Disclaimer- This traveling content is published for educational purpose कुछ लोग कहते हैं कि भारत में खुलेआम सेक्स की बात करना ...
Disclaimer- This traveling content is published for educational purpose
कुछ लोग कहते हैं कि भारत में खुलेआम सेक्स की बात करना अश्लीलता माना जाता है और ये सच भी है कि भारत का जनमानस सेक्स एजुकेशन पर भी खुलकर अपनी राय नही रख सकता । पर उसी भारत देश में पवित्रता के प्रतीक मंदिरो की दीवारो पर मैथुन क्रियारत मूर्तिया क्यों बनायी गयी इसका कोई एक सर्वमान्य जवाब नही है । अलग अलग लोगो के अलग अलग सुझाव और मान्यताऐं हैं ।
पोस्ट पढने से पहले — माफ कीजिये मै इस पोस्ट को अश्लील तो नही कह सकता
क्योेंकि ये सब हमारे ही देश में मंदिरो पर उकेरी गयी प्रतिमाऐें हैं ।
इन्हे कैसे लिया जाये ये व्यक्ति के अपने नजरिये पर निर्भर करता है । ये
हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है और अब भी है पर फिर भी महिलायें और बच्चे
या जो एतराज मानते हों उनके लिये दूर रहना श्रेयस्कर है
पर यहां पर इस बात पर चर्चा करने से पहले एक बता जरूर जिक्र करना चाहूंगा कि खजुराहो ऐसा अकेला स्थान नही है जहां पर मंदिर की दीवारो पर मैथुन क्रियारत मूर्तियो का शिल्प है । मैने खुद कोणार्क , राजस्थान के नीलकंठ महादेव मंदिर पर भी ऐसा ही देखा है । कई अन्य जगह भारत में ऐसी और भी बतायी जाती हैं जिनमें से राजस्थान में संख्या ज्यादा है । खजुराहो के अलावा ऐसे मंदिर छत्तीसगढ में भी हैं , हिमाचल के चंबा मंदिर , अल्मोडा उत्तराखंड के नंदा देवी मंदिर , भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर , राजस्थान के ही रनकपुर के जैन मंदिर , राजस्थान के बाडमेर के किराडू मंदिर और कर्नाटक के हम्पी में भी ऐसे मंदिर बताये जाते हैं जिन पर मैथुन मूर्तियो की बहुतायत है । इसका अर्थ ये हुआ कि राजस्थान , मध्य प्रदेश और उडीसा जो कि आज के समय में अलग अलग राज्य हैं पर पहले समय में भी कोई इतने पास नही थे और ना ही उनमें किसी एक राजा का शासन काल में ही ऐसा हुआ तो फिर ये भारतीय समाज की खुली सोच नही तो और क्या थी जिसको जब मौका प्राप्त हुआ उसी दौर में मंदिरो के निर्माण के समय मनुष्यो ने ये मूर्तियां बनायी ।
पहला कारण जो लोग बताते हैं वो ये है कि पिछली पोस्ट में मैने जो आपको चंदेल वंश के राजा चंद्रवर्मन की उत्पत्ति की कथा सुनाई जिसने इन मंदिरो का निर्माण कराया उसकी माता हेमवती ने ही चंद्रवर्मन को मंदिरो पर मैथुन क्रिया की मूर्तिया बनाने को कहा था । इसके पीछे हेमवती की सोच थी कि मनुष्य के मन में ये भी एक विचार चलता रहता है और वो उसे दबाये बैठा रहता है तो वो अपने अंदर की दबी हुई कामनाओ का खोखलापन छोड दे और जब मंदिर में जाये तो उसके मन में ये सब ना रहे ।
दूसरा जो कारण है वो ये बताया जाता है कि गौतम बुद्ध के उपदेशो से प्रेरित होकर आम जनमानस में काम कला के प्रति रूचि खत्म हो रही थी । इसकी तरफ आकर्षित करने के लिये इन मंदिरो पर ऐसी मूर्तियां अंकित करायी गयी । इसका एक अर्थ ये भी है कि आप गृहस्थ जीवन में रहकर भी मोक्ष प्राप्त कर सकते हो
एक कारण ये भी बताया जाता है कि उस समय बच्चे गुरूकुल में पढा करते थे तो वे भी सांसारिक बातो को जान लें इसके लिये इन मंदिरो पर ऐसे निर्माण कराये गये । कुछ का मत है कि यहां पर कामकला का अभ्यास किया जाता था और कुछ का मत है कि हिंदू धर्म में कामशास्त्र और कामदेव को देवता माना गया है इसलिये यहां पर इस प्रकार के चित्र बनाये गये ।
