Baba Harbhajan new temple छांगू लेक से आगे बाबा हरभजन का मंदिर आता है । ये मंदिर नया है और पुराना मंदिर या बंकर वो जगह है जहां पर बाबा ह...
Baba Harbhajan new temple |
छांगू लेक से आगे बाबा हरभजन का मंदिर आता है । ये मंदिर नया है और पुराना मंदिर या बंकर वो जगह है जहां पर बाबा हरभजन वास्तव में रहा करते थे । दोनो जगह सेना द्धारा मेंटेन की जाती हैं । पहले हमें सिर्फ बाबा हरभजन का मंदिर पता था । नया या पुराना मंदिर पता नही था इसलिये जब ड्राइवर ने बताया तो फिर से ड्राइवर से सौदेबाजी हुई और एक हजार रूपये एकस्ट्रा लगे पुराने बाबा मंदिर तक जाने के ।
हमारे ड्राइवर ने बताया कि ये सिल्क रूट है पुराना । यहां इस रास्ते से याक से जाते थे तिब्बत होकर । इसे याम हास्बिन ट्रैक भी कहा जाता है । ये एक ब्रिटिश सेना का लेफिटनेंट था जिसने एक कम्पनी को लेकर 520 किलोमीटर का ट्रैक किया । सिलीगुडी से ल्हासा तक उसने इसी मार्ग से सफर किया था । उसी के नाम पर इसे याम हास्बिन ट्रैक भी कहा जाता है ।
बाबा हरभजन का आरिजनल मंदिर दिखाने के लिये भी एक हजार रूपये हमने ऐसे ही नही दे दिये थे । इस एक हजार रूपये में हम ऐलीफेंटा लेक और इंडिया का लास्ट विलेज भी देखने वाले थे ।
बाबा हरभजन का जन्म 30 अगस्त 1946 को जिला गुजरावाला जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है , में हुआ था । यहां के सदराना गांव में जन्मे हरभजन सिंह 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना में भर्ती हो गये । सिपाही के रूप में भर्ती हरभजन सिंह पंजाब रेजीमेंट में रहकर देश की सेवा करने लगे ।
सन 1968 में 23 पंजाब रेजीमेंट में तैनात बाबा हरभजन का देहांत 4 अक्टूबर 1968 को उस समय हुआ जब वे घोडो के एक काफिले को लेकर जा रहे थे । उस समय वे फिसलकर एक नाले में गिर गये । पानी की तेज धारा में बहकर उनका शरीर 2 किलोमीटर दूर चला गया । इस घटना को किसी ने देखा नही था तो किसी को पता भी नही था ।
घटना के कई दिन बाद बाबा जी अपने यूनिट के कुछ सदस्यो के सपने में आये और उन्होने बताया कि मेरा शरीर कहां पर है । साथ ही उन्होने अपने लिये एक समाधि बनाने की गुजारिश की । साथियो ने ढू्ंढा तो बाबाजी का शरीर उसी जगह मिला जहां पर उन्होने बताया था । यूनिट ने उनकी बात का सम्मान करते हुए उनकी समाधि इस जगह से 9 किलोमीटर दूर बनवा दी जहां पर वर्तमान में नया हरभजन मंदिर है ।
ऐसी मान्यता है कि बाबाजी के मंदिर में पानी की बोतल में पानी भरकर रख देने से तीन दिन बाद उस पानी को घर पर ले जाकर पीते हैं और इससे घर में बीमारियो से ग्रसित व्यक्ति ठीक हो जाते हैं । लोकल लोगो में बाबाजी की बहुत मान्यता है और मंदिर में नाम लिखी बोतलो का भंडार लगा है । इस पवित्र जल को 21 दिन तक पिया जाता है इस दौरान घर में शराब या मांसाहार का सेवन नही किया जाता है ।
बाबाजी के लिये आज भी यूनिट में पदवी है , रैंक है , समय पर बाबाजी रिटायर हो गये तो उनकी पेंशन जारी है । बाबाजी को मरने के बाद भी वेतन मिलता रहा और हर साल वे एक महीने की छुटटी लेकर घर जाते थे । उनकी सीट बुक रहती थी साथ में सहायक की भी । उस एक महीने की छुटटी में यहां पर इस पूरे इलाके में विशेष अलर्ट जारी कर दिया जाता है क्योंकि बाबाजी इस टाइम डयूटी पर नही रहते । जब वे रहते हैं तो चीन वाले भी हिम्मत नही कर पाते
