लामायरू से आगे के क्षेत्र को मूनलैंड यानि चन्द्रमा की भूमि कहा जाता है जो सुनने में विचित्र लगता है पर देखने में विचित्र नही है । जैस...
लामायरू से आगे के क्षेत्र को मूनलैंड यानि चन्द्रमा की भूमि कहा जाता है जो सुनने में विचित्र लगता है पर देखने में विचित्र नही है । जैसा कि मैने बताया पीछे कि यहां पर पहाडो में कई रंग के पहाड हैं और उन पहाडो में विचित्र संरचनाऐं बनी हुई हैं ऐसी चांद पर भी बनी हुई बताते हैं । ये पहाड चांद पर मौजूद पहाडो से मिलते जुलते हैं । लामायरू के इसी रूप पर विदेशी भी फिदा हैं । थोडा आगे चलने पर सडक किनारे सिंधु नदी अलग ही नजारे पेश करती है । हर मोड पर अलग नजारा । यकीन मानिये अगर आप बाइक पर हैं तो ही आप इसका मजा ले सकते हैं या अगर आप कार में हैं और केवल दो बंदे हैं तो ।
अगर आप कार में इससे ज्यादा हुए तो एक बार के उतरने और चढने में आधा घंटा आपका गया और उसके बाद बार बार कार रोकना बढिया नही लगता । अपनी कार में थोडा ज्यादा कर सकते हो पर किराये की कार का ड्राइवर तो परेशान हो जायेगा या फिर आपको ये तय करना पडेगा पहले कि चाहे देर हो या जल्दी पर हम अपने हिसाब से चलेंगें ।लामायरू से आगे चलकर उतराई आती है और इसके बाद रास्ता नदी के किनारे आ जाता है । पहले चौडी घाटी अब संकरी होती जाती है । बिलकुल सूखे पहाड उनमें से ज्यादातर कच्चे जैसे जिनसे बारीक पत्थर गिरने का डर लगा रहता है । कई जगह नदी की वजह से सडक का कटान हो रखा है जिस पर पत्थर रख दिये जाते हैं । रात में ये जगह खतरनाक हो सकती है अगर तेजी से वाहन चला रहे हों तो ।
कुछ दूरी पर ही खालसी आता है जहां पर बटालिक से आने वाला रास्ता मिलता है । बटालिक जाने के लिये अब परमिट नही लगता । मै पहली बार जा रहा था इसलिये बटालिक वाले रास्ते को बाद के लिये छोड दिया है । खालसी से सासपोल 36 किलोमीटर और निम्मू 61 किलोमीटर है । यहां पर चेक पोस्ट भी बनी है पर कोई सुरक्षाकर्मी दिखा नही । फिर से एक छोटी घाटी आयी जिसमें नदी खासकर बडा ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर रही थी । कई जगह अलग अलग कोण से फोटो लेने से खुद को नही रोक पाया । हर बार फोटो लेने के लिये बाइक को बंद करना पडता । कुछ बार स्टार्ट भी रखी । बाइक रोकते ही फुर्ती से दस्ताने उतारना और फिर गले में पडे कैमरा बैग से कैमरा निकालना और फोटो लेने के बाद इसी प्रक्रिया को दोहराकर बाइक में किक मारकर चल पडना लेकिन दस मीटर बाद फिर से एक अलग नजारा देखने के बाद उहापोह में पड जाना कि रोका जाये या नही ये सब बाइक पर मेरे रूटीन का हिस्सा है हर टूर में पर यहां पर इस सब में मुझे सिर्फ किक मारने की वजह से ज्यादा सोचना पड रहा था ।
