हमारी यात्रा शुरू हुई कफनी ग्लेशियर के लिये । कफनी ग्लेशियर के लिये द्धाली से सीधे हाथ की तरफ वाली घाटी में जाना होता है । सरकारी रेस्ट हाउस के उपर से ही रास्ता बना हुआ है । पहले एक घंटा चढाई का था जंगल में होते हुए । उसके बाद बिलकुल नीचे उतरकर नदी के पास पहुंच गये । यहां पर हमें 2013 में आयी आपदा के निशान देखने को मिले
बर्फबारी होने के बाद जीरो प्वाइंट पर मौसम सुहावना हो गया था । ठंडक तो यहां पर पहले से ही थी पर अब ताजी बर्फ के बाद रंगो का सम्मिश्रण हो चला था । हरी घास और सफेद बर्फ ने आंखो को और सुकून देना शुरू कर दिया था । बाबाजी ने जो खिचडी हमें खिलाई थी उसमें किसी फाइव स्टार होटल के खाने से ज्यादा स्वाद था । पिंडारी ग्लेशियर में भूस्खलन काफी होता है इसलिये इसके पास जाकर नही देखा जा सकता है । बाबा की कुटिया से 500 मीटर दूर की चोटी से ही देख सकते हैं । सुबह 10 बजे के चले हम ढाई घंटे में फुरकिया से यहां पर पहुंच गये थे । हमने करीब डेढ घंटा यहां पर बिताया । बाबाजी से आर्शीवाद ले वापस चल पडे फुरकिया की तरफ ।
जब उंचे क्षेत्रो में बर्फबारी होती है तो निचले में बारिश पडने लगती है । ऐसे में वापस तो हम जल्दी ही आ गये फुरकिया में लेकिन आज 20 किलोमीटर से उपर चल चुके थे और आज अगर द्धाली पहुंच भी जाते तो भी कल कफनी ग्लेशियर नही हो पाना था क्योकि कफनी में भी पिंडारी की तरह रूकने का इंतजाम नही है बल्कि उससे 8 या 9 किलोमीटर पहले खतिया में ही रूक सकते हैं । इसका मतलब ये है कि कल फिर से 20 किलोमीटर द्धाली से चलना होगा जबकि आज 30 हो जायेगा जो कि दिक्कत भरा हो सकता है इसलिये आज फुरकिया में ही रूकना तय हुआ । फुरकिया में आते आते बारिश बढ गयी थी । यहां पर एक काफी बडा ग्रुप भी आ गया था जिसमें ज्यादातर विदेशी थे । उन्होने अपने टैंट सरकारी रेस्ट हाउस के बराबर में ही एक जगह पर लगा लिये थे । एक दो छोटे छोटे ग्रुप सरकारी रेस्ट हाउस में भी आ चुके थे इसलिये हमें भी जो कमरा मिला उसमें काफी लोगो के साथ शेयर करना पडा । कमरे भी ऐसे बने हुए हैं कि एक कमरे में से ही दूसरे कमरे का दरवाजा है इसलिये रात को काफी लेट तक लोग आते जाते रहे । लेकिन जब आप दिन में 20 किलोमीटर से ज्यादा चल चुके हों तो एक बार पडने के बाद पता ही नही रहता कि कौन शोर मचा रहा है और कौन नही । खाने के लिये भी बुलावे का इंतजार करना पडा क्योंकि यहां इंतजाम काफी ज्यादा नही है । बनाने वाला और केयर टेकर सब एक ही आदमी है । वो तो पहाडी लोग आपस में एक दूसरे की मदद कर देते हैं और सब लग जाते हैं खासकर घोडे खच्चर वाले या पोर्टर इस मामले में काफी सहायता कर देते हैं ।
सुबह सवेरे उठकर करीब सवा छह बजे तैयार हो गये और द्धाली के लिये चल पडे । साढे आठ बजे तक हम द्धाली पहुंच गये क्योंकि उतराई ही उतराई थी । यहां आकर हमने काफी समय लगा दिया । रेस्ट हाउस से नीचे के एक ढाबे में खाना बनने का आर्डर दे दिया । खाना आदि खाने के बाद हमारी यात्रा शुरू हुई कफनी ग्लेशियर के लिये । कफनी ग्लेशियर के लिये द्धाली से सीधे हाथ की तरफ वाली घाटी में जाना होता है । सरकारी रेस्ट हाउस के उपर से ही रास्ता बना हुआ है । पहले एक घंटा चढाई का था जंगल में होते हुए । उसके बाद बिलकुल नीचे उतरकर नदी के पास पहुंच गये । यहां पर हमें 2013 में आयी आपदा के निशान देखने को मिले जिन्हे देखकर आदमी सिहर उठे । 2013 के बाद सबसे ज्यादा नुकसान इसी घाटी में हुआ । इतना पिंडारी में जीरो प्वाइंट से द्धाली तक भी देखने को नही मिला । पहाड पर बहुत उंचाई तक भूस्खलन और कटाव हो चुका था । यहां से और खतिया तक कहीं भी रास्ते का नामोनिशान नही बचा था । पहाडो पर इस नदी ने अपने विकराल रूप से ऐसी तबाही मचाई कि अभी भी कटाव और भूस्खलन जारी है । बडे बडे विशाल पेड बहुत उंचाई पर लटके हुए हैं और पहाड बिलकुल सफेद हो चुके हैं । छोटे छोटे पत्थर गिरने जारी हैं । ऐसे में रास्ता बनाने का कोई रास्ता ही नही रह गया है । आमतौर पर नदी से थोडा उपर को रास्ता बनाया जाता है ताकि नदी में पानी ज्यादा आने पर भी रास्ता बचा रहे पर अब तो जहां तक नजर जाती है वहां तक पहाड कट चुका है और रास्ता बनाया ही नही जा सकता इसलिये फिलहाल नदी के पाट में से ही पत्थरो को हटाकर अस्थायी रास्ता बना दिया गया है ।
