द्रास के बोर्ड के पास फोटो खिंचाकर हम आगे चलने के लिये तैयार हो गये । द्रास से कारगिल करीब 60 किलोमीटर है । दुकानदार,जिसके पास हम खा...
द्रास के बोर्ड के पास फोटो खिंचाकर हम आगे चलने के लिये तैयार हो गये । द्रास से कारगिल करीब 60 किलोमीटर है । दुकानदार,जिसके पास हम खा पी रहे थे उसने बताया कि यहां से कारगिल एक घंटे में पहुंच जाते हैं । मै हैरान होकर पूछने लगा कि वो कैसे तो उसने बताया कि रोड ही इतनी बढिया बनी है । हमारे अंदर भी थोडा सा जोश आ गया और हम तेजी से बाइक पर बैठकर चल पडे । थोडा आगे जाते ही रूकना पडा । यहां कारगिल वार मैमोरियल है । पर्यटको की काफी भीड यहां पर लगी थी । आजकल एक नया फैशन हो गया है पर्यटक भी बहुत ज्यादा संख्या में लेह जाने लगे हैं ।
एसयूवी गाडियो या टैम्पो ट्रैवलर में ग्रुप के ग्रुप रास्ते में हमें काफी मिल भी रहे थे । लददाख हाल के कुछ सालो में काफी प्रसिद्धि पा रहा है । छोटे बडे हर तरह के लोग वहां जाना चाहते हैं । हालांकि ज्यादातर की हालत खराब देखी मैने इन रास्तो की और गाडी में बंधे बैठे होने की वजह से । इसीलिये लददाख जाने वाले बाइक को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं । जब आपको बढिया नजारा दिखे वहीं पर रोक लो । गाडी के साथ ऐसा नही हो पाता और अगर गाडी अपनी हो और 4 या 5 लोग हों तो संभव भी है बाकी तो टैम्पो ट्रैवलर में ये सब संभव नही । उन लोगो के लिये ये स्टाप होते हैं जहां पर गाडी रूकती है तो आप थोडा बाहर घूम लो और देख लो । रास्ते के बीच के नजारो से वो सब वंचित रह जाते हैं ।
खैर काफी भीड देखकर मेरा मन नही किया अंदर जाने का । म्यूजियम कितना भी प्रसिद्ध क्यों ना हो मेरा मन अब नही करता । इस बात को समझने के लिये मुझे समझना जरूरी है या आपको उतने म्यूजियम देखने जरूरी हैं जितने मै देख चुका । सबसे पहले यही शौक था म्यूजियम देखने का । आज भी आठ साल पहले तक के टिकट वगैरा संभालकर रखे हुए हैं । अब मोहत्याग सा हो गया है इसलिये जब तक किसी मंदिर में कोई असाधारण बात ना हो तो वहां भी नही जाना चाहता । आप मेरी हाल फिलहाल की यात्राऐं देखोगे तो समझ जाओगे इस बात को । कभी फिर विस्तार से अलग ही लिखूंगा इस पर
मिश्रा जी ने कहा कि मुझे देखना है तो मैने कहा कि देख आओ । मै बाहर खडा रहा और मिश्रा जी अंदर से देखकर आ गये । मै मानता हूं कि ये हमारे उन शहीदो का स्मारक है जिन्होने इस धरती को बचाये रखा और आज हम उन्ही की वजह से घूम रहे हैं और उनके लिये इतना सम्मान है मन में कि पूरी लददाख यात्रा के दौरान अक्सर सामने से आ रहे या बराबर से गुजर रहे आर्मी ट्रको में बैठे जवान या अफसर जो कि हमें हैरान करने वाली नजरो से देखते उन्हे जब हम राम राम जी कहकर अभिवादन करते तो वो भी हमें प्रसन्नता से वही जवाब देते ।
मन में श्रद्धा होनी चाहिये ये तोप , गोले , तलवारे , ड्रैस देखने में रूचि नही रही अब । मिश्रा जी देख आये तो आगे चले । रोड वाकई में बढिया थी । इस बीच मैने कुछ फोटो बाहर से ही जूम करके लिये थे । हां जब तक मिश्रा जी आये मैने पहली बार सेल्फी स्टिक निकाली और उसका इस्तेमाल करके देखा और सीखा । इस यात्रा के लिये 150 रूपये की एक स्टिक खरीदकर लाया था पर पूरी यात्रा में ऐसा कोई फोटो उससे नही ले पाया जो ब्लाग में रख सकूं । इसे सेल्फी लेने की विफलता भी कहा जा सकता है ।5 बजे थे जब हम द्रास से चले और आज द्रास में भी रूक सकते थे पर जब 1 घंटे में कारगिल पहुंचने का सुना तो फिर कारगिल के लिये ही चल दिये । साढे पांच बजे हम वार मैमोरियल पर थे । उसके बाद चलना चाहा तेजी से कि एक घंटे में पहुंच जाये पर नही चल पाये क्योंकि रोड खराब नही थी बल्कि आज हमें तीसरा दिन था और खूबसूरती देखने का समय आज ही शुरू हुआ था । जोजीला या उससे आगे जीरो प्वाइंट तक बर्फ की खूबसूरती थी जो कि आमतौर पर किसी भी हिल स्टेशन पर मिल सकती है पर लददाख क्षेत्र में आप आ गये हो ये बताने के लिये ये रोड पर्याप्त थी । नंगे पहाड पर जहां भी गांव आये वहीं पर हरियाली और सडक किनारे चलती नदी । तीनो मिलकर कुछ अविस्मरणीय दृश्य बनाते हैं जिनके देखने के लिये बार बार बाइक को रोकना पडता है ।
