ओम सोनी , बस्तर के दक्षिणी भाग में दंतेवाडा के नजदीक रहते हैं । ये वो जगह है जहां पर दुनिया के एक से एक बेहतरीन पर्यटक स्थलो में शुमार होने...
ओम सोनी , बस्तर के दक्षिणी भाग में दंतेवाडा के नजदीक रहते हैं । ये वो जगह है जहां पर दुनिया के एक से एक बेहतरीन पर्यटक स्थलो में शुमार होने लायक जगहे हैं लेकिन नक्सलवाद माओवाद ने इस जगह को दुनिया से दूर ही कर दिया है । , ऐसे में ओम भाई बस्तर में अपने शोध पर हैं ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलो की खोज और पहचान करने के लिये । इस इलाके में चाहे अपना हो या पराया घूमने के लिये जीवट चाहिये और ये काम वो बखूबी कर रहे हैं । हम और आप इन जगहो को अभी इनकी ही नजरो से देख सकते हैं पर अभी तक ओम भाई केवल फेसबुक पर ही फोटो डालते रहे हैं । पहली बार मेरे आग्रह पर उन्होने यहां पर लिखा है । आप सभी पढिये और सराहना और सुझाव से अवगत कराईये ।
ये है इनका फेसबुक प्रोफाईल जहां पर आप इनसे मिल सकते हैं ।
अबुझमाड के तोडमा की कष्ट दायी यात्रा मेरे साथ
आसानी से दर्शन नहीं होते भोले बाबा के..
बहुत दिनो से महाशिव रात्री पर तोडमा जाने का विचार कर रहा था. आज महाशिव रात्री पर सुबह 10 बजे मैं ओर मेरा मित्र कुलेश्वर दोनो पुरी तैय़ारी के साथ मेरे घर से निकले. आधे घंटे में हम बस्तर की एतिहासिक नगरी बारसुर पहूचे. वहां से सी आर पी फ पोस्ट में ज़रूरी ज़ानकारी ओर अबुझमाड के तोडमा जाने की अनुमती ली.
हम बारसुर से सातधार पुल में पहूचे. सातधार इन्द्रावती में बना सात छोते छोटे किंतु बेहद खूबसुरती के झरने हैं. नदी पर बना यह पुल दंतेवाड़ा को अबुझमाड से जोडता हैं. इस नदी पर यहां सात धारा में बोधघाटी परीयोजना लम्बित पडी हैं. कुछ लोग इस पुल को ही सातधार समझ कर यही से नजारे देख कर वापस हो जाते हैं. असली सातधारा तो तुलार मार्ग में किनारे इन्द्रावती में हैं. इसके लिये पुल पार कर नदी की दिशा में मोड में जाना पड़ता हैं. वहा नदी सात धारो में बंट कर बेहद सुन्दर झरने बनाती हैं. हम पुल से इन्द्रावती के सुन्दर नजारो का रस पान कर हम कच्चे रास्ते में माड में प्रवेश कर दिये. यहां से तोडमा 25 किलो मितर् की दुरी पर हैं.
पतझड होने के कारन सारे जंगल में सुखे पत्ते बिखरे पड़े थे. शुरुआती रास्ता कम ऊबड खाबड था. घने जंगल में बनी पगढंडी में हम दो मित्र बेहद उत्साह से ज़ा रहे थे. थोडी दूर में एक पहाडी की घाटी में पहूचे , घाटी बेहद संकरी थी. एक तरफ बेहद खाइ थी .पहाडी के दलान में बहुत से मृतक स्तंभ नजर आये. ये पत्थरो के छोटे छोटे स्तंभ किंतु ये पुराने थे. स्तंभो को देखते हुए बडी साव धानी से घाटी में गाडी चलाना पड रहा था.