खतिया यहां द्धाली से 5 किलोमीटर का रास्ता था जो कि अब 7 किलोमीटर का हो गया है । नदी किनारे किनारे ही चलते जा रहे थे कि एक जगह एक रास्ता उपर को जाता मिला जबकि एक वही नदी किनारे को । हम शार्टकट के चक्कर में नदी किनारे वाले रास्ते को ही चलते रहे । हमारे अलावा कफनी आज कोई नही आया था क्योंकि जब हमने पूछा कि कफनी के क्या हालात हैं तो हमें भी कोई सही जवाब नही मिला था । काफी दूर जाने के बाद नदी की धारा के साथ में कोई रास्ता नही रहा क्योकि रास्ता तो उपर पहाड में था और हम सोच रहे थे कि ऐसे ही चलते रहेंगें । अब केवल विशाल बोल्डर थे पर एक बात क्लियर थी कि नदी आ तो कफनी से ही रही है इसलिये भटकने का तो सवाल नही है । चिंता बस इस बात की थी कि खतिया जहां कि आज रूकना है वो नदी किनारे है या फिर जंगल में होते हुए रास्ते पर पडेगा ये हमें पता नही था । मेरे तीनो साथियो ने नदी किनारे बोल्डरो से ही जाने का निश्चय किया जबकि मैने यहीं से उपर चढकर पहाड के रास्ते को पकडने का । मै बेवकूफो की तरह ऐसे ही पत्थरो को पकडकर चढने लगा और चढ भी गया पर वो मेरी बहुत बडी गलती थी क्योंकि पत्थर जमें हुए पहाड में नही लगे थे बल्कि मिटटी कटे पहाड में लगे थे जो कि कई बार उखडने को तैयार थे । जैसे तैसे करके कटाव वाले पहाड पर से उपर चढा तो जो मुझे हरियाली लग रही थी वो छोटे छोटे पेड थे कांटो वाले जिन्हे ना पकडने का जुगाड था और ना वहां पर कहीं पर रूकने का क्योंकि सीधी खडी ढाल पर मै था । जैसे तैसे राम राम करके और पेडो के नीचे जमी घास को पकड कर मै रास्ते तक आ पाया । थोडी देर बैठकर सांस लिया और अब ये देखना था कि मुझे तो रास्ता मिल गया है पर वे लोग कहां तक पहुंचे । मैने चलना शुरू किया और एक किलोमीटर आगे जाकर मुझे दूर एक कोने पर एक झौंपडी दिखने लगी जहां से धुंआ भी उठ रहा था । खतिया यही होना चाहिये था अब मैने आवाज देनी शुरू की तो नीचे से भी आवाज आयी । उसी झौंपडी के काफी नीचे नदी बह रही थी और वहां झौंपडी से लेकर नदी तक सामान्य ढलाव था साथ ही हरियाली और पेड काफी थे । मेरे साथियो को नदी के सहारे सहारे रास्ता मिल गया था और उन्हे बस उपर से आ रहा एक दो नाले को क्रास करने में थोडी दिक्कत आयी पर वे मुझसे पहले पहुंच गये थे । निश्चित तौर पर कफनी का रास्ता ज्यादा रोमांचक था पिंडारी के मुकाबले जहां सांस अटक गयी थी
Pindar Kafni trek-
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
पिंडारी से वापसी में जाते हुए |
कफनी ग्लेशियर की यात्रा के लिये जाते हुए |
कफनी ग्लेशियर की यात्रा के लिये जाते हुए |
इस मोड से नदी के पाट के साथ चलना है |
मोड से आगे पीछे को देखने पर |
सामने जहां तक दिख रहा वहां तक जाना है उससे आगे भी जाना है |
कफनी जो सिर्फ द्धाली तक कफनी नदी है |
खतिया से कुछ पहले बना हुआ रास्ता |
खतिया |
खतिया में रात का रूकने का ठिकाना |
हमारा दल — फोटो मोबाइल से |
फोटो मोबाइल से |
खतिया में रसोई — फोटो मोबाइल से |
गज़ब दृश्य ।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दुर्गा खोटे और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteरोमांचक यात्रा फ़ोटो बहुत सुन्दर आए है
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