नेपाल , एक ऐसा देश जो कई कारणो से हिंदुस्तानियो के लिये आकर्षण का केन्द्र रहता है । हिंदूस्तान में रहने वाले लोगो में से हिंदू धर्म वालो ...
नेपाल , एक ऐसा देश जो कई कारणो से हिंदुस्तानियो के लिये आकर्षण का केन्द्र रहता है । हिंदूस्तान में रहने वाले लोगो में से हिंदू धर्म वालो के लिये पशुपतिनाथ मंदिर के लिये तो कई लोगो के लिये हिंदू राष्ट्र होने की वजह से , शौकीन मिजाज लोगो के लिये डांस बार और कैसीनो के लिये , पर्वतारोहियो और प्रकृति प्रेमियो की पसंद नेपाल और कई कारणो से लोगोे को पसंद है । दुनिया के हर कोने से आदमी यहां पर आता है ।
मेरा भी बहुत दिनो से मन था लेकिन अपनी बाइक पर क्योंकि अपनी बाइक से किसी जगह को देखने का जो मजा है वो और किसी भी तरीके से नही है तो कुछ दिनो से कार्यक्रम बनाते बनाते एक मित्र जो कि फरीदाबाद के ही रहने वाले हैं उनके साथ कार्यक्रम बन गया । सहदेव सिंह के साथ कुछ दिनो से लगातार बात हो रही थी और साथ ही उनके साथ एक दिन दिल्ली घूमने से पता चला कि वो ठीक ठाक घुमक्कड है । अक्सर अकेले ही केरल या हिमाचल की सैर पर निकल जाते हैं । उनका घूमने का तरीका कुछ अलग सा है वो अकेले जाकर लोकल लोगो की मदद से उनसे पूछताछ करके घूमते हैं और सच में ऐसे ही घूमना चाहिये
लेकिन उस तरीके से घूमने के लिये समय चाहिये और एक ही जगह पर काफी दिन गुजारने का अलग तरीका होता है । हमें तो नयी जगहो को देखने की ललक ज्यादा है क्योंकि अभी तो कुछ देखा ही नही है तो प्रोग्राम सैट हो गया ।
चलने के दिन से एक दिन पहले सहदेव रात को ग्यारह बजे मेरे घर मुरादनगर में आ गया और मैने देखा कि उसके पास सामान बहुत ज्यादा था । हमें दोनो को एक ही मोटरसाईकिल पर जाना था और एक बैग से ज्यादा ले जाना मूर्खता थी । मैने एक बैग 50 किलो तक वाला अपना ट्रैकिंग बैग बैगपैक ले जाने की सोची थी । उसमें थोडा ज्यादा सामान भी आ सकता था पर यहां तो बहुत ज्यादा हो गया था । दोनो ने दो तो चादरे ही रख ली थी गर्म वाली उसके बाद जूतो चप्पलो से लेकर कपडो तक इतना सामान हो गया था कि एक बैगपैक में नही समाया ।
इस बार मैने चार महीने पहले बाइक बदल ली थी और पैशन प्रो की बजाय 150 सीसी की बजाज डिस्कवर ले ली थी । डिस्कवर पर 150 सी सी की होने के कारण मुझे कोई दिक्कत आने की उम्मीद नही थी साथ ही इस बाइक की सीट काफी लम्बी है । मेरे जैसे 3 आदमी आराम से आ सकते हैं तो एक बैग के लिये कोई दिक्कत नही थी । मैने सहदेव को समझाया कि कुछ सामान कम कर लो पर उसने बोल दिया कि भाई इसमें से कोई सामान कम नही कर सकता हूं । जब उसने मना कर दिया तो मैने भी सोच लिया कि भाई चलो अपना एक बैग ले लो । सहदेव का एक छोटा बैग जो कि ओरिजनल कम्पनी का होने की वजह से केवल बैग में ही काफी वजन था उसे ले लिया गया ।