थोड़ा बैलेंस बिगडा की ,गाडी सहित नीचे खाइ में गिरते. बडी सावधानी से हम पहाडी पर गाडी सहित पहूचे. वहा से मैने अपने मित्र को उतार कर धीरे धीरे बडे बडे पत्थरो से अटीपडी पगढंडी से पहाडी के दुसरे तरफ गाडी को उतार कर हम नीचे समतल भूमि पर आये. पहाडी उतरते ही कुछ खेत ओर कच्चे मकान नजर अा रहे थे. पास ही गांव वालो की देव गुडी हैं जिसमे एक देवी की प्रतिमा स्थापित हैं . गांव वाले देवी की आमा दायी के नाम से पूजा करते हैं. देव गुडी पक्के मन्दिर में थी. मन्दिर के बाहर काष्ट का बडा झुला था जिसमे खुदायी से चित्र बनाये गये थे
समतल भूमि में कुछ दूर हम नदी के किनारे पहूचे. नदी में घुटनो तक पानी था सो हमने आसानी से गाडी में नदी पार कर ली. नदी पार कर हम माड के पहला गांव मंगनार में पहूँच गये. यहां से दो मार्ग थे एक दुसरे गांव तरफ ओर एक अन्दर तोडमा की तरफ.एक पहाडी , एक नदी ओर ऊबड खाबड मार्ग से अाने पर भी उत्साह अभी चरम पर था. ये तो शुरूआती था. असली कठीनाईया तो आगे हमारे स्वागत के लिये बाहे फैलाये खडी थी.
मंगनार इन्द्रावती की छोटी सहायक नदी पर बसा छोटा सा ग्राम था. यहां आज महाशिव रात्री के उपलक्ष में गांव वालो ने छोटे से भंडारे का आयोजन रखा था. गांव में आज मेले के जैसा माहोल था. गांव के पास ही खेत में एक कच्ची कुटिया में नागवंशी शासन के समय की गनेश , कार्तिक एवँ एक बडा शिवलिंग था. सभी भक्त गण पूजा पाठ में व्यस्त थे.
मंगनार गांव पुरी तरह से बारसुर पर ही आश्रित हैं. हर ज़रूरत की समान के लिये इन्हे बारसुर जाना पड़ता हैं. गांव में कुछ ही घर थे. सभी मकान कच्चे थे. सभी में छत के लिये खपरेल थे. किसी किसी में सिमेंट शीत थी तो कुछ घास फुस से बनी छत युक्त मिट्टी के कच्चे मकान थे. कुछ महिलाये महुअा बिनने में व्यस्त थी. गांव का माहोल देखकर हम खेतो से होते हुए तुलार की ओर निकल पड़े.थोडी दूर के पथरिले मार्ग तय कर हम फिर से नदी के तट पर पहूचे. नदी में पानी कम था किंतु पत्थरो के कारन गाडी पार करने में कठीनाई हूई. जंगल भी घना होता ज़ा रहा था. रास्ता पहाड़ो में ओर भी खतरनाक हो रहा था. फिर नदी फिर नाला फिर पहाडी बस यही क्रम चल रहा था. एक एक करके हम अपने मस्ती में तुलार की तरफ बढ रहे थे.
मार्ग में जगह जगह चुना पूता गया था. पेडो में , पत्थर में सब जगह चुना पुता था. यह चुना पुताई तुलार की ओर जाने का संकेत थे. कही कही कागज के बोर्ड बना कर तुलार इधर हैं के दिसा सुचक लगाये गये थे. गलत मार्ग में पेड गिरा कर मार्ग बन्द कर दिये गये थे ताकी कोई मार्ग ना भटके. रास्ते में काट कर गिराये पेडो को हटाया गया था .माड के आदिवासियो द्वारा इस बार श्रद्धालुओ के आने में कम तकलीफ हो इस लिये बहुत मेहनत की थी. उन्होने पुरी कोशिस की , कम से कम तकलीफ हो श्रद्धालुओ को इस बार.जगह जगह ग्राम वाले रास्ता बताने के लिये तत्पर थे. उनकी आँखो में हमारे लिये प्रेम साफ दिखाई दे रहा था. उनका हाव भाव कह रहा था की आओ हमारे माड में , तोडमा के गुफा में विराजित भोले बाबा के दर्शन करने. अब कोई डर नहीं, कोई तकलीफ नहीं , कोई अनहोनी नहीं. आपका बहुत बहुत स्वागत हैं तोडमा में. यह प्रेम भाव था माड के लोगो में.उनकी मेहनत ओर आवभगत को मेरा नमन.
