खाती गांव जहां 2000 मीटर पर है वहीं द्धाली करीब 2500 मीटर की उंचाई पर तो यहां तक हमने 13 किलोमीटर में 500 मीटर की ही उंचाई चढी थी जबकि फुरकिया 3200 मीटर की उंचाई पर है तो यहां पर 6 किलोमीटर में ही 700 मीटर की उंचाई चढ चुके थे इसलिये थोडा समय भी ज्यादा लग रहा था और थकान भी हो रही थी । ज्यादा महसूस इसलिये नही हुआ क्योंकि जब रात को आराम कर लेते हैं तो उसके बाद काफी एनर्जी मिल जाती है इसलिये ये वाला टुकडा तो आराम से हो गया । अब फुरकिया से पिंडारी के रास्ते पर चल पडे थे जो ज्यादा चढाई वाला नही था क्योंकि अब 3200 से 3600 मीटर तक ही जाना था और वो भी 8 किलोमीटर के करीब में तो क
द्धाली में शाम को खाना खाने से पहले कुछ और ट्रैकर से मुलाकात हुई । यहां पर सबसे बढिया साधन है कि आप आते जाते ट्रैकर से मिलो और बात करो । हमारे साथ जो रूके हुए थे वो वापस जाने वाले थे कल । वे कल शाम खाती या फुरकिया में पहुंच जायेंगें और उन्हे नेटवर्क मिल जायेगा ऐसे में आप उन्हे एक छोटा सा टैक्सट मैसेज करने को बोल सकते हैं क्योंकि उसमें किसी को समय नही लगता है और कोई दिक्कत वाली बात भी नही है । हमने भी उन सज्जन को मैसेज लिखकर दे दिया ताकि वो नेटवर्क में जाने के बाद ये हमारे घर पर कर सकें । यहां पर संचार का साधन यही है जो उपर जा रहा है या जो नीचे जा रहा है उसी से कुछ पता चल सकता है ।
सुबह सवेरे के लिये हमने रेस्ट हाउस के खाना बनाने वाले को बोल दिया था कि हम सुबह निकलेंगें तो हमें चाय नाश्ता और साथ में रास्ते के लिये परांठे बने हुए चाहियें । हम सुबह सवा छह बजे नहा धोकर तैयार भी हो गये पर थोडी देर हो गयी परांठे बनाने में सो हम करीब पोने सात बजे निकल पाये द्धाली से पिंडारी के लिये । पिंडारी ग्लेशियर द्धाली से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर है । ये पहले कुछ कम था पर आपदा के बाद रास्ते बह जाने के कारण इनकी दूरी बढ गयी है । द्धाली से चलने के बाद छह किलोमीटर बाद फुरकिया आता है जहां पर रूकने और खाने की व्यवस्था है । यहां पर भी सरकारी रेस्ट हाउस बना है और फाइबर हट भी बने हुए हैं । हम जब गये तब बुरांश का सीजन चल रहा था इसलिये पूरे रास्ते अब बुरांश के फूल मिलने शुरू हो गये थे । द्धाली से चलने के बाद लगातार चढाई है फुरकिया तक । रास्ता नदी से काफी उंचाई पर बना हुआ है और पिंडर नदी का शोर बहुत तेज सुनाई देता रहता है । यहां पर सामने वाली साइड में पहाडो पर काफी सुंंदर झरने दिखते हैं । सवा दो घंटे में हम फुरकिया पहुंच गये यानि 9 बजे । यहां पर चूंकि खाने की व्यवस्था थी तो खिचडी पापड और चाय के साथ खायी गयी । अब इस चक्कर में दस बज गये । पिंडर और कफनी घाटी में जैसा कि मैने बताया कि मौसम बदमिजाज रहता है तो ऐसे में यहां 12 बजे दिन के बाद आप कभी भी मौसम खुला होने की उम्मीद नही कर सकते हैं । हालांकि अभी तक मौसम साफ तो था पर बादल भी घिरते दिखायी देने लगे थे और अभी हमें पिंडारी ग्लेशियर जाना था जो कि यहां से 8 किलोमीटर था और वापस यहां तक भी आना 8 किलोमीटर और 6 किलोमीटर द्धाली यानि सफर काफी है इसलिये ठीक दस बजे हम निकल पडे पिंडारी ग्लेशियर के लिये ।
खाती गांव जहां 2000 मीटर पर है वहीं द्धाली करीब 2500 मीटर की उंचाई पर तो यहां तक हमने 13 किलोमीटर में 500 मीटर की ही उंचाई चढी थी जबकि फुरकिया 3200 मीटर की उंचाई पर है तो यहां पर 6 किलोमीटर में ही 700 मीटर की उंचाई चढ चुके थे इसलिये थोडा समय भी ज्यादा लग रहा था और थकान भी हो रही थी । ज्यादा महसूस इसलिये नही हुआ क्योंकि जब रात को आराम कर लेते हैं तो उसके बाद काफी एनर्जी मिल जाती है इसलिये ये वाला टुकडा तो आराम से हो गया । अब फुरकिया से पिंडारी के रास्ते पर चल पडे थे जो ज्यादा चढाई वाला नही था क्योंकि अब 3200 से 3600 मीटर तक ही जाना था और वो भी 8 किलोमीटर के करीब में तो कहीं कहीं पर ही सांस फूलने वाली चढाई मिलती थी । बाकी बुरांश के फूलो ने समां बांधा