थोडी दूर चलकर एक संगम आया । लददाखी में अक्सर संगम को सुमदो कहते हैं । यहां पर कई गांव जो संगम पर बसे हैं उनका नाम सुमदो या सुमडो ही है । यहां के संगम पर बाइक रोककर फोटो लेने लगे तो दिल्ली के लोग मिले जो दो गाडियो में थे । हैरानी से देख रहे थे ओर फिर उन्होने नम्बर देखा गाजियाबाद का तो बडी उत्सुकता से बताया कि हम भी फरीदाबाद और दिल्ली से हैं । बाइक से आने और उसके बारे में अन्य बातो के बाद हम चल पडे । इसके बाद उल्टे हाथ पर एक गांव दिखता है । दिखता क्या है उसका दो तिहाई तो पेडो के अंदर ही छिपा है पर जो इमारते दिखती हैं जैसे मस्जिद वगैरा वो काफी सुंदर लगती हैं । गांव के रास्ते पर बच्चे खडे थे । उनसे बात हुई तो उन्होने बताया कि खुबानी वगैरा उनके गांव में बहुत होती हैं और सोनमर्ग वगैरा में बेचने वाले भी यहां से लेकर जाते हैं ।
यहां के लोगो ने नदी के पानी का भरपूर सदुपयोग किया है और खूब पेड लगाये हैं । जगह की कमी कोई नही है और पेड लगाने से कटाव रूका पहाडो का , आमदनी हुई और सुंदरता तो आयी ही है । लाहौल स्पीति की यात्रा में भी मैने यही देखा कि वीरान और बेकार पहाडो में भी सेब के बाग के बाग लगा दिये गये हैं । विषम परिस्थितियो में भी होश ना खोये इसी को जीवटता कहते हैं । बच्चे बहुत खुश थे और मैने एक फोटो लेने को कहा तो उन्होने बडे स्टाइल में एक नही दस पोज दिये । कोई सैलानी पहले सिखा गया होगा तो कहना ही नही पडा कि कैसे खिंचाना है ।
हमारा अनुमान फेल हो गया था । पांच बजे से साढे सात बज गये थे कारगिल तक पहुंचने में । खूबसूरती ही इतनी थी कि कैमरे में समेटी ना जाये । कारगिल से दो किलोमीटर के लगभग पहले एक पैट्रोल पम्प दिखा । हम पैट्रोल तो लेना चाहते थे क्योंकि हमें जंस्कार जाना था जहां पर पैट्रोल नही मिलता है और पदुम कारगिल से 270 किलोमीटर के लगभग है शायद पर सिर्फ दो किलोमीटर पहले की जगह को अपनी बाइक से पकडा जा सकता है इसलिये अभी नही भराया । इसके बाद एक पुल आया उल्टे हाथ पर जो कि नदी को पार करके रास्ता उल्टे हाथ को जा रहा था । यहीं पर एक बोर्ड लगा था जिस पर बस्पा गेस्ट हाउस लिखा था । सीधे हाथ पर एक दुकान थी जब हमने दुकान वाले से बोर्ड की तरफ इशारा करके पूछा तो वहीं पर बैठे एक सज्जन तुरंत आ गये । दुकान थोडा उंची जगह पर थी ।
हम आगे गये तो एक पुलिस चैक पोस्ट आता है । यहां से दो रास्ते हो जाते हैं । एक रास्ता नीचे को जाता है और एक उपर को । ये वन वे रास्ता है । उपर वाले रास्ते पर बाजार है । अगर आपको कारगिल के बाजार में जाना है तो नीचे को जाकर आगे आने वाले चौराहे जिस पर उल्टे हाथ पर पुल है और सीधे हाथ वाले रास्ते को मुडकर बाजार जा सकते हो । गेस्ट हाउस वाले सज्जन से हमने चलते हुए कहा कि अभी हमें बाइक में कुछ काम कराना है तो उन्होने बताया कि एकमात्र दुकान यहां से करीब 3 किलोमीटर दूर जंस्कार जाने वाले रास्ते पर मिलेगी । मैने उनसे कहा कि पहले बाइक का काम कराकर आ जाते हैं क्योंकि बाइक की दुकान बंद हो सकती है उसके बाद आपके पास आ जायेंगें तो उन्होने कहा कि सौ रूपये जमा करा दो ताकि मै आपका कमरा रोक सकूं पर मिश्रा जी का मूड देखकर मैने उन्हे प्रेम से कहा कि हम अभी गये और अभी आये ।