मार्ग में मेरे नगर के कई परिचित चेहरे मिल रहे थे. सभी के चेहरो में इतनी कष्ट दायी मार्ग की बावजुद तोडमा जाने का उत्साह झलक रहा था. पुरा मार्ग हर हर महादेव , बम भोले ,आदि नारो से गुंज रहा था. सभी सभी अपनी अपनी दूपहिया से तोडमा की ओर बढ रहे थे. आज पुरा माड का सुनसान जंगल, नदी , पहाडी सब भोले की भक्ती में आनन्दित थे. पुरे माड में भोले के नारो की गुंज थी. सभी श्रधालु आपस में एक दुसरे की मदद करने में भी आगे थे. हर व्यक्ति इन मार्ग के कष्ट में एक दुसरे की तकलीफ कम कर रहे थे.
माड में विराजित भोले बाबा के दर्शन !!
हम हिन्दुस्तानियो की खासियत हैं ऐसी कोई जगह ज़हा कोई मदद नहीं हो वहा हम भले ही एक दुसरे को नहीं ज़ानते हो किंतु हम एक दुसरे के मदद के लिये आगे रहते हैं. मेरे साथ भी ऐसे ही हुआ. भले ही नदी पार करने में हो या पथरिले राहो में गाडी चलाने में अा रही समस्या हो , साथ में चल रहे सभी लोगो ने हमारी तरफ मदद के हाथ बढ़ाये ओर हमने भी मदद की कोशिस की.5 नदी , 3 नाले , तीन पहाडी एवँ पथरिले राह में ढ़ाई घंटे के लगातार सफर से हम तोडमा गांव में पहूँच गये. गांव तक पहूँचने में हम दोनो के कपडे खराब हो गये , गाडी के सारे पूर्जे ढ़िले हो गये थे , हमारे शरीर के सारे अंगो में दर्द होने लगा था. बार बार गाडी के हेंड ब्रेक कलश दबाने के कारन हाथो के ऊंगलियो में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था. हाथो में छाले पड गये. कमर एवं घुटनो से नीचे हड्डिया जाम हो गयी थी.
ऐसा सफर था जैसे गाडी हमे नहीं ले ज़ा रही थी हम गाडी को ढो कर ले ज़ा रहे थे. ओर कोई चारा भी नहीं था. धुप में 25 किलो मिटर का पैदल सफर आसान नहीं था ओर चार पहिया वाहन से भी कुछ दूर ही जाया ज़ा सकता था सो दूपहिया वाहन ही इस यात्रा के लिये उपयुक्त हैं.हम तोडमा गांव से आगे निकल कर एक लम्बी पहाडी में गाडी चढाई कर उपर पहूँच गये वहां से फिर पहाडी से ढलान में पतली सी पगडण्डी में गाडी चलाते हुए उतर कर तुलार गुफा के पास पहूँच गये . वहां से मात्र 200 मिटर की दुरी थी. ज़िस पहाडी से उतरे वह पहाडी आगे जाकर यू आकार में घुम ज़ाती हैं जिसमे ही थोडी उपर की तरफ गुफा हैं.
