खारदूंगला के रास्ते से वापस आने के बाद फिर से मन अनिश्चित था कि अब क्या किया जाये । एक रास्ता तो ये है कि होटल लेकर रूका जाये और सुबह सवेर...
खारदूंगला के रास्ते से वापस आने के बाद फिर से मन अनिश्चित था कि अब क्या किया जाये । एक रास्ता तो ये है कि होटल लेकर रूका जाये और सुबह सवेरे यहां से पेंगोंग के लिये चला जाये और दूसरा ये कि पेंगोंग के लिये अभी चलें जहां तक जा सकते हों । उससे पहले मिश्रा जी ने एक मैमारी कार्ड लेने की इच्छा जतायी और वे एक कैमरे की दुकान में चले गये । करीब आधा घंटा लगा दिया उन्होने । मिश्रा जी अपने साथ एक कैमरा लेकर आये थे जो कि मेरे वाला ही माडल है । अपने फोन और कैमरे दोनो की मैमारी अब तक उन्होने फुल कर दी थी वीडियो और फोटो से ।
जब तक मिश्रा जी मैमारी कार्ड लेकर आये तब तक मैने सडक किनारे बैठा एक चैन सही करने वाला ढूंढ लिया और उसे अपना टैंक बैग दिखाया जिसकी चैन फ्री हो चुकी थी । उसने दो चैन लगाने के 100 रूपये मांगे । मै हैरान था कि दस दस रूपये के काम के सौ रूपये मांग रहा है वो । मैने मना कर दिया पर कराना भी जरूरी था तो थोडी और सौदेबाजी करने के बाद 80 रूपये में लगवा ली । यहां की महंगाई जरूरी तो है क्योंकि इस दुर्गम इलाके में कोई भी सामान महंगा तो आता है पर इतना भी नही आता । मिश्रा जी मैमोरी कार्ड लेकर आ गये तो हम आगे चल पडे । यही इरादा बना कि चलते हैं और जहां तक रूकने का ठिकाना मिलने की गुंजाइश रहेगी वहां तक चलेंगें क्योंकि अभी चार बजे हैंहम जब लेह से चले तो बहुत तेज आंधी आयी । हमें पेंगोंग और वहां से चुशुल एरिया के लिये हमें एक्सट्रा पैट्रोल चाहिये होगा इसलिये एक कैन भी चाहिये होगी । हमारे पास सामान बहुत ज्यादा था और ऐसे में दस लीटर के करीब पैट्रोल की कैन को कैसे और कहां लेकर जायेंगे ये भी यक्ष प्रश्न था । पैट्रोल लेह से आगे कारू में मिलता है । हमने मनाली रोड पर चलना शुरू किया और उसके बाद मेन रोड पर एक गैराज दिखा जहां से 5 लीटर की एक खाली कैन ले ली । कारू के रास्ते में दो मोनेस्ट्री पडती हैं और दोनो लेह से बहुत ज्यादा दूर नही हैं । पहली है शे मोनेस्ट्री और दूसरी है थिकसे मोनेेस्ट्री । शे मोनेस्ट्री के पास ही सिंधु दर्शन नाम का भी बोर्ड लगा हुआ है जहां सिंधु एक छोटी नाली जैसी दिखती है । शे मोनस्ट्री से पांच मिनट बाद ही थिकसे मोनस्ट्री आती है जो कि शे से काफी बडी है । हम दोनो में से किसी पर नही रूके मेरी चोट की वजह से ।
इतना तो मन में तय भी कर लिया था कि इस बार चोट की वजह से जो काम नही हो पा रहे हैं उन्हे अगली बार करना है तो कुछ जगह हमें दोबारा लेह की ओर खींच लायें ऐसा होना भी जरूरी है । हो सकता है कि इसी सितम्बर में जाना हो तो जंस्कार घाटी , नुब्रा घाटी और लेह शहर के आसपास की जगहे उनमें शामिल है । थिकसे मोनेस्ट्री में काफी फिल्मो की शूूटिंग हुई है जिनमें बंटी और बबली में फिल्माया गया एक गाना काफी प्रसिद्ध है । थिकसे करीब 19 किलोमीटर है लेह से और कारू 30 किलोमीटर के पास है । 