रोड की स्थिति कारगिल से लेकर लेह तक बहुत बढिया है इसमें कोई शक नही है । कुछेक टुकडे जिसमें सबसे बडा अभी तक कारगिल से मुबलेख तक ही है उसके अलावा बाकी सब जगह आधा किलोमीटर से ज्यादा खराब नही मिली । कई जगह तो काली सडक दूर तक लम्बी जाती हुई दिखती है तो ऐसा लगता है लेह लददाख् में नही राजस्थान में कहीं पर हैं । सासपोल सुंदर जगह है । यहां से आगे निकले ही थे कि बारिश का मौसम बन गया । पीछे के पहाडो पर मौसम खराब हो चुका था और आगे देखा तो हल्की सी धूप दिख रही थी और इसी के साथ हमें इंद्रधनुष के भी दर्शन हुए । पहली बार इसको कैमरे में कैद किया । काफी देर तक और दस किलोमीटर तक इंद्रधनुष के दर्शन होते रहे ।
हल्की हल्की बारिश पडने लगी थी और अभी तो लेह बहुत दूर था । दो से तीन घंटे लगने थे ऐसे में अगर बारिश तेजी से पडने लगी तो यहां पर रूकने की कोई जगह नही थी । थोडी देर तक हल्की बूंदाबांदी में ही चलते रहे । आगे जाकर एक दुकान दिखी जो कि एक निर्माणधीन साइट पर बनायी गयी थी अस्थायी रूप से । उस चाय की दुकान वाले से पूछा कि यहां पर रूकने को कोई जगह है तो उसने बताया कि 5 किलोमीटर साइड में एक गांव में होम स्टे है और उसका रास्ता मेन हाईवे से उल्टे हाथ की ओर जाता है । उसने ये भी बताया कि होम स्टे वाला बंदा अभी यहीं से गया है और आपको रास्ते में मिल जायेगा । उसने जो रास्ता बताया था वो कच्ची पगडंडी थी और दूर काली सडक दिख रही थी साथ ही गांव का गेट सा भी बना दिख रहा था । पीछे सूर्यास्त की तरह का नजारा हो रहा था शानदार । हमने बाइक कच्ची पगडंडी पर मोड ली पर थोडी दूर जाते ही अहसास हो गया कि हम गलत हैं और इस पर हमारी बाइक फंसनी ही है । ऐसे में दिक्कत हो जायेगी इसलिये वापस बाइक मोडकर मुख्य हाईवे पर ही बाइक ले आये । मिश्रा जी ने पूछा कि अब क्या करना है तो मैने बोला कि मेन हाईवे से ही जायेंगे और कुछ नही मिला तो अपना टैंट जिंदाबाद है ।
सवा छह बजे सासपोल पार किया और सात बजे हम बारिश से बचने को सहारा ढू्ंढ रहे थे । आधे घंटे बाद यानि साढे सात बजे हम बास्गो में थे । उस साइट से चलने के बाद बारिश तेज नही हुई और उसके बाद जो रोड आयी वो गजब थी । बहुत दूर तक फैली घाटी में सीधी लम्बी फैली सडक दिख रही थी । बाइक की स्पीड 80 तक पहुंच गयी थी । मौसम अंधेरे का होने लगा था और तभी बास्गो आया । पहले तो हमने नाम भी नही देखा था बस एक होटल का बोर्ड देखकर रूके और वहां पर होटल के बंदे को इशारे से बुलाया । उससे वहीं से पूछा कि कमरा कितने में मिल जायेगा तो उसने बोला कि कमरा 300 रूपये का है । होटल बाहर से शानदार दिख रहा था इसलिये कमरे में कोई दिक्कत होने की गुंजाईश नही थी ।
बाइक खडी करने के लिये होटल के पीछे जगह थी । उसमें कभी होटल वालो ने छतरियां बनायी होंगी उसके अंदर मैने बाइक खडी कर दी । आजकल पिछला हिस्सा चालू नही था । हमने सामान उतारा और होटल में ले गये । हम पहली मंजिल पर गये और जो कमरा हमें मिलने वाला था उसे होटल के बंदे ने खोला तो वहां से एक आदमी निकला जो कि उस कमरे में नहाकर निकला था जबकि वो रह रहा था सामने वाले कमरे में ।