रात को दो तीन घंटे ही सो पाये और सुबह 4 बजे ही उठ गये । हमारा पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि हमें पहले दिन में अगर बढिया दूरी तय करनी है तो सुबह सवेरे चलना पडेगा । 5 बजे हम दोनेा बाइक पर चल दिये । बैगपैक को बीच में एक आदमी की तरह खडा कर लिया गया और सहदेव की कमर पर छोटा बैग रखा गया । ये बहुत बेकार स्थिति थी जो कि थोडी देर में ही पता चल गयी पर हम चलते रहे । बाइक में 600 रूपये का पैट्रोल भराया सबसे पहले । नेशनल हाईवे 24 पर आते ही 80 की स्पीड से बाइक खींच दी और मुरादाबाद से कुछ पहले सुगंध होटल पर रोकी । यहां पर परांठे और चाय का नाश्ता किया गया । परांठे हम घर से बनवाकर चले थे । यहां से हम चले तो 9 बज गये थे और उसके बाद रामपुर तक पहुंचे तो सहदेव ने बाइक चलाने के लिये कहा । मै असमंजस में था लेकिन मैने बाइक दे दी क्योंकि ये प्लेन रोड थी । मै असमंजस में इसलिये था क्योंकि मैने दिल्ली में सहदेव की बाइकिंग देखी
थी और वो बहुत रफ थी शहरो के अलावा उसने पहाडो पर बाइक नही चलायी थी ।
रामपुर से 50 किमी0 सहदेव ने चलायी और फिर रूद्रपुर आ गया । यहां से सारा रास्ता टूटा पडा था । तो मैने दोबारा बाइक ले ली । खटीमा तक रास्ता खराब था और खटीमा से बनबासा तक सडक ठीक थी । पूर्णागिरी यहां से 40 किलोमीटर है । इतनी पास देखा तो मन किया कि चला जाये पर फिर सोचा कि अगर उधर गये तो आज शायद बार्डर भी पार ना हो पाये जबकि हम बिना किसी पहली जानकारी के बार्डर पार करने वाले थे । हमें तो ये भी नही पता था कि वहां कि टाइमिंग क्या है । सामने महेन्द्रनगर के बोर्ड लगे थे । भारतीय सीमा में बनबासा ही लास्ट जगह थी । एक बाजार से गुजरने के बाद आगे रिक्शे जाते दिखायी दिये । यहां पर ज्यादातर लोग रिक्शे या तांगो से बार्डर पार करते हैं । एक चौकी आयी यहां पर पर्ची कटती है कारो की । बाइक के लिये कोई पर्ची नही है ना कोई सिक्योरिटी ।
आगे चलकर नदी पर बनी नहर आयी जिसके उपर बने पुल से चलकर हम नेपाल पहुंच जाने थे । ये केवल इतना चौडा पुल था कि उस पर से कार ही जा सकती थी । इसका मतलब ये है कि यहां से ट्रक आदि नही जाते हैं उनके लिये दूसरा बार्डर है । पुल से पार होने के बाद एक चौकी आयी पर यहां पर भी सब मजे से बैठे थे और हमें किसी ने नही रोका । हम एक किलोमीटर और कच्चे रास्ते पर तब तक चलते रहे जब तक कि नेपाल केे सुरक्षाकर्मी हमें दिखायी नही दे गये ।
मेरा भी बहुत दिनो से मन था लेकिन अपनी बाइक पर क्योंकि अपनी बाइक से किसी जगह को देखने का जो मजा है वो और किसी भी तरीके से नही है तो कुछ दिनो से कार्यक्रम बनाते बनाते एक मित्र जो कि फरीदाबाद के ही रहने वाले हैं उनके साथ कार्यक्रम बन गया । सहदेव सिंह के साथ कुछ दिनो से लगातार बात हो रही थी और साथ ही उनके साथ एक दिन दिल्ली घूमने से पता चला कि वो ठीक ठाक घुमक्कड है । अक्सर अकेले ही केरल या हिमाचल की सैर पर निकल जाते हैं । उनका घूमने का तरीका कुछ अलग सा है वो अकेले जाकर लोकल लोगो की मदद से उनसे पूछताछ करके घूमते हैं और सच में ऐसे ही घूमना चाहिये
लेकिन उस तरीके से घूमने के लिये समय चाहिये और एक ही जगह पर काफी दिन गुजारने का अलग तरीका होता है । हमें तो नयी जगहो को देखने की ललक ज्यादा है क्योंकि अभी तो कुछ देखा ही नही है तो प्रोग्राम सैट हो गया ।
