Darjeeling tea gardens गंगटोक के लोकल साईट सीन देखने के बाद हम वापस अपने होटल में आये । यहां पर सामान पैक किया और किचन रैस्टोरैंट में गय...
Darjeeling tea gardens |
गंगटोक के लोकल साईट सीन देखने के बाद हम वापस अपने होटल में आये । यहां पर सामान पैक किया और किचन रैस्टोरैंट में गये । खाना खाया तब तक गाडी आ गयी । ये वाली गाडी एनजेपी की थी ।
यहां के ड्राइवर ने एनजेपी से आने वाली पार्टी को सामान चैक कराया पहले । जब उन्होने ओके कर दिया तब हमें बैठने दिया । उतरने वाले लोग दिल्ली के थे जो वहां पर उतरकर होटल के बारे में पूछने लगे । कई लोग जो वहां पर खडे थे उन्होने महंगे होटल बताये । इस बीच वो हमारी बोली को सुनकर हमसे पूछने लगे कि आप कहां रूके और कितने में । मैने सीधे स्वभाव बता दिया कि हम तो सामने वाले होटल में ही रूके और 800 रूपये कमरा लिया था आप वहीं देख लो हम अभी अभी कमरा खाली करके आये हैं । वे होटल की ओर चले गये तो जिन लोगो ने उन्हे कमरा बताया था वे तो मुझसे लडने के लिये आ गये । आप एजेंट हो ? मैने कहा नही , तो फिर आप पैसे क्यों बता रहे हो ?
उनके पेट पर लात लग गयी थी शायद खैर थोडी गर्मागर्मी सी हुई पर हम भी आठ लोग थे । इस बीच हमारे ड्राइवर ने गाडी चला दी । मामला खत्म हो गया । ड्राइवर ने बताया कि यहां पर दलाल गाडी की कमी होते ही रेट बढा देते हैं । हमें तो वही रेट मिलना है पर बढे रेट को दलाल पी जाते हैं । जिस दिन हम चले गाडियां कम थी पर हमारी गाडी तो फिक्स थी इसलिये हमें ढूंढना नही पडा । पर उस ड्राइवर ने हमें ये भी बताया कि अगर रास्ते में पुलिस पूछे तो आप पैसे मत बताना बस ये बताना कि हम पैकेज में हैं । वो क्यों ?
मेरे पूछने पर उसने बताया कि यहां पुलिस ये चैक करती रहती है कि कहीं टूरिस्टो को ज्यादा लूट तो नही रहे । गजब
नीचे उतरने पर रास्ते में भुटटे मिले जगह जगह । रास्ते के गांवो में मक्का बोयी हुई थी और उन्ही गांवो की औरते भुटटे सेंक रही थी । मजेदार और मीठे थे हर किसी को जो यहां पर आता है खाने चाहिये । ड्राइवर ने बताया कि यहां पर खा लो पर सिलीगुडी में मत खाना । क्यों? क्योंकि वहां पर मुर्दे की राख से बचे कोयलो में सेंकते हैं क्योंकि वो मंदे आ जाते हैं । एक बार को तो जी खराब हो गया पता नही सच कह रहा था या झूठ
तीस्ता यानि टीस्ता जो कि यहां की भाषा में बोलते हैं से आगे चलने पर चढाई शुरू हो गयी । 11 किमी मे हम 1000 मी0 की चढाई चढ चुके थे । आज ही हमें शाम तक दार्जिलिंग पहुंच जाना था । एक जगह तो रास्ता बिलकुल 360 डिग्री तक घूमता है । हर कोई नही चला पायेगा ऐसे मोड पर । ड्राइवर ने चैलेंज दिया कि प्लेन का बंदा चला ही नही पायेगा यहां पर । एक बार जो हैंडिल मुडा तो बस मुडा ही रहा बहुत देर तक ।