उसी से पता चला कि पानी और बिजली दोनो की समस्या है पर होटल वाले बंदे ने बोला कि आप उपर अगर कमरा ले लो तो कोई समस्या नही होगी और वो हमें ले गया तीसरी मंजिल पर जो कि अंतिम भी थी और यहां पर तीन कमरे थे केवल । यहीं छत पर सोलर का सिस्टम लगा था गरम पानी के लिये । कमरा 3 बैड का था ।
साफ सुथरा और हर सुविधा से भरपूर काफी बडा बस लाइट के बारे में बता दिया गया कि रात के दस बजे तक ही मिल पायेगी । गर्म पानी बाहर मौजूद था ही । हमने सामान रखा और अपने सारे उपकरण लगा दिये चार्ज करने के लिये और उसके बाद हम खाना खाने के लिये नीचे बने रैस्टोरेंट में आ गये । सुंदर भोजनालय में खाना मिला तो आधे घंटे के इंतजार के बाद पर स्वादिष्ट था और खाने से भी ज्यादा स्वादिष्ट था मिर्च का अचार जो कि हमारे यहां पर भी बनाते हैं । 80 रूपये की थाली थी यानि आज हमारा रूकना खाना 500 रूपये में हो गया । रात को ठंड बढ गयी थी और हम जब खाना खाकर आये तो मैने बास्गो की मोनेस्ट्री की फोटो लेने की कोशिश की पर ठंड की वजह से इरादा त्याग दिया । लाइट का पता नही कब गयी क्योंकि हमें तो लेटने के बाद समय का पता ही नही रहा । सुबह सवेरे 6 बजे के लगभग उठे और तैयार होना शुरू हो गये । मौसम सुंदर दिख रहा था और साथ ही होटल से बास्गो की मोनेस्ट्री भी ।
देखने का मन तो था पर अब एक दिक्कत सामने आ गयी थी कि पैर में घुटने और उससे उपर जो पटटी बंधी थी उसके कारण कहीं चढाई पर नही चढा जा सकता था और मुझे उम्मीद थी कि हर मोनस्ट्री जो कि उंचाई पर बसी बनी है वहां पर कुछ ना कुछ सीढियां तो होंगी ही । मिश्रा जी नहाने से नही माने क्योंकि बकौल उनके जब मिल रहा है तो क्यों ना लें पर मै जानता था कि मुझे पटटी गीली होने के बाद दोबारा करवानी पडेगी । मिश्रा जी के पैरो में मामूली खरोंच थी और हाथ में भी । मिश्रा जी की नाक पर ज्यादा थी वो छिल गयी थी पर जब वो नही माने तो मैने भी ज्यादा नही जोर दिया । सुबह साढे सात बजे हम अपना सामान नीचे ले आये और बाइक को भी बाहर निकाल लिया । सामान लगाने से पहले आलू के परांठो का आर्डर दे दिया । जब हम रैस्टोरैंट में पहुंचे तो परांठे तैयार थे ।
मैने रात को भी मिश्रा जी को बता दिया था कि मेरे चक्कर में मत रहना मै दो या तीन रोटी ही खाता हूं तो आप अपनी खुराक पूरी लेना । मुझे अगर चावल मिल जाये तो रोटी की भी टाल हो जाती है पर आज कई दिन बाद आलू के परांठे मिले तो दो परांठे मै भी खा गया । सवा आठ बजे हम लेह के लिये चल दिये । आज चौथे दिन का समापन हुआ और इस चौथे दिन ने हमें चोट भी दी और उसके बावजूद भी हम 100 किलोमीटर कारगिल से सांकू आना जाना और फिर कारगिल से बास्गो करीब 180 किलोमीटर चले । बास्गो से लेह 50 किलोमीटर के करीब है ।
