महल परिसर के बाहर रखी तोप जाटो के गौरव माने जाने वाले महाराजा सूरजमल ने ही 1743 में भरतपुर की नींव रखी थी । सबसे पहले जयपुर के महारा...
महल परिसर के बाहर रखी तोप |
जाटो के गौरव माने जाने वाले महाराजा सूरजमल ने ही 1743 में भरतपुर की नींव रखी थी । सबसे पहले जयपुर के महाराजा जयसिंह की मृत्यु होने पर उनके दोनो लडको में जो झगडा हुआ राजगददी को लेकर उसमें सूरजमल कूद पडे । जयपुर महाराज के दोनो बेटो ईश्वरी सिंह और माधो सिंह में से राजा सूरजमल ने ईश्वरी का पक्ष लिया जबकि उदयपुर के राजा , मराठे , सिसौदिया और राठौड समेत और अन्य कई राजा माधो सिंंह के पक्ष में आ गये और दोनो भाईयो के बीच में युद्ध हुआ । इस युद्ध में सूरजमल ईश्वरी सिंह के पक्ष में अकेले खडे हुए और अपने दस हजार सिपाहियो के साथ उन्होने ईश्वरी सिंह को जितवा दिया । इसके बाद महाराजा सूरजमल के नाम का डंका पूरे भारत में बजने लगा ।
सन 1753 में महाराजा सूरजमल ने जाटो के साथ साथ अन्य जातियो के लोगो की सेना को साथ लेकर दिल्ली पर ही आक्रमण कर दिया और कई महीने तक मुगलो के साथ लडाई की । उन्होने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और भयंकर लूटपाट की । इस पैसे को उन्होने जनकल्याण के कार्यो में खर्च किया ।
इसी बीच मराठाओ ने भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिये दिल्ली तक हमले करने शुरू कर दिये थे तो सूरजमल को मराठाओ के साथ भी लडाई लडनी पड रही थी । आपस में लड लडकर मराठे और अन्य कमजोर हो गये ऐसे समय में अहमदशाह अब्दाली भारत पर आक्रमण करने आया और आगरा तक का सारा साम्राज्य कुचलकर और भयंकर लूट करके चला गया । उसके बाद भी उसने कई आक्रमण किये और ऐसा ही हुआ । महाराजा सूरजमल अपने किले में सुरक्षित रहे और अब्दाली ने कई बार हमले किये पर वो सफल नही हो पाया । इन हमलो से सबक लेकर मराठो और सूरजमल में संधि हो गयी और अगली बार पानीपत की लडाई में मिलकर लडने की ठानी ।
देशद्रोही नजीब खां नाम के सरदार ने अहमदशाह अब्दाली को फिर से आक्रमण के लिये आमंत्रित किया । इस बीच मराठा पेशवा सदाशिव राव भाउ ने मथुरा की नबी मस्जिद को देखकर उसे तोडने के लिये कहा तो सूरजमल ने मना कर दिया । लाल किले की दीवाने खास छत को तोडकर उससे चांदी निकालने को लेकर भी भाउ की सूरजमल से बहस हुई । सूरजमल इसके पक्ष में नही थे । मराठा भाउ को अपनी ताकत पर ज्यादा घमंड था । उसके पास लाखो सैनिक थे और इसीलिये उसने पानीपत के युद्ध मे सूरजमल को साझीदार नही बनाया । अकेले लडने पर उसके बहुत सैनिक मारे गये और जो बचे वो तीस चालीस हजार सैनिक भूखे प्यासे मरने लगे तो सूरजमल ने जनता से राशि एकत्रित करके उनको खाना कपडे दिया और चिकित्सा करायी तब उनके घर को विदा किया ।
एकता ना होने की वजह से पानीपत की लडाई में मराठा हार गये । इस युद्ध में अफगानिस्तान से आये अब्दाली की भी भारी जनहानि हुई थी वो वापस चला गया और उसका साथ देने वाले रूहेले मुसलमान भी थक चुके थे जबकि सूरजमल की शक्ति ज्यों की त्यों थी तो उसने आगरा और मेवात को आक्रमण करके जीत लिया । इसके बाद सूरजमल ने दिल्ली पर आक्रमण किया और रूहेला सरदार ने किले को चारो ओर से बंद कर लिया । रूहेला सरदार ने अहमदशाह अब्दाली को बुलावा भेजा तो सूरजमल ने उस पर आक्रमण कर दिया । इसी बीच अति आत्मविश्वास में आकर राजा सूरजमल केवल 30 घुडसवारो के साथ शत्रु की सेना के बीच घुस गया जहां पर वो बुरी तरीके से घिर गया और मारा गया । 55 वर्ष की उम्र तक राजा सूरजमल ने जाट राजा के रूप में बहुत ख्याति प्राप्त की थी । उसी ने भरतपुर राज्य की स्थापना की थी ।
महाराजा सूरजमल ने एक ऐसा किला बनवाया था जो कि अभेघ् था । इस किले की चर्चा इतिहास में इसीलिये है । उन्होने इस किले की दीवारे बहुत मोटी मोटे पत्थरो की बनवायी और उंची उंची भी जिससे कि तोप के गोलो का असर कम हो पर ये असर बिलकुल ही ना हो इसके लिये इसके चारो ओर ऐसी ही दीवारे कच्ची मिटटी की बनायी गयी । इससे ये हुआ कि जो सेना बाहर से गोले बरसाती वे कच्ची मिटटी में आकर ध्ंस जाते और इस तरह से किले को रंचमात्र भी नुकसान नही पहुंचता । किले के नीचे सैकडो फुट गहरी खायी बनाकर उसमें पानी भरा गया । इस तरह से किले को उपर और नीचे से सुरक्षित बना दिया गया । इस किले में जरा भी लोहा नही था पर ये लोहागढ कहलाया क्योंकि यहां पर थोडे से सैनिक भी बडी से बडी सेना से लड लेते थेे । इस किले को आज तक कोई हरा नही सका । ना मुगल , ना रूहेल और ना अंग्रेज । नरेश जसवंत राव को अपने यहां पर शरण देकर राजा सूरजमल ने अंग्रेजो की दुश्मनी मोल ले ली । अंग्रेजो ने किले के चारो ओर घेरा डाल दिया । लार्ड लेक ने 13 बार इस किले पर आक्रमण किया और हर बार उसके जितने गोले थे वो सब किले की कच्ची दीवारो में समा गये । अंग्रेज भी इसे देखकर हतप्रभ थे । ये किला बडा नही था पर इसकी संरचना ऐसी थी कि ये हमेशा अजेय रहा ।
अब यहां संग्रहालय है |
बहूत बढिया
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