kamakhya temple , Assam ,( 51 Shaktipeeth ) योनि की पूजा , अदभुत कामाख्या मंदिर , गुवाहटी , आसाम देवी भागवत पुराण में 108 , शिवचरित्र मे...
देवी भागवत पुराण में 108 , शिवचरित्र में 51 , दुर्गा सप्तशती में 52 बतायी गयी है शक्तिपीठो Shakteepeeth की संख्या । उनमें से एक शक्तिपीठ मां दुर्गा का स्थान आसाम के गुवाहटी Guwahti city शहर में है । ये शक्तिपीठ इन सारे शक्तिपीठो में सर्वोच्च स्थान पर है ।
इस मंदिर के गुम्बद tomb का डिजार्इ्न मधुमक्खी के छत्ते की तरह दिखता है । यहां पर इस मंदिर में माता का शक्ति रूप कामाख्या है और उमानन्द को यहां के भैरव के रूप में जाना जाता है ।
मंदिर के गर्भगृह में महामुद्रा नामक जगह पर प्राकृतिक जलधारा बहती है जो कि रेशम के कपडे और लाल फूलो में ढका रहता है । इस शक्तिपीठ को कुमारी पूजा के रूप में भी जाना जाता है ।
माता दुर्गा के शक्तिपीठो को के बारे में प्रचलित कथा को सभी जानते हैं । पार्वती ने अपने पिता राजा दक्ष के द्धारा अपने पति शिव का अपमान करने पर हवन कुंड में कूदकर अपनी जान दे दी थी और सती हो गयी थी । इस पर भगवान शिव तांडव करने लगे और सभी देवताओ की राय से भगवान विष्णु ने तांडव कर रहे शिव के कंधे पर सती के शरीर के चक्र से टुकडे टुकडे कर दिये । वे टुकडे जहां जहां गिरे वहां पर इन शक्तिपीठो की स्थापना हुई ।
कामाख्या मंदिर की जगह पर सती की योनि गिरी थी और इस मंदिर में सती की योनि की ही पूजा होती है । इसी प्रकार वर्ष में एक बार यहां पर अम्बुवाची पर्व मनाया जाता है । इस पर्व में जो मैने पहले बताया कि माता के मंदिर में लगातार जल प्रवाहित होता है उस जगह पर जल की जगह रक्त प्रवाहित होता है 3 दिनो तक । इस अदभुत और कलयुग के चमत्कारिक रूप को देखने के लिये दस लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु यहां पर जुटते हैं और इस दौरान यहां पर तांत्रिक क्रियाऐ भी होती है और देश विदेश से तांत्रिको और अघोरियो का जमावडा भी लगता है ।
ऐसा माना जाता है कि माता इस दौरान रजस्वला होती हैं और ये रक्त रजस्वला होने का ही रूप है । ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान मंदिर के गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं । कपाट बंद होने से पहले माता के महामुद्रा स्थान पर पुजारी लोग पूजा आदि करके सफेद वस्त्र चढाते हैं । तीन दिन बाद जब गर्भगृह खोला जाता है तो ये वस्त्र रक्त से लाल हो जाते हैं । पुजारी इन वस्त्रो को भक्तो में बांट देता है ।
हमें भी यहां पर बहुत लम्बी लाइन में लगना पडा । यहां पर टिकट भी लगता है जिसके काउंटर का फोटो मैने आपको दे दिया है । हमारे जाने के समय भी इस पर्व की तैयारी चल रही थी । शुक्र रहा कि हम इस भीड से बच गये । मै ऐसे पर्व का साक्षी तो बनना चाहता हूं पर इतनी भीड से बचना भी चाहता हूं
इस मंदिर के बारे में एक कथा और भी प्रचलित है कि भगवती कामाख्या से एक असुर जिसका नाम नरकासुर था ने विवाह करने की इच्छा प्रकट की तो माता ने उस राक्षस से कहा कि वो यदि इस मंदिर के साथ एक विश्राम गृह और नील पर्वत के चारो ओर पत्थरो का रास्ता बना दे और वो भी एक ही रात में तो वो उससे शादी कर लेंगी ।