एक कारण ये भी बताया जाता है कि हिंदू धर्म में चार मुख्य सिद्धांत मानी गयी हैं जो हैं धर्म , अर्थ , काम ,मोक्ष । काम अर्थात सेक्स इसी का हिस्सा है । हो सकता है ये प्रतिमाऐं भक्तो के संयम की परीक्षा के लिये बनायी गयी हों लेकिन कुल मिलाकर हिंदू धर्म में इन चारो पुरूषार्थो को हर आदमी अपनाना पडता है तो फिर एक भाग काम के लिये ही क्यों आवरण रखा जाये यही सोच हो इनके बनाने के पीछे । हिंदू धर्म में सबसे पहले धर्म और उसके बाद अर्थ यानि धन या पैसा , उसके बाद काम अर्थात सेक्स और सबसे बाद में मोक्ष की प्राप्ति की बात कही गयी है । जैसे कि चार आश्रम हैं ।
एक कारण तंत्र मंत्र को भी बताया जाता है । हिंदू धर्म में और उस काल में वाममार्गी पंथ का चलन था तांत्रिक समुदाय में जो कि योग और भोग दोनो को साधना के लिये जरूरी समझते थे । रिषी वात्साययन ने भी कामसूत्र की रचना की है और उनके अनुसार भोग या सेक्स भी मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन है । कालांतर में हमने देखा और सुना है कि इसी बात को लेकर आचार्य रजनीश यानि ओशो ने भी किताब की रचना की संभोग से समाधि तक जिसके कारण उनके लाखो अनुयायी बने । उनका भी यही मत है कि जब आप सेक्स के बारे में सोचना बंद कर दो या उसकी चरम अवस्था को पा लो तब आप साधना में मन लगा सकते हो ।
अधिकतर धर्मो में सेक्स का विरोध किया गया है । कुछ धर्मो में इसकी अधिकता को खतरनाक बताया गया है तो कुछ धर्मो में सेक्स के बारे में तो कहा गया है पर महिलाओ को केवल इसी कार्य के लिये बनाया गया बताया है साथ ही महिलाओ की इच्छाओ पर भी प्रतिबंध लगाया गया है । खजुराहो में ऐसा कुछ भी दिखायी नही देता । यहां की मूर्तियो को अगर उस समय के समाज का प्रतिविम्ब माना जाये तो महिलाओ को भी पूरी स्वच्छंदता थी ये दिखायी देता है क्योंकि सेक्स की अनेक विधाओ में से सामूहिक सेक्स और आजकल के शब्दो में कहा जाने वाला लेस्बियन सेक्स भी अंकित किया गया है । इनता उन्मुक्त वातावरण कि मंदिरो की दीवारो पर सेक्स से जुडी प्रतिमाऐं अंकित हों और उसे देखने के लिये किसी तरह का परदा , आवरण या रोकटोक ना पहले हो और ना ही अब ये केवल हिंदुस्तान और हिंदू धर्म में ही हो सकता है । आप इसे चर्च , मस्जिद , गुरूद्धारो या अन्य धर्मो के पूजनीय स्थलो में पाना तो दूर की बात है कल्पना भी नही कर सकते ।
मनुष्य के मन में जमी कुंठा ही अपराध बोध और अपराध का कारण बनती है । मन में दबी कुंठाऐ अनेक प्रकार की होती हैं और उनमें से सेक्स भी एक है । जैसे पैसे , जमीन आदि के लिये कुंठा होती है ऐसी ही सेक्स के लिये भी होती है । आज भी विकसित देशो में से कई देश ऐसे हैं जहां पर ओपन सेक्स और इस तरह के संबंधो यानि रिलेशनशिप को मान्यता है । लेकिन उस मान्यता में स्त्री का रोल अहम होता है । यदि स्त्री आपको चाहती है और पसंद करती है तो वो स्वतंत्र है हर तरीके से और यदि वो नही चाहती है तो उसकी मर्जी के बिना संबंध स्थापित करना बलात्कार कहा जाता है ।
कुछ लोग बडा हास्यास्पद तर्क देते हैं कि जिन विकसित देशो की बात की जाती है और जहां पर सेक्स ओपन है वहां पर भी बलात्कार होते हैं । बिलकुल होते हैं और होंगे भी क्योकि मानव रूप में पशुओ की भी तो कमी नही है । मानव में पशुत्व , हद से ज्यादा सेक्स के लिये इच्छा जिसे कि पराकाष्ठा कहा जा सकता है , धन और बल का घमंड कभी सबको एक नही होने देगा जैसे कि एक हाथ की पांच अंगुली और एक अंगुली के पोरे की रेखायें तक भगवान ने एक नही बनायी हैं ऐसे ही 99 प्रतिशत लोग यदि सही हैं तो 1 प्रतिशत गलत भी मिलेंगे ही । सेक्स ना तो कोई रहस्य है और ना ही पशुवृत्ति है । पशु भी सेक्स करते हैं पर मानव ने इस पर एक आवरण चढा लिया है और वो आवरण है पाप के नाम का अथवा अपराध के नाम का । ये आवरण मनुष्यो के कपडे पहनने जैसा ही आवरण रहता तो ठीक था ।
