ओरछा में घूमने के बाद हमारा आगे का कार्यक्रम ये था कि आज रात हमारी ट्रेन थी जबलपुर के लिये और तब तक हमें यहीं आसपास और कुछ घूमना था ।...
ओरछा में घूमने के बाद हमारा आगे का कार्यक्रम ये था कि आज रात हमारी ट्रेन थी जबलपुर के लिये और तब तक हमें यहीं आसपास और कुछ घूमना था । हमने सोनागिर की पहाडियो पर बने मंदिरो को देखा था सुबह ट्रेन से आते हुए और ये बडे सुंदर दिखायी दे रहे थे । मैने कमल भाई से कहा कि हमें वहीं जाना है और उन मंदिरो को देखना है । सोनागिर के मंदिर पूरी तरह से जैन मंदिरो की एक श्रंखला है । हमने ओरछा से दतिया के लिये बस पकडी और दतिया पहुंंच गये । दतिया से सोनागिर के लिये भी उसी बस में रहे और कंडक्टर से बता दिया कि हमें सोनागिर उतार देना । कंडक्टर ने हमें हाइवे पर एक जगह उतार दिया और बताया कि यहां से आटो पकड कर सोनागिर चले जाओ । हम यहां पर उतरकर आटो का इंतजार करने लगे । कमल सिंह पूरा भुक्खड आदमी है और यहां पर खडे एक चाट वाले से चाट बनवा ली तब तक । सोनागिर के लिये बहुत देर इंतजार करने के बाद भी जब कोई आटो नही मिला तो हमें वहीं खडे एक आदमी ने बताया कि एक किलोमीटर बाद रेलवे स्टेशन है और वहां पर आपको आटो मिल जायेगा । हम पैदल ही निकल पडे सोनागिर के लिये । एक किलोमीटर बाद रेलवे स्टेशन आया और वहां से हमें एक आटो मिल गया जिसने हमें सोनागिर कस्बे में उतार दिया ।
जैसा कि हमें ट्रेन से दिखायी दिया था वैसा ही नजारा गांव से दिखायी देने लगा था । गांव में घुसते ही मंदिरो की श्रंखला शुरू हो गयी । सोनागिर पहाडी पर बसा है और पहाडी पर 82 मंदिर हैं और गांव में नीचे 26 मंदिर । यहां के प्रमुख चौराहे पर आकर पता चला कि यहां पर सब मंदिर दोपहर से पहले बंद हो जाते हैं और उसके बाद शाम के 3 बजे से उनके दोबारा खुलने का सिलसिला प्रारंभ होता है । कुछ मंदिर 4 बजे भी खुलते हैं । केवल यहीं तक बात रहती तो ठीक था पर साथ ही पहाडी पर जाने के लिये जो रास्ता है वो भी बंद कर दिया जाता है । उसे भी 3 बजे ही खोला जाता है । खैर मै और कमल सिंह वहीं पर बैठ गये और इंतजार करने लगे । पूरे ढाई घंटे हमने इंतजार किया और तब तक और भी श्रद्धालु आ गये थे । 3 बजे जब खुलने का समय हुआ तो हम उस जगह गये जहां पर पहाडी पर जाने का रास्ता था तो वहां पर बताया गया कि पहाडी पर पवित्र क्षेत्र है और वहां जाने से पहले आपको फोन और कैमरा सब यहीं पर छोडना पडेगा । कैमरे को तो अक्सर बहुत सारी जगहो पर प्रतिबंधित किया जाता है पर फोन को भी ना ले जाने देना तो गलत है । किसी विशेष मंदिर में नही अपितु एक पूरे पहाडी क्षेत्र में । क्योंकि हम जैन श्रद्धालु नही थे और यहां पर केवल घूमने आये थे और पूरे 82 मंदिर देख पाना हमारे लिये संभव नही था तो हम केवल मंदिरो के फोटो लेने के इच्छुक थे वो भी बाहर से । एक या दो मुख्य या प्रसिद्ध मंदिर को देख भी लेते तो वहां पर फोन जमा करवाने में हमें कोई एतराज नही होता । इस अजीब नियम को सुनकर मै सन्न था और मेरे दिमाग ने बस एक ही काम किया कि वापस चलो । कमल भाई अचरज में था कि हमने आज के दिन के छह से आठ घंटे खो दिये थे तो देखना तो बनता है पर कमल ने मेरे कहने के बाद ज्यादा एतराज नही जताया और हम वापस चल पडे । गांव से ही हमें एक आटो मिल गया जो सीधे दतिया तक जा रहा था और उसकी वजह से हमारा काफी समय बच गया । आटो वाले ने हमें दतिया के किले के पास ही छोडा ।
दतिया के किले के गेट पर दो तीन आदमी थे और वहां पर कोई टिकट नही था बस एक बंदा रजिस्टर लिये बैठा था । उसमें एंट्री करने के बाद जब हमने महल में प्रवेश किया तो यहां हमारा सामना कबूतरो की और सीलन की बदबू से हुआ जो बहुत भयंकर थी । सीढीयो पर अंधेरा था और जब तक हम उपर नही पहुंचे भारी बना रहा । इस महल को बीर सिंह महल भी कहा जाता है । ये महल एक पहाडी के उपर बनाया गया है और ग्वालियर से 67 किलोमीटर दूर है । महल सात मंजिला है और वहीं पर खडे एक आदमी के अनुसार 11 मंजिला है जिसमें उपर की चार मंजिल भी बनी है जहां तक जाने का रास्ता नही था । इस महल की खास बात ये है कि इसका निर्माण लकडी या लोहे के बिना केवल पत्थर और इंटो से ही हुआ है । ये पूरा महल बिना किसी धातु के सहारे खडा हुआ है । इस महल में 440 कमरे हैं और उनका कभी इस्तेमाल इसके बनाने वाले ने भी नही किया । इस महल में कोई नही रहा क्योंकि ये महल वीर सिंह ने जहांगीर के लिये बनवाया था और वो इसमें एक बार भी नही आये तो ये महल खाली ही है बनने से लेकर । इस महल को बनने में 9 साल का समय लगा था और इसके अंदर चित्रकारी की गयी है वो भी फलो और सब्जियो के रंगो से ।