वहां हमने अपनी हालत ठीक की , थोड़ा पानी पिया , आराम कर गुफा की तरफ बढ़े. गुफा तीन पहाडी से घिरे यू आकार में किनारे उपर की तरफ हैं. हम पैदल ही गुफा में पहूँच गये. गुफा बहुत ही बडी हैं. गुफा का मुहाना बहुत बडा हैं उसमे हाथी आसानी से अन्दर ज़ा सकता हैं.गुफा के प्रवेश द्वार में ही बाये तरफ एक चौकोर चबुतरे में भोले बाबा शिवलिंग के रूप में विराजित हैं. गुफा के छत से शिवलिंग के पुरे हिस्से में पानी टपक रहा था. पानी बहुत अधिकतम मात्रा में गिर रहा था थोडे बचाव के लिये शिवलिंग के उपर अस्थायी छत बनायी गयी थी फिर भी बहुत पानी शिवलिंग के उपर गिर रहा था. पूजा कर रहे भक्त पुरी तरह से भीग रहे थे.
भक्तो का पुरा झुंड उस जगह को घेर कर खडे थे सभी भोले बाबा के पूजा पाठ में व्यस्त थे , भीड में सब शिवलिंग के दर्शन के लिए आतुर थे. गुफा के सामने जबरदस्त भीड थी, जय भोले , हर हर महादेव , जय शिव शंकर जैसे जयकारो से वातावरन गुंज़ायमान था , पुरी गुफा में धूप अगरबत्ती एवं हवन का पवित्र एवं सूँगंधित वायू चहू ओर फैली थी. बाहर माहरा समाज के लोग द्वारा भगवान के सम्मान में नगाडा बजाया ज़ा रहा था. बहुत ही जबरदस्त आध्यात्मिक माहोल था. ऐसा माहोल उस माड में ज़हा कोई जाता नहीं. ज़हा आपको जाने में भी डर लगे वहां आज शिवरात्री में ऐसा भक्ती, संगीत आध्यत्मिक वातावरण , भगवान के दर्शन के लिये भक्तो की भीड, बहुत अदभूत एवँ आनन्दमय माहोल था.
मैं ओर मेरे मित्र सिधे शिवलिंग के पास गये. शिवलिंग के दर्शन करने के लिये भीड को चिरते हुए शिवलिंग के करीब पहूँच गये. शिवलिंग पर माँ गंगा स्वयम जलाभीषेक कर रही थी. हमने वहां पूजा की. हम उस जगह में प्राकृतिक रूप से हो रहे जलाभीषेक में पुरी तरह से भीग गये. भीगते हुए पूजा की. शिवलिंग के दर्शन ओर बदन में पड रही जलाभीषेक का पवित्र पानी पड़ते ही सारा शरीर का सारा दर्द खत्म हो गया. पुरे अंगो में फिर से जोश अा गया. सारी थकान दूर हो गयी. नयी उमंग अा गयी. अब तो ऐसा लगने लगा की अब एक ओर ऐसा सफर हो जाये.
शिवलिंग अच्छे आकार का हैं. शिवलिंग की जलहरी बहुत ही अनुपम हैं. जलहरी गाय के मुख के समान बनी हैं. जलहरी के मुख से जलाभीषेक का पवित्र जल बाहर की ओर प्रवाहित हो रहा था. शिवलिंग के पास गनेशजी की छोटी सी प्रतिमा ओॅर नंदी स्थापित हैं. शिवलिंग पर होता जलाभीषेक गुफा के अन्दर से गिरता पानी हैं. गुफा के छत से गिरता पानी कहा से आता हैं यह एक् शोध का विषय हैं. गुफा के उपर या आसपास कोई भी तालाब या अन्य जल श्रोत नहीं हैं. यह प्राकृतिक जलाभीषेक चन्द्रमा के कलाओ की तरह कम ज्यादा होता हैं. माघ पूर्णीमा में यह जला भीषेक अपने चरम पर होता हैं.
यहां प्रचलित एक कथा के अनुसार वनवास के समय भगवान राम यहां आये थे. उन्होने शिवलिंग के जला भीषेक के लिये गुफा के छत में तीर चलाया ज़िससे गुफा के छत में से स्वयम मां गंगा अवतरित होकर शिवलिंग का जलाभीषेक किया तब से वह जलाभीषेक अभी तक हो रहा हैं.एक ओर कथा के अनुसार अभी का बारसुर दैत्य राज बाणासुर की राजधानी थी. बाणासुर स्वयम इस गुफा में भगवान शिव की पूजा अर्चना करता था.
