खाती गांव इस रूट का आखिरी गांव तो है ही पर काफी सुंदर भी है । गांव वालो का मुख्य पेशा खेती और यहां आने वाले पर्यटको के साथ पोर्टर , गाइड और दुकाने चलाने का है । गांव की लोकेशन और उपर से उनके द्धारा की जा रही खेती का दृश्य देखते ही बनता है । गांव में घुसने के बाद जो सबसे पहली दुकान दिखायी दी हमने यहीं पर अपना पहला विश्राम किया । यहां पर हमने नाश्ता बनवाया और साथ ही परांठे बनाकर पैक करने के लिये बोल दि
क्षमा सहित लिखना है कि एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के कारण इस यात्रा को लिखने के लिये जब दोबारा बैठा तो ट्रेन को पटरी पर चढने में काफी समय लगा । एक पोस्ट लिखकर छोड चुका था जब दूसरी वाली लिखी तो फोटो तक नही ढूंढ पाया था । इस यात्रा से पहले ही मैने एक छोटा कैमरा कैनन का लिया था । इस कैमरे का साइज पाकेट वाला है जबकि कैनन का ही पहला कैमरा डीएसएलआर के साइज का है । इन दोनो के अलावा मोबाईल से भी काफी फोटो लिये पर जब दूसरी पोस्ट लिखी तो एक ही कैमरे के फोटो डाल दिये । आपको भले अजीब लगे पर इस तरह से यात्रा की कुछ बाते छोडकर निकल जाना ठीक नही इसलिये यहां पर लिख रहा हूं और खासकर पिछली पोस्ट में जो फोटो डाले वो यात्रा से बिलकुल आगे के थे ।
लगातार 24 घंटे की गाडी चलाने में इतनी दिक्कत नही आती जितनी कि बारिश और खराब सडक ने कर दी थी । हमारी हालत पतली इसलिये थी क्योंकि एक तो रास्ता बहुत खतरनाक और उपर से कच्ची पक्की सडक । गाडी में चार लोगो का सामान था और सीएनजी होने के कारण गाडी की डिक्की में जरा सी भी जगह नही थी । अब चार लोगो के चार बैग टैंट आदि के बाद चार बंदे सबसे छोटी गाडी आल्टो 800 में कैसे कैसे बैठे बडा मुश्किल है बताना । उपर से रही सही कसर बारिश और अंधेरे ने पूरी कर दी । बारिश की वजह से शीशे पर बार बार नमी आ जाती थी और एसी ऐसे खराब रास्ते और चढाई पर चला नही पा रहे थे । शीशे पर सफेदी आती और साइड के तो बिलकुल दिखना बंद हो जाते तो गाडी तो बस अंदाजे से ही चला पा रहे थे । रास्ते में जो भी एक दो बंदे मिले उनसे रास्ता पूछा तो रास्ता ही नही पता क्योंकि उनमें से ज्यादातर सडक पर काम करने वाले थे और आजकल उत्तराखंड में रोड का काम करने वाले ज्यादातर मजदूर नेपाली मिलते हैं । रात को जब हम खरकिया पहुंच गये और सोने को जगह भी मिल गयी तब जाकर लगा कि हम जीवित हैं वरना तो लग रहा था कि किसी अंतहीन सफर पर निकल गये हैं । सुबह खरकिया में जब गाडी देखी और बाहर निकलकर लोकेशन देखी तब जाकर पता चला कि हम कहां पर हैं । पिंडर घाटी उत्तराखंड के सबसे दुर्गम स्थानो में से है और एक खास बात ये है कि इस घाटी में मौसम कब बदल जायेगा ये कोई भी मौसम विभाग या एप्प नही बता सकता है सही से । मौसम के पूर्वानुमान के बारे में ये घाटी बडी दिक्कत भरी है । 2013 में आयी आपदा के समय इस घाटी में बहुत बडा नुकसान हुआ था । पिंडारी ग्लेशियर और कफनी ग्लेशियर के रास्ते बह गये और पिंडारी और कफनी ने जो तांडव मचाया उसके निशान हमें इस यात्रा में देखने को मिले ।
सुबह सवेरे 8 बजे हम ट्रैक करने के लिये तैयार हो गये । जो सामान फालतू लगा उसे हमने गाडी में छोड दिया और गाडी लाक करके दुकान वालो को ध्यान रखने के लिये कह दिया । बाकी सबने अपने बैगपैक लादे और चल दिये । जैसा कि मैने पहले बताया कि अमित तिवारी का प्रोग्राम था कि पिंडारी ग्लेशियर और कफनी ग्लेशियर की यात्रा के बाद पंगु टाप और एक दो जगह और भी जाना है तो उन्होने टैंट और स्लीपिंग बैग भी ले लिये । इसके अलावा खाती जाकर ही पता चलना था सही से कि आगे ट्रैक पर क्या स्थिति है । यहां मौसम की मार की वजह से ट्रैक कई बार बंद हो जाता है । दूसरी एक स्थिति ये भी थी कि हम सीजन के लास्ट समय में आये थे तो द्धाली और अन्य जगहो पर खाना और रूकने की स्थिति नही मिलती है कई बार इसलिये टैंट ले जाना खाती तक तो जरूरी है । यदि खाती में आगे की स्थिति के बारे में सही पता चला तो ठीक है वरना सब सामान अपना लेकर जायेंगें । खरकिया से खाती गांव की दूरी 4 