कुछ दूरी पर ही खालसी आता है जहां पर बटालिक से आने वाला रास्ता मिलता है । बटालिक जाने के लिये अब परमिट नही लगता । मै पहली बार जा रहा था इसलिये बटालिक वाले रास्ते को बाद के लिये छोड दिया है । खालसी से सासपोल 36 किलोमीटर और निम्मू 61 किलोमीटर है । यहां पर चेक पोस्ट भी बनी है पर कोई सुरक्षाकर्मी दिखा नही । फिर से एक छोटी घाटी आयी जिसमें नदी खासकर बडा ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर रही थी । कई जगह अलग अलग कोण से फोटो लेने से खुद को नही रोक पाया । हर बार फोटो लेने के लिये बाइक को बंद करना पडता । कुछ बार स्टार्ट भी रखी । बाइक रोकते ही फुर्ती से दस्ताने उतारना और फिर गले में पडे कैमरा बैग से कैमरा निकालना और फोटो लेने के बाद इसी प्रक्रिया को दोहराकर बाइक में किक मारकर चल पडना लेकिन दस मीटर बाद फिर से एक अलग नजारा देखने के बाद उहापोह में पड जाना कि रोका जाये या नही ये सब बाइक पर मेरे रूटीन का हिस्सा है हर टूर में पर यहां पर इस सब में मुझे सिर्फ किक मारने की वजह से ज्यादा सोचना पड रहा था ।
रोड की स्थिति कारगिल से लेकर लेह तक बहुत बढिया है इसमें कोई शक नही है । कुछेक टुकडे जिसमें सबसे बडा अभी तक कारगिल से मुबलेख तक ही है उसके अलावा बाकी सब जगह आधा किलोमीटर से ज्यादा खराब नही मिली । कई जगह तो काली सडक दूर तक लम्बी जाती हुई दिखती है तो ऐसा लगता है लेह लददाख् में नही राजस्थान में कहीं पर हैं । सासपोल सुंदर जगह है । यहां से आगे निकले ही थे कि बारिश का मौसम बन गया । पीछे के पहाडो पर मौसम खराब हो चुका था और आगे देखा तो हल्की सी धूप दिख रही थी और इसी के साथ हमें इंद्रधनुष के भी दर्शन हुए । पहली बार इसको कैमरे में कैद किया । काफी देर तक और दस किलोमीटर तक इंद्रधनुष के दर्शन होते रहे ।
हल्की हल्की बारिश पडने लगी थी और अभी तो लेह बहुत दूर था । दो से तीन घंटे लगने थे ऐसे में अगर बारिश तेजी से पडने लगी तो यहां पर रूकने की कोई जगह नही थी । थोडी देर तक हल्की बूंदाबांदी में ही चलते रहे । आगे जाकर एक दुकान दिखी जो कि एक निर्माणधीन साइट पर बनायी गयी थी अस्थायी रूप से । उस चाय की दुकान वाले से पूछा कि यहां पर रूकने को कोई जगह है तो उसने बताया कि 5 किलोमीटर साइड में एक गांव में होम स्टे है और उसका रास्ता मेन हाईवे से उल्टे हाथ की ओर जाता है । उसने ये भी बताया कि होम स्टे वाला बंदा अभी यहीं से गया है और आपको रास्ते में मिल जायेगा । उसने जो रास्ता बताया था वो कच्ची पगडंडी थी और दूर काली सडक दिख रही थी साथ ही गांव का गेट सा भी बना दिख रहा था । पीछे सूर्यास्त की तरह का नजारा हो रहा था शानदार । हमने बाइक कच्ची पगडंडी पर मोड ली पर थोडी दूर जाते ही अहसास हो गया कि हम गलत हैं और इस पर हमारी बाइक फंसनी ही है । ऐसे में दिक्कत हो जायेगी इसलिये वापस बाइक मोडकर मुख्य हाईवे पर ही बाइक ले आये । मिश्रा जी ने पूछा कि अब क्या करना है तो मैने बोला कि मेन हाईवे से ही जायेंगे और कुछ नही मिला तो अपना टैंट जिंदाबाद है ।