यहां से बारसुर 25 किलो मिटर की दुरी पर हैं. बारसुर हजारो साल पुराना नगर हैं. शिवलिंग जलहरी , नंदी , गनेश की प्रतिमा नागवंशी शासन 11, 12 सदी के समय के लगते हैं.हम दर्शन कर गुफा के अन्दर की ओर गये. गुफा लगभग 70 मिटर लम्बी हैं. गुफा अन्दर से भी उतनी ही ऊँची हैं ज़ितना इसका मुहाना हैं. गुफा के दिवारे बेहद चिकनी हैं. गुफा के अंतिम छोर में छोटे से खोह में एक नँदी की प्रतिमा थी वहां एक दिया जल रहा था. हमने मोबाइल के टार्च से पुरी गुफा का मुआय़ाना किया. गुफा में अन्दर से बाहर का दृश्य अद्भूत था. गुफा गोलाई में पुरी तरह से अंडाकार में हैं.
गुफा के बाहर बहुत से लोग रुके थे. अधिकांस माड के सुदुर गांव के लोग थे जो पैदल वहा आये थे वे लोग दो दिनो से वही ड़ेरा ज़माये थे. बच्चे महिलाये भी बहुत अच्छी संख्या में थे. गुफा के बाहर पुरा मेले जैसा माहोल था.गुफा से कुछ दूर आगे एक लाल स्मारक भी बना था. स्मारक का उपरी हिस्सा टूट गया था. स्मारक के पास अधुरा य़ात्री शेड था. कभी किसी सरपंच ने यहां य़ात्रियो के सुविधा के लिये कोशिस की गयी थी. कहते हैं की शिवरात्री के दिन वही उसकी हत्या कर दी गयी थी. पहले वहां तक जाने के लिये पुरी कच्ची सड़क थी ज़िससे चार पहिया वाहन से हजारो श्रधालू शिवरात्री को तोडमा दर्शन के लिये आते थे. किंतु इन घटना से सब बन्द हो गया. कई सालो तक यहां जाना बन्द हो गया.
अब कुछ 2 - 4 सालो से थोडी स्थिती ठीक होने से फिर लोग तोडमा में शिव रात्री को जाने लगे. इस बार के गांव वालो के शिव रात्री के उत्साह एवँ तैय़ारी , से लगा की अब माहोल में बारूद की गंध में कमी आयी , भय दो कदम पीछे हट गया. मैं पहले भी दो बार ज़ा चुका हूँ मुझे भी माहोल में बदलाव महसूस हुआ. शायद भविष्य में मैं तोडमा फिर से चार पहिया वाहन में ज़ा पाऊ.हम वहां से गाडी लेकर तोडमा गांव में आये. माड का यह छोटा सा गांव बीजापुर के भैरमगढ़ तहसील में आता हैं. गांव में कुछ ही घर थे. एक पक्की इमारत स्कूल के लिये हैं. गांव में घर दूर दूर में हैं.यहां गांव में बिजली नहीं हैं. अधिकांस घर कच्चे हैं. घरो के दीवारो में ज्यामिती चित्रकारी की गयी हैं. अधिकतर बच्चे स्कूल नहीं जाते. स्कूल भी कभी कभार लगता हैं. लोग बेहद शर्मिले हैं. हिन्दी का ज्यादा ग्यान नहीं हैं.वे अपनी इस दुनिया में मस्त हैं. वे स्वालो के जवाब देने में डर रहे थे. यहां तक उन लोगो ने मुझे फोटो लेने से मना करने लगे.