असल में कई काम करने थे । शाम के साढे सात बजे थे और हमें कमरा लेना था , पैट्रोल भरवाकर बाइक खडी करनी थी , खाना खाना था और सबसे जरूरी काम कि बाइक में चैन में तेल वगैरा चैक कराना था । कल हमारा इरादा जंस्कार जाने का था और वहां पर ना तो पैट्रोल मिलेगा ना मिस्त्री । यही नही कल हमें सवेरे निकलना था तो जाहिर सी बात है सुबह सवेरे मिस्त्री दस बजे से पहले नामुमकिन ही है । हमने आगे चलकर कई जगह होटल पूछा पर कहीं पर 500 में भी कोई तैयार नही हुआ बल्कि कुछ ने तो नाक भौं सिकोड लिया 500 का नाम सुनकर । अब मिश्रा जी से दोबारा पूछा तो बोले कि चलो उसे ही ले लेते हैं । पर उससे पहले हम बाइक मिस्त्री की दुकान के पास आ गये थे तो यहीं पर रूक गये । मिस्त्री ने चेन टाइट करनी चाही तो देखा कि चेन टाइट करने वाली जगह के पीछे का नट और जिस पर वो नट लगता है वो कहीं निकलकर गिर गया है । ये चीज रेडीमेड नही मिलती और उसने बताया कि कल ऐसी ही प्लेट वैल्डिंग कराकर बनवानी पडेगी जो कि दस बजे से पहले नही होगी । मैने उससे पूछा कि कोई दिक्कत तो नही होगी हमें जंस्कार जाने में तो उसने कहा कि दिक्कत नही होगी पर करा लेनी चाहिये ।
मैने बाइक वापस मोडी और मिश्रा जी को उसी गेस्ट हाउस के सामने उतार दिया । उनसे बोला कि आप सामान रखो मै दो किलोमीटर दूर जाकर पैट्रोल भरवाकर लाया । जब तक मै आया मिश्रा जी सामान रख चुके थे कमरे में और कमरा देखकर निहाल थे । इतना सुंदर कमरा शिमला जैसी जगह में 3000 में ना मिले । हमने सामान रखते ही वापस नीचे आये और उसके बाद खाने के लिये होटल ढूंढने चल दिये । गेस्ट हाउस के मालिक अकेले थे और यहां पर खाने की सुविधा नही थी । बाजार में भी कोई होटल नही मिला तो वापस चौराहे पर पहुंचे जहां से उल्टे हाथ को नदी पार करके पुल से रास्ता जा रहा है । वहां पर पुल पार करते ही उल्टे हाथ पर रैस्टोरैंट था जिसमें खाना उपलब्ध था पर केवल चावल दाल । इस समय तो वही बहुत बढिया था । खाना बढिया था और पीने को गरम पानी भी था पर बाद में देखा कि वहां पर नानवेज भी उसी किचन में बन रहा था । मुझे कोई दिक्कत नही है जबकि मैने जीवन में कभी नानवेज नही छुआ या खाया ।
आज तीसरा दिन समाप्त हुआ । आज का खर्च नही दे पा रहा क्योंकि घर में रेनोवेशन कार्य चलने के कारण सब सामान बंधा हुआ है पेंट आदि की वजह से । तीसरे और चौथे दिन का एक साथ दे दूंगा
Leh laddakh-
- Baralachala-Rohtang -Manali- Delhi
- Pang-Sarchu-Lachungla-Nakeela-Baralachala
- tso moriri-tso kar-Debring-Pang
- Loma-Nyoma-Tso moriri
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- Pangong-man-Merak-Chushul
- Pangong lake ( Photo story )
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- Kargil - Namik la
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- Zojila - Drass , Leh laddakh road trip
- Sonmarg - Zoji la pass , Leh laddakh yatra
- srinagar -Sonmarg , Leh laddakh yatra
- Udhampur - Srinagar , Leh Laddakh yatra
- Delhi - Jammu - Udhampur , Leh Laddakh yatra
- Laddakh Bike travelogue , लददाख मोटरसाईकिल यात्रा वृतांत (साथी की तलाश )
- Laddakh Bike travelogue , लददाख मोटरसाईकिल यात्रा वृतांत (तैयारी )
Kargil war memorial |
वार मैमोरियल से दिखती बर्फ से ढकी चोटियां |
आगे की सडक |
पूरा रास्ता नदी किनारे है |
काकसर गाव 10 किलोमीटर |
सुंदर पतली सी धारा |
यहां कहां चराते होंगें ये लोग |
where eagle dare |
संगम के पास दिल्ली वाले |
पधारो म्हारे लददाख |
यही है उन बच्चो का सुंदर गांव |
और ये उनके गांव जाने का रास्ता |
बस आ पहुंचे कारगिल |
जंस्कार रोड की तरफ शाम का नजारा |
रात का खाना |
और ये कमरा 400 वाला |
आपका ये यात्रा हमे बहुत ही रोमांचित कर देता है । और इतनी सुन्दर कमरा मात्र 400₹ मे ।
Deleteबहुत आनंद आ रहा है मनु भाई ! जानकारी बहुत बेहतर और फोटो एकदम शानदार
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