Neil island अंडमान की सब्जी का कटोरा कहा जाने वाला नील द्धीप बहुत ही सुंदर है । पोर्ट ब्लेयर से करीब 40 किलोमीटर दूर इस द्धीप का नाम एक ...
Neil island |
ये द्धीप अपने सबसे चौडाई में केवल 5 किलोमीटर है एक दिन में आप इस द्धीप को पैदल आराम से घूम सकते हो । पर इतना छोटा होने के बावजूद अंडमान में पोर्ट ब्लेयर को सबसे ज्यादा सब्जी की सप्लाई इसी जगह से होती है इसकी वजह है यहां पर मीठे पानी की उपलब्धता । यहां पर चारो ओर से समुद्री पानी से घिरे इस द्धीप में कई तो कुंए भी हैं मीठे पानी के तो जाहिर सी बात है कि यहां की धरती ज्यादा उपजाउ होगी ।
यहां के बीच बहुत ही सुंदर और अनछुए हैं । साथ ही यहां के बीच में अलग अलग रंग की रेत है । हैवलाक के मुकाबले यहां पर बहुत कम लोग आते हैं । अंडमान में आने वाले पर्यटको का मुुश्किल से दस प्रतिशत भी यहां तक नही आता ।
यहां पर पांच गांव हैं उन्ही के नाम पर यहां पर बीच के भी नाम हैं और ये सारे नाम रामायण के पात्रो या हमारे भगवान के नाम पर हैं । हैवलाक इसके मुकाबले में महाभारत के पात्रो के नाम ज्यादा रखता है जैसे राधानगर , गोविंदनगर
तो यहां के गांवो के नाम हैं नील केन्द्र , सीतापुर , भरतपुर , लक्ष्मणपुर और रामनगर
हैवलाक से यहां आने के लिये एक गजब बात देखी या इसे समुद्री रास्ते की वजह भी कही जा सकती है । नील द्धीप हैवलाक के बिलकुल पास ही है एक जगह तो इन दोनो द्धीप के कोनो में एक किलोमीटर का ही फर्क है और वो साफ देख सकते हो पर चूंकि यहां पर जो शिप आते हैं वो बडे होते हैं इसलिये उन्हे गहरा पानी चाहिये होता है इसलिये उनका जो रूट है वो ये है कि वो पूरा हैवलाक का चक्कर काटकर तब नील पर पहुंचते हैं और नील पर भी काफी लम्बी जेटटी बनी हुई है । यहां पर उतरने के बाद हमारा पहला लक्ष्य तो हमारा होटल था पर हमें घेर लिया एक दो कार वालो ने
एक लडके ने मारूति वैन ली हुई थी और वो हमें यहां के बीच आदि दिखाने की जिद करने लगा । हमने हैवलाक में ज्यादा समय की बुकिंग करायी थी जबकि नील को छोटा मानते हुए हमने कुछ घंटे का ही टाइम दिया था । आज शिप से उतरने के बाद हमारे पास कुछ घंटे थे और कल दोपहर में हमें यहां से निकलना था तो रात को निकाल दें तो हमारे पास ज्यादा समय नही था । होटल बुक था इसलिये हमें उसमें समय नही खपाना था और शाम होने वाली थी इसलिये हमने उससे सारे स्थलो को देखने की बात तय कर ली ।
उन स्थलो को दिखाने के लिये सुबह का समय भी उसी वैन वाले के जिम्मे था । अभी शाम तक हमें सिर्फ दो जगह ही देखनी थी एक तो नैचुरल ब्रिज और एक सूर्यास्त और बीच
तो तब तक हमारा सामान गाडी में रहना था और वैन वाला हमें नैचुरल ब्रिज के लिये ले गया । एक जगह गाडी रोक दी गयी और हम थोडी उंचाई पर चढे । वहां चढने के बाद हमें समुद्र दिखने लगा और वहां से नीचे उतरने के बाद बहुत दूर तक कोरल रीफ फैली हुई थी जिस पर चलकर हम उस जगह पहुंचे जहां पर नैचुरल ब्रिज था । अभी लो टाइड यानि ज्वार भाटे की कम वाली अवस्था थी तो हम इस जगह तक आ सकते थे । यहां पर कम पानी था और कोरल रीफ के गढढो में भरा हुआ था और उसमें मछलियो से लेकर अलग अलग तरह के जीव दिख रहे थे साफ ।
उधर नेचुरल ब्रिज भी प्रकृति का बनाया नायाब नमूना था और बहुत देर तक हमने यहां पर फोटो खिंचवाऐ । इस तरह की कलाकृति बनाने के लिये पता नही कितने शिल्पकारोे को अपना दिमाग लगाना पडेगा लेकिन कुदरत से बडा कोई शिल्पकार नही होता । यहां पर आने जाने में चलने का बहुत ध्यान रखना होता है ये याद रहे और इसे केवल लो टाइड में ही देखा जा सकता है ।
यहां से चलने के बाद हम फिर से वैन में बैठे और लक्ष्मणपुर बीच आ गये जहां पर आज तक का सबसे बेहतरीन सूर्यास्त और बीच हमने देखा जिसकी चर्चा अगली पोस्ट मेंं पर कुछ फोटो यहां पर भी
We missed it,looks like amazing place
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