बाबाजी की बाकायदा पदोन्नती भी हुई और बाबाजी यहां पर डयूटी करने वाले सैनिको को अक्सर दिखायी देते हैं । वे रात में झपकी लेने वालो को चांटा भी रसीद कर देते हैं और चीन के षडयंत्रो को सैनिको के सपनो में आकर भी बता देते हैं । यहां तक की चीन के सैनिको में भी उनका खौफ है । वे बाबा हरभजन को इतना मानते हैं कि बार्डर मीटिंग में एक कुर्सी उनके लिये खाली रखते हैं ।
बाबा का बंकर लाल और पीले रंग के वर्गाकार रंगो से सजा था । सीढीया लाल रंग से और पिलर पीले रंग से । बराबर में हर सीढी पर एक घंटा बंधा था । हर पिलर पर एक ओकांर और ओम का झंडा लगा था । दोनो जगह पर पर्यटको के लिये शौचालय की व्यवस्था थी । मंदिर में सिर झुकाने वालो को आर्मी के जवान प्रसाद दे रहे थे । यहां पर पुजारी भी आर्मी के ही जवान थे जो कि तिलक भी लगा रहे थे ।
एक जगह बनी थी जिसमें सिक्का गिरा रहे थे लोग । अगर वो सिक्का मिल जाये तो उसे लकी मान लिया जाता था । फिर उसे अपने पर्स या तिजोरी में ऐसी जगह रखना बताते जहां पर उसे आप खर्चो नही । बाबा के बंकर में कापियां रखी थी । अगर आपकी कोई कामना है तो उसे इस कापी में लिख दो । ऐसा बताते हैं कि जो यहां पर मुराद मांगी जाती है वो पूरी हो जाती है ।
बाबा के बंकर में उनका कमरा था जिसमें उनके जूते , खडाउ रखी थी । एक थाली में रोटी , सब्जी , अचार आदि सब लगे थे । बाबा चूंकि पंजाबी थे इसलिये कच्छ , केश , कंघा , कृपाण आदि सब सामान भी रखे थे ।
बाबाजी का नया मंदिर 13000 फुट की उंचाई पर था जबकि बाबाजी का ओरिजनल मंदिर 14000 फुट से भी अधिक उंचाई पर था । मंदिर से पहले के रास्ते पर गाडियो की कम भीड भाड थी और रास्ता भी अच्छा था ।
NORTH EAST TOUR-
Baba Harbhajan new temple |
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Baba Harbhajan old temple |
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हमने भी पहले सुना था, आज बहुत विस्तार से पढ़ने को मिला
ReplyDeleteसीमा रक्षक बाबा हरभजन सिंह को नमन।
ReplyDeleteनमन .... आस्था के भाव भी कितने रूपों में दिखते हैं
ReplyDeleteबाबा जी के बारे पहले सुना था आज आपकी वजह से दर्शन भी हो गए.
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति को आज की विशेष बुलेटिन - भारत कोकिला से हिन्दी ब्लॉग कोकिला तक में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteगुरुबाणी में एक जगह कहा भी गया है ’जहँ आसा, तहाँ वासा’ इसका अर्थ ये निकाला जाता है कि मृत्यु के समय जिस तरफ़ जीव की वृत्ति रहती है, पुनर्जन्म उसी के अनुसार होता है। नमन है ऐसी महान आत्मा को, निश्चय ही शरीर छोड़ते समय भी बाबा हरभजन सिंह का ध्यान अपने कर्तव्य की ओर रहा होगा। ’अहा जिन्दगी’ में भी एक बार इनपर विस्तृत लेख आया था, अब तो शायद सेना की सेवा से उन्हें निवृत्त किया जा चुका है।
ReplyDeleteबाबा हरभजन सिंह को नमन
ReplyDeleteBaba harbhajan singh ke bare mei padhkar bahut achchha laga --
ReplyDeletepost bahut hi badhiya lagi....
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