असुर लग गया और उसने सारे पथो का निर्माण कार्य पूरा भी कर दिया पर रात पूरी होने से पहले ही माता के भेजे एक मायावी मुर्गे ने असुर नरकासुर को रात पूरी हो जाने की सूचना दी जिससे उसने काम रोक दिया । असुर ने काम रोक दिया और इस तरह वो माता से शादी नही कर सका लेकिन बाद में पता चलने पर असुर उस मुर्गे के पीछे दौडा और उसका वध कर दिया । इसके बाद माता ने उस असुर नरकासुर का भी वध कर दिया ।
समुद्र तल से 800 मीटर की उंचाई पर बसा और गुवाहटी रेलवे स्टेशन से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित ये मंदिर यहां आने वाले श्रद्धालुओ , पर्यटको और विदेशी आगंतुको तक का प्रमुख केन्द्र होता है ।
इस मंदिर को एक कुप्रथा के रूप में भी जाना जाता है । माता को प्रसन्न करने के लिये भैंसे और अन्य जानवरो के साथ साथ मानव बलि तक की कुप्रथा भी थी जो कि आजकल बंद हो चुकी है पर बकरी और कबूतरो के रूप में उसका अंश अभी भी जारी है । हां कुछ लोग हमने ऐसे भी देखे जो बलि् देना अथवा जानवर हत्या को पाप मानते हैं तो उन्होने इस प्रथा का एक सुखद रूप भी निकाल लिया है और उन्होने इस जगह पर कबूतरो या उन जानवरो जिनकी बलि वो अपनी मन्नत पूरी होने पर देना चाहते हैं उनकी विधिवत पूजा करके उन्हे मंदिर परिसर में छोड देते हैं । काश ये तरीका पहले सोचा होता तो कितने जानवरो की जान बच गयी होती ।
इस मंदिर को एक कुप्रथा के रूप में भी जाना जाता है । माता को प्रसन्न करने के लिये भैंसे और अन्य जानवरो के साथ साथ मानव बलि तक की कुप्रथा भी थी जो कि आजकल बंद हो चुकी है पर बकरी और कबूतरो के रूप में उसका अंश अभी भी जारी है । हां कुछ लोग हमने ऐसे भी देखे जो बलि् देना अथवा जानवर हत्या को पाप मानते हैं तो उन्होने इस प्रथा का एक सुखद रूप भी निकाल लिया है और उन्होने इस जगह पर कबूतरो या उन जानवरो जिनकी बलि वो अपनी मन्नत पूरी होने पर देना चाहते हैं उनकी विधिवत पूजा करके उन्हे मंदिर परिसर में छोड देते हैं । काश ये तरीका पहले सोचा होता तो कितने जानवरो की जान बच गयी होती ।
गुवाहटी में सबसे पहला स्थल यही था जो हमने घूमा इसके बाद हम तिरूपति बालाजी , वशिष्ठ आश्रम और उमानन्द मंदिर के अलावा म्यूजियम और साइंस सिटी भी गये जिसका विवरण कल की पोस्ट में
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बलि का नया रूप , कबूतरो के रूप में |
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प्रसाद एवं सामान की दुकान |
Ambuvachi मेले के लिये तैयार होता पंडाल |
Great pics!
Remembered my trip 

DeleteI had also visited there. But, all my pics got lost when my computer crashed
badhia jankaari, shandar photo
Deleteयादें पुनर्जीवित कर दीं।
DeleteI want to go there, thanks
.
DeleteHow do you document journeys. Do you write in a note in book or you can remember so many things? Just asking suggestionsm :-)
Deleteइतनी जानकारी पूर्ण और सुन्दर चित्रों से युक्त विवरण देने के लिए आभार !
DeleteDear Manu, Another great travel blog...I nominated you and your travel blog for Sunshine Blog award. Do check my post to know more about it...Keep blogging
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