5 बजे हम थिकसे से निकले और कारू तक साढे पांच बजे पहुंच गये । इसी बीच मिश्रा जी ने बताया कि हमने जो कैन ली थी वो गिर गयी है तो कारू में गांव से दो किलोमीटर पहले पैट्रोल पम्प पडता है । हमने पम्प वाले से काफी कहा कि कोई कैन हो तो उसमें पैट्रोल दे दो पर उसने कैन के लिये मना कर दिया । हमें दो किलोमीटर पहले कारू जाना पडा और वहां पर कई दुकानो पर ढूंढने के बाद एक दुकान वाली महिला ने 40 रूपये में कैन दी जिसमें पैट्रोल भरवाने के लिये फिर से वापस दो किलोमीटर गये और पैट्रोल कैन में भी डलवाया और बाइक की टंकी भी फुल करा ली । वापिस एक बार फिर से कारू गांव आये और यहां से दो रास्ते है एक मनाली रोड और एक पेंगोंग रोड जिसमें से हमने पेंगोंग रोड पकड ली । यहां पर एक गांव पडता है शक्ति नाम ही समझ आता है उसका वैसे मील के पत्थर पर सरथी या सैरथी लिखा है अंग्रेजी में ये गांव आने तक तो रास्ता कोई खास चढाई वाला था ही नही पर गांव में जाने के बाद दूर से ही चढाई दिख रही थी और उपर मौसम भी खराब दिख रहा था । ऐसे में चांगला को पार करने के बारे में तो वैसे ही सोचना पड रहा था । गांव बहुत ही सुंदर लोकेशन पर है । यहां पर एक तिराहा है जहां से एक रास्ता वारी ला पास को होकर जाता है । वारी ला के बारे में हमने गांव में पूछा तो पता चला कि वो बंद है उसी तिराहे से एक रास्ता चांगला होकर पेंगोंग के लिये जाता है । चांगला के बारे में पता चला कि आज ही दो बजे के करीब वो खुला है क्योंकि उपर काफी बर्फबारी हुई थी । आज हम सक्ति गांव में रूक सकते हैं पर कल अगर फिर से बर्फबारी की वजह से दो बजे तक रूकना पडा तो बोर हो जायेंगें । इसलिये हम चांगला आज ही पार करेंगें ।
सक्ति गांव और चांगला के बीच में जिंगराल नाम के मील के पत्थर आते हैं । ये जगह पे एक कोठा यानि कमरा सा भी नही है जिसके नाम के बोर्ड लगा रखे हैं ये केवल एक बीआरओ का कैंप है जहां पर एक या दो टैंट लगे रहते हैं और एक दो मशीने खडी रहती हैं । पेंगोेंग तक लोग सर्दियो में भी पहुंच जाते हैं इसका मतलब ये है कि ये रास्ता खोलने की अधिकतम कोशिश रहती होगी बीआओ की इसलिये चांगला के एक साइड इधर और एक साइड उधर दोनो तरफ बीआरओ का कैंप है । सक्ति से चांगला तक लगातार चढाई थी और 5300 मीटर की उंचाई तक पहुुंचना कभी भी आसान तो रहता ही नही है । बाइक पर हमारे पास इतना सामान था कि पूछो मत । उपर से लेह से पांच किलो सामान बढ गया था मोटी मोटी जैकेट का और पांच लीटर मिटटी का तेल । ये हमारे अन्य सामान से अलग था और बाइक लोड मान रही थी । एक बार को तो हमने मन बनाया कि मिश्रा जी उतरकर किसी पीछे आ रहे वाहन में आ जायेंगें । एक कार आती दिखायी दी पीछे से और जिंगराल से थोडा पहले उसने हमें क्रास किया । कार लोकल नम्बर थी और उसमें तीन सवारी बैठी थी । हमने बाइक रोक ली और उन्हे हाथ दिया पर आश्चर्य ये रहा कि उन्होने कार नही रोकी । इतना गुस्सा आया कि पूछो मत और उसके बाद हमने किसी को रोकने के बारे में नही सोचा बस ये तय कर लिया कि मिश्रा जी उतर जायेंगें अगर ज्यादा दिक्कत हुई तो ।