एक कारण जो सबसे उचित लगता है वो है जो हमारे मित्र और ओरछा में निवास कर रहे मुकेश पांडेय जी ने बताया । मुकेश जी बताते हैं कि अन्य कारणो का कोई मेल नही लगता है पर इस बात को ज्यादातर बताया जाता है कि मुस्लिमो के आक्रमणो से जो कि 8 वी शताब्दी से ही शुरू हो गये थे , हिंदू समाज में भय उत्पन्न हो गया था । मुस्लिम आताताईयो के लगातार आक्रमणो में बहुत लोग मारे जाते थे और जो बचे थे उनमें भय व्याप्त था । धर्मभीरूता हिंदू समाज में पहले से ही है तो लोग धर्म की ओर ज्यादा रूख करने लगे । अध्यात्म और सन्यास की ओर ज्यादा चल पडे तो जनसंख्या वृद्ध में भी गिरावट आने लगी । युवा भी जब फकीर या साधु बनने लगेें तो सेना में भर्ती कौन होगा ये सोचकर इन मंदिरो की बाहरी दीवारो पर ऐसी प्रतिमाऐं उत्कीर्ण करवाई गयी होंगी ।
बौद्ध धर्म के प्रभाव को कम करने का और हिंदू धर्म को जाग्रत करने का काम शंकराचार्य जी ने किया । जब लोग सन्यास और मोक्ष की तरफ भाग रहे हों तो उनको ये बताना कि धर्म या ईश्वर को पाने के लिये आपको काम वासना को बाहर छोडकर आना भी होगा इन मंदिरो के निर्माण का कारण रहा होगा ।
mp tour-
बारिश में भीगे मंदिर समूह |
कंदारिया महादेव मंदिर |
कंदारिया महादेव मंदिर |
कंदारिया महादेव मंदिर |
khajuraho images |
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Khajuraho temples |
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हमारे हिन्दू धर्म में काम कोई त्याज्य विषय नही था , इसको बाकायदा आश्रम व्यवस्था में स्थान दिया गया ।हाँ काम का उद्देश्य यौन सुख या आनंद प्राप्ति न होकर वंशवृद्धि और पितृऋण से उऋण होंकर मोक्ष की प्राप्ति था । मुस्लिम आक्रमण होने से जब मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिन्दू महिलाओं से बलात्कार किया जाने लगा तो मजबूरन हिंदुओं को अपनी बेटियों और महिलाओं को परदे में रखा जाने लगा । यही से हिंदुओं में काम छुपा विषय हो गया ।और आज के आधुनिक कहे जाने वाले युग में भी छुप छुपाकर पढ़े, देखे जाने वाले विषय में बदल गया । वरना कामसूत्र जैसे ग्रन्थ, खजुराहो जैसे मंदिर विश्व के अन्य धर्मों में नही मिलते । खजुराहो की ये मूर्तियां मैथुनरत अवश्य है, परंतु इनमे अश्लीलता बिलकुल नही है । जब भी मैं खजुराहों गया मुझे ये मंदिर हमारी आधुनिकता/ सोच पर चिढ़ाते नजर आते है ।
ReplyDeleteहमारे हिन्दू धर्म में काम कोई त्याज्य विषय नही था , इसको बाकायदा आश्रम व्यवस्था में स्थान दिया गया ।हाँ काम का उद्देश्य यौन सुख या आनंद प्राप्ति न होकर वंशवृद्धि और पितृऋण से उऋण होंकर मोक्ष की प्राप्ति था । मुस्लिम आक्रमण होने से जब मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिन्दू महिलाओं से बलात्कार किया जाने लगा तो मजबूरन हिंदुओं को अपनी बेटियों और महिलाओं को परदे में रखा जाने लगा । यही से हिंदुओं में काम छुपा विषय हो गया ।और आज के आधुनिक कहे जाने वाले युग में भी छुप छुपाकर पढ़े, देखे जाने वाले विषय में बदल गया । वरना कामसूत्र जैसे ग्रन्थ, खजुराहो जैसे मंदिर विश्व के अन्य धर्मों में नही मिलते । खजुराहो की ये मूर्तियां मैथुनरत अवश्य है, परंतु इनमे अश्लीलता बिलकुल नही है । जब भी मैं खजुराहों गया मुझे ये मंदिर हमारी आधुनिकता/ सोच पर चिढ़ाते नजर आते है ।
ReplyDeleteइस विषय पर मेरी एक पोस्ट है कलिंग यात्रा में।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन जानकारी
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण किया है मनु भाई....मुकेश जी का कथन भी सत्य है के प्राचीन हिन्दू समाज में काम कोई त्याज्य विषय नही था जीवन के चार पुरुषार्थ में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा था..
ReplyDeleteबढ़िया विश्लेषण किया है मनु भाई....मुकेश जी का कथन भी सत्य है के प्राचीन हिन्दू समाज में काम कोई त्याज्य विषय नही था जीवन के चार पुरुषार्थ में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा था..
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