सवा छह बजे सासपोल पार किया और सात बजे हम बारिश से बचने को सहारा ढू्ंढ रहे थे । आधे घंटे बाद यानि साढे सात बजे हम बास्गो में थे । उस साइट से चलने के बाद बारिश तेज नही हुई और उसके बाद जो रोड आयी वो गजब थी । बहुत दूर तक फैली घाटी में सीधी लम्बी फैली सडक दिख रही थी । बाइक की स्पीड 80 तक पहुंच गयी थी । मौसम अंधेरे का होने लगा था और तभी बास्गो आया । पहले तो हमने नाम भी नही देखा था बस एक होटल का बोर्ड देखकर रूके और वहां पर होटल के बंदे को इशारे से बुलाया । उससे वहीं से पूछा कि कमरा कितने में मिल जायेगा तो उसने बोला कि कमरा 300 रूपये का है । होटल बाहर से शानदार दिख रहा था इसलिये कमरे में कोई दिक्कत होने की गुंजाईश नही थी ।
बाइक खडी करने के लिये होटल के पीछे जगह थी । उसमें कभी होटल वालो ने छतरियां बनायी होंगी उसके अंदर मैने बाइक खडी कर दी । आजकल पिछला हिस्सा चालू नही था । हमने सामान उतारा और होटल में ले गये । हम पहली मंजिल पर गये और जो कमरा हमें मिलने वाला था उसे होटल के बंदे ने खोला तो वहां से एक आदमी निकला जो कि उस कमरे में नहाकर निकला था जबकि वो रह रहा था सामने वाले कमरे में ।
उसी से पता चला कि पानी और बिजली दोनो की समस्या है पर होटल वाले बंदे ने बोला कि आप उपर अगर कमरा ले लो तो कोई समस्या नही होगी और वो हमें ले गया तीसरी मंजिल पर जो कि अंतिम भी थी और यहां पर तीन कमरे थे केवल । यहीं छत पर सोलर का सिस्टम लगा था गरम पानी के लिये । कमरा 3 बैड का था ।
साफ सुथरा और हर सुविधा से भरपूर काफी बडा बस लाइट के बारे में बता दिया गया कि रात के दस बजे तक ही मिल पायेगी । गर्म पानी बाहर मौजूद था ही । हमने सामान रखा और अपने सारे उपकरण लगा दिये चार्ज करने के लिये और उसके बाद हम खाना खाने के लिये नीचे बने रैस्टोरेंट में आ गये । सुंदर भोजनालय में खाना मिला तो आधे घंटे के इंतजार के बाद पर स्वादिष्ट था और खाने से भी ज्यादा स्वादिष्ट था मिर्च का अचार जो कि हमारे यहां पर भी बनाते हैं । 80 रूपये की थाली थी यानि आज हमारा रूकना खाना 500 रूपये में हो गया । रात को ठंड बढ गयी थी और हम जब खाना खाकर आये तो मैने बास्गो की मोनेस्ट्री की फोटो लेने की कोशिश की पर ठंड की वजह से इरादा त्याग दिया । लाइट का पता नही कब गयी क्योंकि हमें तो लेटने के बाद समय का पता ही नही रहा । सुबह सवेरे 6 बजे के लगभग उठे और तैयार होना शुरू हो गये । मौसम सुंदर दिख रहा था और साथ ही होटल से बास्गो की मोनेस्ट्री भी ।
देखने का मन तो था पर अब एक दिक्कत सामने आ गयी थी कि पैर में घुटने और उससे उपर जो पटटी बंधी थी उसके कारण कहीं चढाई पर नही चढा जा सकता था और मुझे उम्मीद थी कि हर मोनस्ट्री जो कि उंचाई पर बसी बनी है वहां पर कुछ ना कुछ सीढियां तो होंगी ही । मिश्रा जी नहाने से नही माने क्योंकि बकौल उनके जब मिल रहा है तो क्यों ना लें पर मै जानता था कि मुझे पटटी गीली होने के बाद दोबारा करवानी पडेगी । मिश्रा जी के पैरो में मामूली खरोंच थी और हाथ में भी । मिश्रा जी की नाक पर ज्यादा थी वो छिल गयी थी पर जब वो नही माने तो मैने भी ज्यादा नही जोर दिया । सुबह साढे सात बजे हम अपना सामान नीचे ले आये और बाइक को भी बाहर निकाल लिया । सामान लगाने से पहले आलू के परांठो का आर्डर दे दिया । जब हम रैस्टोरैंट में पहुंचे तो परांठे तैयार थे ।
