यात्रा मनुष्य के स्वभाव में तबसे है जबसे मनुष्य की शुरूआत हुई है । आदि काल से मानव देश और दुनिया को घूमना चाहता है । आज के युग में ...
यात्रा मनुष्य के स्वभाव में तबसे है जबसे मनुष्य की शुरूआत हुई है । आदि काल से मानव देश और दुनिया को घूमना चाहता है । आज के युग में तो इस इच्छा ने और भी गति पकड ली है क्योंकि आजकल साधन बहुत उपलब्ध है । घर से बाहर निकलने के बाद भी आदमी अपने घर और काम से जुडा रहता है तो ऐसा लगता ही नही है कि वो घूमने आया है । अब से कुछ साल पहले जब तक मोबाईल की सुविधा नही थी तब तक भी घर से बाहर निकलने से लेकर घर आने तक घरवालो को चिंता खाये जाती थी पर आजकल ऐसा कम है । चिंता तो आज भी है लेकिन चूंकि पल पल बात होती रहती है इसलिये संतोष बना रहता है । पर क्या इससे दुर्घटनायें या हादसे होने कम हुए हैं ।
कम तो हुए हैं पर खत्म ना हुए हैं और ना होंगें । कुछ हादसे अज्ञानता वश होते हैं तो कुछ साहसिक रोमांच की तलाश में होते हैं । कुछ स्वास्थय कारणो से और कुछ अन्य कारणो से । इनमें भी सबसे ज्यादा हादसे पहाडो पर होते हैं क्योंकि अक्सर लोग पहाडो को कमतर आंकते हैं और अपनी सुरक्षा के प्रति लापरवाही ज्यादा बरतते हैं । जो लोग ग्रुप में जाते हैं वो ज्यादा लापरवाही बरतते हैं ऐसा मैने महसूस किया है क्योंकि वो हर बात दूसरे साथियो पर डालकर चलते हैं । अकेला व्यक्ति कम लापरवाही करता है । लेकिन जाना तो ज्यादातर ग्रुप में ही होता है चूंकि अक्सर ग्रुप में यात्रा करने का खर्च कम भी आता है । तो ज्यादा भूमिका ना बनाते हुए मै इस पोस्ट में केवल उन सावधानियो की तरफ ध्यान दिलाना चाहूंगा जो हमें अपनानी चाहिये वो भी केवल पहाडो की यात्रा में क्योंकि वैसे तो इस विषय का दायरा काफी बडा है पर फिलहाल चर्चा इसी पर
क्या करेंगें अगर कोई दुर्घटना हो जाये तो —
सबसे पहला सवाल आप अपने मन में सोचें कि अगर कोई दुर्घटना हो जाये तो आप क्या करेंगें तो आप बहुत हद तक उन सवालो के जवाब पा लेंगें जो आपके मन में सबसे पहले आयेंगें । हम अपने लिये क्या कर सकते हैं और दूसरो के लिये क्या कर सकते हैं । हमारी क्षमताऐं क्या हैं और हमारे साथियो की क्या हैं ।
क्या हमारे पास बैकअप है —
धन का बैकअप —
धन का बैकअप —
क्या हमारे पास इमरजेंन्सी का बैकअप है । अगर किसी वजह से दुर्घटना हो जाये तो हमारे पास इतना धन है कि हम उसमें काम चला सकें । उदाहरण के लिये केदारनाथ की आपदा का जिक्र करूंगा कि उसमें कुछ लोग बच पाये क्योंकि मौकापरस्त घोडे खच्चर वालो ने कई गुने पैसे लेकर उनको सुरक्षित स्थान पर छोड दिया । लोगो को खाने पीने के सामान के दस गुने से भी ज्यादा कीमत चुकानी पडी । जिनके पास थे वो बच गये और जिनके पास नही थे उन्होने कैसे उस मुसीबत को झेला ये भी सबको पता है । ये बात आज इस परिपेक्ष में भी जरूरी है क्योंकि आजकल लोग एटीएम पर ज्यादा भरोसा करते हैं और ज्यादा धन साथ में लेकर चलना ठीक नही समझते । मै इसे दूसरे तरीके से लेता हूं । अगर मै ग्रुप में हूं तो अक्सर सभी साथियो से चर्चा कर लेता हूं कि उनके पास कितना नकद है और मेरे पास कितना । मै आगे तक के प्रोग्राम पर भी चर्चा कर लेता हूं कि किसी अगले एटीएम तक पहुंचने तक हमें कितना धन चाहिये होगा और हमें उससे ज्यादा ही रखकर चलना चाहिये । हर किसी साथी के पास अपना अपना धन अलग से होना चाहिये । अगर आपको दस हजार रूपये की जरूरत है तो आप चार आदमी के पास पांच पांच हजार रूपये नकद हों तो सबसे बढिया है । ये एक उदाहरण है आशा है आप समझ गये होंगें
परिवार का बैकअप —
