बहुत दिनों से सोच रहा था कि दोबारा नेपाल जाना चाहिए। इसी जनवरी में मुझे डॉक्टरेट की उपाधि भी मिल गयी जो कि नेपाल और भारत के दलितों ...
बहुत दिनों से सोच रहा था कि दोबारा नेपाल जाना चाहिए। इसी जनवरी में मुझे डॉक्टरेट की उपाधि भी मिल गयी जो कि नेपाल और भारत के दलितों की कला पर है,नेपाल घूमने के लिए मेरी पसंदीदा जगह रहा है। कई कारण है -पहली बात मै नेपाल का विशेषज्ञ बनना चाहता हूँ दूसरी बात नेपाल विदेश है और नजदीक है । भारत के हिल स्टेशन के समान नेपाल में भीड़भाड़ नही होती,और मेरे बहुत से दोस्त हैं ।
यहां पर मोटरसाईकल चलाने के लिए बहुत ही चैलेंजिंग रास्ते हैं। इन्ही सब बातो की वजह से मुझे नेपाल बहुत पसंद है। नेपाल में कुल 77 जिले हैं जिनमे से लगभग ३५ मैंने देख रखे हैं। २३ मार्च को मैं जयपुर से डेढ़ बजे निकला और ५ बजे के आस पास आगरा एक्सप्रेसवे पहुंच गया। आगरा शहर बहुत भीड़भाड़ वाला और गन्दा शहर है । एक्सप्रेसवे पहुँचने पर ही मुझे १ घंटा लग गया । एक्सप्रेससवे पर घुसने से पहले मैंने एक पेट्रोल पम्प पर मोटरसाईकल का टैंक फुल करवाया और एक लीटर पेट्रोल बोतल में लिया क्योंकि 303 किलोमीटर के इस एक्सप्रेस वे पर कोई पेट्रोल पम्प नहीं है और मेरी मोटरसाईकल का टैंक मात्र आठ लीटर का है । कभी कभी तेज चलाने पर सिर्फ ४५ तो कभी चालीस से कम का माइलेज मिलता है। पेट्रोल खत्म होने का डर था।
एक्सप्रेसवे शुरू होने पर मैंने वहीँ बैठ कर एक जगह खाना खाया जो जयपुर से मैंने पैक किया था और फिर मोटरसाईकल स्टार्ट की । दस किलोमीटर बाद टोल नाका आया । ,मैंने 285 रूपये टोल लखनऊ तक का दिया और फुल स्पीड में मोटरसाईकल भगा दी क्योंकि मुझे जल्दी लखनऊ पहुंचना था। एक्सप्रेससवे पर मजा तो था लेकिन सामान्य हाइवे वाली चहल पहल नहीं थी । पुरे रस्ते में एक भी बार क्लच या ब्रेक का उपयोग नहीं करना पड़ा। बहुत बढ़िया एक्सप्रेसवे है। यह भारत का भी सबसे लम्बा एक्सप्रेसवे है। नब्बे -सौ की गति से मैं चलता रहा । 2 घंटे बाद सुस्ती हुयी तो एक जगह रोक कर चॉकलेट खायी और रकसैक से निकाल कर जैकेट पहनी क्योंकि अँधेरा हो गया था और ठंड लगने लगी थी।
एक स्कॉर्पियो रुकी और उसमे से कुछ लोग उतरे एक नेतानुमा आदमी उसमे से उतरा और मुझसे बात करने लगा
उसने मेरी मोटरसाईकल यात्राओ के बारे में बात की और वो काफी प्रभावित हुआ । उसने बताया कि वो व्यवसायी है और मूल रूप से अलाहाबाद से है और लखनऊ जा रहा है। उनसे विदा लेकर मैं तेजी से चल पड़ा । जाते जाते उस आदमी ने मुझे हाथ हिलाकर शुभकामना दी मैं तेजी से उसका जवाब देता हुआ निकल गया । १ घंटे बाद एक्सप्रेसवे खत्म हो गया और मैने अपने बडे भाई को फोन करके अपनी लोकेशन बताई उन्होंने मुझे रास्ता बताया । वैसे तो मैं लखनऊ में भी रहा हूँ लेकिन एक्सप्रेसवे वाला रास्ता नया था । मेरे बड़े भाई रस्ते में अपनी थंडर बर्ड से मुझे एस्कॉर्ट करने आ गए और मैं घर पहुँच गया । लखनऊ पहुचं कर नहाया और नेपाल के कुछ वीडियो देखने लगा । देखते देखते एक वीडियो अन्नपूर्णा सर्किट के रस्ते का मिला मुझे लगा यहाँ जाऊंगा इस बार ,वो दुनिया की सबस मुस्किल सड़क मानी जाती है ।