चलने के दिन से एक दिन पहले सहदेव रात को ग्यारह बजे मेरे घर मुरादनगर में आ गया और मैने देखा कि उसके पास सामान बहुत ज्यादा था । हमें दोनो को एक ही मोटरसाईकिल पर जाना था और एक बैग से ज्यादा ले जाना मूर्खता थी । मैने एक बैग 50 किलो तक वाला अपना ट्रैकिंग बैग बैगपैक ले जाने की सोची थी । उसमें थोडा ज्यादा सामान भी आ सकता था पर यहां तो बहुत ज्यादा हो गया था । दोनो ने दो तो चादरे ही रख ली थी गर्म वाली उसके बाद जूतो चप्पलो से लेकर कपडो तक इतना सामान हो गया था कि एक बैगपैक में नही समाया ।
इस बार मैने चार महीने पहले बाइक बदल ली थी और पैशन प्रो की बजाय 150 सीसी की बजाज डिस्कवर ले ली थी । डिस्कवर पर 150 सी सी की होने के कारण मुझे कोई दिक्कत आने की उम्मीद नही थी साथ ही इस बाइक की सीट काफी लम्बी है । मेरे जैसे 3 आदमी आराम से आ सकते हैं तो एक बैग के लिये कोई दिक्कत नही थी । मैने सहदेव को समझाया कि कुछ सामान कम कर लो पर उसने बोल दिया कि भाई इसमें से कोई सामान कम नही कर सकता हूं । जब उसने मना कर दिया तो मैने भी सोच लिया कि भाई चलो अपना एक बैग ले लो । सहदेव का एक छोटा बैग जो कि ओरिजनल कम्पनी का होने की वजह से केवल बैग में ही काफी वजन था उसे ले लिया गया ।
रात को दो तीन घंटे ही सो पाये और सुबह 4 बजे ही उठ गये । हमारा पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि हमें पहले दिन में अगर बढिया दूरी तय करनी है तो सुबह सवेरे चलना पडेगा । 5 बजे हम दोनेा बाइक पर चल दिये । बैगपैक को बीच में एक आदमी की तरह खडा कर लिया गया और सहदेव की कमर पर छोटा बैग रखा गया । ये बहुत बेकार स्थिति थी जो कि थोडी देर में ही पता चल गयी पर हम चलते रहे । बाइक में 600 रूपये का पैट्रोल भराया सबसे पहले । नेशनल हाईवे 24 पर आते ही 80 की स्पीड से बाइक खींच दी और मुरादाबाद से कुछ पहले सुगंध होटल पर रोकी । यहां पर परांठे और चाय का नाश्ता किया गया । परांठे हम घर से बनवाकर चले थे । यहां से हम चले तो 9 बज गये थे और उसके बाद रामपुर तक पहुंचे तो सहदेव ने बाइक चलाने के लिये कहा । मै असमंजस में था लेकिन मैने बाइक दे दी क्योंकि ये प्लेन रोड थी । मै असमंजस में इसलिये था क्योंकि मैने दिल्ली में सहदेव की बाइकिंग देखी
थी और वो बहुत रफ थी शहरो के अलावा उसने पहाडो पर बाइक नही चलायी थी ।
रामपुर से 50 किमी0 सहदेव ने चलायी और फिर रूद्रपुर आ गया । यहां से सारा रास्ता टूटा पडा था । तो मैने दोबारा बाइक ले ली । खटीमा तक रास्ता खराब था और खटीमा से बनबासा तक सडक ठीक थी । पूर्णागिरी यहां से 40 किलोमीटर है । इतनी पास देखा तो मन किया कि चला जाये पर फिर सोचा कि अगर उधर गये तो आज शायद बार्डर भी पार ना हो पाये जबकि हम बिना किसी पहली जानकारी के बार्डर पार करने वाले थे । हमें तो ये भी नही पता था कि वहां कि टाइमिंग क्या है । सामने महेन्द्रनगर के बोर्ड लगे थे । भारतीय सीमा में बनबासा ही लास्ट जगह थी । एक बाजार से गुजरने के बाद आगे रिक्शे जाते दिखायी दिये । यहां पर ज्यादातर लोग रिक्शे या तांगो से बार्डर पार करते हैं । एक चौकी आयी यहां पर पर्ची कटती है कारो की । बाइक के लिये कोई पर्ची नही है ना कोई सिक्योरिटी ।