हम गांव से आगे वापस अपनी राह में चल पडे. कुछ दूर जाने के बाद खेत में एक आम का बौर से लदा पेड दिखाई दिया. उस जगह की सुन्दरता गजब की थी. कुछ फोटो लेने लगा की नीलकंठ पक्षी स्वयम सामने आकर अपनी फोटो खिचाने लग गया. रास्ते में एक कैक्ट्स का बहुत बडा झुंड था. ये कैक्ट्स का झुंड लगभग 15 फीट ऊँचा ओर 15 फीट लम्बा था. बस्तर की धरती बहुत गजब की हैं यहां इस मिट्टी में कुछ भी पनप जाता हैं. भगवान राम के वनवास का अधिकांस समय यही बीता था.हम आते समय एक नदी में कुछ देर रुककर थकान दूर किये. नदी का ठंडा पानी पैरो के दर्द को दूर कर रहा था. बहुत शांती थी उस जगह. लोग क्या क्या थैरेपी लेते रहते आज हमने नदी थैरेपी लेकर अपनी थकान दूर किये. बडा मजा अा रहा था नदी में. हम वहां से चलकर वापस शुरुआती गांव मंगनार पहूचे. उस से ठीक पहले हम गलत राह में चले गये थे किंतु जल्द ही गलत राह का अहसास होते वापस सही राह पकड लिये.
मंगनार में जबरदस्त भीड थी श्रधालूओ के लिये खाने की व्यस्था थी. हम दोनो आज अघोषित उपवास में थे. इसलिये सिर्फ प्रसाद लेकर गांव के देवगुडी में दर्शन के लिये गये. देवगुडी में भगवान गनेशजी की बहुत ही सुन्दर प्रतिमा स्थापित हैं. बस्तर में गनेश जी की सबसे अधिक प्रतिमाये मिलती हैं. भले ही ऊँची पर्वत चोटी हो , घना जंगल हो , नदी हो , गुफा हो या अबुझमाड आपको सब जगह गनेश जी विराजित मिलेगे.वहां से हम 4 बजे बारसुर के सातधार के सी अार पी एफ चौकी में आमद दर्ज करायी ओर उनको किये वायदे के अनुसार हम पांच बजे से पहले पहूँच गये थे. वहां से हम सीधे घर की ओर रवाना हो गये.पेट में चुहे जो कुद रहे थे. घर आने के दो दिनो तक भी शरीर में दर्द हो रहा था किंतु भोले बाबा के दर्शन से वो दर्द भी जल्द ठीक हो गया.
एक ओर रोमांचकारी यात्रा का सूखद अंत हुआ. अंत भला सो सब भला. माड में विराजित भोले बाबा के दर्शन हो गये.
Nice
ReplyDeleteबहुत सुन्दर औऱ रोमांचकारी यात्रा , बस्तर के बारे में जानकर इसको देखने की इच्छा प्रवल हो गई है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर औऱ रोमांचकारी यात्रा , बस्तर के बारे में जानकर इसको देखने की इच्छा प्रवल हो गई है
ReplyDeleteअति सुंदर यात्रा वृत्रान्त
ReplyDeleteओम सोनी जी को बहुत बहुत धन्यवाद । इन्होने बहुत सुन्दर वृत्तांत लिखे है । आशा करते है बस्तर के छूपे अनुपम धरोहर को आगे इस तरह हमलोग के सामने लाएगे ।
ReplyDeleteBahut hi Sundar vernon aapka aapne bahut cast Shekhar Darshan ka Labh prapt Kiya aapka bahut bahut Dhanyavad aap ne ati sundar yatra ke baare me bataya bahut Sundar Jagah hai bahut alokik manoharam aap ka ak bar fir se dhanyavad
ReplyDeleteबस्तर का छुपा हिरा दिखाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteBahut badiya post hai
ReplyDeleteजिस बस्तर को हम माओवाद के लिए जानते थे वह इतना सुंदर भी हो सकता है बस्तर का असली चेहरा दिखाने के लिए धन्यवाद।
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