बेसिसहर से चामे ,जिला लामजुंग से जिला मनाग। अगले दिन लखनऊ में आराम करके दोस्तों से मिलने के बाद उससे अगले दिन यानी इतवार में गोरखपुर के लिए निकल गया क्योंकि वहां मेरा दोस्त सद्दाम हुसैन मेरा इंतजार कर रहा था । लखनऊ से निकल के अयोध्या पहुंचा तो पता चला कि रामनवमी का मेला है । बहुत भीड़ थी उसी में एक घंटा लग गया । एक रोड साइड दुकान पर रुक कर चाय पी ,बर्फी खायी और चल पड़ा । ३ घंटे चलने के बाद गोरखपुर पहुँच गया। हाइवे ठीक तो था लेकिन ट्रेफिक बहुत था । सद्दाम के घर भोजन किया और फिर सो गया । सुबह उठा और लगभग ११ बजे भैरवा बॉर्डर की तरफ चल पड़ा । कहीं कही सड़क बहुत खराब थी ३ घंटे में भैरवा पहुँच गया। नेपाल में घुस कर सीमा शुल्क चौकी पर १२ दिन का सीमा शुल्क मोटरसाईकल का दिया और एक सिम लिया और चल पड़ा । एक जगह रुका तो पता चला कि जिस कम्पनी का सिम लिया है वो बहुत बेकार है उसकी सर्विस अच्छी नहीं । कनेक्टिविटी ठीक रहे इसलिए दूसरा सिम लिया उसके लिए फोटो खिंचवाया ,आधा घंटा इसी में लग गया ,उस दुकानदार ने मुझे बताया कि स्मार्ट कम्पनी का सिम तो फ्री में मिलता है बॉर्डर पर आपको ठग लिया गया ।
मैंने जयादा अफ़सोस नहीं किया क्योंकि यात्राओ में ऐसा होता है। उस दुकानदार से मैंने रास्ता पूछा उसने बताया कि आप नारायणगढ़ होते हुए काठमांडू जा सकते हैं। उस दुकानदार ने मेरे से पूछा आप क्यों ऐसे मोटरसाईकल से यात्रा कर रहे हैं मैंने उसे अपनी पीएचडी और नेपाल का एक्सपर्ट होने की बात बताई वो बहुत प्रभावित हुआ । मैंने उस दुकानदार की जाति पूछी चूँकि मेरा शोध नेपाली सामाजिक सरंचना पर है इसलिए मैं जाति पूछता शर्माता नहीं । वो दुकानदार यादव था। मैं तुरंत वहां से चल पड़ा ,४ घंटे का रास्ता चितवन के जंगलो से होते हुए मुग्लिंग पहुँच गया। ये मैंने पहले ही तय कर लिया था कि पहले अन्नपूर्णा सर्किट की उस कुख्यात सड़क पर मोटरसाईकल चलाऊंगा उसके बाद ही काठमांडू जाऊँगा । मुग्लिंग में रात में कई होटल में रेट पूछा फिर नेवा नामक एक होटल में रुक गया । उस होटल में सर्विस बहुत अच्छी थी । मात्र भारतीय तीनसौ रूपये में बहुत अच्छा डबल बेड वाला कमरा जिसमे टीवी भी था ,तौलिया भी ,पानी भी ,फ्री वाई फाई भी एवं साबुन ,शेम्पू भी । भारत में इतने कम दाम में ऐसे होटल दुर्लभ हैं। रात में कुछ देर अन्नपूर्णा सर्किट की उस कुख्यात सड़क की कुछ वीडियो देखि कुछ इंटरनेट पेज पढ़े जो उसके बारे में थे। पढ़ने पर ही लगा कि ये अब तक सबसे चैलेंजिंग रुट होगा ।