लेकिन अब बारिश होनी शुरू गयी । शुक्र बस ये था कि तेज नही थी और लेह से ली गयी मोटी जैकेट और लोअर को हम दोनो ने अपने पहली जैकेट के उपर पहना हुआ था । ठंड बुरी तरह वार कर रही थी अगर ये कपडे नही लिये होते तो बुरा हाल हो जाना था । रास्ते में एक मिलिट्री अफसर चार कारो के काफिले के साथ पूरी रसद लिये जा रहा था । जिंगराल से अगले मोड पर उसकी खुद की गाडी में दिक्कत आ गयी । रास्ता चूंकि पूरा पथरीला था और रास्ता पक्का भी नही था इसलिये हमारी बाइक का पहिया भी कई बार उछल जाता था अगले वाला । मैने मिश्रा जी पूछा कि बारिश तेज होने का डर है तो आप आर्मी वालो की गाडी में जाना चाहते हो तो चले जाओ पर उन्होने मना कर दिया कि जो होगा देखा जायेगा । अब इसके बाद ये भी पक्का था कि हम चांगला पार भी कर लेंगें तो वहां रूकना सम्भव नही होगा तो इस समय तो हमें दो या तीन घंटे भी चलना पड सकता है पर चढाई के मुकाबले उतराई में कम समय लगता है इसलिये आशा भी कायम थी कि आठ बजे तक नीचे उतरकर कहीं पर रूक जायेंगें पर ऐसा नही हुआ ।
जिंगराल से केवल दस किलोमीटर चांगला तक जाना बडा दुश्वार हो गया । अब तो उपर से पानी की धाराये बहती मिलने लगी थी । लेह के मिस्त्री ने कमाल कर दिया था । जाने कौन सी सैटिंग की थी कि चांगला तक एक बार भी मुझे मिश्रा जी को उतरने को कहना नही पडा । गाडी भले कितनी भी धीमी चढ रही थी पर चढती गयी और सवा सात बजे चांगला से पहले एक पत्थर पास जैसा आया तो हमने वहीं पर फोटो खिंचा लिये । हां एक बात और कि सक्ति से लेकर चांगला तक हमने फोटो के लिये या किसी और काम के लिये बाइक नही रोकी सिवाय एक बार हाथ देने को कार को और एक बार फोटो खिंचवाने चांगला से एक किलोमीटर पहले । मौसम के हिसाब से घिग्गी बंधी हुई थी पर चांगला के पहले बारिश बंद हो गयी थी । पूरे रास्ते जय माता दी करते आये थे दोनो और जब फोटो खिंचवाकर चले तो दस मिनट बाद ही चांगला आ गया । यहां पर भी काफी बर्फ थी और चांगला बाबा का मंदिर और आर्मी के रहन सहन की जगहे देखकर समझ आया कि हम पहले ही रूक गये थे पर अब मिश्रा जी फट से बाइक से उतर गये और फोटो खींचने लगे ।
दो आर्मी के जवान हमारे पास आये और गौर से बाइक को देखने के बाद पूछताछ करने लगे । मै उनसे बात करता हुआ एक बार मिश्रा जी को बोल उठा कि मिश्रा जी चलो यहां से जल्दी पर मिश्रा जी कहां सुनने वाले थे और इधर उधर घूमने लगे । इतने में आर्मी वाला बोल उठा — अरे बाबले निकल ले जल्दी से नही तो यहीं पडा पावेगा । अब मिश्रा जी को थोडा सीरियस लगा । आर्मी वालो ने पहले तो हमें सुनायी कि ये समय नही है बाइक से चांगला पार करने का । यहां पर आर्मी वालो को सियाचीन जैसी जगहो पर भेजने से पहले इतने कठिन तापमान में रहना सिखाया जाता है पर हम जैसे लोग नही रह सकते हैं पहले ही दिन इतनी उंचाई पर तो मिश्रा जी पैट्रोल की कैन उठायी और बैठ लिये । साढे सात बजे हम चांगला पर थे और उसके बाद उतराई शुरू होने पर हमें तेजी की उम्मीद थी वो धूमिल हो गयी । यहां तो