कई बार हम घर से ये तो बताकर निकलते हैं कि हम घूमने जा रहे हैं और फलां जगह फलां दोस्तो के साथ जा रहे हैं पर सच बताउं तो अक्सर हमारे घरवालो को उन जगहो के बारे में सही से पता भी नही होता । हिमालय के दुर्गम इलाको में जहां आप ही पहली बार जा रहे हैं वहां के बारे में आपके पिता , पत्नी या बच्चो को अंदाजा भी नही होता । दुर्घटना की स्थिति में वो लोकल प्रशासन के पास फोन करने तक के लिये भटकते हैं और जाने के साधन के लिये भी ।
मेरी नजर में सबसे कुछ काम जरूरी हैं हिमालय के ट्रैक पर जाने से पहले
1— घरवालो के सामने आपका प्लान बने
2—घरवालो को लोकेशन की जानकारी हो अगर वे ज्यादा उत्साहित नही हैं तो कोई बात नही आप अपने नक्शे आदि की एक कापी घर पर छोडकर जायें ।
3— आप खुद जिस क्षेत्र में जा रहे हैं इंटरनेट से वहां की प्रशासन की साइट से नम्बर आदि लेकर उसकी एक कापी घर रखकर जायें
4— अगर आपकी कोई अग्रिम बुकिंग है किसी होटल या किसी ग्रुप के साथ तो उनके नम्बर होने चाहियें घरवालो के पास
5— अगर आपने कोई ग्रुप टूर बुक किया है तो उसके लोकल आफिस से लेकर ग्रुप के कैम्प आफिस और आपके गाइड जिसका भी नम्बर आपको वहां जाकर भी मिले उसे मैसेज कर दें घरवालो के नम्बर पर चाहे वो पढें या ना पढें
6 — हो सके तो यात्रा बीमा कराकर जायें । ये आनलाइन हो जाता है और पालिसी भी तुरंत मिल जाती है । आजकल ऐसी भी साइटस हैं जो बहुत सारी बीमा कम्पनियो में तुलना करके भी बता देती हैं कि किसका बीमा सस्ता है । ये ज्यादा महंगा भी नही होता है बहुत ही मामूली लागत है ।
7—आप अगर दोस्तो के साथ घूमने जा रहे हैं तो अपने साथियो के नम्बर और उनके घरवालो के नम्बर अपने घर पर दें और अपने साथियो को भी ऐसा ही करने को कहें क्योंकि कई बार पहाड पर आपके या आपके साथियो के नम्बर नही मिलते ऐसे में वो लोग आपस में बात करके जानकारी शेयर कर सकते हैं ।
8— मोबाईल पर तो आजकल सब घरवालो को अपनी लोकेशन और पल पल की खबर बताते रहते हैं पर पहाड में जीपीएस के सिग्नल तब भी काम आते हैं जब मोबाईल के नेटवर्क नही मिलते । अगर आप जीपीएस के बैट्री खाने से परेशान हैं तो थोडी थोडी दूर पर उसे खोलते रहें । इस समस्या के लिये घूमने जाते समय पावर बैंक जरूर रखें और भटकने की स्थिति में सबसे पहला काम अपने फोन की बैट्री को बचाने का करें ।
9—अगर आप पहाडो पर पहली बार इंटरनेट पर बने मित्रो के साथ जा रहे हैं तो उनसे पहले काफी बाते कर लेनी चाहियें
10 — अपने आभासी मित्रो से अपनी शारिरिक क्षमता के बारे मेें और उनकी क्षमता के बारे में बात करनी चाहिये । अक्सर ट्रैक में लोग आगे पीछे हो जाते हैं ऐसे में वो लोग आपको साथ लेकर चलेंगें या नही या आगे पीछे होने पर आप कहां मिलेेंगें और सिग्नल ना होने की स्थिति में आप कैसे उन्हे सम्पर्क करोगे ये सब बाते घर से जाने से पहले और ट्रैक पर भी लगातार होती रहनी चाहिये ।
11— पहाड पर आपको अपने साथियो को लगातार सचेत करना चाहिये कि वो आपको और आप उन्हे दिखते रहें । अगर दिखने वाली स्थिति यानि उपर से नीचे की नही है तो निश्चित समय के अंतराल पर उन्हे मिलने को कहें ।
12— अगर आपके साथी ऐसा नही करते हैं तो उन्हे छोडना बेहतर है उसकी बजाय किसी लोकल को पैसा अपने साथ चलने के लिये तैयार करना श्रेष्ठ है ।
13 — अपने होटल से भले आप खाली करके चलें हो पर उनसे चर्चा करके चलें कि आप ट्रैक पर किस दिशा और रास्ते से जा रहे हैं लोकल बंदा आपको हमेंशा सही सलाह देगा । अगर आपको उसकी सलाह रास नही आ रही है तो एक दो से और मिलें बात करें
14— रास्ते में अक्सर लोकल लोग ढाबा , चाय की दुकान खोले रखते हैं । उन लोगो के पास बैठकर बात करें भले आप कुछ खायें या नही । किसी दुखद स्थिति में फोटो लिये ढूंढ रहे परिजनो को ऐसे लोगो से मदद मिलती है साथ ही रेस्कयू टीम को भी
15—अपने पास दवाईयां जरूर रखें । बिना दवाईयो के पहाडो पर और खासकर ट्रैक पर निकलना मूर्खता की निशानी है क्योंकि पहाडी लोगो के पास खुद ही दवाईयां उपलब्ध नही होती दुर्गम इलाको में