महल अपनी स्थापत्य कला में देश के कई सुंदर महलो से टक्कर लेता मिलेगा पर अगर इस पर ध्यान दिया जाये तो । यहां तो आलम ये है कि दतिया जैसे शहर पर ही ध्यान नही है । मुझे खुद पता नही है कि दतिया को कभी मैने सुना हो घूूमने के स्थान की सूची में । इसके मुकाबले तो ओरछा ज्यादा प्रसिद्ध है । दतिया में क्या नही है । यहां पर महल हैं , मंदिर हैं ,पहाडियां , तालाब , हस्तशिल्प सब कुछ है पर ये जगह उपेक्षित है और उसमें यहां की खराब सडको ,यातायात के साधनो और बेतरतीब ट्रैफिक का पूरा पूरा योगदान है । महल से चारो तरफ का नजारा बहुत बढिया दिखता है । महल के एक तरफ बडा तालाब है जो उपर से बढिया नजारे देता है । महल में सीढियो की भूल भुलैयया सी है क्योंकि कई जीनो को बंद कर दिया गया है । हम जब वहां पर थे तो शाम होने वाली थी और हमारे अलावा वहां पर बीडी सिगरेट पीने के लिये आये हुए कुछ लडके थे । पूरा महल सुनसान पडा था । हम वापिस आये और महल के नीचे से पैदल होकर बाजार पहुंच गये । बाजार में से हमने आटो पकडा पीताम्बरा मंदिर जाने के लिये । हमारे सामने ही आटो चालक के पास आगे की सीट पर एक लडका बैठा और थोडी देर बाद उतर गया । उसके उतरने के बाद पता चला कि आटो चालक का मोबाइल चोरी हो गया है । आटो चालक ने हमसे कहा कि एक बार वो वापिस घुमा रहा है थोडी दूर तक देखने के लिये । हमने मना नही किया और वो दोबारा एक चक्कर लगा आया पर अब मोबाईल कहां मिलना था । आटो वाले ने हमें मंदिर के पास उतार दिया और हमने मंदिर में जाने से पहले प्रसाद लिया और अपने जूते और बाकी सामान वहीं पर लाकर रूम में जमा करा दिया । मंदिर में गये तो भीड बिलकुल नही थी और बडे आराम से दर्शन किये माता के । एक बात और बता दूं कि विश्वविख्यात और प्रसिद्ध होने के बाद भी यहां मंदिर के अंदर मोबाइल पर रोक नही थी । हां फोटो खींचने पर जरूर रोक थी ।
दतिया मंदिर माता के शक्तिपीठो में से एक है और बगलामुखी माता का मंदिर है । बगलामुखी माता को दुश्मनो का नाश करने वाली माना जाता है और लोग अपने शत्रुओ से निजात पाने के लिये बगलामुखी माता का अनुष्ठान और पूजा करते हैं । इस मंदिर और यहां की महत्ता के बारे में कई बाते प्रसिद्ध हैं । भारत चीन युद्ध के समय से लेकर अनेक युद्धो में इस मंदिर में अनुष्ठान करवाया गया और वो भी देश के प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर इंदिरा तक के द्धारा और आशातीत सफलता प्राप्त की गयी । इस मंदिर में विराजमान देवी के पास देश के बडे बडे नेता सर झुकाने आते हैं । ऐसा भी बताते हैं कि माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रंग बदलती है । खैर दतिया में और इसके आसपास देखने के लिये काफी कुछ है बस आपके पास समय , धैर्य और अपना साधन हो तो ज्यादा बढिया क्योंकि यहां पर सार्वजनिक साधन ज्यादा नही हैं और जो हैं वो काम के नही हैं । माता के दर्शन करने के बाद हमने दतिया से रेलवे स्टेशन के लिये बस पकडी और स्टेशन पहुंच गये । ओरछा में एक दिन और एक दिन दतिया में गुजारकर बढिया लगा ।
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सोनागिर जैन मंदिर |
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सोनागिर जैन मंदिर |
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सोनागिर जैन मंदिर |
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Datiya fort main gate |
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Datiya fort |
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Datiya fort |
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दतिया किले से दिखता तालाब |
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दतिया शहर का नजारा , सामने एक किला है और उसी साइड पीताम्बरा मंदिर |
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दतिया किला |
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दतिया किला |
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उपर की इस इमारत को 4 मंजिल और बताया गया |
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दतिया किला |
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दतिया किला |
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पीछे की ओर |
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पीछे की ओर |
बहुत बेहतरीन वर्णन किया मनु भाई । काश सोनागिर अंदर गये होते , तो हमे भी देखने मिल जाता ।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन वर्णन किया मनु भाई । काश सोनागिर अंदर गये होते , तो हमे भी देखने मिल जाता ।
ReplyDeleteवाह मनु भाई,शानदार
ReplyDeleteशानदार जानकारी
ReplyDeleteइस समय तो बेधड़क फोटोग्राफी चल रही!
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