चढाई से भी बुरा हाल था और उपर से अंधेरा हो गया था । नीचे जाती सडक खराब थी और इसी अंधेरे में सांप की तरह घुमावदार लाइटे दिख रही थी जो आर्मी वालो की चार कारो की थी । इसी बीच एक नाला आया और मामूली सी यानि मात्र दस की स्पीड होने के बावजूद भी बाइक फिसल गयी और हम धीरे धीरे गिर पडे । साला फिर उसी साइड से गिरे जिस साइड चोट लगी थी । बाइक से काफी पैट्रोल बह गया और कपडे और सामान भी गीले हो गये । धीरे धीरे गिरे यानि हम तेजी में तो थे ही नही साथ ही दोनो ने भरपूर कोशिश की ना गिरने की तब भी रूक नही पाये । हम उठे और मिश्रा जी पैदल चल पडे वहीं मैने बाइक स्टार्ट की और जैसे ही चला तो पिछला पहिया फिर से फिसलने लगा । बडी मुश्किल से रोका और उस जगह को पहले रूककर बाइक की लाइट में देखा । नाले में जो पत्थर थे उन पर बर्फ जमी थी पक्की वाली उनकी वजह से ऐसा हुआ था वरना इस नाले में तो चार इंच भी पानी नही था जो हम फिसल जाते । बाइक को बिना गियर में डाले ही संभालकर पार करा ली क्योंकि वैसे तो उतराई ही थी । इस नाले के बाद कोई दिक्कत नही आयी और बीआरओ का कैम्प भी आराम से आ गया पर यहां पर कोई नही दिखा तो हम और आगे चलते रहे । अभी डुरबुक के पत्थर लिखे आ रहे थे और इसी बीच एक मोड पर एक लाइट दिखायी दी गाडी की । पास जाकर देखा तो पता चला कि दो बंदे टैंट लगा रहे हैं । यहां पर उनका सीजन होटल होता है और अबकी बार वो आज से ही शुरूआत कर रहे हैं । वो नीचे गांव से ही हैं जो कि दस किलोमीटर से थोडा ज्यादा सा है पर वो सारा सामान ले आये बस सोलर लाइट भूल गये इसलिये सारा काम करने के लिये उन्होने अपनी गाडी की लाइट जला रखी थी । वो अलग बात है कि इसकी वजह से सुबह उनकी गाडी की बैट्री डाउन मिली । अब हमें दुनिया की सबसे बढिया जगह वहीं नजर आ रही थी । हमने उनसे बात की तो वे बोले कि हमारे पास टैंट नही है अगर आपके पास है तो लगा लो हम मदद कर देंगें लगाने में और इतना सुनते ही हमने अपनी बाइक वहीं पर रोक दी रात भर के लिये
इतना तो मन में तय भी कर लिया था कि इस बार चोट की वजह से जो काम नही हो पा रहे हैं उन्हे अगली बार करना है तो कुछ जगह हमें दोबारा लेह की ओर खींच लायें ऐसा होना भी जरूरी है । हो सकता है कि इसी सितम्बर में जाना हो तो जंस्कार घाटी , नुब्रा घाटी और लेह शहर के आसपास की जगहे उनमें शामिल है । थिकसे मोनेस्ट्री में काफी फिल्मो की शूूटिंग हुई है जिनमें बंटी और बबली में फिल्माया गया एक गाना काफी प्रसिद्ध है । थिकसे करीब 19 किलोमीटर है लेह से और कारू 30 किलोमीटर के पास है । 5 बजे हम थिकसे से निकले और कारू तक साढे पांच बजे पहुंच गये । इसी बीच मिश्रा जी ने बताया कि हमने जो कैन ली थी वो गिर गयी है तो कारू में गांव से दो किलोमीटर पहले पैट्रोल पम्प पडता है । हमने पम्प वाले से काफी कहा कि कोई कैन हो तो उसमें पैट्रोल दे दो पर उसने कैन के लिये मना कर दिया । हमें दो किलोमीटर पहले कारू जाना पडा और वहां पर कई दुकानो पर ढूंढने के बाद एक दुकान वाली महिला ने 40 रूपये में कैन दी जिसमें