भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क को देखने के बाद मै बाहर निकलकर मुख्य सडक पर आ गया । केवलादेव के गेट के सामने एक चौराहा है । यहां पर मैने एक ...
भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क को देखने के बाद मै बाहर निकलकर मुख्य सडक पर आ गया । केवलादेव के गेट के सामने एक चौराहा है । यहां पर मैने एक आटो वाले से बात की लोहागढ किले को दिखाने की । उसने सौ रूपये मांगे । मैने पचास रूपये कहे और फिर साठ रूपये में सौदा हो गया । मौसम खराब होने ही लगा था और मेरे शहर में पहुंचने से पहले ही बारिश शुरू हो गयी । मुझे किले के अंदर पहुंचाकर उसने संग्रहालय कम राजा के महल तक छोड दिया । बाद में वो पूछने लगा कि आप वापस भी जाओगे क्या ? मैने हां कहा तो उसने कहा कि आप आराम से अंदर घूम आओ तब तक मै इंतजार कर लूंगा । मै बारिश में ही महल में गया और दस रूपये का टिकट लेकर बारिश से बचता बचाता उपर संग्रहालय में गया ।
अब यहां पर राजकीय संग्रहालय है जिसमें भरतपुर तथा आसपास में मिले तथा उत्खनन में प्राप्त किये गये सामानो का संग्रह है ।
इसके अलावा यहां पर और भी कई मंदिर हैं जिनमें गंगा महारानी का मंदिर है । गंगा मंदिर इस शहर का बहुत सुंदर मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके बनने में 90 साल का समय लगा था । लक्ष्मण मंदिर तथा बांके बिहारी जी का मंदिर है । इस शहर में एक बडी जामा मस्जिद भी है जिसके बारे में कहा जाता है कि उस समय पर महाराजा सूरजमल अपने यहां पर किसी को भी नौकरी पर रखने से पहले उसके शर्त रखते थे कि उसकी तनख्वाह से एक पैसा हर महीने काट लिया जायेगा धर्म के नाम पर । मुस्लिम कर्मचारियो की तनख्वाह से काटे गये पैसो से मस्जिद बनायी गयी और हिंदुओ की तनख्वाह से ये मंदिर बनाये गये ।
Agra Bharatpur yatra series -
अन्य संग्रहालयो की तरह ये भी एक संग्रहालय था पर बाकी राजा के महल में ज्यादातर जगह पर काम चल रहा था । मै बाहर निकलकर आटो में बैठ गया उसके बाद आटो वाले ने मुझे महल से सौ मीटर की दूरी पर ही मौजूद एक पार्क केा दिखाया पर बारिश में वहां पर जाने का सवाल ही नही उठता था । हां मैने आटो में बैठे बैठै ही चौराहे पर रखी तोप और गंगा मंदिर के साथ साथ महाराज सूरजमल की मूर्ति के फोटोे लिये । किले से बाहर निकलकर आटो वाले ने उस बारिश में ही ऐसी जगह पर आटो दो तीन बार रोका जहां से मै किेले के गेट का और उसके चारो ओर खुदी हुई खाई का फोटो ले सकता था । आटो वाले को इस बारिश में मेरे अलावा कोई और सवारी फिर भी नही मिलनी थी सो वो भी जल्दी में नही था । मैने एटीएम से पैसे निकालने चाहे तो उसने रास्ते में बाजार मेें स्थित एटीएम से पैसे भी निकलवा दिये । बीच बीच में वो किले के इतिहास आदि के बारे में बताता रहा ।
इतनी तेज बारिश हो रही थी कि मुझे अब एक ही रास्ता दिख रहा था कि मै सीधा दिल्ली के लिये बस पकड लूं नही तो मुझे यहां पर किसी होटल में पडे रहकर टीवी देखना पडेगा इसलिये मैने आटो वाले से दिल्ली की बस के बारे में पूछा तो उसने मुझे लोहागढ डिपो पर उतार दिया । यहां पर मैने सबसे पहले बस स्टैंड के सामने मौजदू एक ढाबे पर पेट पूजा की और फिर दिल्ली वाली बस को ढूंढने स्टैंड के अंदर आया । जब तक मैने खाना खाया आश्चर्यजनक रूप से बारिश बंद होकर फिर से मौसम सही हो गया था इसलिये मेरा मन केजरीवाल की तरह पलटी मार गया । मैने अभी बचे हुए दिन का सदुपयोग करने की सोची और दिल्ली की गाडी की बजाय फिर से आगरा की गाडी पकड ली ताकि मै फतेहपुर सीकरी जा सकूं और फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाजा देख सकूं ।
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Lovely post, just followed your blog :)
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. खेद है बारिश ने आप का मजा किरकिरा कर दिया.
ReplyDeleteआपका वर्णन बहुत सजीव है। अभी पिछले महीने मैं भी लोहागढ़ पैलेस विजिट करने गया था। यह किला बहुत अच्छा है और महत्त्वपूर्ण भी है। इस बारे में मैंने भी कुछ लिखा है। आप पढ़कर अपनी राय दीजिए।(historypandit.com)
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