किलोमीटर है । बीच में एक छोटा सा गांव तीख नाम का भी पडता है । तीख गांव क्या तीन से चार घर या ढाबे से हैं । खरकिया से सडक आगे तक भी कट गयी थी पर वो खाती गांव की तरफ नही थी । खाती गांव तक जाने के लिये रास्ता चढाई उतराई वाला है । रास्ते में एक स्कूल भी है जिसमें काफी बच्चे आते हुए मिले । गांव वालो का सब सामान उस दुकान से ही आता है जहां पर हम रात को रूके थे । उस दुकान में हर तरह के सामान का बडा स्टाक लगा हुआ था । वहां से खच्चरो और आदमियो के द्धारा सामान को ढोया जाता है । खाती तक जब ये हाल है तो यहां से 30 किलोमीटर दूर जब सामान ढोकर ले जाया जायेगा तो उसके भाव तो ज्यादा हो ही जाने हैं । खाती गांव जाने में हमें एक घंटा 20 मिनट लगी जो कि सामान्य समय है 4 किलोमीटर के लिये । यहां पर खाती गांव इस रूट का आखिरी गांव तो है ही पर काफी सुंदर भी है । गांव वालो का मुख्य पेशा खेती और यहां आने वाले पर्यटको के साथ पोर्टर , गाइड और दुकाने चलाने का है । गांव की लोकेशन और उपर से उनके द्धारा की जा रही खेती का दृश्य देखते ही बनता है । गांव में घुसने के बाद जो सबसे पहली दुकान दिखायी दी हमने यहीं पर अपना पहला विश्राम किया । यहां पर हमने नाश्ता बनवाया और साथ ही परांठे बनाकर पैक करने के लिये बोल दिया । इसमें कुछ समय लगना था सो तब तक गपशप की और अपना आगे की स्थिति के बारे में पता किया । अभी की जानकारी के अनुसार अभी तक द्धाली में और उससे आगे फुरकिया में साथ ही कफनी ग्लेशियर के रास्ते पर भी दुकाने मिल जायेंगी और खाने का साधन भी । ऐसे में हमें अपने साथ टैंट लेकर जाने की जरूरत नही है सो हमने टैंट और स्लीपिंग बैग को यहीं पर छोड दिया इसे हम आते समय ले लेंगे ।
यहीं इसी दुकान वाले के पास रूकने के लिये कई कमरो की व्यवस्था है और साथ ही रोजमर्रा के जरूरी सामान की दुकान भी । दुकान से काफी सारा सामान जरूरत का हमने भी ले लिया । गांव में जो आने का रास्ता है वो सीधा ट्रैक पर जाता है । गांव उल्टे हाथ पर है जबकि एक पगडंडी है जिस पर आप नही रूकना चाहें तो सीधे निकल सकते हैं । गांव में कई आप्शन हैं स्टे के लिये । खाती गांव 2000 मीटर की उंचाई पर है और यहां पर लाइट नही है । यहां पर सिग्नल फोन के केवल बीएसएनएल के ही आते हैं पर वो भी सब मौसम पर निर्भर है । जिस दिन हम यहां पर थे तो खरकिया में और यहां पर नेटवर्क नही आ रहा था । हमने रात में तो इस बारे में ध्यान नही दिया पर अब सभी को अपने घर पर कम से कम एक फोन या मैसेज करना था कि आज से हम ट्रैक पर निकल रहे हैं और कम से कम 4 दिन तक हमारा फोन नही मिलेगा । हमने गांव वालो के फोन से फोन करना चाहा तो वो भी नही हो पाया । इसलिये हमने चारो ने अपने अपने घर के नंबर दुकान वालो को दे दिये और सबका संदेश चूंकि एक ही था तो वो उनको बता दिया । पहाड के लोग सज्जन और कोमल मन के होते हैं छल कपट ना के बराबर होता है तो जब भी नेटवर्क आया होगा वो संदेश उन्होने पहुंचा दिया था ये घर वापस आकर पता चल गया । इन सब काम में हमें 11 बज गये । नाश्ता करके और रास्ते के लिये परांठे पैक करवा कर हम 11 बजे निकल चले द्धाली के लिये ।
Pindar Kafni trek-
खरकिया |
खरकिया से खाती की तरफ जाते हुए |
Buransh flowers |
Khati village |
way to khati village |
Khati village |
Breakfast at Bhikmtal lake |
Kausani vally |
खरकिया में रात का ठिकाना |
खाती गांव के रास्ते में |
खाती गांव |
खाती गांव में खाना |
बहुत सुंदर और रोमांचित करने वाला वर्णन
ReplyDeleteवाह मनू भाई शानदार लिखा है लेकिन खत्म जल्दी हो गया
ReplyDeleteShi kiya bhai ho jao shuru
ReplyDeleteShi kiya bhai ho jao shuru
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन साक्षरता दिवस सिर्फ कागजों में न रहे - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteशानदार मनु भाई
ReplyDeleteव्वा मनुभाई रिटर्न एक साल बाद कि पोस्ट फिर भी ऐसा लगा की अभी की है शानदार सुरवात
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