पैट्रोल भरवाने के लिये फिर से वापस दो किलोमीटर गये और पैट्रोल कैन में भी डलवाया और बाइक की टंकी भी फुल करा ली । वापिस एक बार फिर से कारू गांव आये और यहां से दो रास्ते है एक मनाली रोड और एक पेंगोंग रोड जिसमें से हमने पेंगोंग रोड पकड ली । यहां पर एक गांव पडता है शक्ति नाम ही समझ आता है उसका वैसे मील के पत्थर पर सरथी या सैरथी लिखा है अंग्रेजी में ये गांव आने तक तो रास्ता कोई खास चढाई वाला था ही नही पर गांव में जाने के बाद दूर से ही चढाई दिख रही थी और उपर मौसम भी खराब दिख रहा था । ऐसे में चांगला को पार करने के बारे में तो वैसे ही सोचना पड रहा था । गांव बहुत ही सुंदर लोकेशन पर है । यहां पर एक तिराहा है जहां से एक रास्ता वारी ला पास को होकर जाता है । वारी ला के बारे में हमने गांव में पूछा तो पता चला कि वो बंद है उसी तिराहे से एक रास्ता चांगला होकर पेंगोंग के लिये जाता है । चांगला के बारे में पता चला कि आज ही दो बजे के करीब वो खुला है क्योंकि उपर काफी बर्फबारी हुई थी । आज हम सक्ति गांव में रूक सकते हैं पर कल अगर फिर से बर्फबारी की वजह से दो बजे तक रूकना पडा तो बोर हो जायेंगें । इसलिये हम चांगला आज ही पार करेंगें ।
सक्ति गांव और चांगला के बीच में जिंगराल नाम के मील के पत्थर आते हैं । ये जगह पे एक कोठा यानि कमरा सा भी नही है जिसके नाम के बोर्ड लगा रखे हैं ये केवल एक बीआरओ का कैंप है जहां पर एक या दो टैंट लगे रहते हैं और एक दो मशीने खडी रहती हैं । पेंगोेंग तक लोग सर्दियो में भी पहुंच जाते हैं इसका मतलब ये है कि ये रास्ता खोलने की अधिकतम कोशिश रहती होगी बीआओ की इसलिये चांगला के एक साइड इधर और एक साइड उधर दोनो तरफ बीआरओ का कैंप है । सक्ति से चांगला तक लगातार चढाई थी और 5300 मीटर की उंचाई तक पहुुंचना कभी भी आसान तो रहता ही नही है । बाइक पर हमारे पास इतना सामान था कि पूछो मत । उपर से लेह से पांच किलो सामान बढ गया था मोटी मोटी जैकेट का और पांच लीटर मिटटी का तेल । ये हमारे अन्य सामान से अलग था और बाइक लोड मान रही थी । एक बार को तो हमने मन बनाया कि मिश्रा जी उतरकर किसी पीछे आ रहे वाहन में आ जायेंगें । एक कार आती दिखायी दी पीछे से और जिंगराल से थोडा पहले उसने हमें क्रास किया । कार लोकल नम्बर थी और उसमें तीन सवारी बैठी थी । हमने बाइक रोक ली और उन्हे हाथ दिया पर आश्चर्य ये रहा कि उन्होने कार नही रोकी । इतना गुस्सा आया कि पूछो मत और उसके बाद हमने किसी को रोकने के बारे में नही सोचा बस ये तय कर लिया कि मिश्रा जी उतर जायेंगें अगर ज्यादा दिक्कत हुई तो ।