आगे चलकर नदी पर बनी नहर आयी जिसके उपर बने पुल से चलकर हम नेपाल पहुंच जाने थे । ये केवल इतना चौडा पुल था कि उस पर से कार ही जा सकती थी । इसका मतलब ये है कि यहां से ट्रक आदि नही जाते हैं उनके लिये दूसरा बार्डर है । पुल से पार होने के बाद एक चौकी आयी पर यहां पर भी सब मजे से बैठे थे और हमें किसी ने नही रोका । हम एक किलोमीटर और कच्चे रास्ते पर तब तक चलते रहे जब तक कि नेपाल केे सुरक्षाकर्मी हमें दिखायी नही दे गये ।
Nepal yatra -
रास्ते में एक गुरूद्धारा |
यही है नेपाल की गडडा चौकी का आफिस जहां से भनसार बनता है |
नेपाल के खेत |
नाश्ते की दुकान |
यही है सबसे लम्बा हाईवे नेपाल का |
पोस्ट थोड़ी लम्बी कर भाई। बहुत छोटी है।
ReplyDeleteBahut hi badhiya post Manu ji. And interesting photos.
ReplyDeleteBas saare photos mein caption de denge to thoda samajh aa jayega ki kis jagah, kya hai. Jaise wo gurudwara aur nadi ki tasweerein.
Aur kuch musqil shabd bhi bata dein (jaise bhansar)
shandar shuruwat lage rahiye...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteLovely images as usual :)
ReplyDeleteHar baar ki tra bht badiya starting hai Mannu bhai
ReplyDeletegood job manu ji
ReplyDeleteभाई ये भंसार क्या होता है ?
ReplyDeleteभंसार एक तरह का टेक्स है नेपाल का जो की कार और गाड़ियो के लिए नेपाल लेता है और एक अस्थाई नंबर प्लेट देता है जिसको की कार के शिसे के पास रखकर चलना होता है और भंसार का समय भी निर्धारित होता है की कितने दिन आप नेपाल मे अपने कर के साथ रहेगे उस समय सीमा मे लौट आना होता है
DeleteBahut badhiya Manu Ji. Waiting for next part
ReplyDeleteNice ghumakkari
ReplyDeleteChitr bahut sundar aae hain Manu ji. Jab post bahut chhoti hoti hai to mazaa bigad jataa hai. padhte padhte jab mahaul ban jata hai aur ekdam se post khatam to thoda bura lagata hai.
ReplyDeleteThanks,
Mukesh....
सुंदर पोस्ट है ।
ReplyDeleteयार सिर्फ इतना बताओ कि क्या इंडिया की बाइक नेपाल के अंदर जा सकती है
ReplyDeleteकिसी तरह की कोई दिक्कत तो नही है ना
कोई टोल टैक्स एंट्री टैक्स तो नही लगता
या जाने ही नही देते
ओर ड्राइविंग लाइसेंस का क्या
यार सिर्फ इतना बताओ कि क्या इंडिया की बाइक नेपाल के अंदर जा सकती है
ReplyDeleteकिसी तरह की कोई दिक्कत तो नही है ना
कोई टोल टैक्स एंट्री टैक्स तो नही लगता
या जाने ही नही देते
ओर ड्राइविंग लाइसेंस का क्या
यार सिर्फ इतना बताओ कि क्या इंडिया की बाइक नेपाल के अंदर जा सकती है
ReplyDeleteकिसी तरह की कोई दिक्कत तो नही है ना
कोई टोल टैक्स एंट्री टैक्स तो नही लगता
या जाने ही नही देते
ओर ड्राइविंग लाइसेंस का क्या
कोई दिक्कत नही है
Deleteवाह शानदार लेख
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