16— अगर आप ग्रुप में हैं तो कभी भी अकेले ना हों । कम से कम दो बंदे एक साथ रहें तो श्रेष्ठ है ।
16— अगर आप पहली बार जा रहे हो ट्रैक पर तो भी और पचासवी बार तो भी , पहाड पर चढने का सबसे बढिया और सुरक्षित तरीका है छोटे कदम रखना और जल्दीबाजी ना करनाा यहां पर छोटे कदम से मेरा आशय है आपका पैर जितना बडा है उतना ही बडा कदम रखना यानि ज्यादा से ज्यादा दस इंच । इसमें कभी भी आपका सांस नही फूलेगा ।
17— कुछ लोग शुरूआत में तेज चलते हैं बल्कि युवा तो भागते हैं । पहाड पर और खासकर उंचे होते जाते ट्रैक पर भागना या तेज चलना सही नही है चाहे वो ट्रैक एक किलोमीटर का ही क्यों ना हो
18—पहली बार में ज्यादा उंचाई वाला ट्रैक ना करें पर अगर करना ही है तो एएमएस जैसे लक्षणो की गोली एडवांस में लेने में कोई बुराई नही है क्योंकि वो दवाई लक्षण दिखने के बाद अक्सर काम नही करती है ।
19— जब भी आराम करने के लिये रूकें तो अपने आगे पीछे उपर नीचे सब तरफ देखें । आगे जाने वाले रास्ते की तरफ भी अंदाजा लगाने की कोशिश करें । कहीं खेत में किसी लोकल को देखें तो उस जगह को याद रखें ।
20—आपका शरीर आपको क्या कहता है इसे कभी अनदेखा ना करें । अगर आपका शरीर आराम करने के लिये कह रहा है तो आराम करें भले आपका ट्रैक आपको अधूरा छोडना पडे देर होने की वजह से पर इस बात को अनदेखा ना करें , ना करें ।
मुझे लगता है कि काफी बाते जो मै अपने अनुभव से बता सकता था लिख दी हैं । अगर कोई बात ऐसी है जो इस पोस्ट में शामिल होनी चाहिये तो आप कमेंट बाक्स में लिखें उसका स्वागत है ।
बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट है
ReplyDeleteआप लोग खूब यात्राएं करते रहते हैं, इसलिए आपको यात्रा में क्या-क्या कठिनाई आदि आती हैं इसका अच्छा-ख़ासा अनुभव है ..आपके इस अनुभव लाभ को हम जैसे सैकड़ों कभी कभार भूले भटके यात्रा करने वालों के लिए बड़ा ही उपयोगी है ...
ReplyDeleteसार्थक और उपयोगी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
Bahut Achchi jaankaari !
ReplyDeleteबहुत महत्वपूर्ण पोस्ट है।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण पोस्ट मनु भाई ।
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण पोस्ट मनु भाई ।
ReplyDeleteबेहद उमदा जानकारी
ReplyDeleteबेहद उमदा जानकारी
ReplyDeleteबहुत सही जानकारी
ReplyDeleteबेहद उम्दा जानकारी
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट .......मनु भाई !!
ReplyDeleteइसमें एक बात और कभी भी हड़बड़ी वाले ट्रेकर के साथ न जाएँ ......जिसकी छुट्टियां कम हो या फिक्स काउन्टिंग कर के छुट्टियाँ ली हो !! एक दो दिन ज्यादा लगे जाये तो भी कोई बात नहीं !!
Nice useful tips.
ReplyDeleteNice useful tips.
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-09-2016) को "बचपन की गलियाँ" (चर्चा अंक-2454) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सचमुच ज्ञान की बात मनु भाई ने बताई है स्वागत योग्य पोस्ट। मार्गदर्शन हेतु धन्यवाद।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "नाम में क्या रखा है!? “ , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteमेने अपने जीवन में हिमालय की कई बार यात्रा की है ,पर अधिकतर अकेले ही यात्रा की ,ग्रुप के साथ यानि मेरे परिवार के साथ केवल तीर्थ यात्रा करता रहा हूँ / अब सेवा करने की आयु समाप्त हो गई है / अधिकतर घर पर खाली रहता हूँ ,अगर कोई ग्रुप यात्रा पर जा रहा हो तो मुझ से जरुर सम्पर्क करें .शारीरिक रूप से ठीक हूँ
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