लेकिन अब बारिश होनी शुरू गयी । शुक्र बस ये था कि तेज नही थी और लेह से ली गयी मोटी जैकेट और लोअर को हम दोनो ने अपने पहली जैकेट के उपर पहना हुआ था । ठंड बुरी तरह वार कर रही थी अगर ये कपडे नही लिये होते तो बुरा हाल हो जाना था । रास्ते में एक मिलिट्री अफसर चार कारो के काफिले के साथ पूरी रसद लिये जा रहा था । जिंगराल से अगले मोड पर उसकी खुद की गाडी में दिक्कत आ गयी । रास्ता चूंकि पूरा पथरीला था और रास्ता पक्का भी नही था इसलिये हमारी बाइक का पहिया भी कई बार उछल जाता था अगले वाला । मैने मिश्रा जी पूछा कि बारिश तेज होने का डर है तो आप आर्मी वालो की गाडी में जाना चाहते हो तो चले जाओ पर उन्होने मना कर दिया कि जो होगा देखा जायेगा । अब इसके बाद ये भी पक्का था कि हम चांगला पार भी कर लेंगें तो वहां रूकना सम्भव नही होगा तो इस समय तो हमें दो या तीन घंटे भी चलना पड सकता है पर चढाई के मुकाबले उतराई में कम समय लगता है इसलिये आशा भी कायम थी कि आठ बजे तक नीचे उतरकर कहीं पर रूक जायेंगें पर ऐसा नही हुआ ।
जिंगराल से केवल दस किलोमीटर चांगला तक जाना बडा दुश्वार हो गया । अब तो उपर से पानी की धाराये बहती मिलने लगी थी । लेह के मिस्त्री ने कमाल कर दिया था । जाने कौन सी सैटिंग की थी कि चांगला तक एक बार भी मुझे मिश्रा जी को उतरने को कहना नही पडा । गाडी भले कितनी भी धीमी चढ रही थी पर चढती गयी और सवा सात बजे चांगला से पहले एक पत्थर पास जैसा आया तो हमने वहीं पर फोटो खिंचा लिये । हां एक बात और कि सक्ति से लेकर चांगला तक हमने फोटो के लिये या किसी और काम के लिये बाइक नही रोकी सिवाय एक बार हाथ देने को कार को और एक बार फोटो खिंचवाने चांगला से एक किलोमीटर पहले । मौसम के हिसाब से घिग्गी बंधी हुई थी पर चांगला के पहले बारिश बंद हो गयी थी । पूरे रास्ते जय माता दी करते आये थे दोनो और जब फोटो खिंचवाकर चले तो दस मिनट बाद ही चांगला आ गया । यहां पर भी काफी बर्फ थी और चांगला बाबा का मंदिर और आर्मी के रहन सहन की जगहे देखकर समझ आया कि हम पहले ही रूक गये थे पर अब मिश्रा जी फट से बाइक से उतर गये और फोटो खींचने लगे ।
दो आर्मी के जवान हमारे पास आये और गौर से बाइक को देखने के बाद पूछताछ करने लगे । मै उनसे बात करता हुआ एक बार मिश्रा जी को बोल उठा कि मिश्रा जी चलो यहां से जल्दी पर मिश्रा जी कहां सुनने वाले थे और इधर उधर घूमने लगे । इतने में आर्मी वाला बोल उठा — अरे बाबले निकल ले जल्दी से नही तो यहीं पडा पावेगा । अब मिश्रा जी को थोडा सीरियस लगा । आर्मी वालो ने पहले तो हमें सुनायी कि ये समय नही है बाइक से चांगला पार करने का । यहां पर आर्मी वालो को सियाचीन जैसी जगहो पर भेजने से पहले इतने कठिन तापमान में रहना सिखाया जाता है पर हम जैसे लोग नही रह सकते हैं पहले ही दिन इतनी उंचाई पर तो मिश्रा जी पैट्रोल की कैन उठायी और बैठ लिये । साढे सात बजे हम चांगला पर थे और उसके बाद उतराई शुरू होने पर हमें तेजी की उम्मीद थी वो धूमिल हो गयी । यहां तो चढाई से भी बुरा हाल था और उपर से अंधेरा हो गया था । नीचे जाती सडक खराब थी और इसी अंधेरे में सांप की तरह घुमावदार लाइटे दिख रही थी जो आर्मी वालो की चार कारो की थी । इसी बीच एक नाला आया और मामूली सी यानि मात्र दस की स्पीड होने के बावजूद भी बाइक फिसल गयी और हम धीरे धीरे गिर पडे । साला फिर उसी साइड से गिरे जिस साइड चोट लगी थी । बाइक से काफी पैट्रोल बह गया और कपडे और सामान भी गीले हो गये । धीरे धीरे