यहां जब ड्राइवर को पार्टी पसंद ना हो तो उसे छेछडा बोलता है यानि खराब । तो अगर जाओ तो समझ जाना इस शब्द का मतलब । शाम के 6 बजे हम दार्जिलिंग पहुंच गये । दो घंटे तक ढूंढा तब जाकर कहीं रात के आठ बजे बिग बाजार के पास एक होटल मिला । होटल का नाम था रिंडेन । इसकी तीसरी मंजिल पर भी कमरा 1100 रूपये का था । हाई सीजन होने की वजह से लेना पडा । सोचा एक रात की ही बात है दार्जिलिंग में तो कोई बात नही ले लिया । उसके बाद भूख मिटाने के लिये खाना खाने गये तो जैन भोजनालय मिला । खाना बहुत बढिया था पर महंगा भी था । दाल 50 रूपये की थी तो रोटी 8 रूपये की एक थी । पति पत्नि साथ मे हों तो एक फायदा तो है कि दाल एक ले ली । वैसे भी दाल काफी बडे बर्तन में थी ।
आज 12 जून का खर्च पूरे दिन का ये था
20— काफी
20—चाय होटल
30 — ड्रैस फोटो खिंचाने के लिये
20 — पार्किंग
35— कोल्ड ड्रिंक
100 — खाना दिन में
50— दही , चिप्स
130— शाम का खाना
1100— कमरा दार्जिलिंग
रात को कमरे में जाते ही स्थानीय लडकियां शाल और गर्म टोपी आदि सामान बेचने कमरे में आ गयी । काफी मोल भाव के बाद गर्म टोपियां जिन पर दार्जिलिंग लिखा था 20 रूपये के हिसाब से दर्जन ले ली गयी । वापस लौटकर मिलने वालो को बांट दी ।
दिन 13 जून
आज का कार्यक्रम था दार्जिलिंग के लोकल जगहो को घूमना और इसके लिये सबसे पहले लक्ष्य था कंचनजंगा को देखने का जिसके लिये सुबह साढे तीन बजे उठकर तैयार होना था । गाडी हमारे पास चार बजे सुबह आ गयी थी और हम भी उठकर तैयार थे ।
गाडी का ड्राइवर गोरखा था और उसने हमें अच्छे से काफी बाते बतायी यहां की राजनीति और स्थानीय मुददो के बारे में । सही पूछो तो वो पूरे रास्ते हमें यही समझाता दिखा कि उन्हे कितनी परेशानी है अलग राज्य गोरखालैंड के बने बिना ।
सुबह हम उठकर तैयार भी हुए और समय पर पहुंच भी गये टाइगर हिल पर लेकिन मौसम जो कि कई दिनो से खराब था उसकी वजह से कुछ भी नही दिख सका तो वापस आ गये । होटल में आकर थोडा सोये तो दोबारा सुबह नौ बजे फिर से गाडी आ गयी लोकल मे घूमने के लिये । यहां से हम गये घूम रेलवे स्टेशन पर और बताशिया लूप पर । आज मौसम कुछ ज्यादा ही खराब था और कोहरा छाया था इसलिये यहां पर भी कुछ खास नही देखा जा सका ।फिर यहीं पर वापसी में दार्जिलिंग मोनेस्ट्री के नाम से प्रसिद्ध मोनेस्ट्री भी देखी । ये भी तीन मंजिला है और काफी सुंदर है । यहां पर बहुत सारे लामा प्रार्थना में लगे थे । बिना शोर किये कोई भी अंदर जाकर बैठ सकता था । हम सब भी थोडी देर के लिये वहां पर जाकर बैठै । दार्जिलिंग में आकर हम टाय ट्रैन के स्टेशन पर उतर गये । यहां पर हमने प्रसिद्ध और युनेस्को की धरोहर के रूप में प्रसिद्ध टाय ट्रेन देखी । वैसे अब ये साल में केवल पर्यटन महीनो मे ही चलती है और अब चल भी रही थी पर सारी की सारी पहले से ही बुक थी । खैर वहां पर एक गाडी खडी थी जिसमें हमने घूम फिरकर इसे देखा ।
यहीं पर मेरे सपनो की रानी कब आयेगी तू गाने की शूटिंग हुई थी । इसके बाद हम गये माउंटेनिंग इंस्टीटयूट । इसको बनवाने की जवाहरलाल नेहरू को बहुत जल्दी थी । इतनी जल्दी कि जब सही जगह नही मिली तो यहां पर सिस्टर निवेदिता रहा करती थी जिनका घर राय विला के नाम से प्रसिद्ध था उन्ही के बंगले का इंस्टीटयूट का रूप दे दिया गया । स्व0 मेजर नंदू जायल यहां के प्रथम प्रिसीपल थे ।