इससे पहले मैं लोअर मस्तांग एवं रारा झील वाला रुट अकेले प्लेटिना से कर चुका हूँ। रारा वाला रुट तो डिप्रेशन कर देने वाला था जिसमें मैं १ घंटे तक जंगल में अकेले चलता रहा कोई इंसान या जानवर नहीं मिला -वो रुट वाकई दिमाग को बुरी तरह थका देने वाला और हताश कर देने वाला था। सुबह उठ कर नाश्ता करने के बाद मैं डुमरे के लिए चल पड़ा ,२ घंटे बाद बेसिशहर पहुँच गया। बेसीशहर में मैंने पेट्रोल पम्प ढूंढा ,टैंक फूल करवाया और कुछ लोगो से सड़क की हालत के बारे में पूछा। बेसीशहर एक ठीकठाक शहर है । जिला लामजुंग का मुख्यालय है । वह कुख्यात सड़क बेसीशहर को चामे से जोड़ती है। चामे मनाग जिला का मुख्यालय है। तभी मेरे नेपाली पत्रकार मित्र अनूप पौडेल जी का फोन आया और वो मुझसे पूछने लगे कि मैं पोखरा कब आऊंगा मैंने उन्हें कहा कि रात तक आने की कोशिश करूँगा। यह मैंने पहले ही तय कर लिया था कि चामे तक नहीं जाऊंगा क्योंकि २ दिन और लग जायेंगे और उस सड़क के कुख्यात झरने तक ही जाऊंगा जहाँ से दृश्य बहुत डरावना दीखता है। मैने अपनी मोटरसाईकल दौड़ा दी शुरू के ५ किलोमीटर सड़क ठीक थी। रस्ते में एक सुरंग भी आयी ,पता चला कि मरसिंगदी नदी पर चीन कोई बांध बना रहा है। उसके कुछ देर बाद खराब सड़क शुरू हुयी और मैंने अपने गोप्रो कैमरे से रेकॉर्डिंग शुरू कर दी। इस सड़क को दुनिया की सबसे खतरनाक सड़क कहा जाता है। पहला कारण सड़क तेजी से ऊँची होती चली जाती है ,एकदम कच्ची सड़क है ,जयादातर सड़क पर पत्त्थर पड़े हैं जो बड़े बड़े हैं । निसंदेह दुनिया की सबसे मुश्किल मोटरेबल सड़क है यह ,कई किलोमीटर तक सड़क बहुत ऊँची है और २ हजार फिट गहरी खायी है एक तरफ तेज चढ़ाई है और बड़े बड़े पत्थर खुले पड़े हैं।
वाकई बहुत बुरी सड़क थी ,कहीं कहीं थोड़ी नार्मल थी,जैसे ही नार्मल सड़क शुरू होती और आप उसमे खो जाते तुरंत बहुत बुरी सड़क शुरू हो जाती ,जिसमे चट्टान कटी पड़ी थी ,बहुत मजबूती से हैंडल पकड़ने पर हाथ दुखने लगे -लेकिन इस सड़क की एक खास बात है हर पांच -दस मिंट पर इंसान या घर दीखते रहते हैं आप कभी अकेले नहीं होते -अन्नपूर्णा का यह रूट ट्रेकर के लिए प्रसिद्ध है. बहुत से विदेशी ट्रेकर रस्ते में मिलते गए -एक विदेशी तो साईकल तो पैदल चला के ले जा रहा था। ४ घंटे तक मैं बड़ी मुश्किल से चलता रहा ,एक बार गिरा भी ,वाकई में बहुत मुश्किल सड़क थी । मैं वीडियो बना रहा था । फोटो लेने का मन नहीं होता था क्योंकि फोटो के लिए रुकना होता है और मैं उस मुश्किल रस्ते से निकलना चाहता था । एक जगह एक रेस्ट्रा में नूडल खाये ,एक झरने का वीडियो बनाया और आगे चल पड़ा। शुरू के ३ घंटे में मात्र बीस किलोमीटर कवर हुआ ।