मैने रात को भी मिश्रा जी को बता दिया था कि मेरे चक्कर में मत रहना मै दो या तीन रोटी ही खाता हूं तो आप अपनी खुराक पूरी लेना । मुझे अगर चावल मिल जाये तो रोटी की भी टाल हो जाती है पर आज कई दिन बाद आलू के परांठे मिले तो दो परांठे मै भी खा गया । सवा आठ बजे हम लेह के लिये चल दिये । आज चौथे दिन का समापन हुआ और इस चौथे दिन ने हमें चोट भी दी और उसके बावजूद भी हम 100 किलोमीटर कारगिल से सांकू आना जाना और फिर कारगिल से बास्गो करीब 180 किलोमीटर चले । बास्गो से लेह 50 किलोमीटर के करीब है ।
Leh laddakh-
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- Laddakh Bike travelogue , लददाख मोटरसाईकिल यात्रा वृतांत (साथी की तलाश )
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Lamayru moonland |
Lamayru moonland |
नदी के साथ संकरी घाटी |
और ये खुली घाटी में नदी के नजारे |
खालसी चैक पोस्ट , यहीं से बटालिक का रास्ता बांये हाथ से 75 किलोमीटर |
मनमोहक |
मनमोहक |
सासपोल में प्रवेश से पहले |
नदी के नजारे खूबसूरती से बढकर |
नदी के नजारे खूबसूरती से बढकर |
नदी के नजारे खूबसूरती से बढकर |
इंद्रधनुष |
यहीं पर रास्ता पूछा होम स्टे का , पीछे सूर्यास्त का नजारा |
अब पूरा आसमान नीला और सडक सीधी खुली |
बास्गो मोनस्ट्री |
हमारा कमरा |
हमारा कमरा |
भोजनालय |
रात का खाना |
बास्गो मोनेस्ट्री जूम से |
बास्गो के पहाड |
होटल के उपर का नजारा |
होटल बाहर से |
आलू परांठे वो भी मिर्च के अचार व सब्जी के साथ |
बहुत बढ़िया मनु भाई, वाकई ये सफर बाइक पर ही करने वाला है. कार वाली बात भी सही है आपकी कि सिर्फ दो ही हों और वो भी मीयां-बीवी......तो सोने पर सुहागा.ऐसी वादीयां ना तो दोबारा देखने के मिलती हैं और ना ही साथ ऐसा मिलता है......आपकी यात्रा को देख कर मुझे अपनी समाना से मैकलोडगंज की यात्रा याद आ गई जो मैं और मेरी पत्नी ने बाइक पर की थी. यात्रा चाहे छोटी थी लेकिन मजा बहुत आया था. पहाड़ो की सुंदरता तो बाइक पर ही दिख सकती है. अगर सड़के ही नापनी हैं तो अपने शहर में ही गेड़ी मारते रहो सारा दिन.....
Deleteबहुत बढ़िया...बहुत बढ़िया.
Truly Amazing
Deleteaksar yatra me thakan ke karan chidchidapan aa jata hai.
Deletebut the show must go on. very nice
बेहद मनोरंजक लेखन
Deleteशानदार
Deleteशानदार
Deleteगज़ब लैंडस्केप है भाई ! सच में शानदार ! ऐसी जगह अगर समय अगर भरपूर हो तो पैदल यात्रा में ज्यादा मजा आएगा !
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