इंस्टीटयूट के दो फलोर हैं । पहले फलोर पर पर्वतारोहण में काम आने वाले उपकरणो जैसे रस्सी , कांटे , ड्रैस , बर्फ काटने वाली कुल्हाडी , स्नो जूते , स्लीपिंग बैग् , फेसमास्क , हैडलाइट आदि उपकरणो को दिखाया है । नक्शा बनाकर हिमालय में कराकोरम रेंज , जम्मू कश्मीर के पीछे व गढवाल के पीछे तिब्ब्ती प्लेट , मानसरोवर , सिक्किम तक फैला हुआ दिखाया गया है ।
प्रथम तल पर मशहूर पर्वतारोहियो जैसे जार्ज एवरेस्ट , तेनजिंग की माउंट एवरेस्ट फतह के सामानो और उनके ओरिजनल फोटोग्राफो की प्रर्दशनी लगायी गयी है ।
पास ही में पार्क है जिसमें खास तौर पर रेड पांडा को देखने के लिये लोग आते हैं ।
उसके अलावा रायल बंगाल टाइगर , चीता , काला भालू , बडे बडे तोते आदि जानवर हैं । चिडियाघर ही है एक तरह का बस रेड पांडा यहां विशेष प्राणी है । इन दोनो जगहो को घूमने में चार घंटे से भी ज्यादा लग गये ।
अगला नम्बर था जापानी पीस पार्क और बौद्ध स्तूप पीस पैगोडा का । जापानी मंदिर में तो हमारी समझ में कुछ आया नही पर हां बौद्ध स्तूप को देखने के बाद दो बार पहले देख चुके धौली के बौद्ध स्तूप की याद ताजा हो गयी । एक खास बात ये थी कि ये धौली उडीसा वाले स्तूप से ज्यादा बडा था और यहां पर बुद्ध के जीवन को स्तूप की दीवारो पर उकेरा गया था बडी ही सुंदर प्रतिमाओ से
इसके बाद हमें ड्राइवर ले गया चाय बागान पर । यहां पर चाय की फैक्ट्री तो दूर से दिखायी पर दुकाने काफी थी । यहां पर सबने दार्जिलिंग की ड्रैस में फोटो खिंचवाये और हमारे साथी मा0 जी और हिसार वालो ने चाय भी खरीदी ।
बाकी बाते कल को जब हम मिरिक लेक और पशुपति नगर नेपाल की यात्रा करेगें
NORTH EAST TOUR-
sales girls at hotel room |
Darjeeling market |
Darjeeling zoo |
At mountaing institute Darjeeling |
Darjeeling tea gardens |
Ghoom railway station Darjeeling |
Ghoom railway station Darjeeling |
Darjeeling monestry |
Darjeeling monestry |
Darjeeling monestry |
Darjeeling monestry |
Darjeeling monestry |
Darjeeling monestry |
japani temple darjeeling |
japani temple darjeeling |
Bodhi stoop , peace pagoda darjeeling |
Bodhi stoop , peace pagoda darjeeling |
Bodhi stoop , peace pagoda darjeeling |
Bodhi stoop , peace pagoda darjeeling |
Toy train , Darjeeling |
Darjeeling zoo |
At mountaing institute Darjeeling |
A Beautiful Girl in Darjeeling local Dress |
Darjeeling tea gardens |
Darjeeling tea gardens |
Darjeeling tea gardens |
जीना इसीका नाम है, घूमते रहिये और हमें घर बैठे घुमाते रहिये :)
ReplyDeleteसुन्दर यात्रा और मनमोहक वर्णन || :smile:
ReplyDeleteहम भी वहीं ठहरे थे, रोचक वृत्तान्त।
ReplyDeleteNot visited Darjeeling. Planning for long.
ReplyDeleteDid you travel by the Toy-Train?
No , We did`t travel by toy train but we saw it . It booked by hardly ,
DeleteThanks for explaining tourist attractions of Darjeeling and your tips will be helpful.
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