गिरे यानि हम तेजी में तो थे ही नही साथ ही दोनो ने भरपूर कोशिश की ना गिरने की तब भी रूक नही पाये । हम उठे और मिश्रा जी पैदल चल पडे वहीं मैने बाइक स्टार्ट की और जैसे ही चला तो पिछला पहिया फिर से फिसलने लगा । बडी मुश्किल से रोका और उस जगह को पहले रूककर बाइक की लाइट में देखा । नाले में जो पत्थर थे उन पर बर्फ जमी थी पक्की वाली उनकी वजह से ऐसा हुआ था वरना इस नाले में तो चार इंच भी पानी नही था जो हम फिसल जाते । बाइक को बिना गियर में डाले ही संभालकर पार करा ली क्योंकि वैसे तो उतराई ही थी । इस नाले के बाद कोई दिक्कत नही आयी और बीआरओ का कैम्प भी आराम से आ गया पर यहां पर कोई नही दिखा तो हम और आगे चलते रहे । अभी डुरबुक के पत्थर लिखे आ रहे थे और इसी बीच एक मोड पर एक लाइट दिखायी दी गाडी की । पास जाकर देखा तो पता चला कि दो बंदे टैंट लगा रहे हैं । यहां पर उनका सीजन होटल होता है और अबकी बार वो आज से ही शुरूआत कर रहे हैं । वो नीचे गांव से ही हैं जो कि दस किलोमीटर से थोडा ज्यादा सा है पर वो सारा सामान ले आये बस सोलर लाइट भूल गये इसलिये सारा काम करने के लिये उन्होने अपनी गाडी की लाइट जला रखी थी । वो अलग बात है कि इसकी वजह से सुबह उनकी गाडी की बैट्री डाउन मिली । अब हमें दुनिया की सबसे बढिया जगह वहीं नजर आ रही थी । हमने उनसे बात की तो वे बोले कि हमारे पास टैंट नही है अगर आपके पास है तो लगा लो हम मदद कर देंगें लगाने में और इतना सुनते ही हमने अपनी बाइक वहीं पर रोक दी रात भर के लिये
Leh laddakh-
- Baralachala-Rohtang -Manali- Delhi
- Pang-Sarchu-Lachungla-Nakeela-Baralachala
- tso moriri-tso kar-Debring-Pang
- Loma-Nyoma-Tso moriri
- Loma-Dongti-Hanle-Loma
- Chushul -Saga la -Loma
- Pangong-man-Merak-Chushul
- Pangong lake ( Photo story )
- Durbuk - Tangaste - Pangong
- Leh-Chang la -Durbuk
- Leh- Southpullu - Leh
- Basgo- Nimmu-Magnatic hill -Pathar sahib-Leh
- Lamayru-Basgo
- Namik la - Fatu la - Lamayru
- Kargil - Namik la
- Kargil - Sanku -Kargil
- Drass - Kargil
- Zojila - Drass , Leh laddakh road trip
- Sonmarg - Zoji la pass , Leh laddakh yatra
- srinagar -Sonmarg , Leh laddakh yatra
- Udhampur - Srinagar , Leh Laddakh yatra
- Delhi - Jammu - Udhampur , Leh Laddakh yatra
- Laddakh Bike travelogue , लददाख मोटरसाईकिल यात्रा वृतांत (साथी की तलाश )
- Laddakh Bike travelogue , लददाख मोटरसाईकिल यात्रा वृतांत (तैयारी )
Awesome pic bro
DeleteAwesome pic bro
Deleteबहुत बढ़िया मिश्रा जी, हिम्मत नहीं हारी आपने....
Deleteबहुत बढ़िया मिश्रा जी, हिम्मत नहीं हारी आपने....
Deleteओह दोबारा बाइक फिसली
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteअनदेखी -अनजानी सी जगहों पर दो दीवाने ! गज़ब
DeleteBhai Ji...Bahot Badhiya Yatra Vrutant Aur Usse Bhi Badhiya Photos...
DeleteAapne To Hame Gar Baithe Hi Leh Ladakh Ki Moj Diladi...