मेरी गति अपने हिसाब से तेज थी फिर मैं एक बहुत ऊँची सड़क पर पहुँच गया जिसके एक और हजारो फिट गहरी खायी थी और कहीं कहीं रेलिंग लगी थी ,यह वही जगह थी जिसे मैंने यूट्यूब पर देखा था । मैंने कुख्यात झरने के बारे में कुछ टूर गाइड से पूछा उन्होंने कहाँ कि आधे घंटे का और रास्ता है। यह कुख्यात झरना बहुत डरावना है और यह सड़क पर ऐसे बहता है जैसी कोई नदी बह रही हो और एक तरफ हजारो फ़ीट गहरी खायी है। थोड़ी देर में मैं करीब कुल ४२ किलोमीटर की दूरी तय करके झरने पर पहुँच गया । सड़क बहुत जयादा खराब थी हौसले तोड़ देनी वाली सड़क ,एकदम तेजी से उठती सड़क और उसपर पड़े बड़े बड़े पत्त्थर । झरने पर पहुचं कर मैंने वीडियो बनाया ,थोड़ी देर रुका थोड़ा और आगे चला और फिर मुड कर वापसी की बेसीशहर की और । चामे जाने का समय नहीं था क्योंकि मुझे अकेडमिक कार्य भी थे काठमांडू में और वही मेरा मकसद था । इस प्रकार दुनिया की इस सबसे मुश्किल सड़क पर अकेले जाने वाला मैं पहला भारतीय बन गया । मेरे से पहले एक इंडियन मोटरसाइक्लिस्ट ग्रुप[४ लोग ] ही यहां तक आया था जिनके पास स्पेशल डर्ट मोटरसायकल थी और एक दुसरे को मदद करके आगे बढ़ रहे थे। दिलीप मेंजिस नामक मोटरसायक्लिस्ट का था यह ग्रुप जिनका वीडियो "road to manag "आप यूट्यूब पर भी देख सकते हैं। उनके पास स्पेशल राइडिंग जैकेट [जिसमे गिरने पर चोट नहीं लगती ,और स्पेशल जूते थे ]मेरे पास हेलमेट ,दस्ताने के अलावा कुछ नहीं था।
वापसी मैंने बहुत तेजी से की। मेरी मोटरसाईकल का सेंटर स्टैंड एवं साइड स्टैंड दोनों टूट गए रस्ते में मिले अर्जेन्टीनियन ट्रेकर लुकास एवं उसके स्वीडिश एवं इटालियन दोस्तों ने मेरा स्टैंड फीते से बांध दिया । उन्हें धन्यवाद बोलकर मैं आगे बढ़ा। 5 घंटे में मैं बेसीशहर आ गया। रस्ते में २ बार गिरा ,हाथ और जंघा पर हैंडल लगने से नील पड गए लेकिन ख़ुशी भी थी कि मैं दुनिया किस अबसे खतरनाक सड़क पर अकेले एवं साधारण मोटरसाईकल से जाने वाला पहला भारतीय हो गया । चोट के बाद भी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। बेसिशहर के बाद मैं तेजी से पोखरा की और बढ़ गया [बेसिसहर से चामे जाने वाली इस सड़क पर जीप/ suv भी चलती हैं। 65 किलोमीटर की इस सड़क पर सवारी को शेयरिंग में 1250 भारतीय रूपये देने पड़ते हैं ,क्योंकि रास्ता दुष्कर है और यह दूरी आठ से नौ घंटे में तय होती है।[मेरी इस यात्रा के वीडियो आप मेरे यूट्यूब चैनल laxman motorcyclist पर देख सकते हैं]
LAXMAN SINGH DEV
बहुत अच्छी है यात्रा वृतांत मुझे भी बेसिशहर जाने का सौभाग्य प्राप्त है बेशीशहर से अन्नपूर्णा राऊंड ट्रैकपर जहां तक लोकल बस जाती है वहाँ तक गया हूँ
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteगिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में.....
ReplyDeleteगिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में.....
ReplyDeleteबहुत ही रोमांचकारी यात्रा
ReplyDeleteपढकर हाय ऐसा लगा जैसे यात्रा कर आये
ReplyDeleteबहुत सुंदर व्याख्यान, पढ़कर ऐसा लगा जैसे मैं खुद यात्रा कर रहा हूँ।
ReplyDeleteशैल जौहरी
(www.shaiiljoharri.in)
aagal ilink yanha hona jaruari hai
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