतिमाऐं दिखाती हैं कि उस समय में भी हमारा समाज प्रगतिशील था । भारत ने विश्व को कामसूत्र दिया है वो इस मामले में भी सारे विश्व का गुरू है । आज जो ज्ञान हमारे रिषी मुनियो ने कामसूत्र के माध्यम से दिया था सारी दुनिया उसी का लोहा मानती है और उसके जैसा ग्रंथ दोबारा नही बना । शायद उस समय सेक्स को पाप नही माना जाता था पर हां वर्जनाए जरूर थी । मर्यादाऐं जरूर थी ।
एक कारण् और भी हो सकता है कि उस समय ये माना जाता हो कि आप मंदिर में प्रवेश करने से पहले इन मूर्तियो को देखें और ये विश्वास कर लें कि क्या आप पूर्णत सेक्स से तृप्त हैं ताकि मंदिर के अंदर जायें तो आप के अंदर ये भावना ना रहे ।
जो भी हो पर ये सत्य है कि समाज को कुछ संदेश देने के लिये ही यहां पर इनको उकेरा गया है । अब उससे जो संदेश लेना चाहे वो ले ले अच्छा या बुरा । एक नजर ये भी है कि अगर सिर्फ शिल्प की दृष्टि से देखा जाये तो इन्हे निहारने का अलग ही मजा आयेगा
प्रकृति के हर पक्ष को उभारा है भारतीयों ने, विधिवत और व्यव्यस्थित
ReplyDeleteGreat post. Thanks for sharing valuable information
ReplyDeletenice
ReplyDeleteप्राचीन कलाकृतिया मे एक एक तोर तरिके को स्पष्ट रूप से चित्रित किया गया है पर पहले काल मे यह सब इतना खुला समझ से बाहर है???
ReplyDelete’काम’ को जीवन के मुख्य चार पुरुषार्थों में से एक माना गया है, इसके महत्व को नजरअंदाज तो नहीं ही किया जा सकता। मंदिर की बाहरी दीवारों पर इनका निरुपण - अनेक मान्यतायें हैं, जिसे जो रुचे वो अपना ले।
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