हुआ था और बहुत दूर से ही बर्फ से ढकी नंदाखाट , बलजोरी और पंवालीद्धार जैसी चोटियां दिखनी शुरू हो गयी थी । उन चोटियो के नीचे पिंडर की धारा ऐसी लग रही थी जैसे किसी बडे से पेज पर एक छोटी पेंसिल से खींची गयी रेखा । पर यहां पर पानी का रंग बडा सुंदर होता है । नदी के दूसरी ओर के पहाड पर काफी घास के मैदान दिख रहे थे और उनमें बनी एक दो झौंपडियां भी । गददी लोग ऐसे ही घास के मैदानो में अपने पशुओ को लिये रहते हैं । पानी का कोई साधन नही है सिवाय उपर से बहकर आते कुछ पानी के श्रोत के अलावा । रात को जब हम द्धाली में रूके थे तो वहां पर तापमान काफी गिर गया था । होटल वाले ने बताया कि उपर बर्फ पडी है रात को और वो अब हमें मिल रही थी रास्ते में ।
कई सारे ग्लेशियर भी रास्ते में पडे जिनमें से एक दो को पार करना काफी खतरनाक था क्योंकि जो लोग कल गये भी होंगें उनके पैरो के निशान रात पडी बर्फ के कारण पूरी तरह ढक चुके थे और हमें ही शुरूआत करनी थी । एक ग्लेशियर पार करने को तो काफी उंचा चढना पडा तब जाकर रास्ता मिला । दृश्य बहुत मनोरम था पर अब तक जीरो प्वांइट नही दिखायी दिया था । चढते चढते आखिर एक उंची जगह पर आकर बडा मनोरम दृश्य आया जब काफी दूर तक फैला मैदान दिखायी दिया और उसी में एक जगह पर पत्थर की बनी झौंपडी दिख रही थी ।
सुबह दस बजे फुरकिया से चलने के बाद करीब साढे 12 बजे यानि ढाई घंटे में लगातार चलने के बाद हम जीरो प्वांइट पहुंच गये थे । यहां पर बाबाजी की कुटिया बनी हुई है जिन्हे पिंडारी बाबा के नाम से ही पुकारा जाने लगा है क्योंकि वो साल के साल यहीं पर रहते हैं । उन दिनो में भी जब कि कोई यहां पर नही आता है । जीरो प्वांइट से आगे पिंडारी ग्लेशियर देखने के लिये थोडा 500 मीटर और चढना पडता है । पिंडारी ग्लेशियर को आप दूर से ही देख सकते हैं क्योंकि इस ग्लेशियर में भूस्खलन काफी होता रहता है ।
बाबाजी कभी कभी नीचे मैदान में भी चले जाते हैं । बाबाजी ने इस घाटी में ग्रामीणो की मदद के लिये कई सामाजिक काम कराये हैं । वे अपने प्रयत्नो से गांव के रास्ते और स्कूल चलाने में भी मदद करते रहते हैं इसलिये यहां के ग्रामीण उनकी काफी इज्जत करते हैं । बाबाजी ने अपनी कुटिया में साल भर के लिये काफी सामान संग्रहित कर रखा है । जब बाबाजी मैदान में जाते हैं तो उस समय आने वालो को उनके दर्शन नही हो पाते हैं पर हम जब गये तो बाबाजी वहीं पर थे । बाबाजी मूडी आदमी हैं तो उनका मन करे तो वो खिला दें उनका मन ना करे तो वो बात भी ना करें । हम चारो लोगो से उन्होने प्यार से बात की और खिचडी और चाय बनाकर खिलायी पर साथ ही ये भी कह दिया कि मौसम खराब होने वाला है जल्दी निकल जाओ । हमने खिचडी खायी ही थी कि बर्फबारी होने लगी ।
Pindar Kafni trek-
ऐसे झरने आम बात हैं इस रास्ते पर |
ट्रैकर अमित तिवारी व सूरज मिश्रा |
शुक्र है पानी कम था इस नाले में |
फुरकिया में रेस्ट हाउस और फाइबर हटस |
ऐसे बर्फ के पैच पार करना काफी मुश्किल होता है |
ताजी बर्फ ने खूबसूरती बढा दी है |
पिंडर नदी अपनी शुरूआती अवस्था में |
बर्फ , पहाड , बुरांश और ट्रैकिंग |
जीरो प्वांइट के पास बाबा जी की कुटिया |
जीरो प्वाइंट से पहले का नजारा |
बस एक ही पोज दिया और चलती बनी मैडम |
पिंडारी ग्लेशियर और भूस्खलन |
जीरो प्वाइंट से |
ताजी बर्फबारी शुरू |
अब मोबाईल से लिये गये कुछ फोटो
द्धाली से निकलते ही |
बुरांश |
द्धाली की खिचडी और पापड |
बर्फ के पैच |
बाबा जी की कुटिया के पास मंदिर के बाहर नंदी जी बर्फबारी में |
बर्फ के पैच |
फुरकिया में लगा बोर्ड |
चित्र विवरण लाजवाब मनुभाई
ReplyDeleteKhoobsurat. Agle hafte hum bhi Himalaya ke liye nikal rahe hain. Ummid hai achi kategi :)
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर फोटो और यात्रा वृतांत है, लेकिन थोड़ा पता करना मुश्किल हुआ कि कौन सा पहला दूसरा या तीसरा भाग है.
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